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जोशीमठ का ध्वंश का अपशकुन क्या अयोध्या पुनर्निर्माण का पुण्य होगा

भोपाल।आखिर में जिसका डर था वही हुआ, बद्रीनाथ का सिंघद्वार जोशिमठ के 25 हज़ार निवासियों और तीर्थयात्रियों के लिए खतरनाक घोषित कर दिया गया हैं। सरकार के इस निर्णय से बद्रीनाथ और सिखों के धार्मिक स्थान हेमकुंड की यात्रा भविष्य में असंभव हो गयी हैं। फिलहाल जोशिमठ के चार हजार निवासियों के विस्थापन की व्यवस्था की जा रही हैं। उतराखंड की विकास के लिए यह दूसरी ‘बलि’ है पहले टेहरी को भी विकास के लिए डुबना पड़ा था!

सनातनियों के चार धाम में एक बद्रीविशाल या बद्रीनाथ धाम हैं। सातवीं सदी में आदिगुरु शंकरचार्य ने यहा आराध्य की पुनः स्थापना की थी। विगत 1600 साल से भारत के कोने-कोने से चारों धाम की यात्रा के तीर्थ यात्री लाखों की संख्या में यहाँ पहुँचते हैं। चालीस – पँचास साल पहले जोशिमठ यात्रा की “आखिरी चट्टी” हुआ करती थी। तीर्थ यात्री अपने – अपने पंडो के यहाँ ठहरते थे।

वही भोजन पानी का बंदोबस्त हुआ करता था। इस स्थान की धार्मिक महत्ता इसी तथ्य से समझी जा सकती हैं की इस स्थान में आदि गुरु ने एक पीठ की स्थापना की थी एवं मंदिर की अर्चना के लिए उन्होने अपने जन्म स्थान केरल के नंबुदरी ब्रहमनों को यहा “अर्चक” नियुक्त किया था। आदिगुरु स्वयं नंबुदरी ब्रामहण थे। इसलिए आजतक नंबुदरी ब्रामहण ही परंपरानुसार बद्रीनाथ मंदिर में अर्चना करते हैं। इस मंदिर की एक पुरानी परंपरा थी की गढ़वाल के महाराजा मंदिर के पट खुलने पर प्रथम दर्शन के अधिकारी होते थे। बाद में प्रथम दर्शन का अधिकार भारतीय सेना को मिल गया।

विगत सप्ताह से इस धार्मिक नागरी की जड़े हिल गयी हैं -परिणाम स्वरूप जोशिमठ के 600 से ज्यादा मकानों और होटलों की नीव खिसक चुकी हैं। आखिर यह हालत क्यू हुई? अधिकांश निवासियों में इसे “दैवी प्रकोप” के रूप में लिया जा रहा हैं। परंतु सरकार और -प्रशासन इसके कारणों को लेकर कुछ भी खुलाशा नहीं कर रही हैं।
स्थानीय पर्यावरण विशेसज्ञ इस हालत के लिए सरकार की विकास की योजना को देश दे रहे हैं। बताया जाता हैं की नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन द्वारा भूमिगत सुरंग निर्माण के लिए किए जा रहे बारूदी धमाकों को जिम्मेदार बताया हैं! यह विकास विद्युत उत्पादन के लिए बिजलीघर बनाने के लिए किया जा रहा हैं। उतराखंड के मुख्यमंत्री धामी ने जी ने खुद भी प्रभावित स्थल का दौरा किया हैं, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आर्थिक मद््द का भरोसा दिया हैं।

गड़वाल छेत्र का दुर्भाग्य रहा हैं की “विकास” के नाम पर पनबिजली निर्माण के लिए पहले ही टेहरी नगर को डूबा चुका हैं और वनहा के हजारों निवासियों व्यवस्थापन भी सम्पूर्ण नहीं हुआ हैं। इतना ही नहीं टेहरी को डूबा कर बने जलशाय के फटने से भी मानव त्रासदी हुई जिसमे जान माल का बहुत नुकसान हुआ। परंतु सरकार में बैठे अफसरों और मंत्रियों को यह नहीं समझा में आ रहा हैं की मैदान की तर्ज पर पर्वतीय छेत्रों में विकास नहीं हो सकता ! मैदानों की समतल धरती पर बड़े जलाशय या ऊंचे -ऊंचे बिजलीघर बनाना आसान हैं। परंतु पर्वतीय छेत्रों में माइक्रो प्लांट ही माकूल होते हैं।

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