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किसानों के मुद्दे सुलझाने ही होंगे।

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किसानों के मुद्दे सुलझाने ही होंगे।
भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में भी किसान दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में किसान दिवस 12 अक्टूबर को मनाया जाता है। यह पूरे अमेरिकी इतिहास में सभी किसानों को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है। घाना में राष्ट्रीय किसान दिवस दिसम्बर के पहले शुक्रवार को किसानों और मछुआरों का एक वार्षिक उत्सव के समान मनाया जाता है। किसानों के कल्याण, उत्थान के लिए जीवन पर्यंत समर्पित भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती देश के समस्त अन्नदाताओं को  समर्पित है, और उनकी याद में उनके जन्म दिन 23 दिसम्बर को भारत में प्रतिवर्ष राष्ट्रीय किसान दिवस मनाया जाता है। चौधरी चरण सिंह किसानों के सर्वमान्य नेता थे, जिनके अथक प्रयत्नों से ही वर्ष 1952 में जमींदारी उन्मूलन विधेयक पारित हो सका था। चौधरी चरण सिंह ने भूमि सुधारों पर बहुत काम किया था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और केन्द्र में वित्तमंत्री के रूप में उन्होंने ग्राम, ग्रामीण और कृषकों को प्राथमिकता में रखकर बजट का निर्माण किया था। उनके अनुसार खेती के केंद्र में किसान है, इसलिए किसानों के साथ कृतज्ञता से पेश आना चाहिए और उसके श्रम का प्रतिफल उसे अवश्य ही मिलना चाहिए। किसान देश की प्रगति में विशेष सहायक होते हैं। एक किसान ही है, जिसके बल पर देश अपने खाद्यान्नों की खुशहाली को समृद्ध कर सकता है। उल्लेखनीय है कि मोहनदास करमचन्द गांधी ने भी किसानों को ही अपने लेखों में देश का सरताज माना था, लेकिन भारत विभाजन के बाद देश में किसानों के हित में, कृषि की उन्नति में निष्पक्ष रूप से काम करने वाले राजनेताओं की कमी ही दिखाई देती है। स्वतंत्र कहे जाने वाले भारत में किसानों के लिए काम करने वाले, किसानों और गरीबों को उपर उठाने की नीति बनाने वाले नेताओं में सबसे अग्रणी देश के पूर्व प्रधानमन्त्री चौधरी चरण सिंह ही हैं। चरण सिंह को कृषि व कृषकों के विकास के लिए अद्भुत कार्य करने के लिए आज भी स्मरण किया जाता है। चौधरी चरण सिंह की सोच व नीति कृषकों, निर्धनों को ऊपर उठाने की थी, और उन्होंने अपने कार्यों से यह साबित कर दिया कि बगैर किसानों को खुशहाल किए देश का विकास नहीं हो सकता। चौधरी चरण सिंह ने किसानों की खुशहाली के लिए खेती पर बल देते हुए किसानों को उपज का उचित दाम मिल सके इसके लिए गंभीरतम प्रयास किये थे। उनका कहना था कि भारत का संपूर्ण विकास तभी होगा जब किसान, मज़दूर, ग़रीब सभी खुशहाल होंगे। इसीलिए भारतीय किसानों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए कई नीतियों की शुरुआत करने वाले सर्वमान्य किसान नेता भारत के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन पर 23 दिसम्बर को भारत में राष्ट्रीय किसान दिवस मनाया जाता है, और इस अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों, वाद-विवादों, संगोष्ठियों, प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताओं, चर्चाओं, कार्यशालाओं, प्रदर्शनियों, निबंध लेखन प्रतियोगिताओं और कार्यों को आयोजन किया जाता है। Read also चुनाव सुधार से 2024 का खेला! भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में भी किसान दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में किसान दिवस 12 अक्टूबर को मनाया जाता है। यह पूरे अमेरिकी इतिहास में सभी