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हॉकी में हरियाणा का कमाल

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हॉकी में हरियाणा का कमाल
हरियाणा यदि चैम्पियन बना है तो पूरा श्रेय उसके खिलाड़ियों, टीम प्रबंधन और कोचों को जाता है, जिन्होंने सरकारी विश्वासघात को दरकिनार करते हुए न सिर्फ राष्ट्रीय खिताब जीता अपितु प्रदेश के नेताओं के तथाकथित खेल प्रेम और झूठ को भी उजागर किया है। सच्चाई यह है कि प्रदेश के खिलाड़ी अपने दम पर, अपनी मेहनत और अपनी ज़िद्द के बूते चैम्पियन बने हैं। हरियाणा ने 12वीं सीनियर राष्ट्रीय हॉकी चैम्पियनशिप का खिताब जीत लिया है। देश के उभरते खेल प्रदेश ने यह करिश्मा ग्यारह साल बाद किया है। कुछ हॉकी प्रेमी कह रहे हैं कि यह कौन सा कमाल हो गया! जिस प्रदेश में खिलाड़ियों पर लाखों करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं और जिसका खेल मंत्री खुद ओलम्पियन हॉकी खिलाड़ी  हो उसकी कामयाबी हैरानी वाली बात नहीं है। लेकिन जैसा दिखाई देता है, ऐसा कुछ नहीं है। दरअसल, हरियाणा यदि चैम्पियन बना है तो पूरा श्रेय उसके खिलाड़ियों, टीम प्रबंधन और कोचों को जाता है, जिन्होंने सरकारी विश्वासघात को दरकिनार करते हुए न सिर्फ राष्ट्रीय खिताब जीता अपितु प्रदेश के नेताओं के तथाकथित खेल प्रेम और झूठ को भी उजागर किया है। सच्चाई यह है कि प्रदेश के खिलाड़ी अपने दम पर, अपनी मेहनत और अपनी ज़िद्द के बूते चैम्पियन बने हैं। उन्हें प्रदेश के खेल मंत्रालय, खेल मंत्री, खेल विभाग या अन्य किसी से कोई मदद नहीं मिली। अपना नाम छिपाने कि शर्त पर कुछ खिलाड़ियों और टीम प्रबंधन से जुड़े जिम्मेदार लोगों ने जब हरियाणा के चैम्पियन बनने की कहानी बयां की तो किसी भी खेल प्रेमी और सरकारी दावों का बखान करने वालों की गर्दन शर्म से झुक जाएगी। हालाँकि प्रदेश में खेलों की  आड़ में हो रही गुंडागर्दी और दिखावे का इतिहास बहुत पुराना है लेकिन हॉकी टीम के साथ जो कुछ हुआ वह खेलों को अपनी बपौती समझने वालों पर जबरदस्त तमाचा है। पता चला है कि हरियाणा की टीम को प्रदेश के खेल विभाग और हॉकी संघ से किसी प्रकार की मदद नहीं मिली। कुछ अधिकारी तो टीम को भेजना ही नहीं चाह रहे थे। प्रदेश ओलम्पिक संघ और हॉकी संघ की अंदरूनी गुटबाजी के चलते खिलाडियों को किराया भाड़ा अपनी जेब से देना पड़ा। खेलने कि ड्रेस का जुगाड़ भी खुद उन्हें करना पड़ा। इतना ही नहीं उन्हें ट्रेनिंग के लिए मैदान तक उपलब्ध नहीं कराया गया। हार कर टीम ने दिल्ली के घुम्मन हेड़ा में अभ्यास किया। अंततः भोपाल के आयोजकों से अनुनय विनय कर चार दिन पहले ही हरियाणा की टीम आयोजन स्थल पहुँच गई। जहाँ एक तरफ तमाम टीमें महीने भर के ट्रेनिंग कैम्प के बाद भोपाल पहुँची, राष्ट्रीय चैम्पियन बनी टीम के खिलाड़ी दर बदर कि ठोकरें खाते रहे। खैर, हरियाणा के खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय चैम्पियन बनकर यह दिखा दिया है कि रक्षक भले ही भक्षक बन जाए लेकिन दूध दही के प्रदेश के खिलाड़ियों में अपने दम पर कुछ भी कर गुजरने कि क्षमता है। यह प्रदर्शन उन पर करारा तमाचा है जोकि खिलाड़ियों के हितैषी होने की हुंकार भरते हैं। कुछ खिलाड़ियों के अनुसार सरकार का काम माथा देख कर तिलक करने का है। जो खिलाड़ी ओलम्पिक और बड़े आयोजनों में पदक जीत कर लौटते हैं प्रदेश के नेता मंत्री उन पर करोड़ों लुटा कर मुफ्त कि वाह वाह लूटते हैं। बाकी के लिए उनके पास देने को कुछ भी नहीं है। चैम्पियनों के आरोप में कितनी सच्चाई है, जांच का विषय है। देश भर के खिलाडी और हॉकी प्रेमी हरियाणा के चैम्पियनों के साथ हमदर्दी रखते हैं और निष्पक्ष जांच चाहते हैं ताकि भविष्य में फिर कभी खिलाड़ियों को ऐसी शर्मनाक परिस्थिति का सामना न करना पड़े। क्या खेल मंत्री और मुख्य मंत्री जांच कराएंगे?
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