• अंबानी-अडानी, खरबपतियों का चंदा कहां?

    कैसी हैरानी की बात है कि मोदी राज में सबसे ज्यादा धंधा खरबपतियों का बढ़ा। अडानी जगत सेठ हुआ। अंबानी कुबेरपति हुआ। पैसे से भारत की संस्कृति का ढिंढोरा करता है। इनके साथ टाटा, बिड़ला सहित टॉप के बीस खरबपति दिन-दुनी, रात-चौगुनी की रफ्तार से भारत के लोगों से पैसा कमाते हुए हैं लेकिन वे इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीददारों की लिस्ट से लगभग गायब। यों कुछ जानकार शेल याकि खोखा कंपनियों से बॉन्डस लेन-देन की बारीकी तलाश रहे हैं। लेकिन मोटा मोटी मोदी सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड योजना में जुआरियों, सटोरियों, काला बाजारियों और ठेकेदारों से ही चुनाव और राजनीति के...

  • भाजपा में दूसरी पार्टियों पर नजरिया

    भारतीय जनता पार्टी ने राजनीतिक दलों की कई श्रेणियां बना रखी हैं। एक श्रेणी ऐसी पार्टियों की है, जिनके साथ भाजपा के अतीत में अच्छे संबंध रहे हैं या वह पार्टी भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन में रही है। ऐसी पार्टियों के फिर से एनडीए में लौटने का रास्ता खुला रहता है। दूसरी श्रेणी ऐसी पार्टियों की है, जो पहले साथ रही हैं या नहीं भी रही हैं तो नरेंद्र मोदी के केंद्र में सरकार बनाने के बाद अपनी राजनीतिक मजबूरियों में भाजपा के प्रति नरम रही हैं। ये आगे भी भाजपा के साथ हो सकता है कि खुल कर...

  • चेहरा ‘कमल’ या नरेंद्र मोदी?

    नवंबर 2023 के विधानसभा चुनाव नरेंद्र मोदी की राजनीति का नया मोड है। हिसाब से 2023-24 के चुनावों को उनके कार्यकाल के आखिरी चुनाव मानने चाहिए। इसलिए क्योंकि यह सोचना संभव नहीं कि 2028-29 का चुनाव भी उनके चेहरे पर होंगे? बावजूद इसके वे भाजपा, संघ परिवार में किसी चेहरे की जगह बनने नहीं दे रहे है। उनका नारा है चेहरा नहीं कमल। चित्तौड़गढ़ की सांवरियासेठ सभा में उन्होने दो टूक कहा- चुनाव में सिर्फ़ एक ही चेहरा कमल है। हमारा उम्मीदवार सिर्फ़ कमल है। कमल को जिताना है। उन्होने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ और तेलंगाना में कही भी भाजपा...

  • पुराने ढर्रे की विपक्षी राजनीति

    कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां अनगिनत चुनाव हारने के बाद भी समझ नहीं रही हैं कि उनके चुनाव लड़ने के तरीके में कुछ कमी है। वे हर बार कोई न कोई बहाना खोज लेते हैं। कई बार कहा जाता है कि भाजपा हिंदू-मुस्लिम की विभाजनकारी राजनीति करती है। कई बार कहा जाता है कि राष्ट्रवाद के झूठे नारे पर जनता को बरगला लेती है। अगर इस तरह का कोई मुद्दा नहीं मिलता है तो इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम और चुनाव आयोग को दोष दे दिया जाता है। यानी विपक्ष किसी तरह से अपनी कमी स्वीकार नहीं करता है। विपक्ष...

  • हत्या का आरोप भारत की शान और नरेंद्र मोदी का अवसर!

    वाह! क्या बात है बीस दिन पहले भारत विश्व नेता था, विश्व गुरू था। अहिंसा स्थल राजघाट पर नरेंद्र मोदी कनाडा के जस्टिन ट्रूडो को दुपट्टा पहनाते हुए अहिंसावादी विश्वमित्रभारत का मैसेज बनवाते हुए थे। और अब? भारत पर हत्या का वैश्विक आरोप है और उस पर भारत का सोशल मीडिया, भक्त हिंदू यह हुंकारा मारते हुए हैं कि भारत बाहुबली! वैश्विक बदनामी भारत के शौर्य का प्रमाण। और बज गई नरेंद्र मोदी की 2024 की चुनावी रणभेरी। सचमुच दुनिया चाहे जो सोचे और लिखे , भक्त हिंदू देशी हों या एनआरआई सब गद्गद् है अपने अमृतकाल के इस अनहोने...

