ओटीटी प्लेटफॉर्म की सारी सामग्री पर निगाह डालें तो यह तय करना मुश्किल हो जाएगा कि यह मनोरंजन की दुनिया है या फिर अपराध की। किसी भी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर चले जाइए, विदेशी वेब सीरीज़ भी ऐसी हैं और भारतीय भाषाओं की यानी स्वदेशी वेब सीरीज़ भी। इनमें बहुत सी तो वीभत्स रक्तपात को महिमा मंडित करती लगती हैं। लेकिन इन्हीं में कुछ ऐसी भी हैं जिनमें अपराध के बावजूद फिल्मकारी की कलात्मकता है और जो कोई संदेश भी देती हैं।
परदे से उलझती ज़िंदगी
ओटीटी के सभी प्लेटफॉर्म पर अब तक जितनी भी वेब सीरीज़ आई हैं उनमें ज्यादातर अपराध, खूनखराबा, पुलिस की सफलता या असफलता पर आधारित हैं। इन प्लेटफॉर्म पर आने वाली फिल्मों का भी यही हाल है। वे भी अपराध से ग्रस्त और त्रस्त दिखती हैं। इस हद तक कि मानो अपराध ही सब कुछ है, उसके अलावा कुछ और सोचा नहीं जा सकता। तमाम ओटीटी प्लेटफॉर्म की सारी सामग्री पर निगाह डालें तो यह तय करना मुश्किल हो जाएगा कि यह मनोरंजन की दुनिया है या फिर अपराध की। किसी भी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर चले जाइए, विदेशी वेब सीरीज़ भी ऐसी हैं और भारतीय भाषाओं की यानी स्वदेशी वेब सीरीज़ भी। इनमें बहुत सी तो वीभत्स रक्तपात को महिमा मंडित करती लगती हैं। लेकिन इन्हीं में कुछ ऐसी भी हैं जिनमें अपराध के बावजूद फिल्मकारी की कलात्मकता है और जो कोई संदेश भी देती हैं।
‘दिल्ली क्राइम’ के पहले सीज़न को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। यह सीरीज़ पूरे देश में विरोध की लहर पैदा कर देने वाले निर्भया कांड पर बनी थी जिसमें पुलिसिया छानबीन को ठीक वैसा ही दिखाया गया जैसी वह होती है। बगैर किसी ग्लैमर के। उसके बाद ‘स्कैम 92’ को गिना जा सकता है जो हर्षद मेहता के कारनामे पर बनी थी और जिसने हमें प्रतीक गांधी जैसा अभिनेता दिया। यह हमारे बैंकिंग सिस्टम की खामियों का लाभ उठाने वाले पढ़े-लिखे और जानकार लोगों के अपराध यानी व्हाइट कॉलर क्राइम दिखाती है। यह सुचेता दलाल और देबाशीष बसु की लिखी पुस्तक ‘द स्कैम, हू विन, हू लॉस्ट, हू गॉट अवे’ पर बनी थी। हंसल मेहता निर्देशित यह वेब सीरीज़ बिना लाउड हुए, बेहद सहज और सामान्य तरीके से बताती है कि यह कांड कैसे किया गया और किन कारणों से संभव हुआ। इसकी एक बड़ी खूबी सुचेता दलाल बनीं श्रेया धन्वंतरी की खोजी पत्रकारिता का रोमांच भी था। पूर्वाग्रहों से परे वास्तविक पत्रकारिता में हमेशा एक ऐसा थ्रिल होता है जिसे किसी बैकग्राउंड म्यूज़िक या किसी स्पेशल इफ़ेक्ट के सहारे की ज़रूरत नहीं पड़ती।
काफी दिनों बाद, इसी श्रेणी की एक वेब सीरीज़ की फिर से चर्चा है। यह है ‘ख़ाकी, द बिहार चैप्टर।’ राजस्थान के रहने वाले आईपीएस अमित लोढ़ा कभी बिहार में तैनात रहे थे। वहां के अपने अनुभवों पर उन्होंने‘बिहार डायरीज़’नामक किताब लिखी थी। उसी पर यह वेब सीरीज़ बनी है। इसकी चर्चा इसलिए भी तेज हो गई है कि इसकी रिलीज़ के बाद बिहार में अमित लोढ़ा पर एक केस दर्ज हो गया है। असल में ‘ख़ाकी, द बिहार चैप्टर’की कहानी उस समय की है, जब लालू यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी की सत्ता थी। इस सीरीज़ के कई पात्र सत्ता से जुड़े दिखाए गए हैं। नेटफ़्लिक्स पर इसकी रिलीज़ के बाद अमित लोढ़ा पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने इस किताब को लिखने के लिए कोई इजाज़त नहीं ली और इस पर वेब सीरीज़ बनाने के बदले उन्होंने अपनी पत्नी के जरिए लाखों रुपए लिए।
इस वेब सीरीज़ में बहुत सी ऐसी बातें हैं जो हमारे लिए नई नहीं हैं, लेकिन उनकी प्रस्तुति के तरीके ने उन्हें नया बना दिया है। यह नीरज पांडे की कृति है। उन्हीं नीरज पांडे की जिन्हें हम ‘अ वेडनसडे’, ‘बेबी’, ‘स्पेशल छब्बीस’, ‘नाम शबाना’, ‘ऐयारी’ और ‘एमएस धोनी, द अनटोल्ड स्टोरी’ जैसी फिल्मों के लिए जानते हैं। वे बॉलीवुड के उन बेहतरीन फिल्मकारों में से हैं जिन्हें काफी हद तक सफलता की गारंटी माना जाता है। वे देश के विभिन्न राज्यों के बड़े अपराधियों और वहां की पुलिस के टकराव की कहानियां फिल्माना चाहते हैं। इसकी शुरूआत बिहार से हुई है। और पहले ही सीज़न में एक केस हो गया है। बताइए, जब तक नीरज पांडे काल्पनिक अपराध कथाओं पर फिल्में बना रहे थे तब तक सब ठीक था, लेकिन जैसे ही उन्होंने ज़मीनी बात शुरू की तो गड़बड़ हो गई। कभी-कभी इस तरह भी परदे से उलझती है ज़िंदगी। लेकिन जैसे‘स्कैम 92’से प्रतीक गांधी करियर में आगे बढ़े, वैसे ही इस सीरीज़ से करन टैकर और अविनाश तिवारी के बढ़ने की उम्मीद है।