किसानों को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है। घाना में राष्ट्रीय किसान दिवस दिसम्बर के पहले शुक्रवार को किसानों और मछुआरों का एक वार्षिक उत्सव के समान मनाया जाता है। किसान दिवस के अवसर पर, खाद्य और कृषि मंत्रालय, घाना किसानों और मछुआरों को उनकी प्रथाओं और आउटपुट के आधार पर विशेष पुरस्कार से सम्मानित करता है। भारत का पड़ोसी देश नेपाल जिसकी कुल जनसंख्या का 65% खेती- किसानी से जुडा है, वहां भी राष्ट्रीय किसान दिवस अत्यंत सम्मानजनक रूप में मनाया जाता है। जाम्बिया में राष्ट्रीय किसान दिवस अगस्त के पहले सोमवार को समारोहपूर्वक मनाया जाता है। लेकिन भारत में किसान दिवस अब सिर्फ रस्म अदायगी की वस्तु बनकर रह गया है, और किसान दिवस के नाम पर 23 दिसम्बर को प्रतिवर्ष चौधरी चरण सिंह की समाधि पर फूल- मालाएं अर्पित कर और कुछ कार्यक्रम, सेमिनार आयोजित कर अपने कर्तव्यों की इत्ति श्री समझ ली जाती है। चौधरी चरण सिंह उम्र भर खेती और किसान के लिए कार्यरत्त रहे और खेती के उन्नत तरीकों और काश्त अथवा फसलोपज की बाजार के आधुनिक पैटर्न की पैरोकारी भी करते रहे, ताकि किसान को उसके उपज का समुचित मूल्य प्राप्त हो और अन्नदाता व अंततः देश सुखी हो सके। काश्तकारों से जुड़ी समस्याओं के निराकरण के लिए चौधरी चरण सिंह के सुझाये गए रास्तों पर अमल किया गया होता, तो आज देश और किसान दोनों खुशहाल होते। लेकिन आज देश की स्थिति यह है कि ज्यादा उपज देकर भी देश का किसान बदहाल है। कभी देश के सरताज माने जाने वाले किसान आज मजबूर, निर्धन दिखाई देते हैं। देश का अन्नदाता आज दाने- दाने को मोहताज है। फसलों की बर्बादी और बाजार की अनिश्चितता से उसकी माली हालत बद से बदतर हो चली है। उन्नत बीज, रासायनिक खाद, व कीटनाशकों से किसान ने अपनी उपज तो बढ़ा ली है, लेकिन अपनी पैदावार को खपाने के लिए उसके पास साधन अर्थात बाजार नहीं हैं। देश के प्रायः सभी राज्यों के किसान खेती- किसानी छोड़कर दिल्ली, मुंबई अथवा अन्य महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं, तो इसके लिए सीधे तौर सरकारें अथवा सरकारी नीतियाँ जिम्मेदार हैं। किसानों को फसलोपज के रूप में बेहतर पैदावार प्राप्त होती है, तो उसे बेचने के लिए जगह नहीं और अगर जगह उपलब्ध है, तो समुचित मूल्य चुकाकर खरीदने वाला क्रेत्ता नहीं। चारों ओर उसे ठगने नहीं बल्कि लूटने वाले भरे पड़े हैं।  ऐसे में किसान अथक कोशिश से प्राप्त अपनी फसल को औने- पौने दामों में बेच देता है अथवा शीघ्र ख़राब हो जाने वाली सब्जी आदि फसलों को खीजकर बर्बाद कर देता है, क्योंकि उसके पास उसे संरक्षित कर रखने अथवा प्रसंस्कृत कर अन्य रूप में बेचने के लिए कोई संसाधन उपलब्ध नहीं। ऐसी स्थिति में अतिरिक्त रूप में अतिशीत गृह अर्थात कोल्ड स्टोरेज का निर्माण, आलू, टमाटर आदि शीघ्र खराब हो जाने वाली सब्जी फसलों के प्रसंस्करण उद्योग में सार्वजनिक व निजी निवेश को बढ़ावा और तत्सम्बन्धी निर्माण की दीर्घकालिक योजनाओं को प्राथमिकता देकर खेती -किसानी को आश्रय दिए जाने की सख्त आवश्यकता है। इसके साथ ही बाजार ज्ञान को सुदृढ़ किये जाने की जरूरत है। बाजारों को एक -दूसरे से जोड़े जाने और उपज व बाजार मानचित्र बनाये जाने की भी आवश्यकता है, ताकि देश की जरूरत के हिसाब से देश भर में विभिन्न उत्पाद का समान वितरण हो सके। यह विभिन्न उपज की देश को आवश्यकता के आधार पर तय किया जाना चाहिए। कृषि विभाग, राज्यों की विपणन एजेंसियाँ तथा उत्पादक संघों को मिलकर यह तय करना चाहिए। और यह भी निश्चित करना चाहिए कि अगर किसी एक फसल की ज्यादा उपज की देश को जरूरत नहीं है, तो उसके उपज