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डॉक्यूमेंट्री का खौफ या और कुछ….?

भोपाल। प्रधानमंत्री मोदी जी के भाषणों के रुख में अब अचानक परिवर्तन नजर आने लगा है, पहले वे अपने संबोधनो मैं अपने भविष्य की योजनाओं व देश हित के संदेश दिया करते थे, अब यह देखा जा रहा है कि वह देशवासियों से नहीं बल्कि अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से बात करके उन्हें पार्टी हित के संदेश दे रहे हैं और बताया यह जा रहा है कि मोदी जी के संभाषणों के लहजे व रुख में ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन “बीबीसी” की चर्चित डॉक्यूमेंट्री आम होने के बाद यह परिवर्तन आया है, अब वे कभी अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को चुनाव में 400 दिन शेष रहने की चेतावनी देते नजर आते हैं तो कभी अपने 9 वर्षीय प्रधानमंत्रीत्व काल की प्रमुख उपलब्धियों को गिना कर उन्हें मतदाताओं के घर-घर जाकर उन्हें बताने की बात कहते हैं, मोदी जी के संभाषणों में अचानक रूप से आए इस परिवर्तन से राजनीतिक क्षेत्रों में खलबली है।

अब स्थिति यह है कि कभी खबरी चैनलों के माध्यम से मोदी जी को आजादी के बाद से अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री दिखाने का प्रयास किया जाता है और प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से लेकर अब तक रहे प्रधानमंत्रियों से मोदी जी के 9 वर्षीय शासनकाल को ‘श्रेष्ठ’ बताने की कोशिश की जाती है, तो कभी यह दिखाने का असफल प्रयास किया जाता है कि मोदी जी का अब तक का 9 वर्षीय कार्यकाल भारत के लिए ‘स्वर्ण काल’ रहा इस दौरान देश तथा देशवासियों के हित में कई अहम फैसले लेकर उन्हें कार्यान्वित किया गया।

इसी संदर्भ में यह कहना मैं सर्वथा उचित मानता हूं कि हमारे देश के कर्णधार राजनेता देश की आम जनता या वोटर को आज भी उतना ही भोला भाला व अज्ञानी मानते हैं जितना कि आजादी के आरंभिक वर्षों में माना जाता रहा। वे यह नहीं जानते कि आज का आम वोटर या नागरिक अपने अधिकारों व कर्तव्यों के साथ देश के कर्णधारओ पर नजर रखने व उनके कार्यों के लिए पुरस्कृत करने या दंडित करने की विद्या पूरी तरह सीख चुका है।

हां, तो हम प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी के संबोधनो के बदले हुए लेहजे की बात कर रहे थे, पिछले पखवाड़े के पहले उनके द्वारा दिए गए संबोधनो व पिछले पखवाड़े के दौरान दिए उनके भाषणों की यदि तुलना की जाए तो पहले जहां देश व अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में भारत की स्थिति की चर्चा गर्व के साथ की जाती थी, तो अब उनके संबोधन में पार्टी चुनाव प्रचार व उनके शासनकाल की कथित प्रमुख उपलब्धियों को आम वोटर तक पहुंचाने की बात की जाने लगी है, आखिर संबोधनो की विषय वस्तु में यह परिवर्तन क्यों सामने आ रहे हैं, क्या मोदी जी को 2024 की निकटता का एहसास हो गया है, या कोई अन्य कारण या डॉक्यूमेंट्री के असर का भय।

जहां तक बीबीसी द्वारा हाल ही में जारी की गई डॉक्यूमेंट्री का सवाल है मोदी सरकार ने तो उसके प्रसारित होते ही भारत में उस पर प्रतिबंध लगा दिया, किंतु ऐसा लगता है कि मोदी के मुख्यमंत्री काल में गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों पर तैयार की गई इस डॉक्यूमेंट्री से देश का युवा वर्ग अधिक उत्तेजित हुआ है, इसलिए भारत की राजधानी सहित कई प्रमुख शहरों के विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में छात्रों द्वारा इस डॉक्यूमेंट्री का सार्वजनिक प्रदर्शन करने का प्रयास किया गया, व उसको रोकने पर अशांति की स्थिति निर्मित हुई इससे मोदी जी ने शायद यह महसूस किया हो देश का युवा वर्ग यदि उनसे नाराज हो गया तो फिर 2024 के सपने पूरे नहीं हो पाएंगे तथा युवा वर्ग की नाराजगी का प्रभाव आम वोटर पर पड़ा तो स्थिति और विपरीत हो जाएगी, इसलिए अब मोदी जी ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को आमजन तक पहुंच बनाने और मोदी शासनकाल की उपलब्धियों की जानकारी पहुंचाने की सीख दी है, अब उनकी सीख का कितना असर होता है कितनी स्थिति बदलती है और आम वोटर कार्यकर्ताओं के संदेशों से कितना प्रभावित होता है? यह तो बाद की बात है, लेकिन हां यह अवश्य कहा जा सकता है कि ‘चक्रवर्ती सम्राट’ के स्वप्न दृष्टा को अब मौजूदा स्थिति को देखते चिंतित होकर पार्टी को सचेत करने को मजबूर अवश्य होना पड़ रहा है।

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