
पंजाब की जीत के बाद जिन कुछ प्रमुख नेताओं ने पार्टी का का दामन थामा हैं उनमें एक पूर्व मंत्री और दो पूर्व विधायकों सहित कई कुछ अन्य चर्चित नाम तो ज़रूर शामिल हैं, लेकिन इन सब का संबंध जम्मू संभाग से है। कश्मीर के साथ-साथ जम्मू संभाग से भी किसी भी बड़े मुस्लिम नेता ने पार्टी का दामन नहीं थामा है और न ही किसी बड़े मुस्लिम नेता की तरफ से पार्टी में शामिल होने को लेकर कोई संकेत दिया गया है।
लेखक: मनु श्रीवत्स
इस साल मार्च में पंजाब में मिली शानदार जीत से उत्साहित होकर आम आदमी पार्टी (आप) ने अब जम्मू-कश्मीर की तरफ रुख करना शुरू किया है। कुछ शुरूआती सफलताएं ‘आप’ के हाथ लग रही हैं और हाल के दिनों में कुछ लोग पार्टी में शामिल भी हुए हैं। लेकिन अभी तक किसी भी बड़े कद्दावर, सर्वप्रिय, लोकप्रिय नेता ने आम आदमी पार्टी का हाथ नही थामा है। यही नही देश के इस इकलौते मुस्लिम बहुल प्रदेश के किसी भी बड़े मुस्लिम नेता ने अभी तक ‘आप’ में शामिल होने का फैसला नही किया है। प्रदेश की विषमता से भरी राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए आम आदमी पार्टी के लिए सब कुछ आसान नही है।
इस बीच यह सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या आम आदमी पार्टी को पंजाब जैसी सफलता जम्मू-कश्मीर में मिल सकेगी ? हालांकि इतना साफ है कि क्षेत्रीय राजनीति में बुरी तरह से बंटी और ध्रुवीकरण में उलझी जम्मू-कश्मीर की राजनीति में आम आदमी पार्टी के लिए अपने लिए जगह बना पाना अगर असंभव नही है तो मुश्किल ज़रूर है।
ऐसा लगता है कि पार्टी को ऐसे किसी बड़े नेता की तलाश भी है जो प्रदेश के दोनों हिस्सों — कश्मीर व जम्मू में समान रूप से लोकप्रिय हो और सब वर्गों में स्वीकार्य भी हो। यही वजह है कि आम आदमी पार्टी ने अभी तक पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष का ऐलान नही किया है।
लेकिन क्षेत्रीय आकांक्षाओं और अंतर्विरोधों से भरी जम्मू-कश्मीर की राजनीति में पूरे प्रदेश के लिए एक सर्वमान्य व बड़े नेता को ढूंढ निकालना टेढ़ी खीर के समान है। गौरतलब है कि वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में कश्मीर के किसी नेता की जम्मू में स्वीकार्यता नही रही है जबकि इसी तरह से जम्मू संभाग के किसी नेता का कश्मीर में स्वीकार होना मुश्किल है। ध्रुवीकरण इस हद तक हो चुका है कि पुराने स्थापित राजनीतिक दलों के लिए भी सबको साथ लेकर चलना आसान नही रह गया है। ऐसे में आम आदमी पार्टी के लिए अपने लिए जगह बनाना और सभी हिस्सों व वर्गों तक पहुंच पाना मुश्किल नज़र आता है।
सीमित हैं विकल्प
जम्मू-कश्मीर की राजनीति बेहद उलझी हुई है। विशेषकर कश्मीर घाटी की सियासत बहुत ही संवेदनशील रही है। जिस तरह से 1989 के बाद से कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववादी राजनीति ने पैर पसारे हैं उसके बाद से राष्ट्रीय दलों के लिए विकल्प पहले से ही बहुत ही सीमित हो चुके हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी कैसे घाटी में जगह बनाती है यह देखना काफी महत्वपूर्ण होगा। वैसे अभी तक किसी भी बड़े कश्मीरी नेता ने आम आदमी पार्टी में शामिल होने का कोई संकेत नही दिया है।
आम आदमी पार्टी ने अभी शुरुआत प्रदेश के जम्मू संभाग के हिन्दू बहुल इलाकों से ही की है। अगर यूं कहा जाए कि पार्टी ने अभी सिर्फ हिन्दू बहुल जम्मू और उधमपुर ज़िलों में ही अपने कदम रखे हैं तो गलत नही होगा। कश्मीर तो दूर अभी जम्मू संभाग के अधिकतर मुस्लिम बहुल इलाकों तक भी पार्टी नही पहुंची है।
पंजाब की जीत के बाद जिन कुछ प्रमुख नेताओं ने पार्टी का का दामन थामा हैं उनमें एक पूर्व मंत्री और दो पूर्व विधायकों सहित कई कुछ अन्य चर्चित नाम तो ज़रूर शामिल हैं, लेकिन इन सब का संबंध जम्मू संभाग से है। कश्मीर के साथ-साथ जम्मू संभाग से भी किसी भी बड़े मुस्लिम नेता ने पार्टी का दामन नहीं थामा है और न ही किसी बड़े मुस्लिम नेता की तरफ से पार्टी में शामिल होने को लेकर कोई संकेत दिया गया है।
