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राहुल बताए श्रीनगर में असली रोडमेप

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कांग्रेस का आधार नेता नहीं जनता है।जिसका अपार समर्थन उन्हें हर राज्य में पूरी यात्रा में मिला। और देश भरमें अभी भी बिना किसी सहायता प्रोत्साहन के मौजूद हजारों दिल सेकांग्रेसी कार्यकर्ता। राहुल को इन्हीं के लिए कांग्रेस को वापस सत्ता में लाना होगा। यात्रा केदौरान प्रेम, भाईचारे, बेरोजगारी, मंहगाई, अग्निवीर, शिक्षा, चिकित्सा,खेती किसानी, गलत जीएसटी जितनी भी बातें की हैं वे सत्ता में आकर ही वेइम्प्लीमेंट कर सकते हैं।इसीलिए यात्रा के बाद क्या और कैसे? इसका जबाव उन्हें श्रीनगर से देनाचाहिए। आगे का रोडमेप!

हो गई यात्रा। अब इसके बाद क्या? यात्रा अपने आप में उद्देश्य नहीं थी।गांधी जी की दांडी यात्रा इसीलिए सफल थी कि उसका उद्देश्य स्पष्ट औरदृष्टव्य था। अंग्रेजों को बाहर निकालना। आजादी।विनोबा भावे भी ऐसे ही गांव गांव घूमे। भले आदमी थे। राहुल जैसे। मगर कोईयाद नहीं रखता। क्योंकि उद्देश्य अमूर्त (एबस्टर्ड) था। भूदान! जमीनेंदान नहीं होतीं। कानून से वितरित की जाती हैं। दान बूढ़ी गायों का हीहोता है। मगर उसकापरिणाम भी क्या होता है यह सबको मालूम है। ऋषि उद्दालक भी बूढ़ी और दुध न देने वाली गायें दान कर रहे थे।

चन्द्रशेखर की यात्रा का उद्देश्य? भोंडसी आश्रम केवल!लेकिन दिग्विजय सिंह की यात्रा का उद्देश्य था। 2018 में मध्य प्रदेश मेंकांग्रेस की जीत।मूल मतलब है इम्पैक्ट होना चाहिए। राहुल मंदिर मंदिर घूमे। सोमवार को जबरघुनाथ मंदिर गए तो याद आया कि वैष्णों देवी भी गए थे। और कैलाश मानसरोवरभी। लेकिन इम्पैक्ट हुआ सड़क पर निकलने से। चले चलो।दलितों के यहां गए। पूरा भारत घूमा। बुन्देलखंड, छत्तीसगढ़ के आदिवासी

इलाके। दक्षिण में आंध्र, कर्नाटक के वीरप्पन के घने जंगल के इलाके।उत्तराखंड के पहाड़। जाने कितनी जगह। इनमें से कई जगह हम साथ थे। हाथरस,लखीमपुर खीरी, भट्टा परसौल, किसानों के आंदोलन में मजदूरों के पैदल गांववापसी में सब जगह राहुल थे। लेकिन कुछ नहीं।

राजनीति इम्पैक्ट की है। प्रभाव पड़ जाए तो ठीक नहीं तो आप आडवानी बने रहो!दरअसल काम तो अब शुरू होता है। राहुल को 30 जनवरी को श्रीनगर से कुछघोषणाएं करना चाहिए। इलाज और पढ़ाई पूरी तरह वापस सरकारी क्षेत्र में।लूट का धंधा बंद। निजी क्षेत्र एकदम बाहर। चिकित्सा और शिक्षा में कोईदुकानदारी नहीं चलेगी। कांग्रेस मध्यमार्गी पार्टी है। उससे कोई भूमिसुधार जैसे क्रान्तिकारी कार्यक्रमों की उम्मीद नहीं करेगा। हालांकि जिसश्रीनगर में वे झंडा फहराने जा रहे हैं वहीं देश के सबसे पहले भूमि सुधारकी घोषणा हुई थी। शेख अब्दुल्ला द्वारा। लेकिन राहुल या कांग्रेस अभी यहसब सोच भी नहीं सकते। एक तो बताया ही कि कांग्रेस पूरी तरह मध्यमार्गीपार्टी है। जो कभी कहती तो है कि वह थोड़ा लेफ्ट की तरफ झुकी हुई है(लेफ्ट आफ सेन्टर)  मगर ज्यादातर उस पर प्रभाव राइटिस्टों (दक्षिणपंथियों) का ही रहता है।

मगर जो भी हो कांग्रेस भारत को पूरी तरह परिभाषित करती है। भारत भी ऐसेही विचारों में बहुत उदार और व्यवहारिकता में दकियानुसी है। आफिस मेंसम्मेलनों में हम बहुत लिबरल, आदर्शवादी बातें करते हैं मगर घर में,परिवार में बेहद रुढ़िवादी।

राहुल इसी मामले में सबसे अलग हैं। समय से बहुत आगे हैं कि वे मन, वाणी, कर्म में एकरूपता रखते हैं। स्पष्टवादी हैं। विचारों में कन्फ्यूजन नहींहै। अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में भी। साफ कहा। अभी तक शादी न करने औरक्यों नहीं करने पर। ऐसा उत्तर कम देखा गया। माता पिता के खुशहाल वैवाहिकजीवन पर खुद मां बाप ही सहमत नहीं होते। बच्चे क्या होंगे। मगर ये राहुलका आब्जर्वेशन है। और बहुत सही कि उनके माता पिता की शादीशुदा जिन्दगीबहुत खुशगवार थी। और वे अपने लिए भी ऐसी अपेक्षा करते हैं।विषयातंर होगा मगर यहां यह लिखे बिना हम रह नहीं सकते कि सोनिया गांधी नेजहां हर मामले में एक आदर्श स्थापित किया है, वहीं एक पत्नी के तौर परभी। और वह भी भारतीय पत्नी के पैमानों पर। मां तो वह आदर्श है हीं।बिल्कुल परम्परागत समर्पित भारतीय मांओं की तरह जिनके जीवन का एक हीउद्देश्य होता है अपने बच्चों का बेहतरीन पालन पोषण। विदेशी कहने वालोंको कभी तो लगता होगा कि किस पैमाने पर वे सोनिया को विदेशी कहते हैं!सिर्फ राजनीतिक कारणों से। नहीं तो वे हर मामले में किसी भी आदर्श भारतीयनारी से कम नहीं हैं।

