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ज़श्न के हो-हल्ले की ओट से झांकता सच

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ज़श्न के हो-हल्ले की ओट से झांकता सच
2017 में उत्तर प्रदेश की 63 सीटें ऐसी थीं, जिन पर भाजपा 50 हज़ार से ज़्यादा मतों के अंतर से जीती थी। इस बार वह सिर्फ़ 27 सीटें इतने अंतर से जीत पाई है। 7 सीटें भाजपा 200 वोट से जीती है। 23 सीटें 500 वोट से जीती है। 49 सीटें एक हज़ार वोट के अंतर से जीती है। 86 सीटें दो हज़ार वोट के फ़र्क़ से जीती है। इस बार के चुनाव में उत्तर प्रदेश के 131 विधायक कांटे की टक्कर का सामना करने के बाद जीते हैं। उनमें से 74 भाजपा के हैं। five state assembly election मैं जानता हूं कि अगर मैं यह कहूंगा कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी तिल का ताड़ बनाने या राई का पर्वत बनाने में माहिर हैं तो उन के आराधकों का दिल दुखेगा, इसलिए मैं कह रहा हूं कि नरेंद्र भाई में जो सब से अद्भुत सिफ़त है, वह यह है कि वे हर चीज़ को उस के अधिकतम संभव वृहत्ताकार में दुनिया को दिखाने की कूवत रखते हैं। वे हमारी आंखों से मोतियाबिंद का वह जाला साफ़ करने में पल-पल लगे रहते हैं, जो हमारी नज़र को धुंधला बनाती है। पिछले नौ साल से, यानी प्रधानमंत्री बनने के एक बरस पहले से, नरेंद्र भाई ने हमें वह दृष्टि विकसित करने पर मजबूर किया है, जिससे चीज़ें सौ-पचास गुनी ज़्यादा चमकीली और विशाल दिखाई दें। Read also चीन का खेला, इस्लाम की धुरी! उनकी इसी सिफ़त के चलते हम ने 2013 से 2014 तक विशालकाय त्रिविमीय पुतलों की तिलस्मी रचना करने वाली तकनीक के ज़रिए नरेंद्र भाई को देश के अलग-अलग कोनों में एक साथ ‘जनसभाएं’ संबोधित करते देखा। इस इंद्रजाल के लेज़र-धागों पर सवार हो कर वे प्रधानमंत्री के सिंहासन पर पहुंच गए। वह दिन है और आज का दिन, भारतमाता की आंखें गंगा-पुत्र की उत्सवधर्मिता की रोशनियों से चुधियाई हुई हैं। बित्ते भर की चुनावी जीत को सफलता के हिमालय में तब्दील कर देने और अर्थव्यवस्था-महामारी कुप्रबंधन जैसी नाकामियों के हाथी को छड़ी घुमाते ही मंच से गायब कर देने का जैसा जादुई हुनर नरेंद्र भाई जानते हैं, और कोई नहीं जानता। अब पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों को लीजिए। इन नतीजों की अंतर्कथा कुछ भी हो, नरेंद्र भाई ने तो फ़ौरन भारतीय जनता पार्टी के मुख्यालय पहुंच कर ऐलान कर दिया कि यह 2024 में निर्बाध विजय की दुंदुभि है। आराधक मंडली ने इसी धुन पर गरबा शुरू कर दिया। गरबा-डांडियों की ठकठक और नाचते पैरों की थपथप के शोर में यह तथ्य काफ़ूर हो गया कि यह जीत प्रचंड तो दूर-दूर तक है ही नहीं और असल में तो सारे छल, प्रपंच, साम, दाम, दंड, भेद के बावजूद भाजपा की लोकप्रियता का ग्राफ़ इन चुनावों में बहुत नीचे आया है। five state assembly election five state assembly election ध्यान से देखिए कि हुआ क्या है? पांच में से चार प्रदेशों में भाजपा की सरकारें फिर बन गई हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश है। सो, सबसे पहले उस उत्तर प्रदेश की तस्वीर देखिए, जिसके मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट उर्फ़ योगी आदित्यनाथ को लखनऊ के एकना स्टेडियम में दूसरी बार शपथ लेता देखने के लिए नरेंद्र भाई मोदी, अमित भाई शाह, जगत प्रकाश नड्डा, राजनाथ सिंह और भाजपा के तमाम मुख्यमंत्रियों के अलावा ‘कश्मीर फ़ाइल्स’ की टोली भी झूमती-झामती पहुंची। इस उत्तर प्रदेश में 2017 में भाजपा 312 सीटें जीती थी। मगर इस बार 255 ही जीती है। यानी 57 सीटें कम हो गई हैं। दो साल पहले 2019 के लोकसभा में भाजपा उत्तर प्रदेश में 275 विधानसभा क्षेत्रों में आगे रही थी। उस हिसाब से भी इस बार वह 20 सीटें कम ला पाई। जिन 312 सीटों पर 2017 में भाजपा जीती थी, इस बार उनमें से 80 सीटें उस से दूसरे दलों ने छीन लीं। योगी-सरकार के 11 मंत्री चुनाव हार गए। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य हार गए। गन्ना मंत्री हार गए। खेल मंत्री हार गए। शिक्षा मंत्री हार गए। (five state assembly election) Read also इमरान की कूटनीति कितनी कारगर 2017 में उत्तर प्रदेश की 63 सीटें ऐसी थीं, जिन पर भाजपा 50 हज़ार से ज़्यादा मतों के अंतर से जीती थी। इस बार वह सिर्फ़ 27 सीटें इतने अंतर से जीत पाई है। 