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उपचुनाव: ‘नड्डा’ की नेतृत्व क्षमता और ‘साख’ कसौटी पर

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उपचुनाव: ‘नड्डा’ की नेतृत्व क्षमता और ‘साख’ कसौटी पर
मध्य प्रदेश में सरकार चलाना हो या फिर सरकार के लिए जरूरी 24 विधानसभा के उपचुनाव.. तेजी से बदलते राजनीतिक परिदृश्य में इसका महत्त्व मायने दोनों बदलते जा रहे हैं।  उप चुनाव में सरकार की स्थिरता के लिए भाजपा की जीत जरूरी तो कांग्रेस अपने लिए भाजपा की हार के साथ सत्ता वापसी का मौका मान रही है ..मध्य प्रदेश का इतिहास बताता है कि जब भी चुनाव हुए तब मंत्री रहते कई नेता चुनाव हार चुके हैं. यह उपचुनाव मध्य प्रदेश के लिए मिनी विधानसभा का उपचुनाव साबित होने वाले.. विधायक नहीं लेकिन मंत्री बन चुके ऐसे कई चेहरे इस बार चुनाव मैदान में होंगे .. यह स्थिति केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद अस्तित्व में आई मध्य प्रदेश सरकार के कारण बनी है.. भाजपा का प्रदेश में सबसे बड़ा और लोकप्रिय चेहरा शिवराज का नेतृत्व तो कसौटी पर पहले ही लग चुका है ..तो इस सरकार को बनवाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया की साख भी दांव पर लग चुकी है ...जिनके एक इशारे पर समर्थक 22 विधायकों ने इस्तीफे दे दिए थे में 6 मंत्री भी शामिल थे... ज्यादा उप चुनाव जिस ग्वालियर चंबल क्षेत्र में होना वहां भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा केंद्रीय मंत्री रहते नरेंद्र सिंह तोमर भी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते.. तोमर को मोदी शाह नड्डा के साथ शिवराज का करीबी और भरोसेमंद माना जाता है। तो अब क्षेत्र की राजनीति में कभी उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंदी साबित होते रहे ज्योतिरादित्य के साथ नरेंद्र को अपनी केमिस्ट्री मजबूत साबित करना होगी.. छोटी सी चूक और दोनों के बीच कोई गलतफहमी क्रमशः जेपी नड्डा अमित शाह और नरेंद्र मोदी का बड़ा नुकसान कर सकती है ..जिनके लिए मध्य प्रदेश में बनाई गई सरकार और उसमें छुपे दूसरे सियासी हित कुछ ज्यादा ही मायने रखते हैं... प्रधानमंत्री ,रक्षा मंत्री और दूसरे केंद्रीय मंत्रियों द्वारा मध्य प्रदेश को सौगात देने का सिलसिला जल्द शुरू होने वाला है ...लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालने के बाद जेपी नड्डा भी इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं.. यश और अपयश दोनों के लिए उन्हें तैयार रहना होगा.. जहां उनके लिए उम्मीदवारों के चयन में कोई दुविधा नहीं समस्या चुनाव प्रचार का तौर तरीका और कांग्रेस के मुकाबले खुद को न सिर्फ बेहतर साबित करना चुनौती होगा.. बल्कि जीत भी सुनिश्चित करना होगी। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शिवराज कैबिनेट विस्तार को अंतिम रूप देने में यदि अमित शाह का मार्गदर्शन हासिल किया.. तो प्रदेश प्रभारी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे के मार्फत ज्योतिरादित्य और शिवराज के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करवाया.. यही नहीं इस स्क्रिप्ट को आगे बढ़ाने में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर प्रदेश उपाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा को भी पूरी तरह भरोसे में लेकर फैसले लिए गए ..जिससे उपचुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित हो शायद इसीलिए शिवराज कैबिनेट के विस्तार को उपचुनावों का मंत्रिमंडल बताया जा रहा है .. कई वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा और प्रदेश के कई जिले और संभाग को नजरअंदाज करने के करोड़ इस सरकार के 100 दिन में जो हालात बने उसका आकलन प्रमुख नेताओं की ताकत उनकी भूमिका उनके दखल और वर्चस्व से जोड़कर किया जा रहा है.. कौन कितना ताकतवर बनकर उभरा ..