बेबाक विचार

नीतीश और नवीन का अर्थ

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नीतीश और नवीन का अर्थ
इसी महीने ओड़िशा से खबर थी कि एक गर्भवती महिला को उसके परिवार वाले कंधों पर लकड़ी का झूला बना उसमें बैठा उसे अस्पताल ले गए। नदी पार कराई। रोड खराब थी, एंबुलेस पहुंची नहीं तो घर वाले क्या करते! ओड़िशा से ऐसी खबरे आती रहती हैं। कंधे पर शव उठाए आदिवासी का, गरीब का अस्पताल जाना या लाश को ले जाने की खबरे आती हैं तो समझ नहीं आता कि नवीन पटनायक के राज में यह क्या! नवीन पटनायक विदेश में पढ़े-लिखे हैं। बीजू पटनायक के बेटे हैं। बाप-बेटे ने ओड़िशा में कोई 27 साल राज किया। जान लें कि नवीन पटनायक सन् 2000 से मुख्यमंत्री बने हुए हैं। मतलब बीस साल होने वाले है और प्रदेश में हालात है कि रोड ठीक नहीं। एंबुलेस नहीं पहुंच पाती। बीमार लोगों को, लाश को कंधे पर, उठा कर कई किलोमीटर गरीब, आदिवासी चलते हैं। अब जरा नीतीश कुमार के राज पर गौर करें? 15 साल नीतीश कुमार ने राज किया और बिहार में इन 15 वर्षों में एक फैक्टरी नहीं लगी और न बंद फैक्टरियों का चलना शुरू हुआ। विनिर्माण और औपचारिक क्षेत्र में लाख रोजगार सरकार के प्रयासों से नहीं बने होंगे जबकि प्रदेश की आबादी कोई साढ़े 12 करोड़ है। कैसे साढ़े 12 करोड़ लोग जी रहे हैं? नीतीश कुमार से पहले पंद्रह साल लालू यादव और उनकी पत्नी का राज रहा। इन दो मंडल नेताओं ने लोगों को ताड़ी पीने की आजादी दिलाई या शराबबंदी की लेकिन शिक्षा, जन चिकित्सा, इंफास्ट्रक्चर में जीरो काम। जो काम हुआ है वह केंद्र सरकार के हाईवे और उसकी परियोजनाओं से है। प्रशांत किशोर ने अपनी प्रेस कांफ्रेस में ठीक बात कही कि बिजली पहुंचा दी बावजूद इसके प्रदेश बिजली खपत में बॉटम पर है तो वजह यहीं तो है कि लाइट-पंखे के अलावा लोगों में और उपभोग का साधन या खर्च कहां है? हिसाब से नीतीश कुमार भी पढ़े-लिखे हैं। इंजीनियर हैं लेकिन उन्होंने अपनी पूरी पढ़ाई, पंद्रह साल का पूरा वक्त लोगों को बांटने, लोगों को वोट में बदलने की सोशल इंजीनियरिंग में जाया किया। पंद्रह साल बाद अपने सुशासन में विकास के उनके आंकड़े उतने ही खोखले हैं, जितने पंद्रह साल पहले लालू यादव-राबड़ी देवी के हुआ करते थे। नौ महीने बाद वे अपने काम, विकास पर वोट नहीं मांगेगे, बल्कि पंद्रह साल पहलेकेलालू -राबड़ी के राज में क्या था, इसको याद करवाते हुए वोट मागेंगे! तभी लाख टके का सवाल है कि पढ़े-लिखे (अपने हिसाब से संजीदा, भ्रष्टाचारविहिन भी) नवीन पटनायक और नीतीश कुमार का राज इतना नकारा, इतना निकम्मा कैसे कि राजधानी पटना का लगातार झुग्गी महानगर बनते जाना तो एक नई प्रतिमानी फैक्टरी नहीं, औद्योगिक क्षेत्र नहीं और उधर ओड़िशा में कंधों पर मरीज लादे परिवार की तस्वीरें! नीतीश कुमार पंद्रह सालों में राजधानी पटना के एयरपोर्ट का विस्तार भी नहीं करवा पाए। यदि उस एयरपोर्ट पर जाएंगे तो सब्जी-मछली बाजार या बस स्टेंडै से भी गया गुजरा। क्या यह सब इसलिए नहीं है कि जैसी प्रजा वैसे राजा! बिहार और ओड़िशा दोनों प्रदेश चालीस साल पहले जिन बातों के लिए बदनाम थे वैसे ही आज भी है तो पंद्रह साल के लालू राज, पंद्रह साल के नीतीश राज और बीस साल के नवीन पटनायक राज का निष्कर्ष तो यहीं बनेगा कि जैसे रामजी रखेंगे, रह लेंगे और कोऊ नृप बने हमें क्या लेना!
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