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सरकारी उपेक्षा और मातृभाषाओं की चुनौतियां

Byअजीत दुबे,
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सरकारी उपेक्षा और मातृभाषाओं की चुनौतियां
मातृभाषा दिवस के अवसर पर हर भारतीय को संकल्प लेना चाहिए कि हमें हर हाल में अपनी अपनी मातृभाषाओं की समृद्धि, उन्नति, प्रचार, प्रसार, और प्रयोग को बढ़ावा देना होगा और सरकारों पर दबाव बनाना होगा कि सरकारी नीतियों में सुधार करते हुए मातृभाषाओं के प्रति हो रहे असंतुलन को रोका जाना चाहिए ताकि मातृभाषाओं को यथोचित न्याय मिल सके। challenges of mother tongues 21 फरवरी- विश्व मातृभाषा दिवस: आज विश्व मातृभाषा दिवस है अतः आज भारत में मातृभाषाओं की स्थिति, अनुकूलता, प्रतिकूलता और वर्तमान चुनौतियों पर विमर्श करने का समय है। भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है। भाषायी विविधताएं भारत की गौरवशाली परंपराओं का हिस्सा है। मगर विभिन्न कारणों से भारत की अनेक मातृभाषाएं सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रही हैं। हजारों साल की गुलामी के दौरान भी अपनी आंतरिक ताकत के बल पर जीवित अनेक मातृभाषाओं के विलुप्त होने का खतरा मंडराने लगा है वहीं अनेक भाषाएं आजादी के 75 सालों के बाद भी विषमतापूर्ण नीतियों के कारण अपनी स्वाभाविक उन्नति से वंचित हैं, ये अंधकारपूर्ण स्थिति बेहद चिंताजनक है। यह कटु सत्य है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी हम अपनी भाषा को लेकर कोई ठोस नीति नहीं बना पाए हैं। तथ्य यह है कि बीते चार-पांच दशक में एक बड़ी आबादी की मातृभाषा गुम हो चुकी है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश के सवा अरब लोग 1,652 मातृभाषाओं में बात करते हैं। हमारी मातृभाषा ‘भोजपुरी’ इस अन्याय की सबसे बड़ी शिकार है, साथ ही भोजपुरी जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों से अनेकों लोकभाषाओं को गुजरना पड़ रहा है, ये बातें चिंतनीय हैं, जिसके लिए जन जागृति की बहुत अधिक जरूरत है। आज मातृभाषा दिवस के अवसर पर आइए हम सब अपनी अपनी मातृभाषाओं के पक्ष में यथासंभव अपनी आवाज बुलंद करें।  भारत के उप राष्ट्रपति महामहिम वेंकैया नायडू जी ने अपने एक संबोधन में कहा था कि “अपनी मातृभाषाओं को संरक्षित करके ही संस्कृति और परंपराओं की रक्षा की जा सकती है। भाषा संस्कृति को मजबूत करती है एवं संस्कृति समाज को मजबूत करती है। हमारी विविधता भरी संस्कृति की खूबसूरती को सिर्फ मातृभाषाओं को प्रोत्साहन देकर ही बचाया जा सकता है। मातृभाषा जीवन की आत्मा है”। उन्होंने ये भी कहा कि भारत में सबसे अधिक लोग हिंदी का प्रयोग करते हैं और हिंदी पूरे देश की संपर्क भाषा है लेकिन हमें हिंदी के साथ साथ अपनी मातृभाषाओं में पठन पाठन, बोलने एवं सरकारी प्रोत्साहन की जरूरत है। आजादी के बाद अब तक मातृभाषाओं के विषय में विभिन्न सरकारों द्वारा महत्वपूर्ण निर्णय समय समय पर लिए गए हैं, जिनमें विभिन्न भाषाओं की संवैधानिक मान्यता हेतु आठवीं अनुसूची का प्रावधान वर्ष 1950 से लागू हुआ। दूसरा महत्वपूर्ण निर्णय भारतीय भाषाओं की प्राचीन साहित्यिक परंपरा का संरक्षण एवं संवर्धन हेतु शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने का प्रावधान वर्ष 2004 से लागू हुआ। एक अन्य फैसले के अनुसार भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहित करने के लिए नई शिक्षा नीति वर्ष 2020 से लागू की गई। जानकारी हो कि भारत 2011 की जनगणना का लेखा जोखा वर्ष 2018 में प्रकाशित हुआ, जिसके अनुसार हिंदी की प्रमुख सहभाषा के रूप में भोजपुरी, राजस्थानी एवं छत्तीसगढ़ी का स्थान है। वर्ष 1950 अर्थात् संविधान लागू होने के समय आठवीं अनुसूची में जिन 