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संविधान की लड़ाई का मुगालता

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संविधान की लड़ाई का मुगालता
कांग्रेस पार्टी ने अपने मुख्यमंत्रियों से कहा है कि वे नागरिकता कानून के विरोध में सड़क पर उतरें और प्रदर्शन करें। सो, उसके मुख्यमंत्री 28 दिसंबर को संविधान बचाओ मार्च कर रहे हैं। यह सिर्फ कांग्रेस पार्टी नहीं है, जिसको यह मुगालता है कि केंद्र सरकार के हिंदुवादी राष्ट्रवाद के एजेंडे को वह संविधान बचाने के नाम पर काउंटर कर लेगी। कांग्रेस की तरह समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, वामपंथी पार्टियां, डीएमके आदि सबको यह भ्रम है कि संविधान बचाने के नाम पर देश की जनता उनके साथ खड़ी होगी और भाजपा के एजेंडे को फेल कर देगी। इससे जाहिर हो रहा है कि देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी से लेकर तमाम प्रादेशिक क्षत्रपों की नजदीकी और दूर की नजर दोनों खराब हो गए हैं। वे न तो निकट भविष्य का खतरा बूझ पा रहे हैं और भविष्य में आने वाली चुनौती को देख पा रहे हैं। यहीं कारण है कि ऐसे समय में भी बहुजन समाज पार्टी को लग रहा है कि उसे कांग्रेस के साथ नहीं जाना चाहिए। सपा को लग रहा है कि उसको बसपा के साथ नहीं जाना चाहिए। सीपीएम और सीपीआई को लग रहा है कि उन्हें तृणमूल कांग्रेस के साथ नहीं जाना चाहिए। इस तरह के अनेक छोटे-बड़े प्रादेशिक दल हैं, जो अपनी बिल्कुल क्षेत्रीय राजनीति के सरोकारों से मतलब रख रहे हैं और उनको लग रहा है कि वे एक निश्चित वोट बैंक की वजह से बचे रह जाएंगे। असलियत यह है कि भाजपा ने वोट बैंक की पुरानी और पारंपरिक राजनीति को पूरी तरह से बदल दिया है। पहले माना जाता था कि मुस्लिम वोट बैंक और हिंदू जातियों में बंटा है इसलिए हिंदू नहीं, बल्कि उसकी जातियां अलग अलग वोट बैंक हैं। तभी कुछ लोग यादव की राजनीति करते थे तो कुछ लोग कुर्मी की। कुछ जाट की राजनीति करते थे, कुछ मराठों की। कुछ सवर्ण की राजनीति करते थे तो कुछ पिछड़ों की। फिर पिछड़ों अति पिछड़े और दलितों में महादलित का सिद्धांत घुसाया गया। जातियों को उप जातियों और उप जातियों को गोत्र में बांटा गया और इसी आधार पर राजनीति की गई। ऐसा नहीं है कि मुस्लिम जातियों और उप जातियों में नहीं बंटे हैं पर उनको लेकर राजनीति एक समुदाय के तौर पर हुई। सो, देर सवेर यह होना था कि हिंदू भी मुस्लिम मनोविज्ञान में आचरण करना शुरू करे। व्यावहारिक रूप से ऐसी कोई बात नहीं है, जिससे लगे कि हिंदू को अल्पसंख्यक मनोविज्ञान में आचरण करना चाहिए पर यह एक ऐतिहासिक ग्रंथि है। भारत का मुसलमान इस सोच से बाहर नहीं निकला कि वह इस देश का शासक है और उसने आठ सौ साल तक हिंदुओं पर राज किया है तो हिंदू भी प्रजा होने और दबे होने की अपनी हीन ग्रंथि से बाहर नहीं निकाल पाए। हिंदुवादी संगठन पिछले एक सौ साल से हिंदुओं के मन से यह हीन भावना निकालने के लिए काम कर रहे थे। अब जाकर भाजपा के नए नेतृत्व को इस काम में कामयाबी मिली है। हम और वो की जो भावना दशकों से भड़काई जा रही थी वह भड़क गई है। ऐसा नहीं है कि देश के सौ करोड़ हिंदू इस भावना में बह रहे हैं। पर जितने भी इस भावना में बह रहे हैं उतने पर्याप्त हैं भाजपा को सत्ता में लाने के लिए। उनके सामने संविधान का जिक्र करना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा है। उनके मन में संविधान के प्रति आदर की भावना नहीं है क्योंकि उनको लगता है कि उनके साथ सारे भेदभाव इस संविधान की वजह से हो रहे हैं। उनके लिए संविधान का भाजपा का घोषणापत्र है। उनको आजादी की लड़ाई के समय की भावना मतलब नहीं है और न देश की कथित गंगा-जमुनी तहजीब के प्रचार से कोई लेना-देना है। जब तक कांग्रेस और दूसरी क्षेत्रीय पार्टियां इस सचाई को नहीं समझेंगी तब तक भाजपा का मुकाबला नहीं कर पाएंगी। पर हकीकत यह है कि समाजवादी पार्टी को लग रहा है कि वह अपने यादव और मुस्लिम वोट के आधार पर अपना अस्तित्व बचा लेगी तो बसपा को लग रहा है कि दलित और मुस्लिम समीकरण उसको बचा लेगा। बिहार में राजद को भी मुस्लिम और यादव का भरोसा है तो दिल्ली में आम आदमी पार्टी को लग रहा है कि प्रवासी और मुसलमान उसको फिर पहले जैसा बहुमत दिला देंगे। लेफ्ट पार्टियां भी सेकुलर वोट के मुगालते में हैं इसलिए ममता बनर्जी पर आरोप लगा रहे हैं कि उनकी वजह से भाजपा को बढ़त मिली है। उनको इस बात की कतई समझ नहीं है कि जाति को लेकर जैसी रूढ़िवादिता भारतीयों के समाज व्यवहार में है वैसी ही रूढ़िवादिता अब राजनीति में भी आ गई है। पहले हिंदू सामाजिक व्यवहार में अलग होता था और उसका राजनीतिक व्यवहार अलग होता था। राजनीति में वह अपने धर्म और जाति से बाहर जाकर वोट दे सकता था। पर अब उसका यह व्यवहार बदल गया है। वह राजनीतिक मामले में भी पहले हिंदू हो गया है। इस बात को जब तक देश की सारी पार्टियां नहीं समझेंगी, तब तक उनका अपना व्यवहार नहीं बदलेगा। समाज में और हिंदू मनोविज्ञान में आए बदलाव को समझ कर पार्टियों को अपना व्यवहार बदलना होगा। अपनी सोच बदलनी होगी। लोगों को देखने और समझने का नजरिया बदलना होगा।
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