भोपाल। पूरे देश में लगभग 12 करोड़ और प्रदेश में लगभग सवा करोड़ आदिवासी समाज ने दोनों दलों को बारी बारी से सत्ता दिला कर ना केवल अपनी दम दिखाएं बरन भविष्य के लिए गौरवशाली परंपरा की शुरुआत भी करवा दी अब गांधी जयंती, सरदार वल्लभभाई पटेल जयंती और अंबेडकर जयंती के समान ही प्रति वर्ष बिरसा मुंडा जयंती जनजाति गौरव दिवस के रूप में मनाई जाएगी। adivasi mahasammelan narendra modi
दरअसल, आदिवासियों के समान या इससे ज्यादा और भी जातियां होंगी लेकिन वे अब तक राजनीतिक दलों को अपनी ताकत का एहसास नहीं करा पाई है। इसी कारण उन्हें वह गौरव हासिल नहीं हुआ है जो 15 नवंबर को आदिवासी समाज में हासिल कर लिया है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 15 नवंबर का दिन इस समाज के लिए मील का पत्थर साबित होगा क्योंकि एक तरफ जहां विश्व स्तरीय हबीबगंज स्टेशन का नाम रानी कमलापति स्टेशन हो गया है। वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जंबूरी मैदान में इस समाज के लिए अनेकों योजनाओं की शुरुआत तो की ही साथ ही यह भी घोषणा की कि अब देश में प्रतिवर्ष 15 नवंबर को जनजाति गौरव दिवस मनाया जाएगा। इस अवसर पर प्रदेश सरकार में घर घर राशन योजना का शुभारंभ भी करवाया। जिसमें प्रदेश के आदिवासियों को अब गांव में ही राशन उपलब्ध होगा। वैसे तो 15 दिन से जनजाति गौरव दिवस की तैयारियां पूरे प्रदेश में चल रही थी लेकिन जिस तरह से सत्ता और संगठन ने पूरी ताकत झोंकी उससे इस कार्यक्रम ने पूरे देश में माहौल बनाया।
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बहरहाल, राजधानी भोपाल सोमवार को मोदी मय थी और मोदी जनजातीय मय क्योंकि मध्य प्रदेश से पूरे देश में जनजाति वर्ग में माहौल जो बनाना था मंच पर भी प्रधानमंत्री मोदी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राज्यपाल मंगू भाई पटेल, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, वीरेंद्र कुमार पहलाद पटेल, विजय शाह, मीना सिंह, बिसाहूलाल सिंह के अलावा और किसी को स्थान नहीं दिया गया था। प्रदेश के मंत्री सांसद और विधायक मंच के सामने बिठाए गए थे। स्वागत भाषण मीना सिंह ने दिया और उसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने संबोधन में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा जनजाति समुदाय में किए जा रहे कार्यों का विस्तृत ब्यौरा प्रस्तुत किया। साथ ही भविष्य की योजनाओं पर भी प्रकाश डाला। इसके बाद संबोधन देने आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत जनजातीय भाषा में शुरुआत की। जय जोहार और राम-राम से अभिवादन किया और अपने उद्बोधन में उन्होंने परोक्ष रूप से कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि आजादी के बाद कितने वर्षों तक सरकार में रहने के बाद भी केवल वोट लेने के अलावा जनजाति भाई की जिंदगी बदलने की कोई प्रयास नहीं किए लेकिन अब वर्ग का गौरव उन्हें दिया जाएगा। भाजपा ने इस कार्यक्रम की सफलता के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। यहां तक कि जनप्रतिनिधियों ने खासकर मंत्रियों ने अपने क्षेत्र से आए आदिवासी भाइयों की आवभगत बारातियों जैसी की। उनके खाने पीने और रुकने की व्यवस्था पर स्वयं नजर रखी।
वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल कांग्रेस शुरू से ही इस आयोजन पर नजर लगाए हुए हैं और अपने परंपरागत वोट बैंक में जो कि 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के पक्ष में लौट आया था वह वापस भाजपा में ना चला जाए इसके लिए अपने अपने ढंग से पार्टी जतन करती रही। सहयोगी संगठन के तौर पर काम कर रहा जयस भी सकरी रहा। जयस ने धार जिले के कुक्षी विकासखंड के ग्राम भत्यारी में जहां शहीद बिरसा मुंडा की जयंती पर उनकी प्रतिमा लगाई। वही बैतूल जिले में एक बड़ा आयोजन किया। जिसमें 15000 से भी ज्यादा आदिवासी एकत्रित हुए। वहीं कांग्रेस में जबलपुर में आदिवासी सम्मेलन का आयोजन करके महाकौशल क्षेत्र के आदिवासियों को एकत्रित किया और इस कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित कई आदिवासी नेता और विधायक शामिल हुए। भले ही यह आयोजन सत्ताधारी दल भाजपा द्वारा किए गए राजधानी भोपाल में आयोजन के मुकाबले छोटे साबित हो रहे हो लेकिन आदिवासियों के बीच एक तरफा भगवा रंग चढ़ने से रोकने के लिए काफी थे।
कुल मिलाकर आदिवासी समाज ने जिस तरह से पिछले वर्षों में अपना वोटिंग अंदाज बदला है उससे राजनीतिक दल छतरपुर सावधान हो गए हैं और भविष्य के लिए अपनी ओर इस समाज को जोड़ने के लिए ना केवल खासे सक्रिय हो गए हैं वरन खींचतान जैसी स्थिति बन गई है और राजनीतिक दलों का कितना हित सकता है यह तो भविष्य ही बताएगा लेकिन फिलहाल जनजातीय समुदाय अपनी शक्ति का एहसास कराने में कामयाब हो गया है और अब 15 नवंबर प्रतिवर्ष जनजाति गौरव दिवस के रूप में मनाया जाएगा जिससे गौरवशाली भविष्य की उम्मीद तो बन ही गई है।
दलों को दम दिखा कर हासिल की गौरवशाली परंपरा
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