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उसूल खूंटे पर...ललक सत्ता पाने की...!

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उसूल खूंटे पर...ललक सत्ता पाने की...!
मध्यप्रदेश में दिनों दिन बढ़ रहे कोरोना संक्रमण के बीच राजनीतिक दलों की विचारधारा भी संक्रमित नज़र आने लगी है.इन दिनों जो कुछ भी राजनीतिक मंच पर घटित हो रहा उसे प्रदेश की राजनीति का वैचारिक और सैद्धान्तिक रूप से संक्रमण ही माना जाएगा.अब न राजनीति की कोई सकारात्मक चाल बची,न चरित्र नज़र आ रहा और न कोई ऐसा चेहरा जिसे देखकर लोग कहें कि उम्मीद अभी बाकी है। इससे इतर यदि कुछ नज़र आ रहा तो वो है सिर्फ सत्ता के सिद्धान्तों को ताक पर रखने वाला संघर्ष.यहां अब ये कहना बड़ा ही कठिन होगा कि राजनीति में विचारों का कोई सिद्धान्त बचा है या फिर अपने स्वार्थ के लिए राजनीतिक दल अपने नैतिक मूल्यों को सुविधानुसार बना और बिगाड़ लेते हैं.सत्ता हो या विपक्ष सबकी कथनी करनी में वर्तमान परिवेश में एक बड़ा साफ अंतर दिखाई पड़ता नज़र आ रहा है। तकनीकी तौर पर राजनीति का परिमार्जन हो चुका है और इसका एक मकसद बचा दिखाई पड़ता है जिसे सत्ता संघर्ष ही कहा जाएगा.ये सत्ता की लोलुपता वाली नीति यही संदेश छोड़ती जा रही है कि आज भी सत्ता हासिल करने अपने पराये का कोई आधार नहीं बस साम,दाम,दंड भेद और भय ही इसके मूल में है यानी रियासतकालीन युग में सत्ता पाने के जो उदाहरण हम महाभारत,रामायण, मुगलकाल और स्वतंत्रता से पहले से पड़ते आ रहे हैं वही लोकतंत्र में भी प्रासंगिक है.खैर वर्तमान हालातों में मध्यप्रदेश की सियासत में भी ऐसे ही कई उदाहरण सामने आते जा रहे जहां लोकतंत्र की दुहाई देने वाले सियासतदार अपने निज स्वार्थ के लिए या सत्तासीन होने सुदृढ़ लोकतंत्र की बुनियाद को लेकर बनाए गए राजनीतिक दलों के मूल्यों,सिद्धान्तों और विचारधारा को ताक पर रखकर कुछ भी कर गुजरने को तैयार दिखाई दे रहे हैं। मध्यप्रदेश में राजनीतिक उठापटक के बीच दलों के सिद्धांत मूल्य और पार्टी गाइडलाइन सब खूंटी पर टंगे नज़र आ रहे हैं,मकसद है तो सिर्फ राज्यसभा और उपचुनाव में 24 सीटों पर जीत कैसे हासिल की जाए.इससे थोड़ा पहले के हालातों पर नज़र डालें तो कांग्रेस सरकार को गिराने जो घटनाक्रम हुआ वो स्वस्थ्य लोकतंत्र का हिस्सा कभी नहीं माना जा सकता.कांग्रेस सरकार बाहर हो गई भाजपा सरकार आई पर तत्कालीन हालातों में होने वाले राज्यसभा चुनाव और 24 विधानसभा उपचुनाव के लिए फिर उठापटक शुरू हो गई.कांग्रेस हो या भाजपा या फिर अवसर के मुताबिक निर्णय लेने वाली बसपा,सपा और जनता के सेवा का दंभ भरने वाले जनप्रतिनिधि.