मध्य प्रदेश

कमिटमेंट ‘प्रियंका’ का दावँ पर ‘कमलनाथ’ का मैनेजमेंट...

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कमिटमेंट ‘प्रियंका’ का दावँ पर ‘कमलनाथ’ का मैनेजमेंट...
भोपालI प्रियंका गांधी ने लखीमपुर से लेकर लखनऊ और अब वाराणसी से कांग्रेस का झंडा बुलंद कर जो कमिटमेंट उत्तर प्रदेश से किया.. आखिर कांग्रेस की इस नई लाइन को  मध्यप्रदेश में  कौन समझेगा और उसे आगे बढ़ाएगा .. क्या कमलनाथ का मैनेजमेंट 4 चुनाव में 28 उपचुनाव  की भरपाई कर विधानसभा 2023 से पहले कांग्रेस को मजबूती के साथ खड़ा करेगा.. तो क्या  बदलती कांग्रेस के लिए पुरानी पीढ़ी अभी मध्यप्रदेश में युवा के हाथ में पार्टी का नेतृत्व नहीं सौंपेगी.. यह सवाल इसलिए क्योंकि प्रियंका ने किसानों के मुद्दे को बीजेपी विरोधी दूसरे राजनीतिक दलों की तुलना में पहले लपक कर जोर शोर से उठाया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी तक जा पहुंची.. मध्यप्रदेश में 2018 से पहले बने कुछ ऐसे ही हालात जिसने सियासत की  धुरी किसान को बना दिया था.. उस वक्त राहुल गांधी ने विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस के आंदोलन को धार देकर भाजपा और शिवराज की परेशानी में इजाफा कर दिया था.. फिलहाल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस चेहरा कार्यकर्ता मजबूत संगठन के साथ सपा और बसपा की तुलना में पहचान के संकट से जूझ रही.. वह भी तब जब विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी .. इसे लोकसभा चुनाव 2024 से पहले निर्णायक माना जा रहा है... इस बीच मध्यप्रदेश में खंडवा लोकसभा समेत विधानसभा के 3 अन्य उपचुनाव  उम्मीदवारों के ऐलान के साथ रफ्तार पकड़ रहा है.. ऐसे में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ 12 अक्टूबर को खंडवा से प्रचार का आगाज करेगें..  उपचुनाव को लेकर भाजपा कांग्रेस में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला बदस्तूर आगे बढ़ रहा फिर भी चुनाव मैदान में उम्मीदवारों का भविष्य तय करने के लिए जरूरी भाजपा के मुकाबले कांग्रेस नेताओं की कमजोर मौजूदगी नई सवाल भी खड़े कर  चुकी है.. कॉन्ग्रेस को अपने प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के नेतृत्व उनके बुलंद हौसलों  और मैनेजमेंट के साथ ज्यादा भरोसा भाजपा सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी, कमजोर कड़ियों और खामियों पर है... कमलनाथ पिछले भोपाल दौरे के दौरान ही उपचुनाव के अपने स्टार प्रचारकों के साथ नेताओं की तैनाती सुनिश्चित कर मैदानी जमावट को अंतिम रूप दे चुके..  बागियों से जूझ रही कांग्रेस के अनुभवी जिम्मेदार नेताओं में शामिल पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव जरूर खंडवा और कांतिलाल भूरिया जोबट में जूझते नजर आ रहे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पृथ्वीपुर में पार्टी उम्मीदवार का फॉर्म भराने  जा पहुँचे.. सारे गिले  शिकवे  भुलाकर कमलनाथ की एंट्री से पहले पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह रैगांव और पृथ्वीपुर पहुंच रहे.. इसे कमलनाथ का मैनेजमेंट कहे या फिर कॉन्ग्रेस  दिग्गजों को साथ लेकर चलने की मजबूरी जो सभी क्षत्रपों को काम पर लगाने के साथ फोकस उस खंडवा सीट पर बनाया... जो कांग्रेस से ज्यादा कमलनाथ की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा से नई चुनौती के तौर पर जुड़ चुकी है.. कांग्रेस के नाथ की कोर टीम इसी खंडवा में सक्रिय तो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष खंडवा से टिकट के दावेदारों से खुद को बाहर कर लेने वाले अरुण यादव भी क्षेत्र में अपने प्रतिस्पर्धी निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा के साथ  गलबहियाँ कर पार्टी उम्मीदवार राजनारायण को ताकत देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं... वह बात और है कि सियासी फसल तैयार कर उसे खड़ी करने के बाद किसी और द्वारा काट लिए जाने की उनकी कसक प्रचार के दौरान सामने आ चुकी है.. ऐसे में सवाल जब उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी  कमिटमेंट के साथ  कार्यकर्ताओं में ना सिर्फ जोश भर सियासी संदेश दूसरे राज्यों तक पहुंचा रही.. तब सवाल आने वाले समय में मध्यप्रदेश में प्रियंका की लाइन को कौन आगे बढ़ाता हुआ नजर आएगा..