7 सीटें भाजपा 200 वोट से जीती है। 23 सीटें 500 वोट से जीती है। 49 सीटें एक हज़ार वोट के अंतर से जीती है। 86 सीटें दो हज़ार वोट के फ़र्क़ से जीती है। इस बार के चुनाव में उत्तर प्रदेश के 131 विधायक कांटे की टक्कर का सामना करने के बाद जीते हैं। उनमें से 74 भाजपा के हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में 49.7 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार मिले 41.29 प्रतिशत। यानी उसके साढ़े आठ प्रतिशत वोट कम हो गए हैं। 2017 से तुलना करें तो भी सिर्फ़ डेढ़ प्रतिशत वोट ही बढ़े हैं। इस बार 41.29 प्रतिशत मिले हैं और 2017 में 39.67 प्रतिशत मिले थे। उत्तराखंड में 2017 में भाजपा को 57 सीटें और 46.5 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार 47 सीटें मिलीं। यानी  पहले से 10 कम। पिछले चुनाव में भाजपा को साढ़े 46 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार सवा 44 प्रतिशत। यानी पहले से सवा दो प्रतिशत कम वोट मिले हैं। उत्तराखंड में भाजपा के मुख्यमंत्री ही चुनाव हार गए। गोवा में 2017 में भाजपा 13 सीटें जीती थी और उसे साढ़े 32 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार 20 सीटें मिलीं और सवा 33 प्रतिशत वोट मिले। सिर्फ़ पौन प्रतिशत वोट बढ़े। महज़ 0.8 प्रतिशत। मणिपुर में भाजपा 2017 में 21 सीटें जीती थी। उसे 36.28 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार सीटें 32 जीती है। लेकिन वोट 37.83 प्रतिशत ही मिले हैं। यानी पहले से सिर्फ़ डेढ़ प्रतिशत ज़्यादा। पंजाब में तो भाजपा को दो ही सीटें मिली हैं और कुल पौने दो प्रतिशत वोट मिले हैं। 2017 के चुनाव में वह 3 सीटें जीती थी और 5.4 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। इस बार उसे पंजाब में पौने 4 प्रतिशत कम वोट मिले। तो पांच राज्यों का दृश्य यह है कि विधानसभा की कुल 690 सीटों में से भाजपा इस बार 356 जीत पाई है। अब तक इन पांचों प्रदेशों में उसके पास 399 सीटें थीं। यानी उसकी सीटें पहले से 43 कम हो गई हैं। पिछले चुनाव के मुकाबले भाजपा के वोट उत्तर प्रदेश और मणिपुर में सिर्फ़ डेढ़-डेढ़ प्रतिशत और गोवा में महज़ पौन प्रतिशत बढ़े हैं। उत्तराखंड में पहले से सवा दो प्रतिशत और पंजाब में पौने चार प्रतिशत कम हो गए हैं। फिर भी इसे ‘प्रचंड’ बता कर अगर कोई पग घुघरू बांध नाचना चाहता है तो उसे आप कैसे रोक लेंगे? हां, यह सवाल स्वाभाविक है कि विपक्ष के सबसे प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस का क्या हुआ? सच है कि कांग्रेस का तो सफ़ाया हो गया। सो, कांग्रेस की क्या बात करें? बात तो तब करें, जब पहले वह बात करने लायक हो जाए। इसलिए कांग्रेस की बात करने के लिए अभी इंतज़ार करना होगा। 2024 तक होने वाले विधानसभा चुनावों में और फिर 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद तय होगा कि कांग्रेस फिर गोलमेज़ वार्ताओं का विषय बनेगी या नहीं। मगर कांग्रेस की बदहाली की आड़ में अगर भीतर से भुरभुरे हो रहे भाजपा के ज़िस्म को रंगबिरंगी लंगोट पहना कर उस की अजेय पहलवानी का ज़श्न मनाया जा रहा है तो क्या उसे हम टुकुर-टुकुर स्वीकार कर लें? भाजपा ने चार प्रदेशों में सरकारें बना ली हैं, लेकिन इससे वह अपराजेय नहीं हो गई है। इस जीत के भीतर का बीजगणित वैसा नहीं लहलहा रहा है, जैसा नरेंद्र भाई और उनके चेले-चपाटे हमें बता रहे हैं। अगर राहुल गांधी और उनके चेले-चपाटे अपनी कैनबिस इंडिका ख़ुमारी से बाहर आ कर मैदान में पिल पड़ें तो पांच प्रदेशों के नतीजों में भाजपा को पदा-पदा कर दौड़ाने के अंकुर खोज सकते हैं। लेकिन इसके लिए सांगठनिक ढांचे को बदलनेके अलावा अपनी बुनियादी सोच की आमूलचूल पुनर्रचना करना ज़रूरी है। चिंतन शिविर बहुत हो लिए। अब शिविर में बैठ कर चिंतन करने का नहीं, अकेले में बैठ कर मनन करने का समय है।  (लेखक न्यूज़-व्यूज़ इंडिया और ग्लोबल इंडिया इनवेस्टिगेटर के संपादक हैं।) five state assembly election
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