बेबाक विचार

जय लिट्टी चोखा, जय बिहार!

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जय लिट्टी चोखा, जय बिहार!
दिल्ली चुनाव निपटा नहीं और प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार चुनाव का बिगुल बजा दिया। पीएम मोदी द्वारा लिट्टी-चोखा खाने की तस्वीर पर बिहारी नेताओं ने मोदी के अंदाज पर ऐसी दीवानगी जताई मानो बिहार के लोग हुए धन्य। सोचें, यदि नरेंद्र मोदी कल गुजरात या दिल्ली में डोनाल्ड ट्रंप को लिट्टी चोखा खिला दें तो गिरिराज बाबू, सुशील मोदी, नीतीश, रामविलास सब बिहार चुनाव में भाजपा की आंधी बूझेंगे या नहीं!कभी कहा जाता था कि बिहार के लोग राजनीतिक तौर पर सर्वाधिक जागरूक, खुराफाती होते हैं। पर पीएम मोदी के दिल्ली के हुनर हाट में लिट्टी-चोखा खाने के बाद भाजपा नेताओं ने, रामविलास-सुशील मोदी-राधामोहन आदि भाजपा व एनडीए नेताओं ने घर-घर मैसेज पहुंचाने का जो सोशल मीडिया हल्ला बनवाया है तो मतलब है कि नौ महीने पहले ही बिहार चुनाव मोड में चला गया है। देश के ध्यान की बरबादी अब बिहार चुनाव में होगी। दूसरा अर्थ यह बनता है कि नरेंद्र मोदी का लिट्टी-चोखा अंदाज दिल्ली से हटकर बिहार में चुनाव लड़ने की तैयारी का संकेत है। दिल्ली विधानसभा में प्रधानमंत्री मोदी ने झुग्गी को पट्टे में बदलने का कैबिनेट फैसला करवाया था और पार्टी घोषणापत्र में दो रुपए किलोकी रेट पर अच्छे गेहूं के आटे व लडडकियों को स्कूटी फ्री में बांटने के झुनझुने दिखलाए थे। उस एप्रोच को छुड़वा अमित शाह ने अचानक हिंदू बनाम मुस्लिम के चुनावी गृहयुद्ध में देश की राजधानी को झनझना डाला। बावजूद इसके बुरी हार हुई तो निश्चित ही नरेंद्र मोदी-अमित शाह बिहार को ले कर अलग एप्रोच बना रहे होंगे। फिर बिहार में नीतीश कुमार की भी मजबूरी है। लोगों का सोचना है कि नीतीश कुमार को क्योंकि अभी भी सेकुलर होने, और दो-चार-पांच प्रतिशत मुसलमान वोटों की गलतफहमी है तो सीएए या एनआरसी पर वे वोट राजनीति नहीं करेंगे। वे अपने कथित विकास और सुशासन पर ही भाजपा को चुनाव लड़ने के लिए मजबूर करेंगे और वोट मागेंगे! पर लगता है नरेंद्र मोदी ने प्रशांत किशोर व आप पार्टी का खेल बूझ लिया है। प्रशांत किशोर ने बिहार में अगले चुनाव को ले कर अपनी जो तैयारियां की हैं और जिस खम ठोक अंदाज में नीतीश कुमार के विकास और कामों की पोल खोली है उससे मोदी-शाह को समझ आया होगा कि नीतीश कुमार के बूते चुनाव जीतना संभव नहीं है। नीतीश कुमार का जदयू का किला प्रशांत किशोर-आप की सोशल मीडिया टीम रेत महल की तरह ढहा देगी। इसलिए नरेंद्र मोदी अपने ब्रांड और बिहार की अस्मिता पर ही एनडीए को चुनाव लड़वाएंगे। तभी लिट्टी-चोखे से नरेंद्र मोदी ने श्रीगणेश किया! तय मानें बिहार का चुनाव नरेंद्र मोदी और अमित शाह ही लड़ेंगे। नीतीश कुमार फ्रंट में नहीं होंगे। सीट बंटवारे, टिकटों में नीतीश कुमार अपनी शर्तें थोप नहीं पाएंगे। अगले पांच महीने में