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सरकार की रोजगार गारंटी फिर भी सवाल..!

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सरकार की रोजगार गारंटी फिर भी सवाल..!
'मनरेगा स्कीम डिड नॉट डू वेल इन मध्यप्रदेश',मध्य प्रदेश मनरेगा में गड़बड़ी,एमपी में मनरेगा में नहीं रुक रहा भ्रष्टाचार,मनरेगा में नियमों की उड़ी धज्जियां,मनरेगा में बड़े पैमाने पर घपला फंड हुआ गलत इस्तेमाल, मनरेगा पर सीएजी रिपोर्ट बिना इजाजत हुआ 2252 करोड़ का काम ये सब 2012 से लेकर 2016 तक देश के बड़े अखबारों,न्यूज़ चैनल की वे हेडलाइन हैं जो मध्यप्रदेश में मनरेगा पर कैग रिपोर्ट आने के बाद प्रकाशित की गईं थीं.हालांकि कैग रिपोर्ट ने उस समय देश के लगभग सभी राज्यों में चल रहे महात्मा गांधीं रोजगार गारंटी के कामों की बृहद स्तर पर ऑडिट की थी। उस समय सरकारी ऑडिटर ने सरकार से कहा था कि इस योजना का उचित तरीके से क्रियान्वयन करने सरकार को गहन निगरानी रखना होगी.कैग रिपोर्ट में जिन राज्यों में ज्यादा गड़बड़िया देखने मिली थीं उनमें मध्यप्रदेश और राजस्थान का नाम प्रमुखता से था.ये बताना इसलिए भी जरुरी है कि लॉकडाउन से भुखमरी की कगार पर पहुंचे मजदूरों को राहत पहुंचाने केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा के तहत मध्यप्रदेश सरकार ने हाल ही में जिस उद्देश्य को लेकर रोजगार गारंटी,श्रम सिद्धि या संबल योजना के काम शुरू कराए हैं उनके वो उद्देश्य पूरे भी होंगे इसमें संशय है.शंका इस बात की भी है कि वास्तविक जरूरतमंद मजदूरों को काम और हितग्राहियों को लाभ मिल रहा है इसकी भी क्या गारंटी है। 'डूबते को तिनके का सहारा'कहावत जहां परेशान मजदूरों को रोजगार और राशन पहुंचाने की सरकारी मंशा पर सटीक बैठती है तो सरकारी सिस्टम ने 'तू डाल डाल में पात पात' की दिशा में चलकर सरकार की किरकिरी कराने की ठान ली है.इन दोनों कहावतों का जीवंत उदाहरण आपको फिलहाल सरकार द्वारा शुरू किए गए मनरेगा के कार्यों में कहीं भी देखने मिल जाएगा.एक ओर सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंशा है कि कोरोना संकटकाल से जूझ रहे हर जॉबकार्ड धारी मजदूर को मजदूरी मिले और जिनके जॉबकार्ड नहीं बने हैं उनके जल्द बनवाकर उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने की सुनिश्चितता हो। सरकार ने अनान फानन में इसके लिए मनरेगा के काम खोल दिए और संबल योजना,श्रम सिद्धि योजना में भी ऐसे हितग्राहियों जो जिस योजना के तहत पात्र हों या मजदूरों से ही पूर्ण कराए जाने की बात कही.सरकार की इस मंशा ने तो साफ कर दिया कि वो मजदूरों के लिए इस अप्राकृतिक विपत्ति में भी खड़ी नज़र आ रही है पर इन योजनाओं को धरातल पर उतारने वाले सिस्टम यानी प्रशासन ने मानो मजदूरों का कागज़ीकरण कर मनरेगा की राशि ठिकाने लगाने की योजना पर अमल शुरू कर दिया हो.मुख्यमंत्री का दावा है कि वर्तमान में प्रदेश के 21 लाख मजदूरों को इस योजना के तहत काम दिया गया और जो प्रवासी मजदूर आ रहे हैं उन्हें भी जल्द काम दिया जाएगा. विज़न सही पर मॉनिटरिंग नहीँ मध्यप्रदेश सरकार ने कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन के मारे मजदूरों की चिंता करते हुए मनरेगा के काम लगभग हर जिले में शुरू करने को बोल दिया और इसके लिए हज़ारों करोड़ के बजट भी उपलब्ध करा दिया.