nayaindia Lok Sabha Election मोदी नरेटिव से ही जीतते हैं तो इसी से हराओं!
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मोदी नरेटिव से ही जीतते हैं तो इसी से हराओं!

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कहानी जो मोदी के इर्द गिर्द घूम रही है उसे विपक्षी एकता के आसपास लाना होगा। अब जो दूसरी तारीख सम्मेलन के लिए हो उसे बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है। वही एक ऐसा हथियार है जिससे विपक्ष मोदी का मुकाबला कर सकताहै। बाकी सब मुर्खों की कल्पनाओं जैसी बाते हैं। 2014 और 2019 ऐसे हीबिना तैयारी के हारे। और इस बार भी अगर पूरी तैयारी और विपक्षी एकजुटतानहीं होगी तो मोदी जी विपक्ष को खर पतवार की तरह काटते हुए निकल जाएंगे।

क्या विपक्ष की समझ में अभी भी नहीं आ रहा कि उसकी हार के क्या कारण हैं? केवल एक और बहुत सरल।

कारण है नरेटिव। एक माहौल, एक कहानी! उसे बदलना होगा। और वह भी बहुत सरल है। बस थोड़ा अपने दायरों से बाहर निकलना होगा।आज नरेटिव ( कहानी ) क्या है! सब सही हो रहा है। कुछ भी गलत नहीं हो रहा।इतना बड़ा रेल एक्सिडेंट भी। ट्रैक चालू कर दिए हैं। रेल मंत्री ने घटनास्थल का दौरा किया। पीएम भी पहुंचे। और सबसे बड़ी बात सीबीआई इंक्वायरीघोषित कर दी है। जांच सिग्नल प्रणाली, रेल पटरियों की देखरेख का अभाव,पुराने डिब्बों, तीन लाख खाली पड़े पदों की वजह से कर्मचारियों की कमी और अन्य सुरक्षा खामियों की होना थी। मगर नरेटिव बना दिया आपराधिक षडयंत्रका।

उड़ीसा पुलिस को चेतावनी जारी करना पड़ी। इतनी भयानक मानवीय त्रासदी मेंशुक्रवार, मस्जिद, मुसलमान का एंगल खोजने वालों के खिलाफ। लेकिन केन्द्र सरकार द्वारा सोशल मीडिया से लेकर गोदी मीडिया तक अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता उल्टे ऐसी चीजों को और हवा देने के लिए आपराधिक मामलों की जांच करने वाली एजेन्सी सीबीआई कोसामने और ले आए।

तो सब मिलाकर कहानी ( नरेटिव) क्या चल रही है कि एक्सिडेंट तो पहले भीहोते थे मगर अब देखो सरकार कितना काम कर रही है। एक सवाल इस पर नहीं हैकि रेल बजट जो अलग से आता था वह क्यों बंद कर दिया? रेल्वे पर हर एंगल सेबात हो जाती थी। सिर्फ विपक्ष ही नहीं सत्ता पक्ष के लोग भी खूब सवालउठाते थे। रेल मंत्री से लेकर, रेल्वे बोर्ड, अफसर, सब स्टाफ चौकन्नेरहते थे। अब तो यह सवाल ही नहीं आता कि रेल्वे में कितनी भर्तियां खालीपड़ी हैं। और क्यों?  देश की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी और देश में सबसेज्यादा नौकरी देने वाले विभाग रेल्वे ने भर्तियां बंद कर रखी हैं। क्यों?

