बीआर चोपड़ा की एक फिल्म थी ‘कर्म’ जो उन्होंने ‘धुंध’ और ‘पति, पत्नी और वह’ के बीच 1977 में बनाई थी। इसमें राजेश खन्ना के साथ विद्या सिन्हा और शबाना आज़मी ने काम किया था। राजेश खन्ना का बाज़ार तब तक काफी कुछ बिगड़ चुका था, फिर भी यह फिल्म चल गई थी। इसमें एक तीन साल की बच्ची दिखाई गई थी जो उर्मिला मातोंडकर थीं। वह बच्ची श्याम बेनेगल की ‘कलयुग’ और राहुल रवेल की ‘डकैत’ में भी दिखी। फिर शेखर कपूर ने अपने निर्देशन की पहली फिल्म ‘मौसम’ में उर्मिला को लिया जिसमें उन्हें ‘लकड़ी की काठी’ वाले गाने के लिए याद किया जाता है।
लड़की की किस्मत तेज थी, सो मुश्किल से सोलह साल की उम्र में उसे एक मलयालम फिल्म ‘चाणक्यन’ में हीरोइन की भूमिका मिल गई जिसके हीरो थे कमल हासन। उसी साल वे ऋषि कपूर और मीनाक्षी शेषाद्रि वाली ‘बड़े घर की बेटी’ में भी आईं और दो साल बाद एन चंद्रा की ‘नरसिम्हा’ में भी जिसमें सनी देओल और डिंपल कपाड़िया थे। उन्हें दक्षिण से लगातार फिल्में मिलती रहीं जबकि बॉलीवुड में ‘रंगीला’ से वे चमकीं और ‘जुदाई’, ‘सत्या’, ‘खूबसूरत’, ‘प्यार तूने क्या किया’, ‘इक हसीना थी’, ‘तहज़ीब’ आदि के साथ उनका सफ़र तेजी से चला। रफ्तार कुछ कम हुई तो 2003 में उन्हें अमृता प्रीतम के उपन्यास पर बनी ‘पिंजर’ में काम मिला। डॉ चंद्र प्रकाश द्विवेदी के निर्देशन की यह फिल्म अपने बॉलीवुड की बेहतरीन फिल्मों में गिनी जाती है। मगर उर्मिला को अपने करियर में इसका कोई लाभ नहीं मिल पाया और 2006 में ‘बस एक पल’ पर जाकर उनकी पारी थम गई। उसके बाद उन्होंने एक मराठी फिल्म में काम किया और एक रियलिटी शो की जज बनीं, मगर हिंदी के अभिनय वाले परदे से वे गायब हो गईं।
कुछ कलाकार परदे के अपने करियर को अपनी निजी जिंदगी से उलझा बैठते हैं और फिर मात खाते हैं। निर्माता व निर्देशक राम गोपाल वर्मा से अत्यधिक नजदीकी और उन पर निर्भरता उर्मिला मातोंडकर को भारी पड़ी। एक समय था जब वर्मा की हर फिल्म में उर्मिला ही हीरोइन होती थीं। यह सिलसिला इस हद तक चला कि दूसरे फिल्मकार उर्मिला से दूर हो गए। और जब उनका बाज़ार ढलने लगा तो खुद रामगोपाल वर्मा ने भी उन्हें काम देना बंद कर दिया। यह अलग बात है कि उसके बाद वर्मा की फिल्में भी फीकी पड़ गईं। ये वही रामगोपाल वर्मा हैं जो हाल में अपनी आने वाली फिल्म ‘डेंजरस’ को प्रमोट करने के लिए उसकी हीरोइन के साथ अपनी ऊटपटांग तस्वीरें पोस्ट करके फिर चर्चा में आए हैं।
हालात से हार कर, उर्मिला ने 2016 में एक मॉडल और बिजनेसमैन मोहसिन अख़्तर मीर से विवाह कर लिया। इसके तीन साल बाद वे राजनीति में आईं। पिछले लोकसभा चुनाव से ऐन पहले मार्च 2019 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली। मुंबई नॉर्थ से उन्हें टिकट मिला, जहां वे बहुत बड़े अंतर से हारीं और उसी साल सितंबर में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। इस शिकायत के साथ कि पार्टी की घटिया गुटबाजी के चक्कर में वे हारी हैं। जिस सीट से उन्हें टिकट दिया गया था वहां से पिछला चुनाव संजय निरुपम लड़े थे और उर्मिला का मानना था कि संजय के करीबी लोगों ने उन्हें हरवा दिया। इसके लगभग साल भर बाद वे शिवसेना में चली गईं जिसने तत्काल विधान परिषद में मनोनयन के लिए उनके नाम की सिफारिश कर दी। मगर महा विकास अघाड़ी सरकार के भेजे नामों को राज्यपाल ने तब तक लटकाए रखा जब तक कि वह सरकार गिर नहीं गई।
कहने को उर्मिला मातोंडकर अभी राजनीति में हैं, लेकिन जब वहां भी कुछ हो नहीं सका, तब अड़तालीस साल की उम्र में वे एक बार फिर परदे पर लौटने वाली हैं। वे ‘तिवारी’ नाम की एक वेब सीरीज की शूटिंग कर रही हैं। एक मां और उसकी बेटी के भावनात्मक द्वंद्व की इस कहानी को सौरभ वर्मा निर्देशित कर रहे हैं।
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