बड़ा और महत्वपूर्ण सवाल यह है कि जम्मू-कश्मीर जैसे मुस्लिम बहुल प्रदेश में आम आदमी पार्टी के लिए कितनी संभावनाएं हैं ? क्या पार्टी जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील प्रदेश में कामयाब हो सकेगी ? आतंकवाद और कश्मीर मुद्दे सहित कई मुद्दों पर आम आदमी पार्टी का क्या रुख होगा ? उल्लेखनीय है कि आतंकवाद और कश्मीर मुद्दों को लेकर पार्टी का रुख़ बदलता रहा है। जिस तरह की लाइन हाल के दिनों में आम आदमी पार्टी ने पकड़ी है उसे देखते हुए पार्टी के लिए जम्मू-कश्मीर जैसे प्रदेश में सब वर्गों को साथ लेकर चलना क्या आसान होगा ? आम आदमी पार्टी ने अक्सर कश्मीर को लेकर बात करते समय या तो अपना रुख़ बदला है या अपने आप को संवेदनशील मुद्दों से दूर रखा है।
पहले शाहीनबाग और पिछले दिनों जहांगीर पुरी की घटनाओं में भी जिस तरह से आम आदमी पार्टी ने प्रतिक्रिया दी है उसे देखते हुए भी मुस्लिम बहुल जम्मू-कश्मीर में विशेषकर कश्मीर घाटी में उसकी राह आसान नही है।
पैंथर्स को ‘आप’ ने दिया झटका
जम्मू-कश्मीर में अपनी गतिविधियां शुरू करते ही आम आदमी पार्टी को एक कामयाबी हासिल ज़रूर हुई है। उसने प्रदेश के एक पुराने दल- जम्मू-कश्मीर पैंथर्स पार्टी में सेंध लगाई है। पहले से कमज़ोर हो चुकी पैंथर्स पार्टी के लगभग सभी नेता गत दो महीनों के दौरान आम आदमी पार्टी में शामिल हो चुके हैं ।
जम्मू-कश्मीर पैंथर्स पार्टी को प्रदेश के लोकप्रिय और चर्चित नेता प्रोफ़ेसर भीम सिंह की पार्टी के रूप में भी जाना जाता है। प्रोफ़ेसर भीम सिंह ही पार्टी के सर्वे-सर्वा और संस्थापक हैं। इन दिनों खुद प्रोफ़ेसर भीम सिंह सख़्त बिमार हैं मगर उनके तमाम करीबी यहां तक की उनके सगे भतीजे हर्षदेव सिंह (पूर्व मंत्री)व भांजे बलवंत सिंह मनकोटिया (पूर्व विधायक) ने भी पार्टी छोड़ दी है और आम आदमी पार्टी में शामिल हो चुके हैं। पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता व पूर्व विधायक यशपाल कुंडल ने भी आम आदमी पार्टी की सफेद टोपी पहन ली है. हालांकि पैंथर्स पार्टी के इन नेताओं द्वारा आम आदमी पार्टी में शामिल होने में एक बड़ा पेंच अभी भी फंसा हुआ है। आगे चलकर यह पेंच क्या गुल खिलाता है यह देखना दिलचस्प होगा ।
दरअसल पिछले कुछ वर्षों से जम्मू-कश्मीर पैंथर्स पार्टी में सब कुछ ठीक नही चल रहा था । पार्टी की कमान को लेकर वरिष्ठ पार्टी नेता हर्षदेव सिंह और बलवंत सिंह मनकोटिया में ज़बरदस्त मतभेद उभर आए थे। दोनों नेताओं ने अपनी रिश्तेदारी तक का लिहाज़ छोड़ दिया था और सार्वजनिक तौर पर एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाज़ी कर रहे थे। मनमुटाव के कारण लगभग एक साल पहले ही बलवंत सिंह मनकोटिया ने अपने आप को पैंथर्स पार्टी से अलग कर लिया था।
जैसे ही पंजाब में आम आदमी पार्टी को सफलता मिली और उसकी सरकार बनी तो जम्मू-कश्मीर से नेताओं द्वारा ‘आप’ में शामिल होने की दौड़ शुरू हो गई । इस दौड़ में सबसे पहले गत अप्रैल में जिन्होंने ‘आप’ का दामन थामा उनमें पैंथर्स नेता बलवंत सिंह मनकोटिया प्रमुख थे।
मगर पीछे-पीछे ठीक एक महीने बाद मनकोटिया के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हर्षदेव सिंह ने भी आम आदमी पार्टी का हाथ पकड़ लिया। अब मामला दिलचस्प हो गया है । हर्षदेव सिंह दावा कर रहे हैं कि आम आदमी पार्टी के नेतृत्व ने उनको प्रदेशाध्यक्ष बनाने का भरोसा दिया है। लेकिन बलवंत सिंह मनकोटिया इस बात के लिए तैयार नही हैं। उन्होंने अभी तक हर्षदेव के साथ अपनी नाराज़गी को छोड़ा भी नही है और न ही उनके साथ सार्वजनिक मंच साझा किया है। पैंथर्स पार्टी छोड़ कर आए हर्षदेव सिंह और बलवंत सिंह मनकोटिया की आपसी लड़ाई आम आदमी पार्टी को जम्मू-कश्मीर में अपने पांव जमाने देने में बड़ी बाधा बन सकती है।