देश में हर साल अस्थमा के एक करोड़ से ज्यादा मामले आते हैं। बीते कई सालों से दीवाली के बाद या पराली जलने के समय अस्पतालों में सांस के मरीजों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है। कारण बढ़े एयर-पॉल्यूशन से अस्थमा का ट्रिगर होना। और जरा कोविड काल याद कीजिये, इसमें अस्थमा पेशेन्ट ही सबसे पहले कोरोना की चपेट में आये। अस्थमा का सबसे कॉमन टाइप है ब्रोन्कियल अस्थमा, जो क्रोनिक है, और लाइफ टाइम इसे दवाओं से मैनेज करना पड़ता है।
अस्थमा, यानी मुश्किल से आती सांस, घुटता दम, खांसते-खांसते सीने में दर्द से बुरा हाल। ऐसी बीमारी जिसमें सांस की नली में सूजन, सिकुड़न या ज्यादा बलगम बनने से सांस लेना दुश्वार, पता नहीं अगली सांस आयेगी भी या नहीं। क्या आप जानते हैं कि अपने देश में हर साल अस्थमा के एक करोड़ से ज्यादा मामले आते हैं। बीते कई सालों से दीवाली के बाद या पराली जलने के समय अस्पतालों में सांस के मरीजों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है। कारण बढ़े एयर-पॉल्यूशन से अस्थमा का ट्रिगर होना। और जरा कोविड काल याद कीजिये, इसमें अस्थमा पेशेन्ट ही सबसे पहले कोरोना की चपेट में आये। अस्थमा का सबसे कॉमन टाइप है ब्रोन्कियल अस्थमा, जो क्रोनिक है, और लाइफ टाइम इसे दवाओं से मैनेज करना पड़ता है। इसका एक वैरियेन्ट और है जिसमें पेशेन्ट खांसी से परेशान रहता है, इस कॉफ वैरियेन्ट में लगातार इतनी खांसी कि सो पाना भी मुश्किल, हालांकि इसमें अस्थमा के बाकी लक्षण कम परेशान करते हैं।
अस्थमा किन कारणों से?
फेमस साइंस मैगजीन, साइंस न्यूज में छपी एक रिसर्च के मुताबिक यदि अस्थमा जेनेटिक नहीं है तो ज्यादातर मामलों यह इंफेक्शन और एलर्जी से ट्रिगर होता है। रिसर्च से यह भी सामने आया कि जिन्हें बचपन में कोई वायरल इंफेक्शन हुआ हो या जो लोग बहुत ही हाइजिनिक एटमास्फियर में रहते हैं उन्हें भी अस्थमा का रिस्क होता है। बहुत से लोग आमतौर पर स्वस्थ रहते हैं लेकिन सीजन या जगह बदलते ही अस्थमा से परेशान, कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? तो जबाब है एलर्जी। ये एलर्जी डस्ट, पोलिन, पालतू जानवर, एयर पॉल्यूशन, खाने वाली चीजें, कैमिकल्स, परफ्यूम बगैरा से तो होती ही है और तो और ज्यादा ठंड या गरमी भी अस्थमा ट्रिगर कर देते हैं। इसलिये कुछ लोगों का अस्थमा AC में जाते ही उखड़ जाता है। जरूरी नहीं कि अस्थमा, हमेशा एलर्जी और इंफेक्शन से ही हो। एस्प्रिन जैसी पेन किलर दवायें भी अस्थमा ट्रिगर कर सकती हैं। रिसर्च से सामने आया कि अस्थमा के कुल मरीजों में 9 प्रतिशत को, एस्प्रिन जैसी दवाओं से अस्थमा अटैक हुआ। ऐसे केस भी सामने आये हैं जिसमें अस्थमा। नेचुरल स्लीप साइकल बिगड़ने से ट्रिगर हो गया।
अस्थमा अटैक के लक्षण क्या?