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यानी जमीन में संघर्ष की कमान किसी युवा के हाथ में होगी... उत्तर प्रदेश में लखीमपुर कांड के बाद प्रियंका के समर्थन में राहुल गांधी पहुंचे लेकिन पंजाब और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी सक्रिय नजर आए .… मध्य प्रदेश जहां भले ही कांग्रेस की सरकार नहीं लेकिन कमलनाथ दिग्विजय सिंह और दूसरे दिग्गज नेताओं की कमी नहीं आखिर उत्तर प्रदेश में अभी तक नजर  कोई भी क्यों नहीं आया.. माना जा सकता है कि संगठन के निर्देश नहीं होने और गाइडलाइन के अभाव में यह सवाल बेमानी फिर भी... जब इस्तीफा स्वीकार नहीं होने के बावजूद पंजाब से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू लखीमपुर पहुंच सकते हैं तो फिर मध्य प्रदेश से कोई क्यों नहीं.. दीपेंद्र सिंह हुड्डा और बतौर चुनाव प्रभारी भूपेश बघेल अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं... सवाल कमलनाथ के मुख्यमंत्री रहते और  सरकार के तख्तापलट के बाद भी राहुल गांधी यदि अभी तक मध्य प्रदेश नहीं आए तो फिर उसकी वजह क्या है .. पार्टी में नेताओं की अपनी जिम्मेदारी बावजूद बड़ा सवाल क्या राहुल और प्रियंका तक मध्य प्रदेश के किसी युवा नेता की इतनी पैठ नहीं.. कि वह संघर्ष के दौरान उत्तर प्रदेश में उनके साथ नजर आए.. वजह कमलनाथ  या फिर पार्टी नेतृत्व की मनाही... यदि कोई चेहरा प्रियंका के साथ उत्तर प्रदेश की सड़क.. मंच और आंदोलनकारियों के साथ नजर आता तो क्या वह चेहरा चार उपचुनाव में पार्टी के लिए प्रचार में ताकत साबित नहीं होता... वर्किंग कमेटी और 4 उप चुनाव कांग्रेस को मध्यप्रदेश में देगी नई दिशा..! कांग्रेस वर्किंग कमेटी की 16 अक्टूबर को प्रस्तावित बैठक से पहले प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में माहौल बनाने की कोशिश की.. सत्ताधारी भाजपा ही नहीं उसके विरोधी सपा और बसपा गंभीरता से लेने को मजबूर ना हुए हो.. लेकिन G23 का हिस्सा बने कांग्रेस नेताओं के लिए जरूर संदेश सामने आ चुका है कि  अनुभवी और वरिष्ठ नए सिरे से अपनी रणनीति बना ले या फिर जितनी जल्दी हो सके युवाओं के लिए रास्ता छोड़ दें.. कांग्रेस को बदलने के लिए संगठन में जरूरी फैसले लिए जाने की आवश्यकता राहुल गांधी पहले ही जता चुके थे.. इसके बाद ही युवा चेहरे के तौर पर कन्हैया कुमार और जिग्नेश जैसे नेताओं की एंट्री कांग्रेस में हो चुकी है.. जो राहुल की टीम में बड़ा किरदार निभाने को तैयार ..तो दीपेंद्र सिंह हुड्डा प्रियंका के साथ कदमताल कर रहे.. जब राहुल गांधी ने प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश के प्रभारी की कमान सौंपी थी.. तब सह प्रभारी के तौर पर तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव ज्योतिरादित्य के बारे में किसी ने नहीं सोचा था कि वह कांग्रेस छोड़ देंगे.. प्रियंका ने अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए संगठन को कितना मजबूत किया और कार्यकर्ताओं में कितना जोश भरा इसका आकलन जल्दबाजी.. बतौर प्रभारी प्रियंका के मूवमेंट पहले भी सुर्खियां बने लेकिन निरंतरता के अभाव में उसे गंभीरता से नहीं लिया गया.. यही कारण है कि मजबूत बीजेपी खासतौर से योगी मोदी और शाह के सामने कांग्रेस राहुल प्रियंका की जोड़ी अभी तक उत्तर प्रदेश में भी नहीं टिक पाई थी थी..  