nayaindia Anang Trayodashi 2023 कामदेव की पूजा का दिन अनंग त्रयोदशी
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कामदेव की पूजा का दिन अनंग त्रयोदशी

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भारतीय संस्कृति में काम  का साहचर्य उत्सव मनाने योग्य माना गया है। जब तक काम  मर्यादा में रहता है, उसे भगवान की विभूति माना जाता है, लेकिन जब और जैसे ही वह मर्यादा छोड़ देता है तो आत्मघाती बन जाता है, शिव का तीसरा नेत्र (विवेक) उसे भस्म कर देता है। भगवान शिव द्वारा किया गया काम-संहार का मूल भाव यही है। कामदेव के पूजन का उत्तम दिवस अनंग त्रयोदशी है, जिसकी पौराणिक कथा भी शिव के इसी कथा से जुडी हुई है।

3 मार्च अनंग त्रयोदशी

भारतीय संस्कृति में प्रेम, काम, वासना और रूप के देव माने जाने वाले काम के देवता कामदेव को पूजनीय माना गया है। कामदेव को भारतीय सभ्यता- संस्कृति और अध्यात्म में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। प्रेम का देवता मानकर कामदेव की अत्यंत प्राचीन काल से पूजा- अर्चना किये जाने की लम्बी परिपाटी भारत में रही है। वर्तमान में भी प्रेम प्राप्ति, और प्रेमी- प्रेमिका के सम्बन्ध को मधुरमय बनाने तथा पति- पत्नी के दाम्पत्य सम्बन्ध को प्रेममयी बनाये रखने के लिए कामदेव के पूजन- अर्चा की परिपाटी है। प्राचीन  काल से ही भारत में काम को निकृष्ट नहीं मानकर उसे दैवी स्वरूप प्रदान किया गया है। और उसे कामदेव के रूप में मान्यता दी गई है। भगवान शिव के द्वारा अपनी क्रोधाग्नि में काम को भस्म करने के बाद उसे अनंग रूप में पुनः जीवित करना उसकी विकृतता की नहीं, बल्कि महता को स्थापित करता है।

यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में काम  का साहचर्य उत्सव मनाने योग्य माना गया है। जब तक काम  मर्यादा में रहता है, उसे भगवान की विभूति माना जाता है, लेकिन जब और जैसे ही वह मर्यादा छोड़ देता है तो आत्मघाती बन जाता है, शिव का तीसरा नेत्र (विवेक) उसे भस्म कर देता है। भगवान शिव द्वारा किया गया काम-संहार का मूल भाव यही है। कामदेव के पूजन का उत्तम दिवस अनंग त्रयोदशी है, जिसकी पौराणिक कथा भी शिव के इसी कथा से जुडी हुई है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में एक समय तपस्यारत भगवान शंकर को उनके सत्पथ से विचलित करने के लिए राजाधिराज सम्राट इन्द्र को विशेष चिन्ता हुई । अपने स्वार्थ-साधन के लिए उन्होंने कामदेव से मिलकर शिव के तपोभंग का जाल रचा तथा कनक और कामिनी की विकार-संचारी मोहिनी का उपयोग किया।  देवताओं के कहने पर कामदेव ने अपने पुष्प बाण के उपयोग से जब शंकर की तपस्या भंग करनी चाही, तो शंकर ने अपनी तृतीय नेत्र खोलकर अग्नि तेजस उत्पन्न किया। उससे जलकर कामदेव भस्म हो गया था। परन्तु काम की महता और कामदेव की पत्नी रति के रूदन, अनुनय-विनय व देवताओं के कहने पर शंकर ने कामदेव को पुनः अनंग रूप में जिन्दा कर दिया। मान्यता है कि भगवान शंकर के द्वारा तृतीय नेत्र खोलने पर कामदेव भस्म हो गए, परन्तु उनकी पत्नी रति के अति विलाप से करुणाद्रित होकर शंकर के वरदान से कामदेव का अनंग रूप में पुनर्जन्म तथा उनकी पत्नी रति के साथ पुनः मिलन हुआ था। मान्यता है कि कामदेव का अनंग रूप में यह पुनर्जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को ही हुआ था, इसलिए इस तिथि को कामदेव का पूजन किये जाने की परिपाटी है। पुराणों में भी इनके पूजन का उत्तम दिन अनंग त्रयोदशी  को माना गया है। अनंग त्रयोदशी का व्रत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि में आता है।

अनंग त्रयोदशी का व्रत प्रेमी जोड़ों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है। अनंग त्रयोदशी के दिन व्रत रहते हुए भगवान शिव तथा माता पार्वती की पूजा के साथ ही कामदेव व रति की भी पूजा विधि विधान से करने से प्रेम संबंधों में सफलता प्राप्त होती है, संतानहीन दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। प्रेम और काम के देवता कामदेव की पत्नी का नाम है रति। इन्हें प्रेम, जुनून और मिलाप की देवी माना गया है। मान्यता है कि कामदेव- रति की पूजा-अर्चना से पति-पत्नी के बीच कभी कोई मतभेद नहीं होता और दोनों के बीच उत्तम शारीरिक संबंध पैदा होते हैं, जो एक खुशहाल दाम्पत्य जीवन के लिए अति आवश्यक भी हैं। मान्यतानुसार कामदेव की पत्नी के पूजन व उनका ध्यान कर किये गये “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” – मंत्र के लगातार इक्कीस दिनों तक एक माला अर्थात 108 बार जप से पति-पत्नी के बीच की समस्त प्रकार की दूरियां व  नोक -झोक समाप्त हो जाती है और दोनों में नजदीकियां बढ़ जाती हैं।