  • मोदी की बेफिक्री या गणित?

    समझ नहीं आता कि कनाडा में जांच के गंभीर रूप लेने की भनक या खबर और खुद प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से बातचीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री एस जयशंकर, सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल ने समय रहते संकट प्रबंधन क्यों नहीं किया? कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने दिल्ली में रहते हुए अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया के नेताओं से जब सब कुछ शेयर किया तो भारत के विदेश और खुफिया मंत्रालय में किसी को यह समझ नहीं आया कि बात कितनी आगे बढ़ सकती है? ध्यान रहे प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो राष्ट्रपति के दिए राजकीय भोज में भी नहीं थे।...

  • जिसमें दम है वह मारता है!

    खालिस्तानी आतंकवादी और राष्ट्रीय जांच एजेंसी, एनआईए की वांछित सूची में शामिल रहा हरदीप सिंह निज्जर अकेला नहीं है, जो विदेशी धरती पर मारा गया है। एक के बाद एक भारत में वांछित कई आतंकवादी विदेशी धरती पर मारे गए हैं। अभी जब निज्जर की हत्या का विवाद चल रहा है और भारत व कनाडा के बीच बड़ा कूटनीतिक संकट खड़ा है तब भी एक गैंगेस्टर सखदूल सिंह उर्फ सुक्खा दुनिके की कनाडा में गोली मार कर हत्या हुई है। भारत की एक जेल में बंद गैंगेस्टर लॉरेंस बिश्नोई ने इस हत्या की जिम्मेदारी ली है। अगर उसने आगे बढ़...

  • चीन ने पश्चिम को उकसा रहा!

    जिस तरह से कनाडा में खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या पर भारत में राजनीति हो रही है तो उसमें एक बड़ा तबका ऐसा है, जो इसे एक राजनीतिक अवसर के रूप में देख रहा है उसी तरह भारत के दो पड़ोसी चीन और पाकिस्तान भी इसमें अवसर देख रहे हैं। भारत में इसे चुनावी मुद्दे की तरह देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि अगले साल के लोकसभा चुनाव में इसका फायदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिलेगा तो दूसरी ओर चीन और पाकिस्तान इसे कूटनीतिक मुद्दे के तौर पर देख रहे हैं और इस बहाने भारत...

  • महात्मा गांधी मजबूरी हैं

    पिछले कुछ बरसों में पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ साथ जिस महान हस्ती को विलेन बनाने की कोशिश की गई है वह महात्मा गांधी हैं। सोशल मीडिया में सक्रिय ट्रोल ब्रिगेड जितनी नफरत नेहरू से करता है उतनी ही या कई बार उससे ज्यादा महात्मा गांधी से करता है। तभी यह अनायास नहीं है कि पिछले कुछ बरसों में गांधी की जयंती या पुण्यतिथि के मौके पर ट्विटर के ऊपर गांधी से ज्यादा नाथूराम गोडसे ट्रेंड करता है। हिंदुत्व से जुड़े संगठनों के कई नेता गोडसे को देशभक्त ठहरा चुके हैं। कई जगह गोडसे की मूर्तियां लगाए जाने की...

  • ब्रिक्स तो चीन का ही फ्रंट है

    चंद्रयान-तीन की सफलता, राष्ट्रवाद के उफान और मोदी के विश्व नेतृत्व के बीच यह नहीं देखा जा रहा है कि पांच देशों के समूह ब्रिक्स के विस्तार की कूटनीति असल में चीन की कूटनीति का हिस्सा है। ब्रिक्स उसी तरह से चीन का फ्रंट है, जैसे शंघाई सहयोग संगठन है। एक एक करके जिस तरह से शंघाई सहयोग संगठन में नए सदस्य जुड़ रहे हैं और फिर उनको ब्रिक्स में जगह मिल रही है वह नई विश्व व्यवस्था में चीन की जगह मजबूत करने वाला साबित हो सकता है। मिसाल के तौर पर कुछ समय पहले ही ईरान को शंघाई...

