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दुबले और ऊपर से दो आषाढ़!

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दुबले और ऊपर से दो आषाढ़!
कहावत है कि एक तो दुबले और ऊपर से दो आषाढ़। वहीं वाली बात भारत की अर्थव्यवस्था पर लागू हो रही है। एक तो आर्थिक मंदी की चपेट में है और दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय हालात बिगड़ते जा रहे हैं। अमेरिका और ईरान के बीच शांति नहीं स्थापित होती है तो कच्चे तेल के दाम में बेतहाशा बढ़ोतरी होगी।ध्यान रहे भारत में पहले से ही केंद्र और राज्य दोनों की सरकारें ग्राहकों से मनमाना शुल्क वसूलती रही। ईरान का संकट शुरू होने से पहले दिल्ली में पेट्रोल के दाम 75 रुपए प्रति लीटर से ऊपर पहुंच गए और डीजल के दाम में 70 रुपए प्रति लीटर पहुंचने की होड़ लगी है। सरकार पिछले तीन महीने से लगातार डीजल के दाम बढ़ा रही है, जिससे बाकी तमाम चीजों की महंगाई बढ़ने का खतरा पैदा हो गया है। पर आर्थिकी का यह न्यू नार्मल है। थोड़े समय पहले सरकार और उसके समर्थक इस बात का बचाव कर लेते थे कि कोई बात नहीं विकास दर कम हो गई है तो क्या हुआ महंगाई की दर भी कम है। पर अब बचाव का यह तर्क भी बेकार हो गया है क्योंकि काफी अरसे बाद ऐसा हो रहा है कि विकास दर का आंकड़ा महंगाई के आंकड़े से कम हो गया है। विकास दर पिछली तिमाही में साढ़े चार फीसदी रही है और चालू वित्त वर्ष में पांच फीसदी से नीचे रहने वाली है इसी बीच नवंबर, दिसंबर का महंगाई का आंकड़ा आया है, जिसके मुताबिक मुद्रास्फीति की दर साढ़े पांच फीसदी से ऊपर हो गई है। ऐसे हालात कब तक रहेंगे, कोई नहीं बता सकता है। आज से 20 साल पहले दिल्ली में एक सरकार इस नाम पर गिर गई थी कि उन दिनों प्याज की कीमत 60 रुपए प्रति किलो पहुंच गई थी। आज पिछले छह महीने से प्याज की कीमत एक सौ रुपए प्रति किलो से ज्यादा है। ध्यान रहे नवंबर, दिसंबर का महंगाई का जो आंकड़ा आया है वह पांच फीसदी से ऊपर इसलिए है क्योंकि खाने-पीने की चीजों की महंगाई दहाई में पहुंच गई है यानी दस फीसदी से ऊपर है। पिछले दिनों दूध बेचने वाली सारी कंपनियों ने दूध के दामों में एक बार में दो से तीन रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी की। लंबे समय के बाद ट्रेनों में यात्री किराए में बढ़ोतरी की गई है और बिना सब्सिडी वाले सिलिंडर के दाम एक बार में 17 रुपए बढ़ाए गए। सो, प्याज हो, दूध हो, पेट्रोल-डीजल-रसोई गैस सिलिंडर हो या ट्रेन यात्रा सब जगह कीमतें बढ़ गई हैं। हैरानी की बात है कि इसकी शिकायत सब कर रहे हैं कि आखिर ऐसा कब तक चलेगा पर इसके खिलाफ कहीं आंदोलन नहीं है या विरोध प्रदर्शन नहीं हो रहा है। सो, लग रहा है कि महंगाई भी न्यू नार्मल है। सरकार एक एक करके सारी सेवाओं को निजी हाथों में देने जा रही है। विमानन सेवा को बेचा जा रहा है। ट्रेनों का निजीकरण हो रहा है। सरकार एक सौ ट्रेन रूट्स पर डेढ़ सौ निजी ट्रेने चलाने की अनुमति देने जा रही है, जिस पर ट्रेन चलाने वाली कंपनी को ही किराया तय करने का अधिकार होगा। नीति आयोग ने सरकारी जिला अस्पतालों में निजी भागीदारी का पीपीपी मॉडल का प्रस्ताव दिया है, जिसका सबसे पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विरोध किया है। ऐसा लग रहा है कि सरकार स्वास्थ्य, शिक्षा, ट्रांसपोर्ट जैसी तमाम बुनियादी सेवाओं से अपने को अलग करने वाली है और सारी सेवाएं निजी हाथों में देने वाली है। इसका सबसे ज्यादा असर आम आदमी के जीवन पर होना है फिर भी कहीं से इसके खिलाफ आवाज नहीं सुनाई दे रही है। परेशान सब हैं पर ऐसा लग रहा है कि हिंदू-मुस्लिम और राष्ट्रवाद की अफीम के नशे में गाफिल पड़े हैं। उनको समझ भी नहीं आ रहा है कि हालात कब ठीक होंगे।
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