गेस्ट कॉलम

यात्रा से दिग्विजय और जयराम का कद भी बढ़ा

Byशकील अख़्तर,
Share
यात्रा से दिग्विजय और जयराम का कद भी बढ़ा
यात्रा का वास्तविक लाभ तभी होगा जब संगठन मजबूत हो। पार्टी में ऐसे लोगों को काम करने का मौका मिले जो अपने लिए नहीं कांग्रेस के लिए काम करते हों। नेतृत्व की छवि निखराने की जिनमें योग्यता हो और इच्छा हो। कांग्रेस अपने लिए राजनीति करने वालों से भरी पड़ी है। मगर यात्रा में यह दोनों लोग दिग्विजय और जयराम ऐसे निकल कर सामने आए हैं जो साहस, योग्यता और वफादारी सभी गुण रखते हैं। और इनका इस्तेमाल पार्टी और नेतृत्व के लिए करते हैं। बुधवार, 23 नवंबर कांग्रेस के लिए और खासतौर से मध्य प्रदेश के लिए बड़ा दिन है। भारत जोड़ो यात्रा तो यहां सुबह सुबह प्रवेश कर ही रही है। साथ ही राहुल जो हिमाचल नहीं गए थे गुजरात में चुनावी माहौल बनाकर आ रहे हैं। और पहली बार प्रियंका गांधी यहां से यात्रा में शामिल हो रही हैं। राहुल और प्रियंका का साथ चलना सामान्य घटना नहीं है। संयुक्त रुप से इन दोनों ने इससे पहले केवल एक ही यात्रा निकाली है। और वह बाजी जिताऊ साबित हुई थी। मध्य प्रदेश के कांग्रेसी भी अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए इसे एक शुभ लक्षण मान सकते हैं। यात्रा वैसे भी मध्य प्रदेश कांग्रेस के लिए शुभ ही होती है। पांच साल पहले निकाली दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा ने भी 2018 में कांग्रेस की सरकार बनवा दी थी। मध्य प्रदेश से पहले राहुल और प्रियंका केवल एक बार ही साथ चले। दिन भर। वैसे हाथरस, लखीमपुर खीरी में दोनों साथ सड़क पर थे। मगर थोड़ी देर के लिए। लेकिन लंबी रैली पहली बार दोनों की संयुक्त जायस में हुई थी। जायस भक्ति काल के मशहूर कवि मलिक मोहम्मद जायसी की जन्मभूमि। अमेठी लोकसभा क्षेत्र का सबसे बड़ा शहर। यहां 2014 से ही राहुल के लिए माहौल खराब होना शुरू हो गया था। स्मृति ईरानी और कुमार विश्वास दोनों ही अपने पूरे रंग में थे। दस साल सरकार होने के बावजूद कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के काम न होने के कारण वे नाराज थे। जिन लोगों को अमेठी और रायबरेली लोकसभा क्षेत्र देखने की जिम्मेदारी थी वे कार्यकर्ताओं और जनता के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते थे। मगर राहुल और सोनिया गांधी इन नाराजगियों पर ध्यान नहीं देते थे। वे अपने मैनेजरों पर पूरी तरह निर्भर थे। मगर प्रियंका को इस अंदर की हलचल की खबर थी। मुख्यत: वे ही दोनों लोकसभा क्षेत्र देखती थीं। चुनाव प्रचार के आखिरी दिन या एकाध दिन पहले प्रियंका ने राहुल को बुलाकर जायस में एक रैली की। राहुल बाकी जगहों पर चुनाव प्रचार में थे। दोनों भाई बहन के जायस की सड़कों पर निकलने ने माहौल बदल दिया। राहुल कम अंतर से जीते मगर जीत गए। लेकिन उसके बाद भी संजय गांधी के समय से चली आ रही परंपरागत सीट अमेठी में क्या समस्या हो गई यह देखने के कोशिश नहीं की। हमने अमेठी रायबरेली बहुत कवर की है। उस समय से लिखना शुरू कर दिया था कि अब राहुल के लिए अमेठी हाथ में रखना मुश्किल हो जाएगा। मगर राहुल के पास तो शायद लिखा हुआ जाने से रोक दिया जाता है। उन्हें अधिकांशत: नहीं पता होता कि ग्राउंड पर क्या चल रहा है। क्या लिखा, कहा जा रहा है। राहुल को कई बार ग्रुप में पत्रकारों और दूसरे लोगों को मिलवाया जाता है। मगर उसमें आयोजक यह पूरी कोशिश करता है कि जो सबसे बड़ा बेवकूफ हो उसको बात करने का सबसे ज्यादा मौका मिले। और जो कुछ थोड़ा बहुत जानते हैं। पढ़ते लिखते हैं वे दूर रहें। राहुल को पप्पू बनाने में कांग्रेस ने बहुत मेहनत की है। भाजपा ने तो उसका केवल