  • मणिपुर मामले को स्पिन देना आसान नहीं

    इन दिनों हर पार्टी को ऐसे स्पिन डॉक्टर्स की जरूरत होती है, जो किसी भी घटना को दूसरा टर्न दे सके। मूल घटना पर से ध्यान हटा कर उसके दूसरे पहलू पर ध्यान केंद्रित करा दे। अगर मीडिया साथ हो तो ऐसा करना आसान हो जाता है। भारतीय जनता पार्टी हर समय इस तरह के काम करती है। उसके स्पिन डॉक्टर्स हर घटना को एक नया रूप देते हैं और फिर मीडिया उसी रूप का प्रचार करता है। कई बार तो ऐसा लगता है कि खुद प्रधानमंत्री ही स्पिन डॉक्टर का काम करते हैं और कई बार पार्टी खुद यह...

  • हिंदी प्रदेशों में विपक्ष हारेगा!

    इस गपशप को मई 24 तक सेव रखें। तब हिसाब लगा सकेंगे कि कर्नाटक की जीत के बाद कांग्रेस और विपक्ष ने अपने हाथों अपने पांवों पर कब-कब कुल्हाड़ी मारी। पहली बात, कर्नाटक ने कांग्रेस और पूरे विपक्ष का दिमाग फिरा दिया है। बुजुर्ग शरद पवार भी बता रहे हैं कि हालात देख लोगों का बदलाव का मूड समझ आ रहा है। उधर राहुल गांधी ने कहा कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस 150 सीटें जीतेगी। सबसे बड़ी बात जो विपक्ष की एकता कोशिशों में मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, अखिलेश यादव हालातों के इलहाम में भाव खाते हुए हैं। एक और...

  • क्या राजस्थान, मप्र, छतीसगढ़ में कांग्रेस जीतेगी?

    सवाल पर जरा मई 2024 की प्रधानमंत्री मोदी की चुनावी परीक्षा के संदर्भ में सोचें। तो जवाब है कतई नहीं। इन राज्यों में कांग्रेस को लोकसभा की एक सीट नहीं मिलनी है। मई 2024 का लोकसभा चुनाव मोदी के लिए आखिरी, जीवन-मरण का, मरता क्या न करता के एक्सट्रीम दावों का है। तब भला दिसंबर के तीन विधानसभा चुनावों में वे कैसे इन तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने देंगे? खासकर राजस्थान और छतीसगढ़ में, सत्ता में रहते हुए कांग्रेस का दुबारा जीतना! यों इन तीन राज्यों में भाजपा कुछ अहम चेंज करने वाली है। उसकी टाइमलाइन अनुसार सचिन...

  • बिहार, झारखंड में क्या होगा?

    केंद्र में किसी सत्तारूढ़ दल के खिलाफ जब भी साझा राजनीति की बात होती है और बदलाव होजाता है तो सबसे अहम भूमिका बिहार की होती है। इसे 1977 और 1989 के चुनाव में सबने देखा। जानकार इसका जिक्र भी करते हैं। 2004 में भी जब अटल बिहारी वाजपेयी के छह साल के राज के खिलाफ तथा2014 में 10 साल के कांग्रेस राज के खिलाफ माहौल बना और बदलाव हुआ तो उसमें भी बिहार की भूमिका थी। ध्यान रहे 1999 के चुनाव में बिहार का विभाजन नहीं हुआ था तब 54 में से भाजपा ने 23 और जदयू ने 18...

  • जात और आरक्षण से भाजपा की मुश्किल

    तीन दशक पहले भारत में मंडल बनाम कमंडल की राजनीति शुरू हुई थी। हैरानी की बात है कि अब भी यह उत्तर भारत की राजनीति का कोर तत्व है। धर्म या हिंदुत्व की राजनीति जहां भाजपा की ताकत है वही जाति या आरक्षण की राजनीति उसकी कमजोरी। यह सिर्फ उत्तर भारत की परिघटना नहीं है, बल्कि जहां भी जाति और आरक्षण का मुद्दा राजनीति पर हावी होता है वहां भाजपा को नुकसान होता है। कर्नाटक में हाल में हुए विधानसभा चुनाव की मिसाल से इसे समझा जा सकता है। वहां चुनाव से पहले भाजपा ने आरक्षण की राजनीति में हाथ...

  • पुतिन, जिनफिंग से पल्ला छूटा?