क्षेत्र को बढ़ने से रोकना चाहिए। किसी फसल की अच्छी मूल्य मिलने की स्थिति में उस फसल की उपज लेने के लिए अगले वर्ष किसान पिल पड़ते हैं, जिससे उस फसल की अधिक उपज प्राप्त होने की स्थिति में अधिक उपज के खपत के लिए अधिक बाजार नहीं मिल पाती, और फसल के उचित मूल्य नहीं मिलने अथवा फसलोपज के बर्बाद हो जाने की दोनों ही स्थितियों में किसान मारा जाता है। इस परिस्थिति से बचने के लिए किसानों को बहुफसली कृषि की ओर प्रेरित किया जाना चाहिए, जिससे जोखिम कम होगा। किसान के दुःख -दर्द को भली-भांति समझने वाले किसान नेता चौधरी चरण सिंह की भी यह दिली इच्छा थी कि विदेशों से सिर्फ उद्योग- धंधों के तौर- तरीके ही न सीखे जायें, बल्कि खेती के आधुनिक तरीकों की भी प्रेरणा ली जायें, लेकिन ऐसा न हो सका।  यह सच है कि किसानों की समस्याओं की ओर कभी ठीक से देखा ही नहीं गया। विभाजित भारत की सभी सरकारों ने, सभी राजनीतिक पार्टियों ने हमेशा ही किसानों का सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है। पक्ष- विपक्ष की सभी पार्टियाँ किसानों के नाम पर राजनीति करने में लगी हैं, और उनकी राजनीति किसान से आरम्भ होकर किसान पर ही समाप्त हो जाती है। रही- सही कसर किसानों को समृद्ध बताकर संचार माध्यमें पूर्ण कर देती हैं। यह भी सच है कि सभी पार्टियों के अपने हिन्दी अथवा अंग्रेजी नाम वाली किसान मोर्चे, यूनियन और फोरम हैं, लेकिन उनका केवल राजनीतिक इस्तेमाल ज्यादा होता है। यही कारण हैं कि किसानों की आत्महत्या की खबरें अक्सर ही सुर्खियों में रहती हैं। उदारवाद की राह पर चलकर स्वदेशी बड़े, मझोले और छोटे उद्योग- धंधों का गला घोंट दिया गया है। खेती सिर्फ घाटे का सौदा बनकर रह गई है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने देश की बाजार पर कब्जे के बाद हमारे खेतों पर नियंत्रण शुरू कर दिया है। किसान देश की कृषि नीति और खेती के प्रति सरकार की उदासीनता से नाराज हैं। किसानों की इस आज के हालात के लिए देश की योजनाएं जिम्मेदार हैं। विभाजित भारत में लागू विकास के नेहरू- इंदिरा -राजीव-मनमोहन सिंह मॉडल में चौधरी साहब के किसान मॉडल को शामिल करने के बारे में कभी सोचा ही नहीं गया। मौजूदा सरकार भी लगभग उसी मार्ग पर चल रही है। किसान नेता चौधरी चरण सिंह के अनुसार देश में आसानी से बनाई जा सकने वाली चीजों को विदेशों से मंगाना अथवा उनमें विदेशी हस्तक्षेप देश की अर्थव्यवस्था को चौपट कर देगा। उन्होंने देश को एक वैकल्पिक कृषि नीति, अर्थ नीति, दर्शन और विचार दिया। वह देशी खेती के साथ ही लघु व कुटीर उद्योगों, कामगारों, बुनकरों और दस्तकारों की खुशहाली पर बल दिया करते थे, लेकिन आज अंतर्राष्ट्रीय बाजार, बहुराष्ट्रीय कम्पनियां देश के कृषि और कृषि बाजार पर नियंत्रण कर राज कर रही हैं। सरकार की नीतियों में देशी दस्तकारों और कारीगरों की कोई ख़ास उल्लेख ही नहीं है। देश की सम्पूर्ण बाजार पर चीनी अथवा अन्य विदेशी उत्पादों का साम्राज्य कायम है। चौधरी चरण सिंह ऐसा कतई नहीं चाहते थे, उनकी इच्छा थी कि किसान देश का मालिक बने, अर्थात ऐसी अर्थनीति बनाई जाए, जिसमें कृषि सबसे ऊपर हो। गाँव व किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुए बगैर देश की आर्थिक स्थिति के सुदृढ़ होने व देश के प्रगति के पथ पर सरपट दौड़ने की उम्मीद की कल्पना बेकार है। इसलिए पक्ष और विपक्ष दोनों को ही मिलकर किसानों के मुद्दों को सुलझाने और किसान हित में कार्य करने का संकल्प इस किसान दिवस पर लेना चाहिए, अन्यथा देश में जय जवान जय किसान की कल्पना व्यर्थ है।
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