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‘पठान’ की राह में सौ रोड़े

‘पठान’ की राह में सौ रोड़े

ठंडा मतलब लस्सी। यह वाक्य शुरू में शायद लुधियाना के एक ढाबे के बाहर लिखा देखा गया था। इसे आप एक नुक्सानदेह विदेशी पेय के प्रति उस ढाबे वाले का विरोध भी मान सकते हैं और अपनी बिक्री बढ़ाने का तरीका भी। मगर यह ‘ठंडा मतलब कोका कोला’ वाली मशहूर विज्ञापन पंक्ति की तर्ज़ पर था जो कि विज्ञापन जगत की बड़ी हस्ती प्रसून जोशी की देन थी। प्रसून जोशी बॉलीवुड के जानेमाने गीतकार हैं और इन दिनों सेंट्रल बोर्ड फॉर फिल्म सर्टिफिकेशन यानी सेंसर बोर्ड के प्रमुख भी हैं। कई विवादों के बाद जब इस पद से पहलाज निहलानी को हटा कर प्रसून जोशी को लाया गया था तब बहुत से लोगों में इस संस्थान को लेकर उम्मीदें जगी थीं। मगर यशराज की फिल्म ‘पठान’ के कारण बने माहौल ने सेंसर बोर्ड को भी चपेट में ले लिया है।

कुछ समय पहले सरकार ने जिन आशा पारिख को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया, ‘पठान’ का मामला उन्हें भी खटका है। आशा पारिख खुद भी सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष रह चुकी हैं। वे कहती हैं कि बॉलीवुड कभी इतने खराब दौर से नहीं गुजरा, साठ साल के अपने करियर में मैंने ऐसा वक्त नहीं देखा। उनके मुताबिक इस फिल्म को बगैर किसी रोकटोक के रिलीज़ होने देना चाहिए, क्योंकि यशराज फिल्म्स तो पहले ही कई झटके झेल चुका है। शायद वे कहना चाहती थीं कि यशराज की पिछली फिल्में ‘शमशेरा’, ‘सम्राट पृथ्वीराज’ और ‘जयेशभाई जोरदार’ बुरी तरह फ्लॉप रही हैं।

अस्सी बरस की इस अभिनेत्री का कहना था, ‘कुछ लोग पूरे देश की तरफ से यह कैसे तय कर सकते हैं कि क्या गलत है और क्या सही। आप फिल्म नहीं देखना चाहते तो मत देखिए। मैं देखना चाहती हूं। आप मुझे क्यों रोक रहे हैं?’ इस फिल्म के एक गीत में दीपिका पादुकोन की बिकिनी के रंग पर खूब हंगामा मचाया गया है। आशा कहती हैं कि किसी गाने से समस्या है तो उसे हटा दो, लेकिन मेरी निजी राय में यह धमकाने वाला रवैया बिलकुल गलत है। उन्होंने कहा, ‘नारंगी तो हममें से बहुत सी हीरोइनों का पसंदीदा रंग हुआ करता था। अब कोई कहे कि यह रंग पहनो, वह मत पहनो, यह तो बुली करने की हद है।‘

बहरहालर, सेंसर बोर्ड ने शाहरुख खान और दीपिका की इस फिल्म में कई बदलाव करने को कहा बताते हैं। इनमें से कुछ आपको तार्किक लग सकते हैं तो कुछ मौजूदा माहौल के अनुकूल। प्रसून जोशी कहते हैं कि सेंसर बोर्ड क्रिएटिविटी और दर्शकों की संवेदनशीलता के बीच संतुलन बना कर रखता है और हमें यकीन है कि बातचीत के जरिए कोई न कोई रास्ता हम निकाल सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हमारी संस्कृति और मान्यताएं महान हैं और हमें सावधान रहना होगा कि बेकार की बातों से ये प्रभावित न हों।

इस बीच मलयालम फिल्मों के सुपरस्टार पृथ्वीराज सुकुमारन ने कहा है कि शाहरुख खान की इस फिल्म से बॉलीवुड में चल रहा सूखा समाप्त हो जाएगा। एक पैनल डिस्कशन में पृथ्वीराज ने कहा कि एक समय था जब दक्षिण के फिल्मकार इस बात से हैरान होते थे कि बॉलीवुड की देश और विदेश के बाजारों पर इतनी मजबूत पकड़ कैसे है। इसलिए बॉलीवुड का सूखा बस एक दौर है। एक बड़ी हिट आएगी और पूरी कहानी बदल देगी। उन्होंने कहा कि शायद‘पठान’वह फिल्म है।

अब जबकि दक्षिण और बॉलीवुड की सीमाएं मिट रही हैं, हम पृथ्वीराज सुकुमारन को अक्षय कुमार और टाइगर श्रॉफ के साथ ‘बड़े मियां छोटे मियां’ में देखने वाले हैं। मगर मलयालम में पृथ्वीराज को जो माहौल मिलता है, वह बॉलीवुड में संभव नहीं लगता। उन्होंने खुद‘कुरुथि’जैसी फिल्म बनाई है जिस पर हिंदी वाले केवल अचंभित हो सकते हैं कि यह पास कैसे हो गई। और यह ऐसी अकेली फिल्म नहीं है। पृथ्वीराज की अपनी कई और ऐसी ही फिल्में मौजूद हैं, जबकि यहां हाल यह है कि दक्षिण में बन रही‘आदिपुरुष’का भी इतना विरोध हुआ कि उसे बहुत बड़ी रकम खर्च करके वीएफएक्स बदलने पड़ रहे हैं। प्रभास, सैफ अली खान और कृति सैनन की इस फिल्म के पात्रों का स्वरूप और रावण का वाहन तक बदला जा रहा है। इस चक्कर में उसकी रिलीज़ ही कई महीने पीछे खिसक गई है।

Published by सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

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