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किसान आंदोलन-दिशा रवि पर राजद्रोह और अदालत का न्याय!

ByVijay Tiwari,
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किसान आंदोलन-दिशा रवि पर राजद्रोह और अदालत का न्याय!
एक तो मियां बावरे ता पर पी ली भंग” की कहावत किसान आंदोलन और दिशा रवि की जमानत पर फिट बैठती हैं। राजधानी के चौहद्दी को घेर कर बैठे हजारों किसान तो मोदी सरकार के लिए परेशानी का सबब थे ही ऊपर से दिशा रवि को जमानत देते हुए चीफ मेट्रोपॉलिटन माइजिस्ट्रेट धर्मेन्द्र राणा का फैसला और चुभन दे गया। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि व्ह्ाट्सएप ग्रुप बनाना या टूलकिट को एडिट करना कोई अपराध नहीं हैं। जबकि पुलिस ने इसी आधार पर पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा को बेंगलुरु से गिरफ्तार किया था। उसने ग्रेटा थोन्बेर्ग से किसान आंदोलन के लिए समर्थन मांगा था। जज ने कहा कि 22 साल की लड़की जिसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं - उसे इसलिए जेल में डाल दिया जाये कि वह सरकार की नीतियों से असहमति रखती हैं। सरकार का विरोध करने का नागरिक अधिकार भारतीय संविधान के अनुछेद 19 में दिया गया हैं। गत मंगलवार 23 फरवरी को दिये इस फैसले के बाद केंद्र सरकार का हर पुर्जा हरकत में आ गया। क्योंकि दिशा की राजद्रोह के अपराध में गिरफ्तारी की हक़ीक़त सार्वजनिक हो गयी थी। साथ ही वे कारण भी और पुलिस की कार्रवाई की वैधता भी सामने आ गयी थी। अदालत के कथन की सरकार के ज़ख्मी गुरूर पर मरहम लगाने के लिए देशद्रोह के केस नहीं थोपे जा सकते। इससे यह साबित हो गया कि केंद्र सरकार के इशारे पर पुलिस किसान आंदोलन का समर्थन करने वाले किसी भी व्यक्ति को जेल में रखना चाहती हैं। भले ही इसके लिए छल या झूठ का सहारा लेना पड़े ! विधानसभा चुनाव और किसान आंदोलन हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह उत्तर पूर्व के उन राज्यों में फिर वही फार्मूला अपना रहे हैं कि हम तुम्हें अच्छे दिन देंगे बस तुम हमारी सरकार बनवाने लायक एमएलए चुनवा दो ! वैसे बीजेपी चुनाव जीत कर ही नहीं - वरन दल बदल कराकर सरकार बनाने में माहिर हैं। फिर इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए सीबीआई इन्कम टैक्स - ईडी आदि का भी स्तेमाल किया जाता हैं। अभी हाल में हरियाणा में इस्तीफा देने वाले विधायक कुंडु के घर - दुकान पर छापा ताज़ा उदाहरण हैं। बंगाल में जिन लोगों ने त्रणमूल काँग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए है वे सब भी किसी न किसी घोटाले (बक़ौल बीजेपी नेताओ के) में फंसे थे। बस गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्होंने बीजेपी रूपी राजनीतिक वाशिंग मशीन में अपने को डाल दिया और वहां वे गंगा के समान साफ होकर निकाल आए, जिन एजेंसियों ने उन्हें आरोपी बनाया था वे सभी उन्हंे वादा माफ गवाह बनाने के लिए कहने लगी ! दिशा रवि के जमानत आदेश से केंद्र सरकार को यह पता चल गया कि अब पुलिसिया हथकंडे से अपने विरोधियों और आलोचकों के मुंह नहीं बंद किए जा सकते हैं। इसके लिए मंगलवार की रात 23 फरवरी को ही तैयारी शुरू हो गयी। यह कोशिश तीन मंत्रालयों के स्तर पर हुई । 1- गृह मंत्रालय 2- संचार मंत्रालय और 3- विदेश मंत्रालय। गृह मंत्रालय द्वारा जारी निर्देशों में कहा गया कि किसी भी वेबिनोर में अगर शासकीय अधिकारी शामिल होते हैं तो उन्हें अपने कथन और सबुतों की '’पूर्व जांच '’ करानी होगी। विशेष कर अगर चर्चा का विषय भारत की रक्षा या सार्वभौमिकता से जुड़ा हो तब सम्पूर्ण विषय वस्तु पर रक्षा और विदेश मंत्रालय की सहमति आवश्यक हैं। अगर कोई शोध भी इस विषय पर हैं जिस पर विदेशी विद्वानो से चर्चा की जानी है, तब भी इन मंत्रालयों की पूर्व सहमति जरूरी हैं। मतलब यह कि अब अगर कोई अमेरिकी उप राष्ट्रपति कमला हैरिस को भारत में नागरिकों के अधिकारों की स्थिति के बारे में बताना या लिखना चाहता है तो उसे भी। भारत सरकार से पूर्व सहमति लेनी होगी ! क्योंकि इस कदम से मोदी सरकार की बदनामी जुड़ी हुई हैं ! मतलब यह हुआ कि भले ही घटना या बात सत्य और तथ्य परक हो वह तब तक दुनिया को नहीं बताई जाएगी - जब तक मोदी सरकार उसको बताने की मंजूरी नहीं दे देती ! गृह मंत्रालय की वेब साइट पर इस संबंध में विस्तृत जानकारी उपलब्ध हैं। इन दिशा निर्देशों में यहां तक है कि अगर कोई सरकार के निर्देशों का पालन नहीं करता तो उसकी सूचना भेजने वाले से संबन्धित कोई भी व्यक्ति शासन को इस बारे में बता सकता हैं। अर्थात अब आपको सिर्फ सतर्क ही नहीं वरन अपने को सुरक्षित रखने पर भी विचार करना होगा, अन्यथा हो सकता है आप भी संकट में पड़ जाये।
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