कांग्रेस ऐसे तो फिर डुबेगी

राहुल गांधी और सोनिया गांधी दोनों लापरवाह है। दोनों संकट नहीं समझ रहे हैं। और यदि ये ऐसे ही लापरवाह, अनजान बन कांग्रेस को लावारिश बनवाए रखें तो दिसंबर में न केवल कांग्रेस डुबेगी बल्कि पूरे विपक्ष को भी साथ ले डुबेगी। आज की तारीख तक दिल्ली में नेता जमात सहित जयपुर, भोपाल और रायपुर तीनों जगह अपने राजनीतिक एंटीना के भरोसेमंद लोगों की फीडबैक है कि लोग कांग्रेस के कायदे से चुनाव लड़ सकने को लेकर भी भरोसे में नहीं है। कांग्रेस के खिलाफ जो बातंे और धारणाएं हैं उन्हंे पार्टी नेता और कांग्रेस खत्म नहीं खत्म करा पा रहे हैं। मोदी-शाह की तरह राहुल गांधी यह मैसेज नहीं बनवा पा रहे हैं कि उन्हें चुनावों की चिंता है। उसके लिए वे दिन-रात एक कर दे रहे हैं और पार्टी में चुनाव लड़वाने वाली कमान बनवा दी है। मतलब विधानसभा चुनावों को कांग्रेस ने लावारिश अंदाज में लिया हुआ है। सो कांग्रेस तीनों विधानसभा के चुनावों में हारेगी।
सवाल है क्या धारणाएं हैं कांग्रेस को लेकर? कई है। जैसे- 1-कांग्रेसी नेता आपस में लड़ते रहेंगे। 2- टिकटों को ले कर कांग्रेसी नेताओं में झगड़े होंगे। 3- अपने-अपने चहेतों को टिकट दिलाने के चक्कर में असली जीत सकने लायक नेताओं को टिकट नहीं मिलेगा। 4- प्रदेशों के कांग्रेसी नेता दूसरी पार्टियों याकि अजित जोगी की पार्टी, बसपा और सपा जैसों से एलायंस नहीं होने देना चाह रहे हैं। 5-प्रदेश कांग्रेस के पास न साधन है और न खर्च के लिए पैसा है। 6- राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने कार्यकर्ताओं में जोश फूंकने के लिए इन प्रदेशों में उतनी भी सभाएं, दौरे नहीं किए जितने नरेंद्र मोदी-अमित शाह कर चुके हैं। 7- मीडिया और सोशल मीडिया को ले कर कांग्रेस पूरी तरह लापरवाह है जबकि भाजपा में प्रदेश की सरकारों के साथ मोदी-शाह की संगठनात्मक मीडिया टीमें भी राज्यों और जिलों में डेरा डाल चुकी है। 8-प्रदेश के कांग्रेस नेता बिना प्रचार की थीम के है। 9-राहुल गांधी सीधे नहीं बल्कि परोक्ष तौर पर भी जनता के बीच मैसेज नहीं दे पा रहे हैं कि शिवराजसिंह चौहान, वंसुधरा राजे और रमनसिंह के सामने कांग्रेस का विकल्प वाला चेहरा कौन है? 10- राजस्थान में कांग्रेस की हार अब इसलिए गारंटीशुदा है क्योंकि सचिन पायलट ने अपने आपको दो टूक अंदाज में वसुंधरा राजे के आगे बतौर मुख्यमंत्री प्रचारित करवा डाला है।
ये बातें प्रदेश की राजधानी के अफसरों, राजनीतिबाजों और एक्टिविस्टों के बीच सुनी जा सकती है तो दूरदराज की गांव-चौपाल की भी चर्चा है। जाहिर है जनता में कांग्रेस के लड़ सकने की ताकत ही नहीं बूझी जा रही है। सब मान रहे हैं कि कांग्रेस तो हारनी है। कांग्रेसी इकठ्ठे नहीं हो सकते हैं। कमलनाथ बनाम दिग्विजयसिंह बनाम ज्योतिरादित्य या सचिन पायलट बनाम अशोक गहलौत बनाम सीपी जोशी, बघेल बनाम जोगी में सब बंटा रहना है तो न भाजपा की प्रदेश सरकारों के खिलाफ बना एंटी इनकंबेसी माहौल मुखर होगा और न कांग्रेस के लिए पोजिटिव नैरेटिव बनना है।
मैं इस बात को पहले भी लिख चुका हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने प्रदेशों के मुख्यमंत्री को पूरी छूट दे कर, उन्हें सशक्त करके प्रचार के वक्त अपने आपको भी पूरा झौंक कर जैसे भी हो गुजरात जैसे इन राज्यों को जीतने की रणनीति बनाई है। भाजपा और संघ परिवार करो-मरो के अंदाज में अभी से चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं। मोदी-शाह तीनों राज्यों को जीत कर लोकसभा के चुनाव से ठीक पहले विपक्षी दमखम की हवा निकालने की रणनीति बनाए हुए हैं।
जबकि राहुल गांधी और सोनिया गांधी से ले कर सचिन पायलट, कमलनाथ, भूपेश बघेल सब माने बैठे हंै कि उनकी कमान में कांग्रेस जीती हुई है। सचिन पायलट अपनी कमान पर इतने आत्ममुग्ध है कि उन्हें तनिक भी भान नहीं है कि उन्होंने अपने आपको हकीकत में सिर्फ गुर्जरों का नेता बना डाला है। न जाट न ब्राह्यण, न गैर-गुर्जर ओबीसी और न मीणा और न दलित उनके चेहरे को देख कर वोट देने वाले है। लिख कर रख लंे कि यदि सचिन पायलट ने अपने आपको और राहुल गांधी ने परोक्ष तौर पर उन्हें ही अध्यक्ष होने के नाते बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट किया तो कांग्रेस राजस्थान में पचास सीटे पार नहीं हो पाएंगी। वसुंधरा राजे और भाजपा मजे से राजस्थान में 200 सीटों में से 100 सीटे पार होगी। सचिन पायलट और राहुल गांधी फिजूल की गलतफहमी में है कि अजमेर, अलवर और भीलवाड़ा जिले के उपचुनावों में जीत का श्रेय़ उनको खुद को है। ऐसा कतई नहीं है। हकीकत में जाट हो या ब्राह्यण या ओबीसी या दलित सब अशोक गहलोत-सीपी जोशी की पुरानी कमान के अलावा किसी पर भरोसा नहीं करने वाले हैं। राहुल गांधी के लिए अशोक गहलोत की दिल्ली में कितनी ही उपयोगिता हो उन्हें जैसे भी हो राजस्थान भेजना होगा नहीं तो राजस्थान में कांग्रेस का हारना तय है। और जान लंे मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ में तो यों भा शिवराजसिंह, अजित जोगी-बसपा एलायंस के कारण कांग्रेस वैसे भी मुश्किल में रहेगी। ऐसे में राजस्थान में भी यदि राहुल गांधी और कांग्रेस हारे तो पार्टी लोकसभा चुनाव में चेहरा दिखाने लायक नहीं बचेगी। एकदम से कांग्रेस का ग्राफ पैंदे पर होगा और पार्टी आम चुनाव से पहले ही आईसीयू में चली जाएगी।
आज की तारीख में ऐसा होता हुआ संभव है।
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