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फिर विवादों में मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय

ByNI Political,
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फिर विवादों में मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय
मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय एक बार फिर विवाद के जद में है। कोरोना के कारण अवरूद्ध हुए अपना कोर्स पूरा कराने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे 8 छात्रों को विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया है। इस पर देश भर के रंगकर्मियों की प्रतिक्रियायें सोशल मीडिया पर आ रही है जिसमें छात्रों के प्रति समर्थन का इजहार है और नाट्य विद्यालय निदेशक की आलोचना हो रही है। हुआ यों कि कोरोना महामारी के चलते मार्च से देश भर की शिक्षण संस्थायें बंद पड़ी है। यह ऐसा समय था जब मार्च में खतम होने वाले पाठ्यक्रमों की पढ़ाई लगभग पूरी हो चुकी थी तथा परीक्षाओं का दौर चल रहा था। कुछ परीक्षायें जो शेष थी लॉकडाउन के चलते शिक्षण संस्थाओं के बंद होने के कारण वे भी अधर में लटकी हुई है। नया शिक्षण सत्र शुरू होने को लेकर भी असमंजस बना हुआ है क्योंकि यह कहने या बताने की स्थिति में कोई भी नहीं है कि कोरोना महामारी कब तक खत्म हो जायेगी या इसके उपचार की वैक्सीन कब तक उपलब्ध हो सकेगी। जाहिर है इस महामारी का शिकार मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय भी हुआ। नाट्य विद्यालय के सत्र की अवधि जुलाई से जुलाई की होती है इसलिये लॉकडाउन के चलते विद्यालय बंद होने से इस वर्ष की पढ़ाई को 4 माह शेष हैं। छात्रों को भी पता था कि कोरोना के चलते न तो विद्यालय खुल सकता है और न पढ़ाई हो सकती है। इसलिये शुरू में उनमें भी खामोशी बनी रही। उनमें खलबलाहट तब शुरू हुई जब सितंबर से नये सत्र की शुरूआत करने की चर्चायें चलने लगी। हालांकि अधिकृत रूप से नये सत्र शुरू करने की कोई तैयारी नहीं हो रही है। इस बीच वर्तमान सत्र के विद्यार्थियों के लिये ऑनलाइन पढ़ाने की कुछ व्यवस्था की गई। इसी के चलते कुछ विद्यार्थियों ने कोर्स पूरा किये जाने की मांग को लेकर विद्यालय के बाहर प्रदर्षन शुरू किया गया जो लगभग दो सप्ताह से जारी है। विद्यालय प्रबंधन ने इसे आचार संहिता का उल्लंघन मानकर विद्यार्थियों को विद्यालय से निष्कासित कर दिया और देशभर के रंगकर्मियों की फेसबुक प्रतिक्रियाओं के केन्द्र में विद्यालय के निदेशक आलोक चटर्जी आ गये हैं। विद्यार्थियों के लिये लागू यह आचार संहिता क्या बला है, यह जानना भी जरूरी है। मुझे जो बताया गया कि यह आचार संहिता विद्यालय आरंभ होने के समय से लागू है जिसमें विद्यार्थियों को हस्ताक्षर करना पड़ता है। इस आचार संहिता में कई बिन्दू है जो विद्यार्थियों को अनुशासन में रहने तथा विद्यालय के खिलाफ टिप्पणी करने से भी के लिये पाबंद करते हैं। इस आचार संहिता में यह बिन्दू महत्वपूर्ण है कि अनुशासन के संबंध में निदेशक का निर्णय अंतिम होगा। इसी आचार संहिता के उल्लंघन के आधार पर इस बार 8 छात्रों से विद्यालय से निष्कासित किया गया है। पिछले साल भी जरूरी सुविधाओं की मांग करते हुए छात्रों ने हड़ताल तक कर दी थी लेकिन तब उनके खिलाफ निष्कासन की कार्यवाई नहीं की गई थी। उस हड़ताल की बात करें या अभी धरना प्रदर्शन की, छात्रों की मांगों से असहमति नहीं हो