जम्मू ज़िले की उपायुक्त द्वारा आदेश जारी किए जाने के फौरन बाद भारतीय जनता पार्टी को छोड़ कर अन्य सभी राजनीतिक दलों ने ज़बरदस्त विरोध किया और आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी प्रदेश के बाहर के लोगों को मताधिकार देकर सत्ता में आना चाहती है।
जम्मू-कश्मीर में रहने वाले दूसरे राज्यों के नागरिकों को मताधिकार देने के सवाल पर बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। ताज़ा विवाद जम्मू की उपायुक्त अवनी लवासा के एक आदेश से पैदा हुआ है। मगर आदेश को लेकर हुई तीव्र प्रतिक्रिया को देखते हुए उपायुक्त को अपने ही आदेश को आनन-फानन में वापस लेना पड़ा। लेकिन इस सारे मामले ने कई तरह के सवाल खड़े करते हुए विपक्ष को एक बार फिर से जम्मू-कश्मीर से बाहर के रहने वाले लोगों को मताधिकार दिए जाने पर प्रश्न उठाने का मौका दे दिया है। इस साल ऐसा दूसरी बार हुआ है जब बाहरी लोगों को मताधिकार देने के मुद्दे पर नौकरशाहों के बयानों व आदेशों के कारण प्रदेश सरकार को विकट स्थिति का सामना करना पड़ा है ।
जम्मू ज़िले की उपायुक्त अवनी लवासा ने 12 अक्तूबर को देर रात अचानक एक आदेश निकाला जिसमें उपायुक्त ने कहा था कि अगर स्थाई निवास के प्रमाण के लिए किसी के पास चुनाव आयोग द्वारा मांगें गए दस्तावेज़ों में से कोई भी दस्तावेज नही है तो भी कोई भी प्रदेश के बाहर का इच्छुक व्यक्ति अपना वोट बनवा सकता है। आदेश के अनुसार इसके लिए संबंधित तहसीलदार से रिहाइश का सत्यापन करवाना होगा कि मतदाता के रूप में अपने को पंजीकृत करवाने वाला व्यक्ति एक साल से जम्मू-कश्मीर में रह रहा है ।
इस सिलसिले में उपायुक्त ने आदेश में अपने अधीन आने वाले सभी तहसीलदारों को बकायदा अधिकृत भी कर दिया कि वे एक साल से अधिक समय से रह रहे लोगों का मौके पर जाकर सत्यापन करें और बकायदा रिहाइशी प्रमाणपत्र जारी करे। उपायुक्त के इस आदेश से यहां एक तरफ सियासी तूफान उठ खड़ा हुआ वहीं इस आदेश को ही लेकर कई तरह के सवाल उठने लगे। देखा जाए तो अपने आप में यह आदेश विचित्र और विसंगतियों से भरा हुआ था। सवाल इसलिए भी उठे क्योंकि पूरे प्रदेश के 20 ज़िलों में से सिर्फ जम्मू के उपायुक्त ने ही ऐसा आदेश जारी किया था, जबकि मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण का काम पूरे प्रदेश में चल रहा है। आखिर जम्मू के उपायुक्त को ही ऐसा आदेश जारी करने की क्या ज़रूरत महसूस हुई ?
उल्लेखनीय है कि मतदाता के रूप में पंजीकृत करवाने के लिए चुनाव आयोग रिहाइशी प्रमाण के लिए आठ तरह के दस्तावेज मांगता है उनमें बैंक पासबुक, राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, आयकर रिटर्न की कॉपी, किरायानामा, बिजली-पानी व गैस कनेक्शन शामिल हैं। इन दस्तावेजों में से किसी एक दस्तावेज को जमा करवाकर कोई भी व्यक्ति अपने आप को मतदाता के रूप में पंजीकृत करवा सकता है। यही नही अगर डाक विभाग संबंधित व्यक्ति के पते पर पत्रों को वितरित करता रहा हो तो भी किसी व्यक्ति का वोट बन सकता है।महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जब चुनाव आयोग ने रिहाइशी दस्तावेज के लिए जो प्रावधान रखे हैं उनमें कहीं भी तहसीलदार से आवास प्रमाणपत्र लेने जैसा कोई भी प्रावधान नही है तो ऐसे में जम्मू की उपायुक्त ने किस आधार पर तहसीलदारों को आवास प्रमाणपत्र जारी करने के लिए अधिकृत किया? इस सवाल का अभी तक उपायुक्त की तरफ से कोई जवाब नही दिया गया है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि इस समय जम्मू-कश्मीर में मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण का काम चल रहा है। चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूचियों को पूरी तरह से तैयार व अंतिम रूप देकर 25 नवंबर तक प्रकाशित किया जाएगा।
विपक्ष ने उठाए सवाल
