यश चोपड़ा को लेकर इन दिनों सोशल मीडिया में एक बहस चल रही है। बहस का मुद्दा यह है कि क्या यश चोपड़ा केवल रोमांस के बादशाह थे? असल में फिल्म निर्माण के मामले में यश चोपड़ा के तौर-तरीकों, उनके नज़रिये और उनकी कलात्मक विरासत को लेकर नेटफ्लिक्स पर चार एपीसोड की एक डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ ‘द रोमांटिक्स’ रिलीज़ होने वाली है। फिलहाल यह बहस उसी के संदर्भ में है, मगर वास्तव में यह बहस काफी पुरानी है।
परदे से उलझती ज़िंदगी
बॉलीवुड आज जिस मकाम पर है उसे वहां तक पहुंचाने वाले सबसे महत्वपूर्ण दस लोग भी छांटे जाएं तो उनमें यश चोपड़ा का नाम ज़रूर आएगा। उन्हीं यश चोपड़ा को लेकर इन दिनों सोशल मीडिया में एक बहस चल रही है। बहस का मुद्दा यह है कि क्या यश चोपड़ा केवल रोमांस के बादशाह थे? असल में फिल्म निर्माण के मामले में यश चोपड़ा के तौर-तरीकों, उनके नज़रिये और उनकी कलात्मक विरासत को लेकर नेटफ्लिक्स पर चार एपीसोड की एक डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ ‘द रोमांटिक्स’ रिलीज़ होने वाली है। फिलहाल यह बहस उसी के संदर्भ में है, मगर वास्तव में यह बहस काफी पुरानी है।
यश चोपड़ा को ‘रोमांस का जादूगर’, ‘फ़ादर ऑफ रोमांस’ या ‘किंग ऑफ रोमांस’ आदि इसलिए कहा गया कि रोमांटिक दृश्य और रोमांटिक गीत फिल्माने का उनसे बेहतर अंदाज़ मुश्किल से ही मिलता था। उनके रचे रोमांटिक दृश्य अपने संयोजन, संगीत, संवाद और गीत के जरिये आपको बेहद करीब से छूते थे। ‘दाग’, ‘सिलसिला’, ‘लम्हे’, ‘कभी कभी’, ‘त्रिशूल’, ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, ‘दिल तो पागल है’, ‘चांदनी’, ‘वीर ज़ारा‘ और ‘जब तक है जान’ जैसी फिल्में इसकी मिसाल हैं। यश चोपड़ा हर चीज को हर पहलू से खूबसूरत बना सकते थे। इस हद तक कि उससे ज्यादा आप सोच ही न सकें। कई हीरोइनों के बारे में कहा जाता था कि वे उतनी सुंदर किसी और फिल्म में नहीं लगतीं जितनी यश चोपड़ा की फिल्मों में दिखती हैं। शायद इसीलिए उन्हें रोमांस का मास्टर मान लिया गया।
किसी दृश्य की खूबसूरती के लिए जो भी दरकार होता वे उसे खोज कर लाते। ऐसी परिपूर्णता लाने के लिए जरूरी है कि आप खुद भी उतने ही यानी उसी स्तर के रूमानी हों। तभी आप ऐसा सोच सकते हैं। यह यश चोपड़ा की रूमानियत की इंतहा ही है जो हमें ‘डर’ के उस हिंसक हीरो तक ले जाती है जिसे किसी भी कीमत पर अपनी गढ़ी हुई प्रेमिका चाहिए। इसके विपरीत ‘वीर ज़ारा’ के जरिये हम प्रेम के लिए त्याग की इंतहा का अहसास करते हैं जहां एक व्यक्ति केवल इसलिए एक पराये देश में तीस साल तक जेल में बंद रहा कि वह प्रेमिका का नाम बता कर उसे रुसवा नहीं करना चाहता था।