किसे कमजोर माना जा सकता ..किसकी क्या मजबूरी और कौन नेता किस लिए जरूरी यह संदेश पार्टी से आगे जनता तक जा चुका है.. वैसे भी भाजपा में संगठन को सर्वोपरि माना जाता है और सिंधिया समर्थकों के इस्तीफे से खाली हुई 24 विधानसभा सीट पर चुनाव जीतने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बड़ी भूमिका निभाई है। शिवराज के तो दिल्ली दौरे के दौरान नड्डा अध्यक्ष के साथ एक कोऑर्डिनेटर बनकर भी उभरे हैं.. चाहे फिर मोदी शाह की अपेक्षाओं को मध्यप्रदेश में साकार करवाना हो या फिर ज्योतिरादित्य से किए गए वादे को निभाना ...राष्ट्रीय अध्यक्ष ने शिवराज ,विष्णु दत्त, नरेंद्र सिंह और दूसरे नेताओं को भरोसे में लेकर सरकार के लिए एडजस्टिंग फार्मूला तैयार करवाया.. लंबी कवायद में राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष और प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.. जिनके फीडबैक के बिना सहमति स्वीकार्यता और समन्वय संभव नहीं था ..कमलनाथ सरकार के तख्तापलट के बाद से ही नड्डा के दिशा निर्देश उनके द्वारा किए गए विचार विमर्श के बाद ही शिवराज सरकार में बड़ा उलटफेर कर कोई बड़ा संदेश सामने आया.. कैबिनेट के विस्तार और अब जब विभागों के वितरण का इंतजार है.. तब शिवराज का एक और दिल्ली दौरान चर्चा में बना हुआ है ..इस दौरे के दौरान कई केंद्रीय मंत्रियों से मुख्यमंत्री की मुलाकात और उसके बाद रीवा सोलर प्लांट का लोकार्पण 10 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जाना सुनिश्चित कर दिया गया है.. जेपी नड्डा मध्य प्रदेश की वर्चुअल रैली को संबोधित कर चुके हैं.., जिसमें खुद पहली बार ज्योतिरादित्य सिंधिया दिल्ली से शामिल हुए थे.. तो इस वर्चुअल रैली को मध्य प्रदेश से आगे बढ़ाया जा चुका। जिसमें नरेंद्र सिंह तोमर सिंधिया शिवराज सिंह चौहान विष्णु दत्त शर्मा खासे सक्रिय नजर आए... तो इसके साथ ही जिन 24 विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है.. वहां प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त के साथ अब ज्योतिरादित्य भी सीधे दिल्ली से कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगे... शिवराज ज्योतिरादित्य के साथ विष्णु दत्त भी उपचुनाव वाले क्षेत्रों में दौरे पर निकलने वाले हैं.. केंद्रीय नेतृत्व खासतौर से केंद्रीय मंत्रियों का मध्य प्रदेश प्रेम और प्रदेश सरकार के मुखिया शिवराज का दिल्ली नेतृत्व पर भरोसा इस बात का स्पष्ट संकेत है कि 24 विधानसभा चुनाव को लेकर ही छोटे बड़े फैसले नई जमावट के साथ लिए जा रहे हैं.. भाजपा उपचुनाव का एजेंडा सेट कर आगे बढ़ रही है.. ऐसे में भाजपा संगठन को पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा निशाने पर लिए जाने के साथ प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा का पलटवार वर्चुअल रैली में सामने आ चुका है.. जो कमलनाथ और कांग्रेस अभी तक सीधे ज्योतिरादित्य अमित शाह और शिवराज के साथ जेपी नड्डा को निशाने पर लेते रहे... आखिर कमलनाथ भाजपा संगठन पर हमला क्यों कर रहे... वह भी तब जब खुद कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक भोपाल पहुंचकर 24 विधानसभा क्षेत्रों में संगठन को मजबूत करने की कवायद शुरू कर चुके। सवाल खड़ा होना लाजमी है ज्योतिरादित्य और शिवराज से ज्यादा कमलनाथ और उनकी कांग्रेस की राह में विष्णु दत्त और जेपी नड्डा की भाजपा और संगठन राह में क्या बड़ा रोड़ा साबित होने वाला है ...फिलहाल जिसने कांग्रेस पर बढ़त बनाते हुए 22 सीटों पर पुराने इस्तीफा दे चुके विधायकों को उम्मीदवार बनाने की संकेत दे दिए.. तो संगठन की वर्चुअल रैलियां इन दिनों चर्चा में है ..