भोपाल । अदालत की अति का परिणाम आज देश में राजनीतिक हलचल का परिणाम है। सत्ता दल इसे जिस प्रकार अपने विरोधी के राजनीतिक भविष्य का अंत देख रही है, वहीं देश में विरोधी दलों का राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त किए जाने को सत्ता का बुलडोजरी कारनामा बता रही है। सूरत के चीफ जुडीसियल मजिस्ट्रेट द्वारा सुनाई गयी सज़ा भले ही न्यायिक कारवाई हो, परंतु जिस प्रकार याचिकाकर्ता ने पहले अपने प्रार्थना पत्र पर सुनवाई को स्थगित कराया और साल भर बाद उसकी सुनवाई की अर्जी दी, वह याचिका कर्ता की नियत पर संदेह व्यक्त करता है!
फिलहाल इस घटना ने जिस प्रकार राष्ट्रिय और क्षेत्रीय दलों को मोदी सरकार के विरुद्ध एक कर दिया हैं, वह अनेकों दलों के प्रयास से भी संभव नहीं हो रहा था। परंतु इस घटना ने सभी गैर बीजेपी दलों के मन में यह आशंका भर दी है कि कोई भी मोदी सरकार के निशाने पर आ सकता हैं। जो उनके राजनीतिक यात्रा को समाप्त कर सकता हैं। ऐसा निर्णय पहले कभी भी नहीं देखा गया हैं। आज आम भारतीय इस बात पर विश्वास नहीं कर पा रहा है (सिर्फ मोदी भक्तों को छोड़कर) कि इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी की परंपरा का वंशज देशद्रोही हो सकता है ! जिस परिवार ने पाकिस्तान को दो बार युद्ध में घुटने चटाये, जिसने बंगला देश का निर्माण कराया उनका पोता देशद्रोही ! और राजीव गांधी जिन्होंने देश में वर्तमान कम्प्यूटर क्रांति का जनक होने का सौभाग्य हैं उनका पुत्र विदेश में जाकर देश के विरुद्ध बोलेगा ! जवाहरलाल नेहरू से लेकर इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी तक ने विदेशों में अनेक गणमान्य संस्थाओं में उद्बोधन किया है, उतना प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने नहीं किया हैं। उन्होंने भर्ता की तर्ज़ पर अनिवाशी भारतीयों की भीड़ को ही संबोधित किया हैं। चाहे ट्रम्प के समर्थन में रैली हो या ब्रिटेन में, मोदी जी टकसाली भाषण हर जगह लगभग एक ही सुर मे होता था 2014 के बाद ही भारत में विकास हुआ हैं ! इसके पहले भ्रष्टाचर ही हुआ करता था। वैसे उनकी खूबी यह हैं कि वे सिर्फ अपनी या अपने मन की बात ही करते हैं, दूसरों को सुन नहीं सकते ! यही कारण हैं की हिंदन्बेर्ग रिपोर्ट में देश की सत्ता की मशीनरी के घालमेल का आरोप लगाने पर ही राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त की गयी। इतना ही नहीं मोदी जी और गौतम अदानी के संबंधों को लेकर उनके सवालिया भाषण को लोकसभा की कारवाई से विलोपित कराया जाना भी इशारा करता हैं कि कुछ तो है जिसको सरकार छुपाना चाहती है।
मोदी सरनेम केवल पिछड़ी जातियों का नहीं होता हैं। देश की आज़ादी के बाद उत्तर प्रदेश के पहले राज्यपाल सर होमी मोदी पारसी थे। स्वतंत्र पार्टी के सांसद पिलु मोदी भी पिछड़ी जाती के नहीं थे। मोदिनगर के संस्थापक राय बहादुर गूजरमल मोदी भी वणिक थे। अब नरेंद्र मोदी अगर पिछड़ी जाति के है तो यह कोई क्षेत्रीय कारण होगा। इसलिए यह कहना की सभी मोदी पिछड़ी जाती के होते हैं, सही नहीं है। उदाहरण के लिए शर्मा सरनेम ब्राह्मणों के लिए है। पूजा के समय सभी ब्राह्मण अपने गोत्र के साथ जब अपना नाम लेते हैं तब उन्हे नाम के पश्चात शर्मा लगाना अनिवार्य है। परंतु आज पिछड़ी जातियों के बढ़ई आदि भी शर्मा उपाधि का प्रयोग करते हैं! आजकल सूर्यवंशी राम के वंसज नहीं है, नाही चंद्रवंशी श्री क्रष्ण के। अभी तक ऐसा कोई विधान देश में नहीं हैं की कुछ खास सरनेम कुछ निश्चित जातियों के लोगों द्वारा ही लगाया जा सकेगा !