प्रशांत किशोर अकेले जमीनी लेवल पर जनता दलयू की सीटों पर ऐसा फोकस बनाएंगे कि भाजपा की सर्वे टीम जनता दल यू को बुरी तरह हारता हुआ पाएगी। प्रशांत किशोर ने बहुत बारीकी से नीतिश कुमार की कमजोरियों, उनकी पार्टी के खोखलेपन, बूथ प्रबंध और जातीय समीकरणों को समझा हुआ है इसलिए नीतीश कुमार का खेल बिगाड़ना उनके लिए आसान है। प्रशांत किशोर का अपना खेल तभी गड़बड़ाएगा जब विपक्षी एकता नहीं हुई और मोदी-शाह ने अपनी ही ताकत, अपने ही एजेंडे में चुनाव लड़ा। दिक्कत यह है कि लिट्टी-चोखे से मोदी-शाह बिहार के ब्रांड एंबेसडर याकि बिहारी अस्मिता के ध्वजधारी नहीं बन सकते। न ही उनका विकास मॉडल या सुशील मोदी का सुशासन चेहरा नीतीश कुमार का सहारा या विकल्प बन सकता है। तभी अपना मानना है कि संसद के मॉनसून सत्र में मोदी सरकार संसद में हिंदू बनाम मुस्लिम का नया मुद्दा उछालेगी। केंद्र सरकार एनआरसी का फैसला करके संसद में कानून बनवा सकती है। मतलब लिट्टी-चोखा कमान संभालने की घोषणा है और बिहार के बाद फिर बंगाल में चुनाव जीतना है तो केंद्र सरकार के चुनावी कैलेंडर में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर, एनआरसी के साथ जनगणना का फैसला रामबाण नुस्खाहै। संसद का शीतकालीन सत्र ठीक बिहार चुनाव के समय है तो एनआरसी उस वक्त लाया गया तो चुनावी मकसद जाहिर होगा। बिहार हार जाएं और फिर बंगाल को जीतने के लिए एनआरसी याकि हिंदू-मुस्लिम करवाना व्यावहारिक नहीं होगा। मोदी-शाह को हर हाल में बिहार जीतना है और ऐसा नीतीश के चेहरे, उनके ब्रांड के भरोसे नहीं हो सकता। यह फालतू बात है कि भाजपा पर नीतीश अपनी मनमर्जी थोपेंगे। कतई नहीं। नीतिश का टेंटुआ पूरी तरह मोदी-शाह के हाथों में है। प्रशांत किशोर और अंदरखाने कांग्रेस-राजद-विपक्ष की तैयारियों में नीतीश कुमार के पास अब भाजपा की शरण के अलावा दूसरा विकल्प ही नहीं है। नीतीश कुमार न तो आगे एनआरसी का विरोध कर सकते हैं और न गिरिराजसिंह की हिंदू बनाम मुस्लिम गर्जनाओं को रूकवा सकते हैं। अपने को आश्चर्य नहीं होगा यदि चुनाव के वक्त नीतीश अपनी सभाओं में भी गिरिराजसिंह के भाषण करवाएं। हां, बिहार में सोशल इंजीनियरिंग पर अब भगवा आवरण है। मतलब यादव हो, कोईरी हो या पासवान जैसी जातियों में भी भगवा रंग लिए बहुत वोट है। अयोध्या में मंदिर गतिविधियों का बिहार के पिछड़े-फॉरवर्ड-दलित पर भी कुछ न कुछ असर जरूर होगा। नीतीश कुमार की सोशल इंजीनियरिंग छिन्न-भिन्न है और उनकी मजबूरी है भगवा रंग। तभी उन्हें चुनाव न केवल मोदी-शाह की छत्रछाया में लड़ना है, बल्कि एनआरसी और गिरिराज सिंह के हिंदू-मुस्लिम बोलों पर लड़ना है। चुनाव लड़ने लायक नीतीश कुमार का अब अपना कुछ नहीं है और प्रशांत किशोर उनकी निकम्मा बाबू इमेज को ऐसा फैलवा देने वाले हैं कि उनकी मजबूरी होगी जो मोदी-शाह-गिरिराजसिंह के साथ लिट्टी-चोखा खाएं!
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