सुदर्शन कुमार सोनी
अस्पताल गया था। कोरोना वोरोना का कोई कनेक्शन न सोचें। डॉक्टर साहब राऊंड पर थे । इंतजार का घंटा भर हो गया था। मरीज व हमराह एक दूसरे को कभी कभार उपर ताक फिर नीचा सिर कर अपने मोबाईल में मगन हो जाते थे। हम जो ठहरे छींकासुर सुबह छींक के साथ उठते हैं और रात बिस्तर पर छींक के साथ ही जाते हैं। और जब से ये कोरोना हुआ है । मैं अपनी इस छींक का इसके कठोर संयम के कारण ऋणि रहा हूं । मेरे साथ ही अपने को भी लॉकडाऊन में रखा । अनुशासित व सही लाकडाऊन क्या होता है। ये मैंने इससे सीखा ।
हर चीज की हद होती है। पर अमेरिकी राष्ट्रपति के गर्व की नही होती! टाज शायद छींक ंसे दो माह की घुटन बर्दाश्त नही हो रही थी । उसने शायद कहा इज एनफ और वह आ ही गयी और खूब जोर से आयी छींक का अनलॉक वर्जन 1.0 था यह । अब सारे चक्षु मेरी ओर थे। दो माह का किया धरा सब पानी मंे मिल गया। तूने जरा सा हिंट किया होता तो मैं वाशरूम में घुस कर दरवाजा लगा , तुझे पूर्ण स्वराज दे देता। लेकिन पच्चीसों मरीज व उनके परिजनों के सामने भद क्यों पिटवायी ? घर से अच्छा खा पीकर आये सब , मुझे ही खा जाने वाली नजरों से देख रहे थे। मेरा सिर शर्म से झुक गया था। लेकिन कनखियों से सामने और दांये बायें देख रहा था ।
सिक्योरिटी गार्ड व एक वार्ड ब्वाय दौड़ते मेरे सामने आ गये थे। गार्ड अजीब मुखमुद्रा के साथ मुझे घूर रहा था। वार्ड ब्वाय भी तन कर खडा़ था कि अब दूसरी निकली तो बताते हैं इसको।गार्ड ब्वाय व वार्ड ब्वाय दोनो सही में ब्वाय ही थे ! मैंने अंदर ही अंदर छींक से पा्रर्थना अंदर ही अंदर रहने के लिये की। लेकिन मेरा मुंह पलक झपकते फिर खुला । मुझे बेदम बेहया छींक फिर जम से आ गयी यह उसका अनलाक वर्जन 2 था। और मैं अब तो पानी पानी हो गया इतना कि लगा कि घर जाकर अब स्नान की जरूरत नही पडे़गी। सब हिकारत की नजरों से मुझे ही देख रहे थे । लोग दो गज दूरी को बीस गज बना दूर हो गये।
दोनो ब्वाय बिल्कुल नजदीक आ गये। नाजुक मौके पर दो गज दूरी की दूसरों को देने की ंनसीहत वे स्वयं भूल गये थे। मुझे थोडी़ गर्मी महसूस हुयी देखा तो उनकी आंखों में अंगारे जैसे सुलग रहे थे। डॉक्टर सच में भगवान का दूसरा रूप होता है। आते ही हमे बुला लिया था। जब हम बाहर आये तो गजब की फुर्ती से अस्पताल से बाहर हो कार मंे बैठने आगे बढे़ पर जोरों से छींक का अनलाक वर्जन 3.0 आया। सुरक्षाकर्मी फिर एकदम चौकन्ने हो गये । आसपास सन्नाटा खिंच गया। मैं दौड़कर कार में बैठा और रफूचक्कर हो गया। घर पंहुचकर मैंने छींक से कहा कि तू अब जितनी हसरत पूरी करनी है कर ले । लेकिन जैसे उसने अनलॉक 03 के बाद पुनः अपने को लॉकडाउन में रख लिया था !बैक टू स्केवयर वन ! लोग भी तो अनलॉक में ऐसा ही कर रहे हैं और कंही इतनी स्वच्छंदता किसी दिन फिर लॉक न लगवा दे! गंगू की सलाह है कि छींकदार लोगों को अच्छे से छींक-छांक कर ही सार्वजनिक जगहों पर निकलने की जुर्रत करना चाहिये।
ऐ छींक..! तू यहां क्यों आंक छी हुई..!
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