जम्मू ज़िले की उपायुक्त द्वारा आदेश जारी किए जाने के फौरन बाद भारतीय जनता पार्टी को छोड़ कर अन्य सभी राजनीतिक दलों ने ज़बरदस्त विरोध किया और आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी प्रदेश के बाहर के लोगों को मताधिकार देकर सत्ता में आना चाहती है। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए इस आदेश को अस्मिता के साथ जोड़ते हुए कहा कि वोट के लिए भारतीय जनता पार्टी जम्मू-कश्मीर की विशिष्ट संस्कृति को बर्बाद करना चाहती है। नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस व अपनी पार्टी ने भी इस आदेश का सख्त विरोध किया है।
सभी प्रमुख विपक्षी दलों के संगठन पीपुल्स एलाएंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन (पीएजीडी) ने भी संयुक्त रूप से इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश की है। गुपकार एलाएंस के नाम से मशहूर इस संगठन ने आरोप लगाया है कि मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण के नाम पर जम्मू-कश्मीर के लोगों से उनकी पहचान व राजनीतिक अधिकार छीने जाने की कोशिस हो रही है।
विभिन्न राजनीतिक दलों के विरोध के बाद जम्मू की उपायुक्त ने भले ही अपना आदेश वापस ले लिया हो मगर इस सारे मामले में प्रदेश सरकार की ज़बरदस्त किरकिरी हुई है। इससे पहले भी गत अगस्त में प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी हृदयेश कुमार के एक बयान से बड़ा विवाद खड़ा हो गया था। मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने मतदाता सूचियों की समीक्षा, संशोधन और पुनर्निरीक्षण के लिए जारी प्रक्रिया से जुड़ी जानकारी को मीडिया के साथ साझा करते हुए कहा था कि इस बार मतदाता सूची में 20 से 25 लाख नए मतदाता जुड़ सकते हैं। मगर उन्होंने यह सपष्ट नही किया कि 20 से 25 लाख नए मतदाता कौन होंगे।
जम्मू-कश्मीर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी हृदयेश कुमार के बयान से जिस तरह की शंकाए और विवाद पैदा हुए थे, ठीक उसी तरह के संदेह जम्मू की उपायुक्त के आदेश से भी बनने लगे थे। उपायुक्त द्वारा आदेश वापस ले लेने से जम्मू-कश्मीर के बाहर के लोगों को मताधिकार दिए जाने का मामला फिलहाल शांत है लेकिन यह मुद्दा आने वाले दिनों में फिर से गरमा सकता है। पीपुल्स एलाएंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन (पीएजीडी) लगातार इस मुद्दे को लेकर मोर्चाबंदी कर रहा है।
यह सही है कि पांच अगस्त 2019 को धारा-370 की समाप्ति के बाद से जम्मू-कश्मीर में रहने वाले तमाम बाहरी लोगों को भी अब मताधिकार मिल सकता है। लेकिन जिस ढंग से बार-बार नौकरशाहों की ओर से अति उत्साह में बयानबाजी की जा रही है उससे यह मुद्दा लगातार उलझता जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि धारा-370 की समाप्ति के बाद और जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन होने से प्रदेश में लागू जन प्रतिनिधित्व अधिनियम-1957 अब निरस्त हो चुका है और अब देश के अन्य हिस्सों की तरह प्रदेश में भी जन प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 लागू है। इस कानून के लागू होने से जम्मू-कश्मीर में स्थायी रूप से रह रहे प्रदेश के बाहर के लोगों को भी अधिकार मिल जाता है कि अगर वे चाहें तो एक वोटर के रूप में वे भी अपने आप के जम्मू-कश्मीर में मतदाता के रूप में पंजीकृत करवा सकते हैं। हालांकि यह स्पष्ट है कि कोई भी मतदाता देश में एक ही जगह अपने आप को मतदाता के रूप में पंजीकृत करवा सकता है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि पांच अगस्त 2019 से पहले जम्मू-कश्मीर के स्थायी नागरिकों को ही प्रदेश में मताधिकार हासिल था। जम्मू-कश्मीर के स्थायी नागरिक के पास ‘स्टेट सब्जेक्ट’ होता था। यह ‘स्टेट सब्जेक्ट’ ही राज्य के स्थायी नागरिक की नागरिकता को प्रमाणित करता था। उस समय की स्थिति के अनुसार जम्मू-कश्मीर के बाहर का रहने वाला कोई भी व्यक्ति प्रदेश में अपना वोट नही डाल सकता था।
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