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आजमगढ़ में अखिलेश यादव का चुनाव प्रचार करने ना जाना बना मुददा, लोग नाराज

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लखनऊ। आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा की खाली हुई सीटों पर हो रहे उपचुनाव के लिए चल रहा प्रचार मंगलवार की शाम थम गया. इन दोनों सीटों पर समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच सीधी चुनावी लड़ाई हो रही है. भाजपा नेताओं ने इन सीटों पर जीत हासिल करने के लिए हर वर्ग से यहां संपर्क किया. वहीं सपा मुखिया अखिलेश यादव ने आजमगढ़ और रामपुर दोनों ही सीटों पर प्रचार करने जाना ही उचित नहीं समझा. अखिलेश यादव के चुनाव प्रचार ना करने आने को लेकर आजमगढ़ में दलित और मुस्लिम समाज के लोग नाराज है. इन लोगों का कहना है कि अखिलेश यादव को हमारे समाज का वोट चाहिए लेकिन वह हमारे बीच आना पसंद नहीं करते. ऐसे में अब हमारा समाज उसे ही वोट देगा जो हमारे दुःख दर्द का साथी बनेगा.

आजमगढ़ के मुबारकपुर और की सगड़ी विधानसभा क्षेत्रों में रह रहे दलित और मुस्लिम समाज के तमाम लोगों ने मंगलवार को सपा मुखिया के प्रति अपने मन के उद्गारों को व्यक्त किया. इन दोनों ही इलाकों में बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी शाह आलम उर्फ़ गुड्डू जमाली का नारा ‘बाहरी बनाम अपना भाई’ लोगों की जुबां पर है. यहां वोटरों को रिझाने के लिए जातिगत समीकरण से लेकर सभी हथकंडे अपनाए जा रहे हैं. भाजपा, बसपा और सपा के लिए आजमगढ़ का यह उप चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है. और इस चुनाव में अखिलेश यादव का चुनाव प्रचार करने आजमगढ़ ना आना एक बड़ा मुददा बना हुआ है. इसे राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल के प्रवक्ता एडवोकेट तलहा रशादी ने बसपा प्रत्याशी गुड्डू जमाली को समर्थन देने की घोषणा कर और हवा दे दी है.

तलहा रशादी कहते है कि सपा मुखिया को हमारे समाज के वोटों की जरूरत ही नहीं है, अगर उन्हें जरूरत होती तो वह यहां हमारे समाज के बीच प्रचार करने आते. उन्होंने (अखिलेश) ऐसा नहीं किया तो हम भी मान रहे हैं कि उन्हें हमारा वोट नहीं चाहिए. अब ऐसी ही बात यहां दलित समाज के लोग भी कह रहे है. सगड़ी के रहने वाले रामकुमार कहते हैं कि अखिलेश ने हमारे समाज के साथ धोखा किया है. हमारे नेता के बलिहारी बाबू के बेटे सुनील आनंद को टिकट देने का ऐलान किया पर फिर उन्हें भुला दिया. अखिलेश ने हमारे नेता के साथ ठीक व्यवहार नहीं किया. हमारे गांव में सपा के लोग वोट मांगने तक नहीं आए. रामकुमार के साथ खड़े कमल और शाहिद का कहना था कि इस जिले में सीएए और एनआरसी के आंदोलन के दौरान तमाम युवा जेल गए, लेकिन सपा अध्यक्ष ने कोई बयान न दिया और न खुद आए. कोरोना काल में भी अखिलेश जी ने ध्यान नहीं दिया. फिर जब चुनाव आया, तो पूरे प्रदेश के नेता चले आए, उस वक्त भी आने चाहिए थे. इसीलिए अब हम भी धोखा देने वालों का साथ नहीं देंगे. चुनाव प्रचार के अंतिम दिन दलित और मुस्लिम समाज के लोगों की याह नाराजगी सपा पर भारी पड़ सकती है.

आज़मगढ़ लोकसभा सीट पर करीब साढ़े अठारह लाख मतदाता हैं, जिनमें से क़रीब साढ़े तीन लाख यादव मतदाता हैं. सीट पर तीन लाख से ज़्यादा मुसलमान मतदाता हैं. वहीं तीन लाख से ज़्यादा दलित मतदाता हैं. ये वो जातीय समीकरण हैं जिनके दम पर सपा पूरी मजबूती से आजमगढ़ में चुनाव लड़ती और बड़े अंतर से जीतती रही है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि आजमगढ़ का मुसलमान-यादव समीकरण सपा को बड़ी जीत दिलाने में कामयाब रहा था. लेकिन अखिलेश यादव के आजमगढ़ में चुनाव प्रचार करने ना आने को लेकर दलित और मुस्लिम समाज की नाराजगी सपा पर भारी पड़ सकती है. दलित और मुस्लिम समुदाय के करीब छह लाख वोट इस सीट पर हैं, अगर इनमें से आधे लोगों ने सपा से दूरी बना ली तो सपा प्रत्याशी की जितना मुश्किल हो जाएगा. इस स्थिति से बचने के लिए ही समूचा सैफई परिवार आजमगढ़ में कैंप कर रहा है. फ़िलहाल भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव उर्फ़ निरहुआ और सपा मुखिया अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव के बीच हो रहे चुनाव में बसपा प्रत्याशी गुड्डू जमाली कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं. ऐसे में अखिलेश यादव की एमवाई वाली जातीय गणित सपा के पक्ष में कैसे बैठेगी या नहीं यह तो अब चुनाव परिणाम आने पर ही पता चलेगा.
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आजमगढ़ लोकसभा उप चुनाव एक नजर में
भाजपा: दिनेश लाल यादव उर्फ ‘निरहुआ’
सपा : धर्मेंद्र यादव
बसपा: गुड्डू जमाली
कुल वोटर : 18,38,593

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