कोरोना वायरस के चलते बेरोजगार हुए मजदूरों के लिए सरकार कितने ही बेहतर कदम उठा ले पर उनकी मजदूरी पर डाका डालने वाले नहीं मानेंगे.अभी मनरेगा के काम शुरू हुए कुछ ही समय बीता कि घपलेबाजी सामने आने लगी.दो रोज़ पहले ही भिंड जिले के लहार जनपद पंचायत में महिला सरपंच,सचिव के खिलाफ पुलिस ने 420 सहित अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है। मामला भी बड़ा रोचक है दोनों ने मिलकर मनरेगा के काम में करीब 100 मृत लोगों के नाम सहित सरकारी कर्मचारियों को भी मजदूर बनाकर करीब 4 लाख 50 हज़ार से ज्यादा राशि निकाल ली.इसी जिले की झाँकरी पंचायत में तालाब,स्टापडेम काम में मजदूरों की जगह मशीनों से काम चल रहा और परेशान मजदूरों की शिकायत के बाद भी कोई नहीँ सुन रहा.विदिशा जिले में भी कुछ ऐसे ही मामले हैं. छतरपुर, रतलाम, मुरैना, छतरपुर, टीकमगढ़, बालाघाट सहित प्रदेश के अधिकांश जिलों से कोरोना आफत की आड़ में मजदूरों के काम में जमकर भ्रस्टाचार होने के मामले सामने आ रहे हैं। जलसंरक्षण से जुड़े तालाब खुदाई,नाली निर्माण,सड़क निर्माण,गौशाला निर्माण,पौधरोपण कार्य प्रदेश के अधिकांश जिलों में शुरू हो गए हैं.इनमें अभी जॉब कार्डधारी ही मजदूरों को काम मिल रहा है.जिन पंचायत क्षेत्रों में काम चालू हैं वहां के रोजगार सहायकों की भूमिका पर मजदूर ही उंगलियां उठाने लगे हैं.दरअसल 10 मजदूरों को लगाकर फर्जी सैटिंग से 20 का मस्टर तैयार करना.अपने करीबी रिश्तेदारों को मजदूरी का लाभ दिलवाना.फर्जी नामों को जोड़कर राशि हड़पना,मजदूर मजदूरी के साथ इनके घर का काम करे तो ठीक नहीं तो अगले दिन काम नहीं.ये सब रोजगार सहायक और संबंधित सरपंच,सचिव की मिलीभगत का नतीजा ही होता है.इस विकराल आपदा से टूट चुका मजदूर तो शिकायत करने की सोच भी नहीं पाता है। पंचायतों में मजदूर कोई काम कर रहा खातों में पैसा किसी के आ रहा यानी मजदूर की मेहनत में भी कमीशनखोरी.ये सब होता इसलिए है कि जिनके जॉबकार्ड नहीं बने सो दूसरों के नाम पर इन्हें पेट की खातिर मजबूरन मजदूरी करना पड़ती है.इस कोरोना वायरस का इफेक्ट के चलते हर सरकारी योजना का धरातल पर जिम्मेदार सिस्टम दुरुपयोग कर रहा है और सरकारी राशि को ठिकाने लगाने की तिकड़म हो रही है.अन्य योजनाओं से होने वाले चाहे स्वक्षता से जुड़े कार्य हुए हों इनमें जिनके नाम शौचालय की राशि निकाल ली गई है उन्हें पता ही नहीँ.ये इसलिए कि कागज़ात किसी और के फ़ोटो किसी और का दिखाकर जिन खातों में राशि पहुंचाना है पहुंचा दी जाती.सरकार को रिपोर्ट ओके मिलती,काम सिस्टम से दिखता.मजदूरों को निःशुल्क राशन वितरण में और आंगनबाड़ी द्वारा बच्चों के घर घर निशुल्क राशन वितरण में जमकर धांधली हुई। महिला और आंगनवाड़ी के बालकों का विकास भले न हुआ हो पर कोरोना काल में इस विभाग के अधिकारी जरूर मालामाल हो गए.खैर हम मनरेगा छोड़ कहाँ पड़ गए इस चक्कर में.ये सब तो जिस दिन जमीनी जांच हो जाएगी पकड़ा ही जाएगा बस कोई सरकारी नेता,अधिकारी जांच करा भर ले.