वर्तमान हालातों में सबने अपने फायदे के लिए नैतिक मूल्यों,पार्टी सिद्धान्तों को ताक पर रख दिया है और एक दूसरे को नीचा दिखाकर पटखनी देने अब उन अवसरवादियों की तलाश करना शुरू कर दी है जो अपने निजी स्वार्थों के लिए कभी इस पाले में और कभी उस पाले में नज़र आते रहे हैं। तू डाल डाल,मैं पात पात मध्यप्रदेश में भाजपा ने जहां कांग्रेस की सरकार गिराने आधा दर्जन मंत्रियों सहित कांग्रेस की रीढ़ की हड्डी यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने पाले में कर लिया तो कांग्रेस भी अब भाजपा के मंत्रिमंडल विस्तार के बाद उसके अंदरखाने में विद्रोह होने की उम्मीदें लगाये हैं जिससे उन्हें भी भाजपा के बागी नेता मिल सकें.दरसअल जिन सीटों पर उपचुनाव होना है वहां कांग्रेस मजबूत दावेदारों की तलाश में जुटी है.इधर भाजपा को हमेशा कोसने और कांग्रेस सरकार को समर्थन दे रही बसपा प्रमुख का ऑपरेशन लोटस के बाद मानो हृदय परिवर्तन हो गया.उनके दोनों विधायक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा का गुणगान करते नज़र आने लगे। जो चार निर्दलीय और एक सपा विधायक भी कांग्रेस सरकार की लाठी बने थे उन्होंने भी बदलाव की हवा समझी और भाजपा के पाले में नज़र आने लगे.अब इसे भाजपा का जादू कहा जाएगा कि नेताओं की अवसरवादिता जो इतने सारे विरोधी विधायकों का हृदय परिवर्तन अचानक हो गया.अपने नेताओं के साथ सैकड़ों की संख्या में अन्य दलों के छोटे,मझोले नेताओं को भाजपाई बनाने का दौर सतत चालू है। कांग्रेस की बसपा में तोड़फोड़.. फिलहाल कांग्रेस के हाल खिसियानी बिल्ली खंभा नोंचे वाले हैं उसे भाजपा के घर में तोड़फोड़ करने का मौका नहीँ मिला तो बसपा नेताओं को तोड़ने के काम शुरू कर दिया.दरअसल जिन 24 सीटों पर चुनाव होना हैं उनमें सबसे ज्यादा 16 सीटें उस ग्वालियर चम्बल अंचल से हैं जहां पर कांग्रेस,भाजपा के साथ बसपा के जनाधार से भी इनकार नहीं किया जा सकता.उपचुनाव की आहट हुई तो बसपा प्रमुख मायावती ने साफ कर दिया कि पार्टी सभी 24 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ,दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेस नेतृत्व ये बखूबी समझता है कि बसपा का मैदान में उतारना कांग्रेस के लिए नुकसानदेह हो सकता है सो कांग्रेस बसपा के उन नेताओं को अपने साथ लाने एड़ी चोटी का जोर लगा रही जो बसपा से चुनाव लड़कर दूसरे या तीसरे नंबर पर रह चुके हैं और इन्हीं नेताओं से कांग्रेस को उम्मीदें हैं जो सिर्फ विधानसभा चुनाव लड़ने अपनी पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं। कभी मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके ग्वालियर चम्बल के 73 वर्षीय जिस नेता बालेंदु शुक्ल की कांग्रेस ने मजबूरी में वापसी कराई है वो पिछले 12 सालों में बसपा और भाजपा से घूमकर लौटे हैं.इसी तरह जब सिंधिया और उनके 22 विधायक कांग्रेस से बगावत कर चले गए और उपचुनाव की सुगबुगाहट शुरू हुई तो कांग्रेस ने ग्वालियर चंबल क्षेत्र के बहुजन वर्ग को साधने फूलसिंह बरैया को अपने खेमे में लेकर राज्यसभा का डमी उम्मीदवार बना दिया.बरैया भी 2003 के बाद से समता विकास पार्टी बनाकर,लोकजन शक्ति पार्टी या बहुजन संघर्ष दल में लंबा संघर्ष ही करते रहे पर उन्हें स्थायी ठिकाना नहीं मिला.अब दलीय वोटों की गणित से ये स्पष्ट हो गया कि राज्यसभा बरैया नहीं पहुंच पाएंगे सो भाजपा भी चुटकियां लेने लगी.