आज ऐसी दंपत्तियों की संख्या दिनोदिन बढ़ रही है जो संतान के लिये लाखों खर्च करके आईवीएफ या सेरोगेसी जैसे तरीके अपना रहे हैं। डॉक्टरों के अनुसार ऐसी दंपत्तियों में 5 प्रतिशत जेनेटिक, 60 प्रतिशत पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, यूट्रेस टीबी, बंद फिलोपियन ट्यूब और शेष अपनी स्वछन्द जीवन शैली से बांझपन का शिकार होते हैं।
आज ऐसी दंपत्तियों की संख्या दिनोदिन बढ़ रही है जो संतान के लिये लाखों खर्च करके आईवीएफ या सेरोगेसी जैसे तरीके अपना रहे हैं। डॉक्टरों के अनुसार ऐसी दंपत्तियों में 5 प्रतिशत जेनेटिक, 60 प्रतिशत पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, यूट्रेस टीबी, बंद फिलोपियन ट्यूब और शेष अपनी स्वछन्द जीवन शैली से बांझपन का शिकार होते हैं।35 से कम उम्र की महिलायें एक-दो साल प्रयास करने और 35 से ज्यादा की महिलायें 6 महीने प्रयास करने के बाद कन्सीव न कर पायें तो इसे बांझपन माना जाता हैं। मेडिकल साइंस में उन महिलाओं को भी इन्फरटाइल मानते हैं जो कन्सीव तो कर लेती हैं लेकिन कुछ समय बाद मिसकैरेज हो जाता है।
बांझपन का कारण क्या?
महिलाओं में बांझपन का मेन कारण है उनके बॉयोलॉजिकल प्रोसेस जैसे ओव्यूलेशन, फर्टिलाइजेशन और एग इम्प्लान्टेशन में डिस्टर्बेन्स। ऐसा बढ़ती उम्र, मोटापा, अंडरवेट, स्मोकिंग, रेगुलर ड्रिंकिंग, ड्रग्स, एनाबॉलिक स्टीरॉइड्स और सेक्सुअली ट्रांसमिटिड डिसीस की वजह से होता है। अगर साल में चार महीने पीरियड न हों या इरेगुलर रहें तो यह ओव्यूलेशन प्रोसेस बिगड़ने का संकेत है। पीसीओएस, हारमोनल इम्बैलेंस, पीआईडी, इंडोमेट्रिओसिस, यूट्राइन फाइब्रोसिस और प्रि-मैच्योर ओवेरियन फेलियर से भी बांझपन बढ़ती है।
बांझपन के सम्बन्ध में जेन्डर कोई मायने नहीं रखता, पिछले दो दशकों से जीवन शैली में आये बदलावों से महिलाओं की अपेक्षा पुरूष ज्यादा इन्फर्टाइल हुए। जनरल कारणों के अलावा कुछ मेडिकल कंडीशन्स जैसे रेट्रोग्रेड इजेकुलेशन, वेरीकोसील, हारमोनल इम्बैलेंस, कीमो-रेडियेशन थेरेपी और लम्बे समय तक कुछ दवाओं के सेवन का रिजल्ट स्पर्म काउंट में कमी, स्पर्म शेप और मूवमेंट खराब होने के रूप में सामने आता है।
बांझपन का समाधान क्या?
अब सवाल ये कि क्या इसका समाधान केवल आईवीएफ या सेरोगेसी ही है? जब इस सम्बन्ध में मैंने दिल्ली की जानी-मानी गायनोकोलोजिस्ट डॉ. इंदु कपूर से बात की तो उन्होंने बताया कि केवल दस प्रतिशत मामलों में आईवीएफ या सेरोगेसी की जरूरत पड़ती है। ज्यादातर केसेज, फर्टीलिटी साइकल की सही जानकारी, खानपान और जीवनशैली में बदलाव या हारमोन थेरेपी से ठीक हो जाते हैं।
फर्टीलिटी साइकल समझना जरूरी
फर्टीलिटी साइकल के बारे में डॉ. इन्दु ने बताया कि महिलायें, ओव्यूलेशन के समय सबसे ज्यादा फर्टाइल होती हैं। इसमें ओवरी से मैच्योर एग रिलीज होकर फिलोपियन ट्यूब्स से यूट्रेस में आते समय स्पर्म के सम्पर्क में आने से फर्टीटाइल हो जाता है। अगर एग फर्टाइल नहीं हुआ तो ओव्यूलेशन के 24 घंटे के अंदर नष्ट हो जाता है जबकि स्पर्म, महिला शरीर में पांच दिन तक जीवित रहते हैं जिससे महीने में पांच दिन, प्रेगनेन्सी के चांस होते हैं।