14 भाषाओं को स्थान मिला था उनके नाम हैं- असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, काश्मीरी, मलयालम, मराठी, ओड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगू और उर्दू। कालांतर में जिन चार भाषाओं को जोड़ा गया वो हैं सिंधी, कोंकणी, नेपाली व मणिपुरी। वर्ष 2004 में बोडो, डोगरी, संथाली एवं मैथिली को भी जोड़ा गया। इस प्रकार कुल 22 भाषाओं को वर्तमान में भारत में संवैधानिक मान्यता प्राप्त है। जनगणना 2011 के अनुसार जिन आठ भाषाओं को बाद में शामिल किया गया उनको बोलने वालों की कुल संख्या अकेले भोजपुरी बोलने वालों की संख्या से भी काफी कम है। ये कटु सत्य है कि आजादी के 75 वर्ष तक भी भाषा को लेकर कोई ठोस नीति नहीं है एवं आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने हेतु कोई मापदंड निर्धारित नहीं है। hindi without removing english Read also सिंगापुर के पीएम ने गलत तो नहीं कहा! भोजपुरी लगभग 13 सौ साल पुरानी 16 देशों में प्रचलित भाषा है जो हिंदी की सबसे बड़ी सहभाषा है। भोजपुरी को बिहार सरकार ने, राजस्थानी को राजस्थान सरकार ने एवं छत्तीसगढ़ी को छत्तीसगढ़ सरकार ने केंद्र के पास मान्यता दिए जाने हेतु अनुशंसा काफी पहले से भेजी हुई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भोजपुरी को मॉरीशस और नेपाल सरकार द्वारा एवं राजस्थानी को नेपाल सरकार द्वारा पहले ही मान्यता दी जा चुकी है। मॉरीशस सरकार की पहल पर ही भोजपुरी गीत गवनई को विश्व सांस्कृतिक विरासत का दर्जा भी यूनेस्को द्वारा दिया गया है। मॉरीशस सरकार की पहल पर मॉरीशस के सभी सरकारी विद्यालयों में भोजपुरी भाषा के पठन पाठन की व्यवस्था भी लागू है। 1969 से आज तक संसद में भोजपुरी की संवैधानिक मान्यता हेतु 19 बार निजी विधेयक पेश हुए हैं, इसके अतिरिक्त कई बार ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के जरिए एवं शून्य काल में भी अनेकों बार उठाया गया है। कई बार विभिन्न सरकारों द्वारा आश्वासन भी दिया गया है। प्रसिद्ध भाषाविद् गणेश देवी ने कहा है कि वर्तमान में भोजपुरी विश्व में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली भाषा है, जो ढेरों सुविधाएं मान्यता प्राप्त भाषाओं को मिलती हैं, भोजपुरी, राजस्थानी एवं छत्तीसगढ़ी जैसी हिंदी की सहभाषाएं उन सुविधाओं से अब तक वंचित हैं। उपरोक्त विषमताओं को दूर करने के लिए संवैधानिक मान्यता हेतु मापदंड अविलंब निर्धारित होने चाहिए ताकि भाषाई सुविधा का असंतुलन दूर किया जा सके। राजनीतिक सीमाएं बदल सकती हैं, लेकिन हमारी मातृभाषा और हमारी जड़ें नहीं बदलेंगी। अपनी भाषाओं को संरक्षित करके ही संस्कृति और परंपराओं की रक्षा की जा सकती है। हमारी मातृभाषाएं सिर्फ संवाद का ही माध्यम नहीं हैं, बल्कि हमें हमारी विरासत से जोड़ती हैं, हमारी पहचान को परिभाषित करती हैं। हमें प्राथमिक शिक्षा से लेकर प्रशासन तक, हर क्षेत्र में मातृभाषा के प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए। अपने विचारों, अपने भावों को रचनात्मक रूप से अपनी भाषा में अभिव्यक्त करना चाहिए। यह किसी भी व्यक्ति या समुदाय की सांस्कृतिक पहचान भी होती है। आज मातृभाषा दिवस के अवसर पर हर भारतीय को संकल्प लेना चाहिए कि हमें हर हाल में अपनी अपनी मातृभाषाओं की समृद्धि, उन्नति, प्रचार, प्रसार, और प्रयोग को बढ़ावा देना होगा और सरकारों पर दबाव बनाना होगा कि सरकारी नीतियों में सुधार करते हुए मातृभाषाओं के प्रति हो रहे असंतुलन को रोका जाना चाहिए ताकि मातृभाषाओं को यथोचित न्याय मिल सके।  (लेखक साहित्य अकादमी के सदस्य और विश्व भोजपुरी सम्मेलन संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)
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