मध्यप्रदेश में उपचुनाव,राज्यसभा चुनाव की आहट ने राजनितिक उठापटक के हालात पैदा कर दिए हैं.बड़े बड़े राजनेताओं अब कोरोना की गंभीरता और उसके कारण दिनों दिन बढ़ रहे मामलों की बात करने में रूचि लेना बंद कर राजनितिक अखाड़े की बातों पर आ गए हैं.वर्तमान हालातों पर नज़र डाली जाए तो नेता दिनभर इसी उधेड़बुन में लगे हैं कि कैसे अपने विरोधी दल के नेताओं को नीचा दिखाने और उनकी छीछालेदर करने गढे मुर्दे उखाड़े जाएं और दूसरे का नुकसान किया जाए तो अब मान लिया जाय कि राजनीति का परिदृश्य अब बदल चुका है और दूसरे को गिराने नेता खुद गड्ढे में गिरने तैयार हैं।
इन हालातों में तो यही कहा जायेगा कि ऐसे नेताओं को अपने घर की दीवाल गिरने से दुःख नहीं होता बशर्ते पडोसी की बकरी मर जाए. प्रदेश की 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव की आहट और कोरोना के संकट से उपजी बयानबाज़ी ने प्रदेश की सियासत गरमा दी है.कोरोना के शुरूआती दौर में संकटकाल से गुजरी सत्तासीन कांग्रेस की सरकार चली गई तो अब लॉकडाउन अनलॉक होने के बाद कांग्रेस को फिर से सरकार बनाने की उम्मीदें जाग गईं हैं.राज्यसभा चुनाव और उपचुनाव की बिसात के लिए जहाँ भाजपा का सत्ता-संगठन सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर आईटी सेक्टर को आधार बनाकर कार्यकर्ताओं, नेताओं को जोड़ने का काम करने में जुटी है तो कांग्रेस भाजपा नेताओं की गलतियां खोजकर थाली पीटने का काम करने में..और यही कारण है कि सरकार को कोरोना पर घेरने में असफल कांग्रेसी की आंख की किरकिरी सिर्फ सिंधिया बने हैं।
सिंधिया का ऑडियो वायरल हो या शिवराज का भाषण भाजपा के नेता इन ऑडियो में अपने लिए संजीवनी तलाश रहे हैं.हाल ही में ग्वालियर चंबल अंचल में भाजपा नेताओं के जन्मदिन या अन्य आयोजन पर बधाई के पोस्टर में सिंधिया की फ़ोटो नदारद होने का मामला गरमाया तो कांग्रेस के नेताओं को ठिठौली का एक मौका और मिल गया.कांग्रेस को बाहरी तौर पर भले ही अपने घर की हालात सही और भाजपा कुनबे की फूट दिखाई दे रही हो पर हक़ीक़त इससे उलट है.दरअसल भाजपा के सत्तासीन और संगठन के वरिष्ठ नेता डैमेज कंट्रोल करने पूरी टीम को जमीनी स्तर पर पहुंचाकर सतत मॉनिटरिंग कर रहे हैं तो कांग्रेस के अंदरखाने में जो आग लग रही है उसे बुझाने की जगह खुद कांग्रेसी अपने वर्चस्व के लिए उसमें घी डालने का काम करने में जुटे हैं.उपचुनाव में सबसे अहम भूमिका जिस ग्वालियर चंबल क्षेत्र की है वहां भाजपा को उम्मीदवारों की चिंता से ज्यादा जनता की नब्ज टटोलने का काम करना है बाकी कांग्रेस को उम्मीदवारों की भी दरकार है और जनता में कांग्रेस के प्रति आस्था जगाने की चुनौती भी।
चंबल में राकेश चौधरी का दंगल..
