nayaindia sports federations wrestlers protest खेल महासंघों के अध्यक्ष पद से नेता हटे!
गेस्ट कॉलम

खेल महासंघों के अध्यक्ष पद से नेता हटे!

Share

तमाम बाधाओं को झेलते हुए भी भारत के ये बेटे-बेटी हिम्मत नहीं हारते। पूरी लगन से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहते हैं। इनकी परेशानियों का इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा कि अंतरराष्ट्रीय पदक जीतने के बाद भी इन्हें अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए सड़कों पर संघर्ष करना पड़ रहा है। जब अंतरराष्ट्रीय पदक विजेताओं के साथ ऐसा दुर्व्यवहार हो रहा है तो बाक़ी के हज़ारों खिलाड़ियों के साथ क्या होता होगा ये सोच कर भी रूह काँप जाती है।

जब भी कभी किसी खेल महासंघ में कोई विवाद उठता है तो उसके पीछे ज़्यादातर मामलों में दोषी ग़ैर-खिलाड़ी वर्ग से आए हुए व्यक्ति ही होते हैं। खेल और खिलाड़ियों के प्रति असंवेदनशील व्यक्ति अक्सर ऐसी गलती कर बैठते हैं जिसका ख़ामियाज़ा उस खेल और उस खेल से जुड़े खिलाड़ियों को उठाना पड़ता है। यदि ऐसे खेल महासंघों के महत्वपूर्ण पदों पर राजनेताओं या ग़ैर खिलाड़ी वर्ग के व्यक्तियों को बिठाया जाएगा तो उनकी संवेदनाएँ खेल और खिलाड़ियों के प्रति नहीं बल्कि उस पद से होने वाली कमाई व शोहरत के प्रति ही होगी। ऐसा दोहरा चरित्र निभाने वाले व्यक्ति जब बेनक़ाब होते हैं तो न सिर्फ़ खेल की बदनामी होती है बल्कि देश का नाम भी ख़राब होता है।

पिछले कई दिनों से देश का नाम रोशन करने वाली देश कि बेटियाँ दिल्ली के जंतर-मन्तर पर धरना दे रही हैं। इन्हें आंशिक सफलता तब मिली जब देश की सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली पुलिस को आड़े हाथों लेते हुए एफ़आइआर दर्ज करने के निर्देश दिए। देश के लिए मेडल जीतने वाली इन महिला पहलवानों को हर किसी का समर्थन मिल रहा है सिवाय देश के सत्तारूढ़ दल के। कारण साफ़ है, इन महिला पहलवानों ने जिसके ख़िलाफ़ मोर्चा खोला है वो भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश से भाजपा के बाहुबली नेता ब्रजभूषण शरण सिंह हैं। इन पर कुछ महिला पहलवानों के साथ यौन शोषण का आरोप है। महिला पहलवानों की माँग है कि केवल एफ़आइआर ही नहीं ब्रजभूषण शरण सिंह की गिरफ़्तारी भी हो। इसके साथ ही यह भी कहा है कि जब तक इस मामले की जाँच पूरी नहीं हो जाती तब तक उनको कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पद से हटा दिया जाए और नैतिकता के आधार पर वे संसद से भी इस्तीफ़ा दें।

कैसी विडंबना है, जब भी देश का नाम रोशन करने वाले ये खिलाड़ी कोई पदक जीत कर देश लौटते हैं तो देश का शीर्ष नेतृत्व इन्हें पलकों पर बिठा कर इनका ज़ोरदार स्वागत करता है। इन्हें सरकारी पदों पर नौकरी भी दी जाती है। इनके सम्मान में होने वाले स्वागत समारोह की तस्वीरों को मीडिया में खूब फैलाया जाता है। परंतु जैसे ही इनके आत्मसम्मान की बात उठती है तो सरकार, चाहे किसी भी दल की क्यों न हो, इनसे मुँह फेर लेती है और इन्हें अपनी लड़ाई लड़ने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ता है। ऐसा ही कुछ देश की इन बहादुर बेटियों के साथ भी हो रहा है।

जब जनवरी में इन महिला पहलवानों ने ब्रजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला था तो सरकार ने इन्हें आश्वासन दिया था कि मामले की जाँच होगी और दोषी को उचित सज़ा दी जाएगी। परंतु जब कई महीनों बाद भी कुछ नहीं हुआ तब इन पहलवानों ने दोबारा मोर्चा खोला। इस बार देश के किसान और अन्य सामाजिक व राजनैतिक दल भी इनके समर्थन में उतर आए। मामले में नया मोड़ तब आया जब सुप्रीम कोर्ट ने इसका संज्ञान लेते हुए दिल्ली पुलिस को लताड़ा और एफ़आइआर न लिखने का कारण पूछा। सुप्रीम कोर्ट के दबाव में आकर दिल्ली पुलिस ने एफ़आइआर लिखने का आश्वासन तो दिया पर धरना देने वाले पहलवानों ने आशंका जताई कि पुलिस हल्की धाराओं में एफ़आइआर दर्ज करेगी और सारी कोशिश मामले को रफ़ा-दफ़ा करने की होगी।

