तेरह साल पहले आई ‘अवतार’ के साथ जेम्स कैमरून ने फिल्मी परदे पर इतिहास की सबसे महंगी, सबसे दुरूह और सबसे ज्यादा विस्मयकारी गाथा लिखनी शुरू की थी। उन्होंने किसी अनजान ग्रह और उस पर बसे अलग तरह के प्राणियों की कल्पना की जिनका पृथ्वी के लालची और विस्तारवादी इंसानों से टकराव होता है। इस टकराव के बीच से गुजरती है सामुदायिक संवेदनाओं और पारिवारिक मूल्यों की एक अनोखी कहानी। इस साइंस फिक्शन के कुल पांच भाग बनने हैं जिनमें से दूसरे भाग का नाम है ‘अवतार: द वे ऑफ वॉटर।’ पहला भाग आकाश आधारित था तो यह जल आधारित है जबकि अग्नि आधारित तीसरा भाग 2024 में आएगा। फिर इसके आखिरी दो भाग 2026 और 2028 में रिलीज़ किए जाने की योजना है, बशर्ते कि इस बीच कोरोना जैसी कोई अड़चन नहीं आए। 2009 में आई पहली ‘अवतार’ ने लगभग 2.9 अरब डॉलर की कमाई की थी जो कि दुनिया भर में अब तक एक रिकॉर्ड है। माना जा रहा है कि ‘अवतार’ के इस रिकॉर्ड को उसका अपना सीक्वल ही तोड़ सकता है।
हॉलीवुड की इस फिल्म की तैयारी में ही बरसों का समय लगा। तीन साल तक तो केवल इसकी शूटिंग चली जिसमें बहुत सा हिस्सा पानी के भीतर फिल्माया गया। इस पर करीब 400 मिलियन डॉलर खर्च करने के अलावा इसके आर्ट व कैमरा वर्क, तकनीकी पहलुओं और इसके बैकग्राउंड संगीत पर जबरदस्त मेहनत की गई है। अनेक समीक्षक मानते हैं कि थ्रीडी का ऐसा इस्तेमाल पहले कभी नहीं हुआ। दुनिया के बहुत से देशों में इसे एक साथ रिलीज़ किया गया है और कई देश उम्मीद कर रहे हैं कि यह फिल्म उनके खाली पड़े थिएटरों को फिर से भरने में मदद करेगी। भारत में भी इसकी एडवांस बुकिंग बहुत बड़े पैमाने पर हुई और इसने पहले ही दिन 38 करोड़ का कारोबार किया। यह कोई छोटा आंकड़ा नहीं है, फिर भी यह ‘एवेंजर्स एंडगेम’ के मुकाबले कम रहा है, इसलिए तमाम मल्टीप्लेक्स कंपनियां और थिएटर मालिक अभी कई दिन तक इसकी कमाई पर बेसब्री से नज़र रखेंगे।
इस फिल्म में एक बिलकुल अलग संसार रचा गया है जिसमें अनगिनत पात्र हैं। इसमें पर्यावरण की भी महत्वपूर्ण भूमिका है और समुद्र यानी पानी की भी। यह फिल्म निजी स्वार्थ से प्रेरित प्रकृति के असीमित दोहन को रोकने का संदेश भी देती है। भारतीय संस्कृति में व्याख्यायित पांच तत्वों के संदर्भ में भारतीय दर्शक इससे तुरंत तादात्म्य बिठा सकते हैं। संयोग से इसकी आर्ट डायरेक्टर भारतीय मूल की आश्रिता कामत हैं।
जेम्स कैमरून कहते हैं कि मेरे सामने एक बड़ा चैलेंज यह था कि इस फिल्म पर बरसों तक काम करते हुए आपका नज़रिया लगातार वही बना रहे जिसे लेकर आपने फिल्म शुरू की थी। उनके मुताबिक इस फिल्म में उनकी सबसे बड़ी कोशिश यह रही कि ऑब्जेक्टिविटी, यानी निष्पक्षता, पर कैसे डटे रहा जाए। सचमुच, किसी फिल्मकार के लिए इससे ज्यादा महत्वपूर्ण और कुछ नहीं हो सकता।