पूरा जीवन परिवार के लिए समर्पित कर दिया। औरपरिवार से जुड़ी संस्था, सिद्धांतों के लिए। कांग्रेस के लिए उनका काम भीएक बड़ी तपस्या थी। कांग्रेस पता नहीं कितना याद रखेगी या नहीं। क्योंकिबुरे समय में अपनी मदद करने वालों को कांग्रेसी कभी याद नहीं रखते हैं।

उल्टे उन पर हमला जरूर करते हैं। काश ऐसा न हो!  मगर कोई बड़ी बात नहींहै कि एक दिन कांग्रेसी ही बताएं कि सोनिया ने उनका, पार्टी का कितनानुकसान कर दिया। नेहरू और गांधी के बारे में वे बताते ही हैं।

खैर यहां उद्देश्य कांग्रेस के अवसरवादियों पर लिखना नहीं है। वे तोहमेशा रहेंगे। जब जब केन्द्रीय सत्ता कमजोर होगी वे ताकतवर होंगे। और अभीउनके आगे बढ़ने के बहुत चांस हैं। क्योंकि एक तो सत्ता के दो केन्द्र हैं। एक यात्रा से और शक्ति एवं जनविश्वास पाए राहुल दूसरे चुने हुएपार्टी अध्यक्ष खरगे। दूसरे राहुल के बार बार यह कहने कि हमारी पार्टीकेन्द्रीय सत्ता में भरोसा नहीं रखती है।

यह सिचुएशन कांग्रेसियों को बहुत रास आती है। क्योंकि उनका उद्देश्य कोईबड़ा तो होता नहीं। वे सिर्फ अपने एडजस्टमेंट की जुगाड़ में रहते हैं।बड़े आदर्श और सिद्धांतों की जिम्मेदारी नेहरू गांधी परिवार की होती है।और समझौते की भी। क्योंकि जब कांग्रेसियों का ज्यादा दबाव होता है। दीनदुःखी और कातर बन जाते हैं तो उन्हें कुछ देने के लिए नेतृत्व को दयावशकुछ समझौते करने ही पड़ते हैं।

जो नहीं जानते उनके लिए आश्चर्य की ही चीज है कि सब कुछ पा जाने वालेबड़े नेता भी जीवन भर यही शिकायत करते रहे कि उन्हें कोई नहीं पूछ रहा।वे समयबद्ध और अंतहीन प्रमोशन चाहते हैं। गुलाम नबी आजाद तो जीवन भर सबलेने के बाद राज्यसभा मेम्बर रहते हुए अगला चांस क्यों अनाउंस नहीं कररहे के स्यापे के साथ राज्यसभा में प्रधानमंत्री मोदी के साथ रोए ही थे।

प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति बनकर भी संतुष्ट नहीं हुए। उसके बाद नागपुर संघकार्यालय जाकर अपना दर्द बताया। अहमद पटेल सर्वशक्तिमान भूमिका में रहे।मगर कहने लगे थे कि कोई नहीं पूछता। ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिनप्रसाद, आरपीएन सिंह, जाने कितने राहुल के दोस्तों की श्रेणी में आ जानेवाले लोग सत्ता जाते ही उस भाजपा में चले गए जिसने उनके मित्र राहुल कीछवि खराब करने पर हजारों करोड़ रुपया खर्च किया। माना की कोई सिद्धांतनहीं है। पार्टी कांग्रेस से कोई विचारधारात्मक जुड़ाव नहीं है। मगरमित्रद्रोह!

तो यह कांग्रेसी हैं। और राहुल को यही समझना है कि कांग्रेस और कांग्रेसीमें क्या फर्क है। कांग्रेस महान पार्टी। मगर कांग्रेसी नेता ज्यादातर (सब नहीं) सत्तालोलुप, अवसरवादी। कांग्रेस का आधार यह नेता नहीं जनता है।

जिसका अपार समर्थन उन्हें हर राज्य में पूरी यात्रा में मिला। और देश भरमें अभी भी बिना किसी सहायता प्रोत्साहन के मौजूद हजारों दिल सेकांग्रेसी कार्यकर्ता। यही जनता और कार्यकर्ता कांग्रेस के और राहुल के मजबूत लौह स्तंभ हैं। जो कांग्रेस के इतने बुरे समय में भी मजबूती के साथडटे हुए हैं।

राहुल को इन्हीं के लिए कांग्रेस को वापस सत्ता में लाना होगा। यात्रा केदौरान प्रेम, भाईचारे, बेरोजगारी, मंहगाई, अग्निवीर, शिक्षा, चिकित्सा,खेती किसानी, गलत जीएसटी जितनी भी बातें की हैं वे सत्ता में आकर ही वे इम्प्लीमेंट कर सकते हैं।इसीलिए यात्रा के बाद क्या और कैसे? इसका जबाव उन्हें श्रीनगर से देना चाहिए। आगे का रोडमेप!

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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