अब उदाहरण के लिए महाभारत के नायक भीष्म, जिन्हें आदरपूर्वक पितामह का संबोधन ही दिया जाता हैं। पितरो के तर्पण में अपने पूर्वजों के बाद और सूर्य को अघर्य के पूर्व शांतनु पुत्र देवव्रत को वर्मा सरनेम से संबोधित किया जाता हैं। अब छत्रियों में यह सरनेम इस्तेमाल नहीं होता। केवल केरल के राजवंश में वर्मा सरनेम का प्रयोग हुआ है। जिसका उदाहरण देश के सर्वाधिक प्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि वर्मा हैं। आज देश में जीतने भी देवी – देवताओं अवतारों के रूप हैं वे सभी उन्ही की तूलिका का चमत्कार हैं।
अब वर्मा को कायस्थ भी प्रयोग करते हैं और कलार या जाइसवाल भी नाम के साथ लगाते हैं। अब क्या सरनेम से जाति का बोध कसौटी है ? शायद नहीं। क्यूंकि किसी सरनेम का इस्तेमाल करने पर कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं है। तब कोई कैसे कह सकता है की मोदी कहने से पिछड़ों का अपमान हुआ हैं ?
अदालत और अस्पताल में होता कहर
मध्य प्रदेश की अदालतों में विगत पंद्रह दिनों से कोई काम काज नहीं हो रहा है – वजह वकील साहबान ने हड़ताल कर रखी है ! कारण यह है कि उच्च न्यायालय ने अदालतों से कहा हैं कि वे 25 मुश्किल मुकदमों को तीन माह में निर्णायक स्थिति में लाये। मतलब यह की मुकदमेन की सारी कारवाई इस अवधि में पूरी कर के अदालत फैसला सुना दे।
अब वकील साहबों का कहना हैं कि इतने कम दिनों में मुकदमों का फैसला की स्थिति में पहुंचना संभव नहीं हैं। बहुत से कागज और दस्तावेज़ लगाने होते हैं। उसके लिए टाइम लगता हैं। हक़ीक़त यह हैं कि वकील साहब अपने मुवक्किल से हर पेशी के हिसाब से अपनी फीस लेते हैं। जितना लंबा मुकदमा चलेगा उतनी ही उनको आमदानी होगी ! अब तीन माह की अवधि से उनकी आमदनी बहुत घट जाएगी। हाईकोर्ट ने बार असोशिएशन की हड़ताल को अवैध करार दिया हैं। परंतु वकीलों का संगठन जिद पर अड़े हैं आखिर पापी पेट का सवाल है..!
राजस्थान में गहलोत सरकार के जनता को स्वास्थ्य सुविधा सुलभा कराने के लिए एक कानून लाये हैं। जिसमें निजी अस्पतालों को भी क्रिटिकल मरीजों को चिकित्सीय सुविधा सुलभ कराना अनिवार्य किया है। इस प्रावधान से निजी अस्पतालों द्वारा दुर्घटना अथवा बीमारी की हालत में लाये जाने वाले मरीजों की चिकित्सा नहीं करने पर दंड का प्रविधान हैं। अब निजी अस्पताल तो नोट देख कर ही इलाज़ करते हैं । ऐसे में उनका गंभीर मरीजों से पैसा वसूलने का उद्देश्य तो सरकार के कानून के आगे धरा रह जाएगा। बस काले कोट और सफ़ेद कोट की हड़ताल का कारण फीस भर है -ना वादकारी को न्याय दिलाना और ना ही मरीज को मर्ज से निजात दिलाना !