यह जरूरी नहीं कि ओव्यूलेशन प्रत्येक माह निश्चित तारीख को ही हो, इसलिये प्रेगनेन्सी के चांस बढाने के लिये ओव्यूलेशन के लक्षण पहचानना जरूरी है। ओव्यूलेशन के समय यौनेच्छा में बढ़ोत्तरी, ब्रेस्ट हैवीनेस, बॉडी टेम्प्रेचर हाई, ब्लॉटिंग और एब्डोमिनल क्रैम्पिंग जैसे लक्षण उभरते हैं। आमतौर पर ओव्यूलेशन में एक मैच्योर एग रिलीज होता है लेकिन कुछ महिलाओं में 24 घंटे के दौरान एक से ज्यादा एग रिलीज होते हैं। ओव्यूलेशन प्रोसेस बिगड़ने का एक बड़ा रीजन है पीसीओएस। कई बार थॉयराइड ग्लैंड के ठीक से काम न कर पाने और स्ट्रेस से भी यह डिस्टर्ब हो जाता है।
ऐसे बढ़ायें फर्टीलिटी
बांझपन दूर करने के सम्बन्ध में इंटरनेशनल सोसाइटी फार कॉम्प्लीमेन्टरी मेडीसन्स द्वारा किये शोध से सामने आया कि खानपान, योगा, एक्यूपंचर, हर्बल दवायें और एरोमाथेरेपी इसमें कारगर है। इनसे ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस कम और फर्टीलिटी इम्प्रूव होती है।
प्रतिदिन 75 ग्राम अखरोट खाने से स्पर्म क्वालिटी सुधरती है। फर्टीलिटी बढ़ाने के लिये महिलाओं को सुबह हैवी ब्रेकफास्ट और शाम को हल्का डिनर लेना चाहिये। कम कार्ब और ज्यादा वेज प्रोटीन वाली खानपान से पीसीओएस ठीक होने लगता है जिससे पीरियड रेगुलर हो जाते हैं।
डेली खानपान में 10 ग्राम फाइबर होना जरूरी है, लेकिन इससे ज्यादा नहीं। 32 से अधिक उम्र की महिलाओं पर हुए एक शोध में तीन माह तक प्रतिदिन 10 ग्राम फाइबर रिच दलिया खाने से ओव्यूलेटरी बांझपन का रिस्क 44 प्रतिशत घटा।
खानपान में देसी घी, सरसों, मूंगफली, सनफ्लावर जैसे बिना रिफाइन किये तेलों का प्रयोग करें। रिफाइन्ड ऑयल और ट्रांसफैट ओव्यूलेटरी बांझपन बढ़ाते हैं, इन्हें खानपान से बाहर करें।
बांझपन दूर करने के लिये नॉन-वेज प्रोटीन से वेजीटेबल प्रोटीन पर शिफ्ट हों। इसके लिये खानपान में दालें, बीन्स, दलिया, बादाम, अखरोट, पनीर, फुल क्रीम दूध और दही की मात्रा बढ़ायें।
ओव्यूलेटरी बांझपन पीड़ित महिलाओं को फोलेट, जिंक, आयरन, विटामिन सी, ई और बी6 रिच खानपान लेनी चाहिये। रिसर्च से सामने आया कि ऐसी खानपान लेने वाली महिलाओं में बांझपन का रिस्क अन्य महिलाओं की तुलना में 41 प्रतिशत कम हुआ।
खानपान से सोयाबीन निकालें। स्टडी में पाया गया कि सोयाबीन फर्टीलिटी बढ़ाने वाले हारमोन्स पर निगेटिव असर डालता है जिससे पुरूषों में सम्बन्ध बनाने की फ्रिकवेंसी कम होने से प्रेगनेन्सी के चांस घटते हैं। कैफीन वाले ड्रिंक्स फर्टीलिटी कम करते हैं और ज्यादा कैफीन से मिसकैरेज हो जाता है। इसलिये कुछ समय के लिये कॉफी छोड़कर चाय पर शिफ्ट हों।
रेगुलर लाइट एक्सरसाइज, फर्टीलिटी बढ़ाती है, विशेष रूप से मोटी महिलाओं में। हैवी एक्सरसाइज से बचें क्योंकि इसका रिप्रोडक्टिव सिस्टम पर निगेटिव असर पड़ता है। इन्फर्टीलिटी पीड़ित 30 प्रतिशत महिलायें स्ट्रेस और एंग्जायटी का शिकार होती हैं जिससे हारमोनल बैलेंस बिगड़ता है और प्रेगनेन्सी के चांस घटते हैं। ऐसे में योगा, मेडीटेशन और काउंसलिंग सपोर्ट से स्ट्रेस और कम करने का प्रयास करें।
नजरिया
अगर कोई मेजर प्रॉब्लम नहीं है तो खानपान और जीवनशैली में ये बदलाव करने से बांझपन दूर होगी। लेकिन इसके लिये पेशेन्स चाहिये। खानपान और जीवनशैली बदलने का असर आने में एक वर्ष या इससे ज्यादा समय लग सकता है। उदाहरण के लिये कोन्ट्रासेप्टिव पिल्स लेने वाली महिलायें यदि कन्सीव करने का प्रयास करती हैं तो उनके शरीर से इन पिल्स का असर समाप्त होने में एक या दो साल भी लग सकते हैं। हां एक बात और यदि बांझपन दूर करनी है तो कुछ समय के लिये शराब और स्मोकिंग पूरी तरह छोड़ दें।
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