अगर अस्थमा की वजह से सांस लेने में कठिनाई के साथ हार्ट रेट बढ़ जाये, बैचेनी और घुटन महसूस हो तो समझिये ये अस्थमा अटैक है। ये अटैक अगर कुछ मिनटों में बिना दवा के अपने आप शांत हो जाये, तो भी इसे हल्के में न लें, फौरन डाक्टर से कन्सल्ट करें क्योंकि दोबारा ऐसा अटैक लंग्स डैमेज कर सकता है।
अस्थमा जानने के टेस्ट
अगर अस्थमा के लक्षण दिख रहे हैं तो उन्हें इग्नोर न करें, डॉक्टर से मिलें, वे आपकी फिजिकल जांच के अलावा कुछ टेस्ट कराने के लिये कहेंगे। जैसे चेस्ट एक्सरे, पुलमोनरी फंक्शन टेस्ट, एलर्जी टेस्ट, नाइट्रिक ऑक्साइड टेस्ट, स्पुटम इस्नोफिल, मेथाकोलाइन चैलेंज और प्रोवोकेटिव टेस्ट। हां एक बात और, जरूरी नहीं कि आपको ये सभी टेस्ट कराने पड़ें, कई बार एक या दो टेस्टों से ही काम चल जाता है।
अस्थमा का इलाज
डॉक्टर इसका ट्रीटमेंट रीजन और पेशेन्ट की कंडीशन के एकार्डिंग करते हैं। आमतौर पर ट्रीटमेंट के तीन तरीके हैं, पहला क्विक रिलीफ ट्रीटमेंट, इसमें पेशेन्ट को इन्हेलर और नेबुलाइजर से तुरन्त राहत देते हैं, जिससे उसे मिनटों में आराम आ जाता है। दूसरा लांग टर्म अस्थमा कंट्रोल मेडीकेशन्स, इसमें पेशेन्ट को रोज दवायें लेनी पड़ती हैं जिससे अस्थमा कंट्रोल रहे और अटैक का रिस्क कम हो जाये। तीसरा है ब्रोन्कियल थर्मोंप्लास्टी, इसमें इलेक्ट्रोड के जरिये हीट एयर वेव्स, लंग्स में भेजते हैं जिससे रेसपीरेटरी सिस्टम की मसल्स रिलेक्स हो जाये और पेशेन्ट आसानी से सांस ले पाये।
सांस एक्सरसाइजेज है वैकल्पिक इलाज
ये तो था अस्थमा का स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट, लेकिन अस्थमा ठीक करने में दवाओं के साथ ब्रीदिंग एक्सरसाइजेज का बहुत बड़ा रोल है। अगर पेशेन्ट, रोजाना दिन में दो बार 15 से 30 मिनट डीप ब्रीद यानी गहरी सांसे ले तो लंग्स स्ट्रांग होंगे और अस्थमा के सिम्पटम धीरे-धीरे कम होने लगेंगे। यदि इसे डेली रूटीन में शामिल करें तो हो सकता है कि अस्थमा से हमेशा के लिये निजात मिल जाये।
ऐसे होगा अस्थमा अटैक से बचाव
अस्थमा अटैक के समय मेडिकल फैसिलटीज से इसे कंट्रोल करना जरूरी है, नहीं तो पेशेन्ट की जान भी जा सकती है, लेकिन हमेशा इमरजेंसी मोड में तो नहीं रह सकते, ऐसे में वे उपाय अपनाने होंगे जिनसे अस्थमा ट्रिगर ही न हो। इसके लिये डस्ट, पोलिन, स्मेल्स, धुंआ, पॉल्यूशन, कैमिकल्स, एक्सट्रीम इन्वॉयरमेंट यानी बहुत सर्दी या गर्मी से बचें। अगर किसी फूड जैसे मशरूम, नट्स, डेयरी प्रोडक्ट, ग्लूटेन इत्यादि से एलर्जी है तो उससे परहेज करें। स्मोकिंग हमेशा के लिये छोड़ दें। स्मोकिंग, लंग्स के लिये सबसे घातक है ये अस्थमा तो ट्रिगर करती ही है साथ ही कैंसर का रिस्क भी बढ़ाती है।
स्ट्रांग इम्युनिटी का मतलब है एलर्जी और इंफेक्शन से बचाव यानी अस्थमा का रिस्क कम। वैसे तो आप एलर्जी से बचने के लिये एंटी-एलर्जी शॉट्स भी ले सकते हैं लेकिन सबसे आसान तरीका है हैल्दी डाइट यानी पोषक तत्वों से भरपूर भोजन।
मोटापा भी लंग्स का दुश्मन है इसलिये वजन घटायें, लेकिन रेगुलर एक्सरसाइज से। कभी-कभार की गयी एक्सरसाइज अस्थमा का रिस्क बढ़ाती है, लेकिन रेगुलर एक्सरसाइज लंग्स मजबूत करती है, जिससे अस्थमा का रिस्क घटता है। एक्सरसाइज के साथ डेली 30 मिनट की डीप ब्रीदिंग, बूस्टर डोज का काम करती है।
स्ट्रेस भी अस्थमा ट्रिगर करता है इसलिये स्ट्रेस बढ़ाने वाली स्थितियों से बचें। योगा, मेडीटेशन और प्राणायाम स्ट्रेस कम करने में हैल्प करते हैं। अस्थमा पेशेन्ट्स को हमेशा अपने पास प्रवेन्टिव मेडीसिन्स रखनी चाहिये अगर लम्बे समय से इन्हेलर का इस्तेमाल कर रहें हैं तो हो सकता है उसका असर कम हो जाये, ऐसे में डाक्टर से दवा बदलने को कहें। डाक्टर ने जो ट्रीटमेंट प्लान बनाया है उस पर स्ट्रिक्ट रहें और अपनी मर्जी से दवायें न बदलें, न बंद करें।