जबकि कांग्रेस को चुनाव जिताने वाले संगठन और कार्यकर्ता के साथ जीतने का माद्दा रखने वाले उम्मीदवारों की अभी भी तलाश है.. ऐसे में ऐसे में सवाल चुनाव का चेहरा बनने जा रहे महाराज और शिवराज से भी ज्यादा क्या यह चुनाव भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए कुछ ज्यादा ही मायने रखते हैं ..जिन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान उस वक्त सौंपी गई थी जब दिल्ली विधानसभा के चुनाव परिणाम सामने आने वाले थे.. जहां भाजपा सत्ता वापसी नहीं कर पाई.. वह बात और है कि केंद्रीय गृह मंत्री रहते अमित शाह के लिए भी संगठन से जुड़े रहते यह अंतिम चुनाव था.. अब जब पश्चिम बंगाल और उससे पहले बिहार के चुनाव को लेकर पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व अपनी बिसात कोरोना काल में भी बिछा रहा है.. उससे पहले मध्य प्रदेश का यह मिनी विधानसभा चुनाव जहां 24 सीटों पर उपचुनाव होने जा रहा। आखिर राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए क्या मायने रखता है.. पार्टी नेतृत्व से ज्यादा क्या यह उपचुनाव जेपी नड्डा के लिए अग्निपरीक्षा साबित होने वाले हैं.. क्योंकि राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते अमित शाह के खाते में उपलब्धियों की भरमार रही.. मध्य प्रदेश से उनका रिश्ता पारिवारिक बहुत पुराना.. यहाँ जिस तरह पहले कमलनाथ सरकार की रवानगी और फिर मध्य प्रदेश की कमान शिवराज सिंह चौहान के सुपुर्द कर दी गई ...उसने राष्ट्रीय नेतृत्व की मध्यप्रदेश में दिलचस्पी स्पष्ट संकेत दे दिए थे.. जेपी नड्डा का अभी तक मध्य प्रदेश का इंदौर दौरा और उसके बाद वर्चुअल रैली ही हुई... जो दूसरे राज्यों और खासतौर से भाजपा शासित मुख्यमंत्रियों की तुलना में टीम शिवराज पर नजर लगाए हुए हैं.. इसकी वजह ज्योतिरादित्य उनके समर्थकों को किसी भी तरह से नाराज नहीं होने देना.. तो इससे खड़ी हुई समस्या का समाधान उन्हें भाजपा के अंदर भी तलाशना पड़ा। जहां मंत्रिमंडल में सिंधिया समर्थकों की संख्या उनके नाम के साथ विभाग भी सुनिश्चित पहले कर दिए जाने की चर्चा रही है ...वहीं दूसरी ओर भाजपा के अंदर क्षेत्रीय, जाति और राजनीतिक संतुलन को लेकर पार्टी नेतृत्व को कड़ी मशक्कत करना पड़ी है.. यही नहीं वर्चुअल रैली में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कार्यकर्ताओं को यह संदेश दे चुके हैं कि यह सरकार सिंधिया की बनवाई गई सरकार है... यानी इशारों इशारों में कार्यकर्ताओं से लेकर महत्वाकांक्षी नेताओं को यह समझाया गया है.. कि फिलहाल सबसे बड़ा लक्ष्य 24 विधानसभा सीट है। इनमें से 22 पर सिंधिया समर्थक इस्तीफा दे चुके हैं ..तो बड़ा सवाल जेपी नड्डा के लिए आखिर मध्य प्रदेश के यह विधानसभा चुनाव किसने और क्यों महत्वपूर्ण हो गए हैं... क्या मध्यप्रदेश में बदलती बीजेपी के इस दौर में शिवराज सरकार के अंदर बड़े बदलाव के बाद विष्णु दत्त शर्मा की बीजेपी में भी बड़े बदलाव की उम्मीद से इनकार किया जा सकता है.. सवाल उप चुनाव को ध्यान में रखते हुए क्या ज्योतिरादित्य का दबाव और अपेक्षा अब सरकार के बाद संगठन में भी अपने समर्थकों को स्थापित करने की होगी... तो लाख टके का सवाल यह चुनाव सिर्फ ज्योतिरादित्य शिवराज के लिए ही नहीं बल्कि जेपी नड्डा के लिए भी कुछ ज्यादा ही मायने रखता है.. इसके परिणाम जीत के साथ यह जी शिवराज और ज्योतिरादित्य की लोकप्रियता और उनके नेतृत्व पर जनता का भरोसा और मोहर माने जाएंगे . निश्चित तौर पर यह सभी नेता जेपी नड्डा को इसका श्रेय देंगे.. तो सवाल यदि परिणाम अपेक्षित और एकतरफा नहीं आते हैं .. क्या इससे जेपी नड्डा के नेतृत्व पर सवाल खड़ा होगा.. क्योंकि शिवराज भी सब कुछ संगठन और पार्टी के नेतृत्व पर छोड़ते हुए नजर आ रहे हैं।
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