बात-बात में हम अपनी तुलना चीन से करते हैं। जबकि अंतर्राष्ट्रीय खेलों में मेडल जीतने के मामले में चीन हमसे कहीं आगे है। उधर अमरीका जिसकी आबादी भारत के मुक़ाबले पाँचवाँ हिस्सा है, मेडल जीतने में भारत से बहुत ज़्यादा आगे है। कारण स्पष्ट है कि जहां दूसरे देशों में खिलाड़ियों के ख़ान-पान और प्रशिक्षण पर दिल खोल कर खर्च किया जाता है वहीं भारत में इसका उल्टा होता है। अरबों रुपया जो खेलों के नाम पर आवंटित होता है उसका बहुत थोड़ा हिस्सा ही खिलाड़ियों के हिस्से आता है। ये पैसा या तो भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाता है और या खेल संघों के नियंत्रक बने हुए राजनेताओं और दूसरे सदस्यों के पाँच सितारा ऐशो-आराम पर उड़ाया जाता है। पाठकों को याद होगा कि कुछ दिनों पहले समाचार आया था कि राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को दिल्ली नगर निगम के शौचालय में खाना परोसा जा रहा था।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेने वाले खिलाड़ी बहुत छोटी उम्र से ही अपनी तैयारी शुरू कर देते हैं। इनमें से ज़्यादातर देश के अलग-अलग हिस्सों से ऐसे परिवारों से आते हैं जिनकी आर्थिक स्थिति मज़बूत नहीं होती। फिर भी वे परिवार अपना पेट काट कर इन बच्चों को अच्छी खुराक, जैसे घी, दूध, बादाम आदि खिलाकर और स्थानीय स्तर पर उपलब्ध प्रशिक्षण दिलवाकर प्रोत्साहित करते हैं। फिर भी इन खिलाड़ियों को अक्सर चयनकर्ताओं के पक्षपातपूर्ण रवैये और अनैतिक आचरण का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी तो इनसे रिश्वत भी माँगी जाती है। ऐसी तमाम बाधाओं को झेलते हुए भी भारत के ये बेटे-बेटी हिम्मत नहीं हारते। पूरी लगन से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहते हैं। इनकी परेशानियों का इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा कि अंतरराष्ट्रीय पदक जीतने के बाद भी इन्हें अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए सड़कों पर संघर्ष करना पड़ रहा है। जब अंतरराष्ट्रीय पदक विजेताओं के साथ ऐसा दुर्व्यवहार हो रहा है तो बाक़ी के हज़ारों खिलाड़ियों के साथ क्या होता होगा ये सोच कर भी रूह काँप जाती है।

जब कभी ऐसे विवाद सामने आते हैं तो सारे देश की सहानुभूति खिलाड़ियों के साथ होती है। हो भी क्यों न ये खिलाड़ी ही तो अंतर्राष्ट्रीय खेलों में भारत का परचम लहराते हैं और हर भारतीय का मस्तक ऊँचा करते हैं। भारत जैसे आर्थिक रूप से प्रगतिशील देश ही नहीं, पश्चिम के विकसित देशों में भी, उनके खेल प्रेमी नागरिकों की संख्या लाखों करोड़ों में होती है। स्पेन में फुटबॉल हो, इंग्लैंड में क्रिकेट हो या अमरीका में बेसबॉल हो या अन्य खेल हों, स्टेडियम दर्शकों से खचाखच भरे होते हैं और वहाँ का माहौल लगातार उत्तेजक बना रहता है। खेल में हार-जीत के बाद प्रशंसकों के बीच प्रायः हिंसा भी भड़क उठती है। कभी-कभी तो ये हिंसा बेक़ाबू भी हो जाती है। यह इस बात का प्रमाण है कि हर खिलाड़ी के पीछे उसके लाखों करोड़ों चाहने वाले होते हैं। आम मान्यता है कि लोकतंत्र में राजनेता हर उस मौक़े का फ़ायदा उठाते हैं जहां भीड़ जमा होती हो। खिलाड़ियों की जीत पर तो फ़ोटो खिंचवाने और स्वागत समारोह करवाने में हर स्तर के राजनेता बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं फिर ये कैसी विडंबना है कि उन्हीं खिलाड़ियों को आज अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए धरने प्रदर्शन करने पड़ रहे हैं।

By विनीत नारायण

वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी। जनसत्ता में रिपोर्टिंग अनुभव के बाद संस्थापक-संपादक, कालचक्र न्यूज। न्यूज चैनलों पूर्व वीडियों पत्रकारिता में विनीत नारायण की भ्रष्टाचार विरोधी पत्रकारिता में वह हवाला कांड उद्घाटित हुआ जिसकी संसद से सुप्रीम कोर्ट सभी तरफ चर्चा हुई। नया इंडिया में नियमित लेखन। साथ ही ब्रज फाउंडेशन से ब्रज क्षेत्र के संरक्षण-संवर्द्धन के विभिन्न समाज सेवी कार्यक्रमों को चलाते हुए। के संरक्षक करता हैं।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें

Naya India स्क्रॉल करें