अब लखीमपुर कांड के बाद एक्टिव नजर आई प्रियंका गांधी भाजपा के लिए चुनौती ना सही लेकिन उन्होंने सपा बसपा को कहीं ना कहीं सोचने को जरूर मजबूर कर दिया.. भाजपा की इंटरनल पॉलिटिक्स के साथ विपक्ष खासतौर से सपा कांग्रेस मैं प्रतिस्पर्धा बनाए रखते हुए उसे  एकजुट नहीं होने देने की उसकी रणनीति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.. सपा बसपा जब लखीमपुर कांड में जनता के बीच पहुंचने में देरी कर गए.. बावजूद इसके मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का प्रियंका का यह दौरा पहला नहीं था.. लेकिन परिस्थितियां जन्य बदलते राजनीतिक परिदृश्य में इस बार नया कुछ अलग जरूर माना जा रहा.. चाहे फिर इसे लखीमपुर कांड, कई महीनों से जारी किसान आंदोलन और उत्तर प्रदेश चुनाव की तैयारी से जोड़ कर देखा जाए... या फिर किसान न्याय यात्रा का मंच ...सामने पंडाल में मौजूद भीड़ का मापदंड और प्रियंका द्वारा उठाए गए जीवंत और ज्वलंत मुद्दे... यही नहीं प्रियंका का अंदाज चाहे फिर मुस्कुराना कार्यकर्ता और जनता को लुभाना या फिर भाजपा और उनके नेताओं के खिलाफ आक्रोश व्यक्त कर सियासी माहौल बनाना ..उत्साही समर्थकों के बीच प्रियंका के चेहरे की चमक.. उनके द्वारा वर्ग विशेष का जिक्र चाहे फिर दलित, गरीब, महिला, किसान मल्लाह, निषाद ही क्यों ना हो... चुनाव के लिए जरूरी जातीय समीकरण दुरुस्त करने की कोशिश साफ देखी जा सकती थी.. भाजपा की चुनावी रणनीति और उनके द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दों को ध्यान में रखते हुए प्रियंका ने उपचुनाव से आगे चिंता देश को बचाने को लेकर जताई.. तो गरीब अमीर का फर्क बताया यही नहीं बढ़ती महंगाई पेट्रोल डीजल गैस और दूसरी योजनाओं पर सवाल खड़ा कर मोदी सरकार की दुखती रग पर भी हाथ रखा.. पिछले एक सप्ताह से कॉन्ग्रेस में जोश भरने वाली प्रियंका ने वाराणसी के मंच से दिल्ली से वाया लखनऊ लखीमपुर के अपने पॉलीटिकल स्टैंड की याद ताजा कर योगी सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी... तो लगे हाथ केंद्रीय मंत्री की गिरफ्तारी की मांग का दबाव बनाकर मोदी सरकार को भी खूब घेरा.. प्रियंका ने डरना नहीं वाली राहुल गांधी की  लाइन को भी आगे बढ़ाया.. यह सब उत्तर प्रदेश की धरती और मोदी के संसदीय क्षेत्र से किसी चौंकाने वाली बात से कम नहीं माना जाएगा.. तो प्रियंका ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना दिया यह कहना भी बहुत जल्दबाजी होगी.. फिर भी प्रियंका की समन्वय की सियासत के लिए जरूरी संवाद,  सड़क पर सक्रियता का संदेश और इस सियासी सलाह को विरोधियों से ज्यादा कांग्रेस के अपने नेताओं को समझना होगा.. खासतौर से जब पंजाब में अनुभवी अमरिंदर सिंह से मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन ली गई.. राजस्थान से लेकर छत्तीसगढ़ में कॉन्ग्रेस की नई दिशा से इनकार नहीं किया जा सकता.. तब सवाल मध्य प्रदेश को लेकर खड़े होते हैं ..जहां कांग्रेस की सरकार नहीं है ..