इधर बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और विधायक मनीराम धाकड़ कहते हैं कि बहुजन वर्ग पर बरैया का कोई विशेष प्रभाव नहीं हैं और क्षेत्र के बहुजन सिर्फ बसपा को ही वोट देंगे।  चर्चायें हैं कि नगर पंचायत अध्यक्ष रहीं और पिछला विस चुनाव डबरा से लड़ने वाली सत्यप्रकाशी पड़सेरिया को कांग्रेस में ये कहकर लाया गया कि उन्हें कांग्रेस की बागी इमरती देवी के खिलाफ चुनाव लड़ाया जाएगा। इन्हें पिछले चुनाव में बसपा से 28000 वोट मिले थे.करैरा विस से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़कर करीब 45 हज़ार वोट हासिल करने वाले प्रागीलाल जाटव को कांग्रेस में शामिल कर लिया गया.कांग्रेस के लिए कभी घोर संकट का कारण बने चौधरी राकेश सिंह की भाजपा से होते हुए जब कांग्रेस में वापसी होने लगी तो कांग्रेस के अंदरखाने में ही बवाल मच गया सो मामला फिलहाल चौधरी और कांग्रेस के नेताओं की एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की बयानबाजी पर लटका है.सुनने में आ रहा कि चौधरी बसपा से चुनाव मैदान में भाग्य आज़मा सकते हैं.अब यहां सवाल यह भी खड़ा होता है कि वर्षो से पार्टीलाइन पर चलने वाले समर्पित,निष्ठावान और ईमानदार नेताओं को अवसरवादियों के पीछे की लाइन में खड़ा किया जाएगा और क्या ये कर्मठ कार्यकर्ता ऐसे नेताओं से तालमेल बैठा पायेंगे जिन्हें उनके ऊपर बैठा दिया गया है.सिर्फ सत्ता की लालच ने लोकतंत्र को खूंटी पर टांगकर अपने पार्टी मूल्यों,सिद्धांत और समर्पण को दरकिनार कर दिया है.आगामी होने वाले उपचुनावों में निष्ठावान,समर्पित कार्यकर्ताओं के अलावा जनता भी शायद यही सवाल पूंछेगी कि क्या यही लोकतंत्र के रखवालों का असली चेहरा है.अब सभी दल एक दूसरे के घरों में सेंधमारी करने ताक लगाए बैठे हैं। ऑडियो, वीडियो पॉलिटिक्स कुछ दिनों से प्रदेश की राजनीति में ओछी बयानबाज़ी का दौर जारी है.कोई किसी का ऑडियो वायरल कर रहा तो कोई किसी के एडीटेड वीडियो डालकर राजनीति करने में मस्त है.छोटे नेता अपने बड़े नेताओं को सामूहिक तौर पर बेइज़्ज़त करने में भी परहेज नहीँ कर रहे.हाल ही में सरकार गिराने वाले एक ऑडियो को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का बताकर तो दूसरा पैसों के लेनदेन वाला ऑडियो ज्योतिरादित्य सिंधिया का होने की बात कहकर राजनीतिक गलियारों में उठापटक मची रही। कांग्रेस इसकी जांच कराने पुलिस के पास पहुंच गई,एक अन्य ऑडियो और वीडियो वायरल हुआ जिसमें बताया गया कि पूर्व मंत्री इमरती देवी एक व्यक्ति को आंख फोड़ने की धमकी दे रहीं हैं और अवैध उत्खनन की बात कर रहीं.एक बयान पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर एफआईआर होने के मामला हो या ग्वालियर के विधायक मुन्नालाल गोयल के साथ मारपीट की बात सभी मामलों में राजनीति का जो ओछापन देखने मिला उसे साफ सुथरे लोकतंत्र का हिस्सा नहीँ कहा जा सकता।
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