पौराणिक मान्यतानुसार रति का जन्म दक्ष के पसीने की एक बूंद के कारण हुआ था। कथा के अनुसार जब काम के देवता कामदेव ने दक्ष पर कामभावना को उजागर करने का बाण छोड़ा तब दक्ष का सामना अचानक एक सुंदरी संध्या से हुआ। संध्या ब्रह्मा की पुत्री थीं, जिन्हें समस्त सुंदरियों में सबसे सुंदर माना जाता था। उनकी सुंदरता देखते ही दक्ष का मन विचलित हो उठा और वह उनकी ओर मोहित हो उठे। इस अनुभव के समय उनके शरीर से पसीने की एक बूंद गिरी।  पसीने के उस बूंद के भूमि देवी को स्पर्श करते ही प्रेम और काम की देवी रति का जन्म हुआ। पुराणों के अनुसार रति देवी का रूप बेहद आकर्षक है। वे तन से सुंदर हैं, आकर्षित हैं, और शस्त्र धारण कर घोड़े पर सवार हैं।

वेद, उपनिषद, पुराण सहित सम्पूर्ण भारतीय साहित्य काम की सत्ता को स्वीकार करता है, और जीवन में काम की महत्वपूर्ण भूमिका को मानकर जीवन जीने की सलाह देता है। काम के प्रति सहजता का एक भाव पाये जाने के कारण ही प्राचीन काल से ही वसन्तपंचमी के दिन मदनोत्सव और बसन्तोत्सव के रूप में मनाये जाने के परम्परा रही है । प्राचीन काल में इस दिन स्त्रियाँ अपने पति की पूजा कामदेव के रूप में करती थीं। वसन्तपंचमी के दिन ही कामदेव और रति ने पहली बार मानव हदय में प्रेम एवं आकर्षण का संचार किया था। तभी से यह दिन वसन्तोत्सव तथा मदनोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। मदनोत्सव का अधिष्ठाता कामदेव को भारतीय शास्त्रों में प्रेम और काम का देवता माना गया है। इनके अन्य नामों में रागवृंत, अनंग, कंदर्प, मनमथ, मनसिजा, मदन, समरहरि, चित्तहर, रतिकांत, पुष्पवान, पुष्पधंव आदि प्रसिद्ध हैं। युवा और आकर्षक स्वरूप वाले कामदेव विवाहित हैं, और अत्यंत सुंदर व मनमोहक कामदेव की पत्नी का नाम रति है।  कामदेव को देवी श्री के पुत्र और श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का अवतार माना जाता है, जिनका अस्त्र धनुष गन्ने का धनुष और पुष्पों का तीर है तथा सवारी तोता है। कामदेव इतने शक्तिशाली हैं कि उनके लिए किसी प्रकार के कवच की कल्पना नहीं की गई है। कामदेव के आध्यात्मिक रूप को भारत में वैष्णव अनुयायियों द्वारा कृष्ण भी माना जाता है। जिन्होंने रति के रूप में सोलह हजार पत्नियों से महारास रचाया था और व्रजमण्डल की सभी गोपियाँ उन पर न्यौछावर थीं।

कामदेव का धनुष प्रकृति के सबसे ज्यादा मजबूत उपादानों में से एक है। यह धनुष मनुष्य के काम में स्थिर-चंचलता जैसे विरोधाभासी अलंकारों से युक्त है। इसीलिए इसका एक कोना स्थिरता का और एक कोना चंचलता का प्रतीक होता है। वसंत, कामदेव का मित्र है इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है। इस धनुष की कमान स्वर विहीन होती है। कामदेव के कमान से तीर छोड़ने पर उसकी आवाज नहीं होती। इसका मतलब यह अर्थ भी समझा जाता है कि काम में शालीनता जरूरी है। तीर कामदेव का सबसे महत्वपूर्ण शस्त्र है। यह जिस किसी को बेधता है उसके पहले न तो आवाज करता है और न ही शिकार को संभलने का मौका देता है। इस तीर के तीन दिशाओं में तीन कोने होते हैं, जो क्रमश: तीन लोकों के प्रतीक माने गए हैं। इनमें एक कोना ब्रह्म के आधीन है जो निर्माण का प्रतीक है। यह सृष्टि के निर्माण में सहायक होता है। दूसरा कोना विष्णु के अधीन है, जो ओंकार या उदर पूर्ति अर्थात पेट भरने के लिए होता है। यह मनुष्य को कर्म करने की प्रेरणा देता है। कामदेव के तीर का तीसरा कोना महेश (शिव) के अधीन होता है, जो मकार या मोक्ष का प्रतीक है। यह मनुष्य को मुक्ति का मार्ग बताता है।

अर्थात काम न सिर्फ सृष्टि के निर्माण के लिए जरूरी है, बल्कि मनुष्य को कर्म का मार्ग बताने और अंत में मोक्ष प्रदान करने का मार्ग भी सुझाता है। कामदेव के धनुष का लक्ष्य विपरीत लिंगी होता है। इसी विपरीत लिंगी आकर्षण से बंधकर पूरी सृष्टि संचालित होती है। कामदेव का एक लक्ष्य स्वयं काम हैं, जिन्हें पुरुष माना गया है, जबकि दूसरा रति हैं, जो स्त्री रूप में जानी जाती हैं। कवच सुरक्षा का प्रतीक है। कामदेव का रूप इतना बलशाली है कि यदि इसकी सुरक्षा नहीं की गई तो विप्लव ला सकता है। इसीलिए यह कवच कामदेव की सुरक्षा से निबद्ध है। यानी सुरक्षित काम प्राकृतिक व्यवहार केलिए आवश्यक माना गया है, ताकि सामाजिक बुराइयों और भयंकर बीमारियों को दूर रखा जा सके।

By अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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