अब यहां सवाल भी खड़े होंगे कि ऐसे आरोप तो किसी पर भी लगाना आम बात है तो इनके भी प्रमाण सहित जबाब मिल जाएंगे जब जांच अधिकारी की नीयत साफ रहे तो नहीं तो फिर एक पार्टनर और.इस विपत्ति काल में गरीबों और मजदूरों का हक़ मारने वाले सरकारी नुमाइंदों को मानवीयता के आधार पर इतना जरूर सोचना चाहिए कि ये सब मजबूरी में अपना मुंह बंद रखे हैं पर इनकी नज़र पूर्णतया उन पर है जो इनके नाम के सरकारी हक़ पर डाका डाल रहे हैं.यहां मजदूरों के हितों में सरकार की योजनायें और निर्णय सकारात्मक हैं पर उन योजनाओं को अमलीजामा पहनाने वाले सरपंच,सचिव और रोजगार सहायक सहित सभी क्षेत्रीय अधिकारियों की भूमिका पर जरूर सवाल उठते हैं। इन हालातों में मजदूर कौन लॉकडाउन को दो महीने से ज्यादा हो चुके और लाखों मजदूर प्रदेश में अपने गांव वापस भी पहुंच गए,सरकार को इनकी रोज़ी रोटी की चिंता सता रही तो उन्हें रोज़गार की.काम शुरू हुए अब 27 मई से जून के पहले पखवाड़े तक प्रवासी मजदूरों के जॉबकार्ड बनाने में प्रशासन जुटा है.यहां सबसे बड़ी विडंबना ये है कि अब उन पड़े लिखे युवाओं को भी मजदूरी की जरूरत जो पड़ लिखने,इंजीनियरिंग,बीए,कंप्यूटर डिप्लोमा करने के बाद 5000,1000 और 15000 में प्राइवेट कंपनियों में जॉब करते थे और इस महामारी ने उनके सपनों के पंखों को कतर कर दिया.उनका की होगा जो निजी कंपनियों का सेल्स ऑफिसर,मार्केटिंग ऑफिसर के स्टेटस के साथ व्हाइट कॉलर जॉब कर घूमते थे और एक झटके में उनका रोज़गार चला गया। इन हालातों में मेरी मुलाकात उन वकीलों से भी हुई जिन्होंने अभी अभी प्रैक्टिस शुरू कर बड़े सपने बुने थे.छोटे मझोले दुकानदार हों या कपड़े धोने वाले धोबी,ऑफिस बॉय हों या रिसेप्शनिस्ट,वो सभी छात्र जो मन में कुछ संकल्प लेकर दिनभर काम और रात को पढ़ाई करते थे.इन सबके साथ कुछ पत्रकारों से भी चर्चा हुई तो लब्बोलुबाब यही निकाला कि कोरोना वायरस से तो लड़ ही रहे हैं पर जिंदगी की दौड़ में बहुत पीछे निकल गए। हमारे तो जनधन खाते भी नहीँ हैं,पैसों की सख्त जरूरत है,मोटर साइकिल की किस्तें भी भरनी हैं और अब हम जैसे शिक्षित युवाओं के लिए इस सामाजिक स्तर में रहते मजदूरी करना बहुत आसान नहीं.कुछ पढ़े लिखे युवाओं ने बताया कि वो एक होटल में दिल्ली में काम करते थे पर अचानक सब बंद हो गए और फिर कोई साधन नहीं मिला तो पैदल चलकर ही घर आए.कम आय में बेहतर जिंदगी जीने की चाह रखने वाले ऐसे लाखों युवा और अधेड़ हैं जिन्हें परिवार के भरण पोषण के लिए काम की बेहद जरूरत है और उन्हें मजदूरी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं सूझ रहा क्योंकि इतनी पूंजी भी नहीँ कि कुछ अपना शुरू किया जा सके.अब ऐसे बेरोजगार युवाओं के भी सरकार जॉबकार्ड बनाएगी.क्या अब ऐसे शिक्षित युवा सरकार की मजदूरों की लिस्ट की शोभा बढ़ाएंगे या सरकार भी इनके बारे में कुछ चिंतन मंथन कर रास्ता निकलेगी.इन सबसे मुलाक़ात के बाद तो एक पल लगा कि इनकी हालत तो मजदूरों से बदतर है.ये न तो किसी से अपनी आप बीती सुना सकते और न ही किसी को अपना दुखड़ा बता सकते.
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