    यह हेडिंग कूटनीति के मिजाज में सही नहीं है। एक सियासी शीषर्क है। मगर भारत की विदेश नीति की हाल में जो नई दिशा बनी है वह वैश्विक मायने वाली है। पहले जापान, ऑस्ट्रेलिया में प्रधानमंत्री मोदी की पश्चिमी नेताओं के साथ गलबहियां हुईं! फिर इस सप्ताह चीन की छत्रछाया के शंघाई सहयोग संगठन की दिल्ली शिखर बैठक को भारत ने रद्द किया। अचानक सब तैयारियों, न्योता देने के बाद भारत ने जुलाई में पुतिन और शी जिनफिंग, शहबाज शरीफ आदि की प्रत्यक्ष मेजबानी से किनारा काटा। सभी नेताओं की प्रत्यक्ष उपस्थिति की बजाय तीन-चार घंटों की मोदी की अध्यक्षता...

  • मोदी हों या राहुल, सबका मक्का अमेरिका-लंदन!

    यह सच्चाई है। तभी आजाद भारत की मनोदशा का यह नंबर एक छल है कि हम रमते हैं पश्चिमी सभ्यता-संस्कृति में लेकिन तराना होता है हिंदी-चीनी भाई-भाई या रूस-भारत भाई-भाई। यों आजाद भारत का पूरा सफर दोहरे चरित्र व पाखंडों से भरा पड़ा है लेकिन भारत की विदेश नीति में जितना पाखंड, दिखावा और विश्वगुरू बनने की जुमलेबाजी हुई वह रिकार्ड है। मैंने अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के हमले, शीतयु्द्ध के पीक वक्त में अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर लिखना शुरू किया था। तब से आज तक वैश्विक मामलों में भारत की विदेश नीति के दिखावे और हकीकत, झूठ और सत्य के...

  • मोदी और राहुल का फर्क

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब विदेश दौरे पर जाते हैं तो हर देश में सैकड़ों लोगों की भीड़ उनका स्वागत करने के लिए उमड़ती है। सड़कों पर मोदी मोदी के नारे लगते हैं। वे उन देशों के प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रपतियों के गले लगते हैं। दूसरे देशों के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति भी कभी मोदी को रॉकस्टार तो कभी बॉस कह कर उनको खुश करते हैं। दोपक्षीय वार्ताओं के अलावा मोदी प्रवासी भारतीयों की भीड़ को संबोधित करते हैं। वहां अपनी सरकार की उपलब्धियां बताते हैं और पहले की सरकारों को नाकाम-नाकारा साबित करते हैं। वे कारोबारियों को संबोधित करते हैं और उनको भारत आने...

  • ऑस्ट्रेलिया यात्रा से क्या हासिल?

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर क्यों गए, यह यक्ष प्रश्न है। उनको चार देशों के समूह क्वाड की बैठक में हिस्सा लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया जाना था। लेकिन अमेरिकी कर्ज संकट की वजह से राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऑस्ट्रेलिया जाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया। यह तय हुआ कि क्वाड सम्मेलन जापान के हिरोशिमा में ही होगा, जहां जी-सात देशों की बैठक होने वाली थी। जब ऑस्ट्रेलिया में होने वाला क्वाड सम्मेलन स्थगित हो गया तो कायदे से प्रधानमंत्री की यात्रा भी स्थगित हो जानी चाहिए थी लेकिन क्वाड सम्मेलन के बहाने ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत महासागर के छोटे...

  • नौ वर्षो की बरबादियां!

    तय कर सकना मुश्किल है। इसलिए भी क्योंकि मैं नोटबंदी के बाद से प्रधानमंत्री मोदी और उनकी रीति-नीति का आलोचक हूं। मोदी राज ने मुझे हिंदू बुनावट की ऐसी गुत्थियों में उलझाया है कि जहां असलियत दिखलाने के लिए नरेंद्र मोदी का धन्यवाद है वही यह निष्कर्ष भी है कि यह क्या इतिहास बनवा रहे है मोदी अपना! देश-समाज-नस्ल कीकितनी तरह की बरबादियों के बीज जिंदा कर डाले है या नए बना डाले है।  आगे कोई भी पार्टी, किसी भी नेता की सरकार बने होना अब वही है जो हम हिंदुओं का इतिहास रहा है। चिंगारियां लिए हुआ ऐसा कलही...

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