कांग्रेस के सारे सूत्र कमलनाथ के पास है ...दूसरे बड़े सीनियर नेता दिग्विजय सिंह जिन्हें पूरे देश में महंगाई जैसे मुद्दे पर माहौल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.. वह भी समय निकाल कर मध्यप्रदेश उपचुनाव पर अपनी  पैनी नजर लगाए हुए... कमलनाथ की गैरमौजूदगी में इसे कांग्रेस की अघोषित कमान संभालना माना जाए या भविष्य की कांग्रेस की जमावट के लिए जरूरी प्रवास.. राजा उसी तरह सक्रिय है जैसे किसी चुनाव से पहले वह फ्रंट फुट पर रहने की वजह पर्दे के पीछे रहकर अपनी जमावट करते रहे.. एक बार फिर G23 जब चर्चा में और कांग्रेस वर्किंग कमेटी की तारीख तय कर दी गई है..  इस बैठक के बाद संभावना व्यक्त की जा रही कि कांग्रेस की कमान कैसे किसके हाथ में सौंपी जाए यह लाइन  पार्टी  के संवैधानिक तौर पर आगे बढ़ा दी जाएगी.. तब देखना दिलचस्प होगा कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे नेता राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की लाइन को कैसे आगे बढ़ाते हैं.. जो व्यक्तिगत तौर पर सोनिया-राहुल के संपर्क में तो जिन्होंने G23 से भी दूरी नहीं बनाई..ऐसे में कई राज्यों में चल रहे सियासी घमासान के बीच  संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने ऐलान कर दिया कि 'कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक शनिवार, 16 अक्तूबर को सुबह 10 बजे होगी, इस बैठक के एजेंडे में देश की वर्तमान राजनीतिक स्थिति, आगामी विधानसभा चुनाव और पार्टी के संगठनात्मक चुनाव शामिल होंगे। मध्य प्रदेश में 4 उपचुनाव के बीच कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर छिड़ी इस बहस से क्या कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति निकट भविष्य में नेतृत्व परिवर्तन की मांग जोर पकड़ेगी.. इसके लिए उपचुनाव के परिणामों का इंतजार जरूर करना होगा.. तो क्या यह भी एक वजह है ..जो अरुण यादव ने खुद को चुनाव मैदान से बाहर कर पार्टी उम्मीदवार को जिताने का संकल्प लिया.. लंबे समय से घर बैठा दिए गए कांग्रेस के युवा नेता और ब्राह्मण चेहरा मुकेश नायक को भी कमलनाथ खंडवा   तक खींच लाए है.. मुकेश नायक यहां उम्मीदवार से ज्यादा अरुण यादव के मुरीद बन कर सामने आए हैं ..तो अरुण यादव के जोड़ीदार रहे पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी उप चुनाव के प्रचार में सक्रिय हो रहे.. ऐसे में कमलनाथ और उनके समर्थकों की कोशिश होगी कि वह कांग्रेस के कब्जे वाली 2 विधानसभा सीट रैगांव और पृथ्वीपुर बचाते हुए खंडवा लोकसभा का चुनाव जीत ले.. जिससे 2023 विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस अध्यक्ष के उत्तराधिकारी की तलाश पर विराम लगाया जा सके.. सवाल प्रियंका गांधी ने जिस कमिटमेंट के साथ उत्तर प्रदेश में पूरी ताकत झोंक दी है.. क्या मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस कमलनाथ के नेतृत्व और उनकी मौजूदगी में उपचुनाव से आगे बदलती कांग्रेस के अंदर जमीन पर सड़क की लड़ाई लड़ने में सक्षम है.. या दमोह पैटर्न पर कमलनाथ का मैनेजमेंट उपचुनाव में रंग लाएगा.. और उनके प्रतिस्पर्धी और विरोधियों का