शायद यह यश चोपड़ा का अपने पात्रों के साथ रोमांस था। जब त्रिमूर्ति फिल्म्स वाले गुलशन राय ने ‘दीवार’ का निर्देशन यश चोपड़ा को सौंपा होगा तो उन्हें कतई यह भान नहीं रहा होगा कि वे इतिहास बनाने जा रहे हैं। अमिताभ बच्चन के एंग्री यंग मैन बनने की शुरूआत हालांकि ‘ज़ंजीर’ से हो चुकी थी, लेकिन उनकी उस छवि का सबसे परिष्कृत और आत्यंतिक संस्करण ‘दीवार’ थी। सलीम-जावेद की जबरदस्त पटकथा और धमाकेदार संवादों को परदे पर एकदम सटीक तरीके से उतारने के लिए यश चोपड़ा जैसा निर्देशक ही चाहिए था, रूमानियत के अतिरेक से भरा हुआ।
यह अतिरेक ‘मशाल’ में भी दिखता है जहां दिलीप कुमार रात को एक सुनसान सड़क पर अपनी पत्नी की तबियत बिगड़ जाने पर मदद के लिए वहां से गुजरते वाहनों को रुकने की गुहार लगाते हैं, आसपास के मकानों के दरवाजे खटखटाते हैं, बंद खिड़कियों पर पत्थर तक फेंकते हैं, मगर कोई नहीं सुनता और पत्नी वहीं फुटपाथ पर दम तोड़ देती है। करीब सवा चार मिनट का यह झकझोर देने वाला दृश्य फिल्माने के लिए यश चोपड़ा को चार दिन लगे थे। जब इसकी शूटिंग हो रही थी तब दिलीप कुमार की उम्र इकसठ बरस थी। इस सीन में उन्हें भागना-दौड़ना बहुत था और वे बार-बार थक जाते थे। लेकिन यश चोपड़ा ने उन्हें पूरा समय दिया, पूरा इंतज़ार किया, क्योंकि वे जानते थे कि यह दृश्य अविस्मरणीय बनेगा, और वे बना कर माने। मतलब यह कि तनाव, द्वंद्व, विद्रोह और असहायता के दृश्यों को भी यश चोपड़ा ने उतनी ही महारत से पेश किया।
फिर भी, ‘द रोमांटिक्स’ डॉक्यू सीरीज़ उन्हें केवल रोमांस का ही मास्टर दिखाना चाहती है। इसीलिए इसे वैलेंटाइन्स डे पर रिलीज़ किया जा रहा है। इसमें यश चोपड़ा की फिल्मों के कुछ दृश्यों का भी इस्तेमाल किया गया है। इसकी निर्देशक जानेमाने फिल्मकार जग मुंध्रा की बेटी स्मृति मुंध्रा हैं जो अमेरिका में ही रहती हैं और ‘इंडियन मैचमेकिंग’, ‘अ सूटेबल गर्ल’ और ‘सेंट लुईस सुपरमैन’ में निर्देशन दे चुकी हैं। इस सीरीज़ में यश चोपड़ा के कई करीबी लोग और उनके साथ काम कर चुके अनेक कलाकार उनके बारे में बतियाते दिखेंगे। इसमें यश चोपड़ा के बड़े बेटे और यशराज फिल्म्स की जिम्मेदारी संभाल रहे आदित्य चोपड़ा से बातचीत और दिवंगत ऋषि कपूर का इंटरव्यू भी होगा। मगर इसमें दिखने जा रहे तमाम अभिनेता-अभिनेत्रियों को सुनते हुए यह बिलकुल नहीं भूलना चाहिए कि ये सब लोग यश चोपड़ा को केवल रोमांस के फिल्मांकन के लिए ही पसंद नहीं करते थे। ‘धूल का फूल’, ‘धर्मपुत्र’, ‘वक्त’, ‘इत्तेफ़ाक’ और ‘काला पत्थर’ का निर्देशन भी उन्होंने ही किया था। असल में यश चोपड़ा परफेक्शन से रोमांस करते थे। उनका रोमांस केवल रोमांस से नहीं था।