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मंत्री बंगलों पर उमड़ी भीड़

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मंत्री बंगलों पर उमड़ी भीड़
दरअसल प्रदेश में तेजी से कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ रही है। लोकल स्तर पर लॉकडाउन फिर से शुरू हो गए हैं। सप्ताह में 2 दिन का लॉकडाउन पूरे प्रदेश में घोषित हो गया है और कम्युनिटी ट्रांसमिशन के हालात बनते जा रहे हैं। ऐसे में लोगों को गैरजरूरी कामों के लिए घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए लेकिन राजनीतिक लोगों को किसी भी परिस्थिति में लोगों की समस्याएं हल करना ही पड़ती है। यही कारण है कि मंत्रियों के भवनों पर जो भीड़ उमड़ी है। वह बता रही है लोगों के पास जिंदगी से भी ज्यादा जरूरी काम है जिसके लिए भी घरों से निकल रहे हैं। राजनीतिज्ञों को इस समय 26 सीटों के विधानसभा के उपचुनाव सबसे बड़े काम के रूप में दिखाई दे रहे हैं। भाजपा को उन सीटों पर खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। जहां पर भाजपा के असंतुष्ट अब तक पार्टी के पक्ष में उत्साहित होकर मैदान में नहीं निकल रहे हैं। मैदान में भले ही कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं के साथ तालमेल ना बैठ पाया हो लेकिन मंत्रियों के पदों पर दूध में पानी की तरह सिंधिया समर्थकों भाजपाइयों की दोस्ती आराम से देखी जा सकती है। लगभग एक दर्जन सिंधिया समर्थक मंत्री हैं जिन्हें कभी भी उपचुनाव का सामना करना पड़ सकता है। इस कारण जो भी बंगले पर आ रहा है उसके लिए आवभगत भी कर रहे हैं और उसके काम भी कर रहे हैं। इसके कारण भले ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन ना हो पाए लेकिन संबंधों की समरसता बनी रही चाहिए। कल चुनाव आयोग की तरफ से जो संकेत वाली खबरें सोशल मीडिया पर चली जिसमें यह कहा जा रहा था कि मध्य प्रदेश में 26 सीटों की विधानसभा के उपचुनाव समय पर अर्थात सितंबर के आखिरी सप्ताह में हो जाएंगे। मंगलवार को चुनाव आयोग ने इस तरह की खबरें का खंडन किया है जिससे एक बार फिर विधानसभा सीटों के उपचुनाव आगे बढ़ाई जाने की स्थिति बनती जा रही है। कुल मिलाकर एक तरफ जहां कोरोना महामारी लगातार बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी ओर राजनैतिक गतिविधियां भी थमने का नाम नहीं ले रही है। ऐसे में संक्रमण पर कैसे नियंत्रण किया जाएगा कुछ कहा नहीं जा सकता। एक तरफ जहां सरकार ने स्कूल-कॉलेज बंद किए हैं। धार्मिक स्थलों पर कार्यक्रमों पर रोक लगी है। आम आदमी कोरोना के डर से घर से बाहर नहीं निकल रहा है। ऐसे में राजनीतिक दलों की मजबूरियां कब तक रहेंगी जिसमें वे भीड़ भाड़ का सामना करते रहेंगे। इसको लेकर कयासों का दौर भी है और संशय भी और भय भी कि इन मजबूरियों के चलते कहीं स्थिति बेकाबू ना हो जाए। इसके लिए भी सरकार को कोई ना कोई रास्ता निकालना ही चाहिए। जब तक कि वैक्सीन उपलब्ध नहीं हो जाती तब तक राजनैतिक समागम और भीड़ को रोकना भी जरूरी है। भले ही राजनीतिक दल कोरोना का कितना भी रोना रोए।
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