मुंह बंद हो जाएगा.. जोबट में कांतिलाल भूरिया ने मोर्चा संभाल रखा लेकिन उनके परिवार से ही पार्टी नेतृत्व को चुनौती मिल रही .. यहां भी कमलनाथ का मैनेजमेंट दांव पर.. मालवा निमाड़ क्षेत्र में दो उपचुनाव जीतू पटवारी जैसा तेजतर्रार नेता और प्रखर वक्ता ऐसे में समय निकालकर धार्मिक यात्रा पर.. तो सवाल क्या कांग्रेस उप चुनाव में भाजपा को शिकस्त देकर बड़े लक्ष्य 2000 23 की तैयारी में या फिर उपचुनाव के जरिए क्षत्रप और दिग्गज नेताओं के साथ कमलनाथ कैबिनेट के कई पूर्व मंत्री अपनी नई भूमिका को लेकर भी जमावट में जुट चुके हैं.. क्या इनमें नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष के उत्तराधिकारी के वो दावेदार भी शामिल है.. जो पहले अपने दावा मजबूत साबित करते रहे.. सवाल चुनाव के बाद भी कमलनाथ दोनों पद पर बने रहेंगे या फिर नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष में से मनपसंद पद अपने पास रखते हुए दूसरा छोड़ देंगे.. तो उनकी दिलचस्पी राज्य की राजनीति में ज्यादा या केंद्रीय सियासत और और गठबंधन की सियासत में होगी.. यह सवाल   भी खड़ा होता रहा.. कमलनाथ के पिछले लंबे समय से भोपाल से ज्यादातर समय बाहर रहने पर उनका प्रबंधन सवालों के घेरे में भी रहा है.. सोशल मीडिया को छोड़ दिया जाए तो चाहे फिर मोर्चा मीडिया मैनेजमेंट का हो या फिर प्रदेश कांग्रेस दफ्तर से कार्यकर्ताओं का मोहभंग होना.. दिग्विजय सिंह की सक्रियता और दूसरे नेताओं द्वारा किए जाने वाले छुटपुट धरना प्रदर्शन की औपचारिकता को छोड़ दिया जाए तो 15 महीने सरकार में रहने के बाद कांग्रेस कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर पाई है.. जिससे भाजपा सरकार की घेराबंदी संभव हो पाती.. जबकि किसान और महंगाई बड़ा मुद्दा बन कर सामने.. वह भी तब जब कोरोना काल में मोदी और शिवराज सरकार से बढ़ती अपेक्षाओं के बीच उनके  खिलाफ जनता में नाराजगी से इनकार नहीं किया जा सकता.. ऐसे में क्या उपचुनाव के परिणाम यह संकेत  जरूर देंगे कि कमलनाथ और शिवराज  में से जनता के बीच पकड़ किसकी मजबूत है.. कौन ज्यादा लोकप्रिय है ... पार्टी में किसकी स्वीकार्यता बनी रहेगी.. कांग्रेस और भाजपा किसका प्रबंधन अच्छा है.. किसके कार्यकर्ताओं में जोश है.. किसके प्रति जनता में नाराजगी ज्यादा है.. भाजपा ने चार उपचुनाव से आगे जब 2023 विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी है.. तब क्या कांग्रेस राष्ट्रीय नेतृत्व को अपनी रणनीति बनाने के लिए इन उपचुनाव के परिणाम का इंतजार रहेगा.. यह सवाल इसलिए क्योंकि पंजाब राजस्थान छत्तीसगढ़ में मची उठापटक के बावजूद कॉन्ग्रेस से ज्यादा राहुल गांधी संदेश दे रहे हैं ..ऐसे में उत्तर प्रदेश से प्रियंका का कमिटमेंट क्या राष्ट्रीय राजनीति के साथ खासतौर से मध्य प्रदेश कांग्रेस  में  भी  निकट भविष्य में बड़े बदलाव का संकेत दे चुका है... सवाल आखिर राहुल प्रियंका के साथ मध्य प्रदेश से वह कौन स्वीकार्य और सक्षम जुझारू नेता होगा जिसके नेतृत्व में पार्टी नई अपेक्षाओं के साथ नई चुनौतियों से निपटने के लिए कदमताल करेगा..
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