इसलिए कि रेल्वे बेचना है। और खरीदने वाला सेठ कम से कम लायबल्टिज(जिम्मेदारी) चाहता है। इसलिए बुजुर्गों की सबसे ज्यादा महिमा तो गाईजाती है। मध्य प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्य मुफ्त तीर्थ भी करवा लातेहैं। मगर जो वे अधिकार की तरह लेते थे वह वरिष्ठ नागरिक कंसेशन बंद करदिया। समाज के और भी वर्गों को जिन्हें जरूरत होती थी उनका भी बंद करदिया। क्यों?  क्यों कि खरीदने वाले प्राइवेट सेक्टर को कोई बोझ नहींदेना था। वंदे भारत के किराए इसीलिए इतने ज्यादा रखे गए हैं कि क्रोनीकैपटलिस्टों (दोस्त सेठों) को बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़े। उल्टे अपनाबड़ा दिल दिखाने के लिए चाहें तो उसमें दस बीस रूपए कम भी कर सकते हैं।

मीडिया इसे जनता को बड़ी राहत, फलाने सेठ की गिफ्ट बताकर खूब धूम धड़ाकाकर देगा। मगर यह नहीं बताएगा कि बालासोर रेल दुर्घटना से पहले कानपुर केपास इन्दौर पटना एक्सप्रेस की बड़ी दुर्घटना हुई थी। 150 से ज्यादा लोगमरे थे। 2016 की बात है। सात साल हो गए। खुद प्रधानमंत्री ने कहा बड़ीसाजिश है। तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु जिनका प्रचार इन नए वाले अश्विनी वैष्णव से बहुत ज्यादा था ने एनआईए से जो आतंकवादी घटनाओं कीजांच के लिए बना था से जांच की मांग की। लेकिन आज तक एनआईए की रिपोर्ट

नहीं आई है। मगर उसके बाद 2017 में हुए य़ूपी विधानसभा चुनाव में इस एंगलकी चर्चा करके ही माहौल बनाया गया। याद कीजिए यह वही चुनाव था जिसमेंप्रधानमंत्री ने अपना सबसे विवादास्पद बयान श्मशान और कब्रिस्तान दियाथा।

तो यह एक उदाहरण दिया जो सबसे लेटेस्ट ( अभी का) था कि मामला चाहे जितना गंभीर हो मगर कहानी एक ही चलेगी कि सब चंगा सी। बाकी सब गलत हैं मोदी जी सही हैं। चाहे महिला पहलवानों का मामला हो या मणिपुर का, चीन की घुसपैठका, बेरोजगारी, महंगाई किसी का। मीडिया सबका बचाव करेगा। और नरेटिव यहीबनाया जाएगा कि आएगा तो मोदी ही!

विपक्ष को इसी को तोड़ना है। और इसका एक ही तरीका नया नरेटिव सेट करना।शहर में भूत आया भूत घूम रहा है। कल रात यहां दिखा, परसों वहां था किकहानी खत्म करने के लिए एक सुबह एक आदमी को बोरा लेकर नदी की तरफ निकलनापड़ता है ना!  कि देखो बोरे में बंद कर लिया। नदी में फेंकने जा रहे हैं।

कहानी जो मोदी के आसपास घूम रही है उसे विपक्ष को अपनी तरफ लाना होगा। औरयही विपक्ष नहीं समझ रहा। 12 जून को होने वाली विपक्षी एकता का पटनासम्मेलन निरस्त करना पड़ा। क्यों? क्योंकि कांग्रेस सहित कुछ औरपार्टियों ने कहा कि उनके प्रतिनिधि इसमें शामिल होंगे। ये प्रतिनिधिक्या होता है?  जनता मोदी के मुकाबले इनके नाम पर वोट देगी? पिछली बारपटना में ही सीपीआई ( एमएल) के सम्मेलन में जहां सबसे पहले नीतीश नेविपक्षी एकता की बात कही थी वहां कांग्रेस ने सलमान खुर्शीद को पहुंचारखा था। जो विपक्षी एकता पर हनीमून या सेपरेशन जैसा कोई चुटकुला सुना करआ गए थे।

