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दादागिरी वाली भाषा और सदन की गरिमा

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दादागिरी वाली भाषा और सदन की गरिमा
लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने जो कहा, वह किया। उन्होंने सदन में कहा था कि अगर कोई भी सदस्य अपने बेंचों की सीमा लांघ कर सामने वाले पक्ष के बेंचों की ओर जाएगा तो वह उसे सत्र की शेष अवधि के लिए निलम्बित करेंगे। उनकी इस चेतावनी के एक घंटे बाद ही कांग्रेस के सदस्य अपने नेता अधीर रंजन चौधरी की अगुवाई में सत्ताधारी बेंचों की तरफ वेल में चले गए। अपन को भी संसद की कार्यवाही को कवर करते और देखते 27 साल हो गए। अपन ने कभी भी विपक्ष के नेता को वेल में जाते नहीं देखा था। अपने नेता के इशारे पर विपक्ष के सांसद जरुर वेल में जाते हैं, लेकिन विपक्ष का नेता खुद वेल में जाता कभी नहीं देखा था। जैसा नेता वैसी प्रजा वाली बात साबित हो रही है। बंगाल से ही पहली बार जीत कर आई महुआ मित्रा ने सदन में अपने पहले भाषण से वाहवाही लूटी थी। उसी महुआ मित्रा ने सदन पटल पर रखे कागज उठा कर न सिर्फ फाड़े बल्कि टुकड़े-टुकड़े करके स्पीकर की तरफ उछाल दिए। वह तो शुकर है कि स्पीकर ने सत्ता पक्ष के सांसदों को वेल में आने से रोक दिया था, वरना सदन उसी दिन बंगाल की राजनीति का नजारा देख लेता। क्षुब्ध स्पीकर तुरंत कार्यवाही स्थगित कर आसन से उठ कर चले गए थे। वह इतने क्षुब्ध थे कि बुधवार को अपने चेम्बर में तो बैठे रहे, लेकिन सदन में नहीं आए। स्पीकर सदन में बृहस्पतिवार को भी नहीं आए, लेकिन अपने चैम्बर में बैठे थे। जहां उन्होंने विपक्ष के सांसदों से कोरोना वायरस पर स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन के बयान में सहयोग करने को कहा। जिसे विपक्ष ने माना भी, लेकिन वह फिर भी सदन में नहीं आए, उन्होंने बीजू जनता दल के वरिष्ठ सांसद भर्तृहरी महताब से सदन चलाने को कहा। विपक्ष के रवैये से भर्तृहरी महताब भी गुस्से में थे। उन्होंने कहा कि विपक्ष के रवैये के कारण स्पीकर दो दिन से सदन में नहीं आ रहे, यह खबर मीडिया में आई है। स्पीकर के सदन में नहीं आने के बावजूद कांग्रेस के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया। इसी बीच, भाजपा की सहयोगी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सांसद हनुमान बेनीवाल मोदी के हनुमान बन गए। कोरोना वायरस पर डाक्टर हर्ष वर्धन सदस्यों के सवालों का जवाब दे रहे थे तब हनुमान बेनीवाल ने कहा कि सोनिया गांधी और राहुल,प्रियंका हाल ही में इटली से लौटे हैं इस लिए उन का कोरोना वायरस टेस्ट करवाया जाए। वैसे तो यह संसदीय चुटकी थी, इससे पहले इस से भी ज्यादा कटाक्ष भरी चुटकियां होती रही हैं। इंदिरा गांधी पर लोहिया की चुटकियों के तो कई किस्से हैं। पर अब कांग्रेस कमजोर होने के कारण गांधी परिवार के प्रति ज्यादा सेंसटिव हो चुकी है। अब यह नहीं हो सकता कि कोई गांधी परिवार पर कटाक्ष करे और कांग्रेस का कोई सांसद परिवार के प्रति अपनी वफादारी दिखाने का मौक़ा चूक दे। क्योंकि मंगलवार को चेतावनी के बावजूद स्पीकर ने कोई कार्रवाई नहीं की थी, सो उन के हौंसले बुलंद थे। कांग्रेस के सात सांसदों ने वेल में जा कर वही दोहरा दिया, जो मंगलवार को किया था। जो काम मंगलवार को महुआ मित्रा ने किया था वही काम बृहस्पतिवार को गौरव गोगोई ने किया। गोगोई ने स्पीकर के आसन पर रखे कागज टुकड़े-टुकड़े कर के आसन पर मौजूद राजेन्द्र अग्रवाल पर दे मारे। इसके बाद वह हुआ, जो मंगलवार को नहीं हुआ था। स्पीकर से सहमती लेकर आसन पर बैठी मीनाक्षी लिखी ने सातों का नाम पढ़ा तो मंत्री प्रहलाद पटेल ने उन्हें निलम्बित करने का प्रस्ताव रख कर ध्वनी मत से पास भी करवा दिया। स्पीकर ने इन सातों कांग्रेसियों पर आगे कार्रवाई के लिए कमेटी भी बना दी है। भाषा की मर्यादा की कहानी तो अब शुरू होती है। अधीर रंजन चौधरी ने स्पीकर को तानाशाह कहा सो कहा। यह तो संसदीय भाषा में ही आता है, लेकिन उन्होंने स्पीकर के लिए 'दादागिरी' शब्द का इस्तेमाल किया। कांग्रेस के प्रवक्ता सुरजेवाला, जो सांसद नहीं हैं, ने भी स्पीकर के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल करते हुए उन पर तानाशाही का आरोप लगाया है। अधीर रंजन चौधरी और सुरजेवाला की भाषा स्पीकर के विशेषाधिकार का मामला बनता है। सरकार अगर अपनी पर आई है, तो अब इन दोनों के खिलाफ भी कार्रवाई शुरू करनी चाहिए, ताकि स्पीकर पद की मर्यादा को कायम रखा जा सके।
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