फायदा उठाया है। अभी एक टीवी डिबेट में एक संपादक बोल रहे थे कि राहुल की पप्पू इमेज कांग्रेस को कुछ नेताओं ने बनाई है। हम भी उस डिबेट में थे। हमें आश्चर्य हुआ कि इन संपादक ने तो कभी कांग्रेस कवर की नहीं है। कांग्रेस में आते जाते नहीं हैं। यह इतने कान्फिडेंस से यह बात कैसे कह रहे हैं। बाद में हमने पूछा तो बताया कि उनके रिपोर्टर ने बताया था कि कांग्रेस के एक बड़े पदाधिकारी ने उससे कहा था कि राहुल की प्रेस कान्फ्रेंस में तुम्हें मौका देंगे। तुम राहुल से पूछना कि उन्हें पप्पू क्यों कहते हैं? हमें याद आ गया करीब चार साल पहले महाराष्ट्र सदन में कांग्रेस के मीडिया डिपार्टमेंट ने राहुल की यह प्रेस कान्फ्रेंस आयोजित की थी। और जैसा 2014 के चुनाव से पहले अर्णब गोस्वामी को एक इंटरव्यू दिलाकर राहुल की छवि तहस-नहस कर दी गई थी वैसे ही 2019 के चुनाव से पहले इस प्रेस कान्फ्रेंस के जरिए राहुल की छवि खराब की गई थी। इस बात को अब कांग्रेस के नेता भी बोलने लगे हैं कि राहुल की छवि भाजपा से पहले कांग्रेस के अंदर के लोगों ने खराब करना शुरू कर दी थी। लेकिन समय से बड़ी कोई चीज नहीं होती है। राहुल ने सड़क पर निकलकर अपनी एक अलग हाजिर जवाब और स्मार्ट छवि बना ली है। सौम्य, शांत, भले यह सब तो वे हमेशा से थे। मगर राजनीति में इन गुणों का शायद कोई ज्यादा महत्व नहीं है। यहां तो दांव पेंच, चाल चलने वालों को कुशल, दमदार भी माना जाता है। राहुल उस राह पर पूरे तो शायद ही कभी चल पाएं मगर इस आधी से ज्यादा हो गई यात्रा में उन्होंने कांग्रेस के कुछ नेताओं द्वारा गढ़ी गई और भाजपा द्वारा आगे बढ़ाई गई उस नकली छवि से मुक्ति जरूर पा ली है। इस यात्रा में उनकी एक और उपलब्धि है। दो ऐसे विश्वसनीय सहयोगियों का साथ जो अगर राहुल ने बनाए रखा तो उनकी राजनीति का ग्राफ अब नीचे आने वाला नहीं। मीडिया डिपार्टमेंट के इंचार्ज महासचिव जयराम रमेश और यात्रा के संयोजक दिग्विजय सिंह यात्रा शुरू होने से पहले से सिर्फ और सिर्फ यात्रा और राहुल के लिए काम कर रहे हैं। कांग्रेस में आमतौर पर ऐसा होता नहीं। यहां नेता सिर्फ अपने लिए काम करते हैं। 2017 से 2019 तक जब तक राहुल अध्यक्ष रहे कई लोगों को काम सौंपा मगर उन्होंने दिए हुआ काम करने के बदले इसमें अपनी पूरी क्षमता लगाई कि उनकी खुद की छवि कैसे चमके। और बाकी दूसरे काम करने वाले लोग कैसे राहुल के करीब न आ पाएं। राहुल ने जब 2019 में अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया तो यही कहा कि उन्हें अपने लोगों ने धोखा दिया है। सबक राहुल को सीखना है। छवि तो उन्होंने बदल ली। मगर वफादार और वफा का झूठा प्रदर्शन करने वालों में फर्क करना उन्हें खुद सीखना होगा। यात्रा अपने आप में बड़ा अनुभव है। जनता से मिलने और सीखने का तो है ही। मगर राजनीति में जो बात जरूरी सीखना है वह है अपने आसपास कैसे लोगों रखना। राहुल को याद रखना चाहिए कि उनके पिता राजीव गांधी को धोखा उनके खास लोगों ने ही दिया था। प्रियंका ने रायबरेली में अरुण नेहरू के लिए कहा था मेरे पिता की पीठ में छुरा घोंपने वाले! राहुल को पुराने अनुभवों से सबक सीखना होगा। यात्रा का वास्तविक लाभ तभी होगा जब संगठन मजबूत हो। पार्टी में ऐसे लोगों को काम करने का मौका मिले जो अपने लिए नहीं कांग्रेस के लिए काम करते हों। नेतृत्व की छवि निखराने की जिनमें योग्यता हो और इच्छा हो। कांग्रेस अपने लिए राजनीति करने वालों से भरी पड़ी है। मगर यात्रा में यह दोनों लोग दिग्विजय और जयराम ऐसे निकल कर सामने आए हैं जो साहस, योग्यता और वफादारी सभी गुण रखते हैं। और इनका इस्तेमाल पार्टी और नेतृत्व के लिए करते हैं।
Published

और पढ़ें