सकती, लेकिन जहां तक उनके धरना प्रदर्शन का सवाल है तो इसे विद्यालय प्रबंधन अनुचित मानता है जबकि छात्रों पर की गई कार्यवाई को रंगकर्मियों का समूह प्रबंधन की तानाशाही मान रहा है। ऐसा भी माना जाता रहा है कि देशभर में रंगकर्मियों का एक बड़ा वर्ग विद्यालय के निदेशक आलोक चटर्जी का विरोधी है और छात्रों के आंदोलन को हवा देकर वे आलोक के खिलाफ अपना मोर्चा जमाते हैं। दरअसल दो साल पहले जिस तरह से अचानक बरसों से जमे संजय उपाध्याय को विद्यालय के निदेशक पद से हटाया गया और उनके स्थान पर आलोक चटर्जी की नियुक्ति की गई, तब से ही आलोक कुछ रंगकर्मियों के निशाने पर रहे हैं। पहले तो यह माना गया कि चूंकि उन्हें प्रशासन का कोई अनुभव नहीं है इसलिये वे जल्दी ही असफल हो जायेंगे लेकिन ऐसे लोगों को आलोक से निराश किया। प्रशासनिक ही नहीं राजनीतिक मोर्चे पर भी आलोक कमजोर साबित नहीं हुए। भाजपा समर्थक होने का दावा करते हुए उसी कार्यकाल में वे निदेशक नियुक्त हुए और 15 महिने का कांग्रेसी कार्यकाल भी अपने पद पर बने रहते हुए निकाल लिया। आलोक को यह अच्छी तरह मालूम है कि वे किन रंगकर्मियों के निशाने पर है। बावजूद इसके उन्होंने विद्यालय के नौजवानों को पूरी तरह अपने साथ रखने में चूक करते रहे। विद्यालय के छात्रों का एक वर्ग किसी न किसी कारण से उनके खिलाफ खड़ा होता रहा और उनके विरोधियों को अपने पक्ष में नहीं रख पाते हुए उन पर हमला करने का मौका ये स्वयं देते रहे। संजय उपाध्याय जिस तरह अपने छात्रों के पालक के रूप में जाने जाते हैं, वह भूमिका आलोक नहीं निभा पाये। हालिया घटना की बात करें तो इसे आसानी से टाला जा सकता था। कम से कम छात्रों को निष्कासित करने से तो बचा ही जा सकता था। ऐसा करते हुए वे विद्यालय के निदेशक का दायित्व निभाते हुए छात्रों के पालक भी बनते हुए दिखते लेकिन अपनी कार्यशैली में लचीलापन लाने की कोई कोशिश उन्होंने नहीं की। जो रंगकर्मी आंदोलनरत छात्रों का समर्थन कर रहे हैं उनका समर्थन सोशल मीडिया तक ही सीमित है जिसका कोई लाभ छात्रों को नहीं मिलने वाला। मामला छात्रों से निकलकर आलोक बनाम अन्य बनता जा रहा है। मामले में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप होता नहीं दिख रहा है और छात्रों का स्पष्ट मत है कि हम अभी लड़ने के मूड में हैं। ऐसा मैं अपने प्रत्यक्ष अनुभव से कह सकता हूँ। आंदोलनरत छात्रों का समूह मेरे पास भी मार्गदर्षन व मदद की गुहार के साथ आया था। मैंने विभाग के संबंधितों से चर्चा कर उन्हें कोई समाधान निकालने को कहा। समाधान यह निकला कि 2 माह की पढ़ाई और निष्कासन वापसी हो जाये तथा निदेशक को लेकर छात्रों की जो शिकायतें हैं, उनकी जांच भी करा ली जाये। मैंने छात्रों को इससे अवगत करा दिया। उन्होंने विचार करने के लिये दो दिन का समय मांगा और नियत समय पर उनका उत्तर आया कि वे अभी और लड़ने के मूड मंे हैं। मैं नहीं कह सकता कि यह उनका निर्णय है या उनसे ऐसा निर्णय कराया गया है। जो भी हो नाट्य विद्यालय का यह गतिरोध जल्दी समाप्त होते नजर नहीं आता जो न तो छात्रों के हित में है और न विद्यालय के। रंगमंच का नुकसान तो ऐसे में होता ही है। छात्रों की मांगों का समर्थन करने वाले रंगकर्मियों से मेरा आग्रह रहेगा कि वे केवल फेसबुक समर्थन देने तक अपनी भूमिका सीमित न रखें बल्कि इसके हल की दिशा में पहल करें।
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