नीतीश ने बहुत सही कहा है कि प्रतिनिधियों को नहीं पार्टी अध्यक्षों कोआना होगा। अगर विपक्षी पार्टियां इसे पहले सम्मेलन को गंभीरता से नहीं लेरहीं तो उन्हें 2024 लोकसभा चुनाव भूल जाना होगा। चुनाव में अब कितने दिनबचे हैं? अगर इसी नवंबर दिसबंर में चार बड़े राज्यों मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना के साथ नहीं करवाया जिसकी संभावना बहुत सेलोगों को दिख रही है तो निर्धारित समय के लिए भी 300 से कम दिन बचे हैं।मार्च 2024 में चुनाव की घोषणा हो जाएगी।

अगर थोड़ा पहले करवाए, समय पूर्व जिसके बारे में राजनीतिक क्षेत्रों केसाथ प्रशासनिक हल्कों में भी सुगबुगाहट है तब तो कोई समय बचा ही नहीं है।और अगर बेरोजगारी, मंहगाई जैसी समस्याएं जिनके ज्यादा विकराल होने कीआशंका बताई जा रही है को महत्व नहीं दिया गया और समय पर ही चुनाव करवाएगए तब भी उनके लिए विपक्ष के पास बहुत ज्यादा समय नहीं है।

मगर पता नहीं क्यों विपक्ष यह समझ नहीं रहा है? क्या अगले लोकसभा चुनावसे भी ज्यादा जिसमें हारने का मतलब है लोकतंत्र, सारी संवैधानिक संस्थाएंऔर खुद विपक्ष पूरी तरह तबाह हो जाना से भी ज्यादा जरूरी कोई काम है?

क्या उसे नहीं पता कि एक विपक्षी एकता का बड़ा सम्मेलन सारे नरेटिव कोबदलने की क्षमता रखता है। और आज की तारीख में यही एक ब्रह्मास्त्र ऐसा हैजिसका तोड़ मोदी जी के पास नहीं है।

खेल पूरा नरेटिव का हो गया है। नहीं तो राहुल ने अपनी तरफ से इन 9 सालोंमें कोई कसर नहीं छोड़ी है। पूरी मेहनत की। अपनी यात्रा से देश भर को नापदिया। हर मुद्दा उठाया। लेकिन नरेटिव पूरी तरह सेट नहीं हो पा रहा।मीडिया पूरी तरह उनके खिलाफ है। वह एक नकली कहानी रोज बुनती रहती है।मोदी, मीडिया और व्ह्टसएप मिलकर एक ऐसा चक्रव्यूह बनाए हैं कि उसे भेद करबाहर आना अकेले किसी के बस की बात नहीं है। उसका मुकाबला तो पूरी विपक्षीएकता से ही करना होगा।

कहानी जो मोदी के इर्द गिर्द घूम रही है उसे विपक्षी एकता के आसपास लाना होगा। अब जो दूसरी तारीख सम्मेलन के लिए हो उसे बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है। वही एक ऐसा हथियार है जिससे विपक्ष मोदी का मुकाबला कर सकताहै। बाकी सब मुर्खों की कल्पनाओं जैसी बाते हैं। 2014 और 2019 ऐसे हीबिना तैयारी के हारे। और इस बार भी अगर पूरी तैयारी और विपक्षी एकजुटतानहीं होगी तो मोदी जी विपक्ष को खर पतवार की तरह काटते हुए निकल जाएंगे।

जनता उनके रथ को तभी रोकेगी जब उसे दूसरा कोई ऐसा ही चमकीला भड़कीला,विजयनाद करता हुआ रथ दिखेगा। थके हुए, श्लथ सैनिकों को कोई सेल्यूट नहींकरता है। गज सेना के सामने गज सेना और अश्वारोहियों के मुकाबले अश्वारोहीही उतारना पड़ते हैं। कैसा ही बड़ा वीर साहसी हो पैदल जाएगा तो युद्ध केलंबे मैदान में एक सिरे से दूसरे सिरे तक नहीं पहुंच पाएगा।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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