अजय सिंह राहुल ने कई रोज़ पूर्व जिन राकेश चौधरी के कांग्रेस में आने पर आपत्ति दर्ज कराई थी अब उन चौधरी पर कांग्रेस में रार ठन गई है.दिग्विजयसिंह,अजय सिंह और डॉ गोविंद सिंह को आड़े हाथों लेकर राकेश चौधरी अब उटपटांग बयानबाज़ी करने लगे हैं।
इस बयानबाज़ी ने कांग्रेस के अंदरखाने में एक नई लड़ाई छेड़ दी है.इधर प्रदेश की जिन 24 सीटों पर उपचुनाव हिअ उनमें ग्वालियर चंबल अंचल की 16 विस क्षेत्र हैं.इन सीटों पर उम्मीदवारों की तलाश में जुटी कांग्रेस को फिलहाल नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष की दरकार है.कुछ रोज़ पूर्व नेता प्रतिपक्ष को लेकर उठे विवाद पर कांग्रेस के बड़े नेताओं की गुटबाज़ी की जो चर्चायें सुर्खियों में रहीं उनसे निजात दिलाने प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक काफी सक्रिय नज़र आए तो धड़ों में बंट चुकी कांग्रेस के नेता फिलहाल बयानबाज़ी से दूर हैं।
इधर चंबल क्षेत्र के दिग्गज नेता डॉ गोविंद सिंह पहले ही नेता प्रतिपक्ष पर अपनी स्पष्ट राय रकह चुके कि वो सिर्फ कमलनाथ पर ही अपनी स्वीकार्यता रखेंगे यदि कोई दूसरा बनाया जाएगा तो चंबल में कांग्रेस की राजनीति में फिर एक नया दंगल शुरू होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता.गुरुवार पीसीसी में जिन दो दिग्गज कांग्रेसियों सज़्ज़न सिंह वर्मा और अजय सिंह राहुल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भाजपा को कोसने का काम किया वो खुद कांग्रेस में कहीं न कहीं अपने बजनदार किरदार की तलाश में जुटे हैं और पूर्व में दोनों के बीच अपनी ही पार्टी में आपसी संबंध को लेकर विरोधाभास सामने आता रहा।
खुद के प्रयास से ज्यादा जनता से आस
पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने चुनाव के लिए जिन प्रमुख कांग्रेसियों को विधानसभावार जिम्मेदारी दी है उनमें पूर्व स्पीकर एनपी प्रजापति, पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा, डॉ गोविंद सिंह, सुखदेव पांसे, पीसी शर्मा, विजयलक्ष्मी साधौ, जीतू पटवारी, सुरेश पचौरी, संगठन प्रभारी चंद्रप्रभाष शेखर और महासचिव राजीव सिंह शामिल हैं.प्रजापति और वर्मा को चुनाव प्रबंधन और समन्वय का जिम्मा भी है.सीटों के प्रभारी नियुक्त किए जा चुके हैं।
उपचुनाव वाली सीटों पर प्रत्याशी खोजने के काम सतत जारी है तो 17 जून को विधायक दल की बैठक भी बुलाई गई है जो प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक की मौजूदगी में होगी.इस बैठक में राज्यसभा और उपचुनाव को केंद्र में रखकर फैसले लिए जाने की संभावनाएं हैं.फिलहाल उपचुनाव वाले विधानसभा क्षेत्रों की जबाबदेही में मेहगांव की जिम्मेदारी डॉ गोविंद सिंहसांची की सुखदेव पांसे, हाटपिपल्या – सज्जन सिंह वर्मा,सांवेर – जीतू पटवारी,सुरखी- हर्ष यादव,डबरा -विजयलक्ष्मी साधौ,सुवासरा-प्रियवत सिंह,आगर-जयवर्धन सिंह,सुमावली -ब्रजेंद्र सिंह राठौर,जौरा-लाखन सिंहऔर मुंगावली सीट की जिम्मेदारी सचिन यादव को दी गई है.इन जिम्मेदारियों के बीच यहां एक सवाल यह भी निकलकर सामने आता है कि जिन पूर्व मंत्रियों को जिन विस सीटों की जबावदेही दी गई है उन क्षेत्रों में उनका प्रभाव भी कभी रहा या फिर उन्हें नए सिरे से जनता के बीच उन्हीं कार्यकर्ताओं के भरोसे जाना है जो पहले से ही क्षेत्र में सक्रिय हैं.यदि ऐसा है तो फिर इन प्रभारियों की भूमिका कितनी कारगर साबित होगी ये भविष्य के गर्त में है।
पहले अपना घर तो मजबूत हो
फिलहाल राज्यसभा और विधानसभा उपचुनाव की कांग्रेस की रणनीति और घर बैठे बयानबाज़ी कर भाजपा को घेरने की योजना को मीडिया में भले ही सुर्खियां मिल रहीं हो पर बूथ मैनेजमेंट में आज भी भाजपा कांग्रेस से कई कदम आगे है.अब कांग्रेसी नेताओं को सिर्फ उस पल का इंतजार है जब या तो भाजपा मंत्रिमंडल का गठन करे या राज्यसभा के चुनाव हों.क्योंकि दोनों ही परिस्थितियों में कुछ न कुछ भाजपा के असंतुष्ट सामने आएंगे और कांग्रेस को सेंधमारी का एक मौका मिल जाएगा।
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य से साफ है कि कांग्रेस और भाजपा को कोरोना महामारी के संक्रमण फैलने से ज्यादा चिंता एक दूसरे के कुनबे में फूटन डालने या होने की है.कांग्रेस को जहां भाजपाई हुए बागी कांग्रेसी विधायक और ज्योतिरादित्य सिंधिया का पतन देखने की ललक है वहीं अपने कुनबे में बिखराव की कोई चिंता नज़र नहीं आ रही.ऐसे में भाजपा के मैनेजमेंट संभालने वाले नेता कांग्रेस के अन्य असंतुष्ट विधायकों से संपर्क बनाने भरपूर जोड़तोड़ करने में जुटे हैं और उपचुनाव तक एक और बड़ा धमाका करने की योजना पर अमल हो रहा है पर जहां कांग्रेस को अपने घर को सुरक्षित और मजबूत पहले करना चाहिए तो वो दूसरे का घर टूटने का इंतजार कर रही है।