भोपाल। जी हाँ…. यळ एक चिंतनीय सच्चाई है कि जिस हिन्दुस्तान में हम रहते है, उस हिन्दुस्तान में हिन्दुओं की संख्या अब ‘अल्पसंख्यक’ के दर्जे तक पहुंच रही है, यह सच्चाई और किसी ने नहीं स्वयं केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सौंपे गए हलफनामें में स्वीकार की है, देश के नौ राज्य ऐसे है जहां हिन्दुओं की संख्या अन्य धर्म के लोगों से बहुत कम है। अब चूंकि हमारे संविधान में धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक का दर्जा देने का अधिकार राज्यों के पास है, इसलिए इस मामले में केन्द्र कोई हस्तक्षेप भी नहीं कर सकता। Hindu minority in India
केन्द्र ने अपने हलफनामें में कहा है कि राज्यों को अल्पसंख्यक तय करने का अधिकार देने के लिए अलग से कानून नहीं बनाया जा सकता, मंत्रालय ने कहा कि अगर सिर्फ राज्यों को यह तय करने का अधिकार दिया जाता है तो वह संविधान के खिलाफ होगा, संविधान के अनुच्छेद 246़ के तहत संसद ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग एक्ट-1992 बनाया है, अगर सिर्फ राज्यों को ही अल्पसंख्यकों का कानून बनाने का अधिकार दिया जाएगा तो संसद की शक्ति का हनन होगा।
दर असल भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिक दायर की है इसमें उन्होंने मांग की है कि अल्पसंख्यकों की पहचान राष्ट्र नहीं राज्यों के आधार पर हो और जिन राज्यों में दूसरे धर्मों के अनुयायी ज्यादा हो, वहां हिन्दुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए। इस याचिका में दलील दी गई है कि देश के नौ राज्यों लद्दाख (01), मिजोरम (2.75), लक्ष्यद्वीप (2.77), कश्मीर (04), नागालैण्ड (8.74) मेघालय (11.52), अरूणाचल (29.24), पंजाब (38.49) तथा मणीपुर राज्य में 41.29 फीसदी ही हिन्दू है, किंतु इन्हें ‘अल्पसंख्यक’ का दर्जा भी नही मिला है और अल्पसंख्यक की सुविधा भी नहीं मिल पाई है।
न ही ये मदरसों की तरह धार्मिक स्कूल खोल पा रहे है, इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से जवाब मांगा था। केन्द्र ने अपने जवाब में कहा है कि राज्य सरकारें अल्पसंख्यक समुदायों का निर्धारण उनकी आबादी के आधार पर कर सकती है, कर्नाटक में उर्दू, तेलगू, तमिल, मलयालय, हिन्दी, कोकंणी, मराठी और गुजराती भाषाओं को अपनी सीमा में अल्पसंख्यक भाषा नोटिफाई किया है, उसमें महाराष्ट्र का भी उदाहरण दिया गया है जहां राज्य सरकार ने यहूदी समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक घोषित किया हुआ है, सरकार ने कोर्ट से कहा है कि इन राज्यों की तरह हर राज्य अल्पसंख्यकों का निर्धारण कर सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय में इस मुद्दें पर भी काफी विस्तृत चर्चा हुई कि इस याचिका पर कोर्ट द्वारा मांगा गया जवाब केन्द्र का कौनसा मंत्रालय दे? सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि गृहमंत्रालय को जवाब देना चाहिए, जबकि सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता का कहना था कि अल्पसंख्यक मंत्रालय इसके जवाब के लिए अधीकृत है। इसी कारण अल्पसंख्यक मंत्रालय ने इसका जवाब पेश किया है।
यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले पर चर्चा व सुनवाई की अगली तारीख 9 मई तय की है और तभी शायद यह भी बताया जाएगा कि देश के इन नौ राज्यों में हिन्दुओं की संख्या उनके पलायन के कारण कम हुई है या अतीत में केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा चलाए गए ‘‘हम दो हमारे दो’’ अभियान के कारण, क्योंकि उस समय यह चर्चा का विषय रहा है कि तत्कालीन केन्द्र सरकार द्वारा चलाए गए इस अभियान में सिर्फ हिन्दू समुदाय ने ही दिलचस्पी जाहिर की थी, मुस्लिम, ईसाई या अन्य धर्मों के अनुयायियों ने नहीं और अब इन नौ राज्यों के अलावा और कितने ऐसे राज्य है जहां हिन्दु समुदाय अल्प संख्यक के कगार पर खड़ा है? और जिन राज्यों में हिन्दु अल्पसंख्यक है वहां उन्हें अल्पसंख्यक समुदाय को दी जाने वाली सुविधाएं दी जाती है या नहीं?
अब जो भी हो, यह मामला दिलचस्प होने के साथ चिंता-जनक भी है, यदि यहां हिन्दू अल्पसंख्यक होगा या तो फिर ‘हिन्दुस्तान’ का क्या होगा? क्या इस देश का कोई नया नाम खोजना पड़ेगा?