सूबे की सियासत संवैधानिक मर्यादाओं और कानूनी पेंचिदिगियों के बीच उलझ कर रह गई है। मामला अभी भी न्यायालय में लंबित ऐसे में व्याप्त सियासी संकट के बीच सरकार की स्थिरता और राज्यसभा की तीसरी सीट का अंतिम फैसला सामने आना बाकी है। कांग्रेस के बागियों को भले ही भाजपा का समर्थन प्राप्त है।
लेकिन यह स्थिति तब निर्मित हुई। जब महाराजा ने कांग्रेस के नाथ को चेतावनी दी थी कि यदि उन्हें नजरअंदाज किया गया तो फिर वह सड़क पर उतर आएंगे। महाराजा फिलहाल चुप, लेकिन समूची कांग्रेस सड़क पर उतर चुकी है।
जिसकी वजह सिंधिया समर्थक विधायको का इस जद्दोजहद में, समर्थन प्राप्त करना है, जो निर्णायक भूमिका में नजर आ रहे हैं। चाहे फिर फ्लोर टेस्ट हो या फिर इनके इस्तीफे स्वीकार किए जाना। दोनों कमलनाथ सरकार के गणित को गड़बड़ा चुके हैं। बदलते परिवेश में सियासी आकलन करें तो पता चलता है ज्योतिरादित्य बगावत कर भाजपा की सदस्यता ले चुके। जिनका राज्यसभा में जाना तय है तो दूसरी ओर राजा दिग्विजय सिंह भी एक बार फिर राज्यसभा में जाएंगे यानी राजा-महाराजा इस घमासान में भले ही आमने-सामने हों।
लेकिन राज्यसभा की अपनी पहली लड़ाई जीतने जा रहे हैं तो कांग्रेस के मुखिया के नाते कमलनाथ ने भी मध्य प्रदेश के इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा लिया। जो भाजपा की हर चुनौती का जवाब दे अपनी सरकार को बहुमत की सरकार बता आगे भी लंबी पारी खेलने का संकल्प लगातार दोहरा रहे। कुल मिलाकर इन तीनों राजा, महाराजा और नाथ के बीच बनते बिगड़ते समीकरण ने कांग्रेस को जरूर संकट में डाल दिया है। जो सवा साल पहले ही 15 साल के सियासी वनवास से सत्ता में लौटी थी. जिसके भविष्य को लेकर जोड़-तोड़ जारी तो कयास बाजी थमने का नाम नहीं ले रही.. सबकी नजर सुप्रीम कोर्ट पर टिकी है।
जहां लगातार दूसरे दिन भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की याचिका पर जारी सुनवाई का फैसला आना बाकी है ..फिर भी दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट के साथ बेंगलुरु कर्नाटक का गेस्ट हाउस जहां सिंधिया समर्थक विधायक ठहरे हुए। भोपाल का मुख्यमंत्री निवास और राजभवन के साथ सीहोर का रिसोर्ट। जहां भाजपा विधायकों के साथ शिवराज और विष्णु दत्त शर्मा ने पूरा दिन बिताया। सूबे की बदलती सियासत का केंद्र बिंदु बना हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई शुरु होती, इससे पहले सुबह-सुबह दिग्विजय सिंह और उनके साथ बेंगलुरु पहुंचे.. मंत्री सज्जन सिंह वर्मा, तरुण भनोट, हर्ष यादव। जीतू पटवारी लाखन सिंह की पुलिस और प्रशासन से टकराहत और न्यायालय से हस्तक्षेप के बावजूद सिंधिया समर्थक विधायकों से मुलाकात संभव नहीं हो पाई। विरोध में धरना पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने के साथ दिग्गी राजा ने वहीं से प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भाजपा की साजिश को बेनकाब करने की कोशिश की, जिस राज्यसभा उम्मीदवार के नाते दिग्विजय ने अपने मतदाता विधायकों से संपर्क को जरूरी बताया। उसी को आधार बनाकर भाजपा यहां भोपाल में शिकायत के साथ चुनाव आयोग पहुंच गई। विधायकों को प्रभावित किया जाना था।ऐसे में संदेश और स्पष्ट होता गया कि सरकार संकट में है।
इसका समाधान बेंगलुरु में ठहरे उन 16 विधायकों के समर्थन के बिना संभव नहीं, जिन्हें सिंधिया का वरदहस्त प्राप्त है, इन विधायकों ने बिना समय गंवाए वीडियो के जरिए एक बार फिर दिग्विजय सिंह से मेल मुलाकात में किसी तरह की भी दिलचस्पी से इंकार कर दिया.. यह विधायक न्यायालय में पहले ही शपथ पत्र दे चुके हैं। एक और कोशिश के साथ राजा ने कर्नाटक न्यायालय में याचिका लगाई। जिसे खारिज कर दिया.. कुल मिलाकर दिल्ली और भोपाल के साथ कर्नाटक भर आया रहा। जहां कुछ दिन पहले तक सभी कांग्रेस के साथ थे और अब मेल मुलाकात तो दूर मुंह देखने को तैयार नहीं। जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का सिलसिला धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था।
तब भोपाल में कमलनाथ ने कैबिनेट की बैठक बुलाकर फैसला लिया कि लक्ष्मण सिंह की मांग पर चाचौड़ा, नारायण त्रिपाठी के आग्रह पर मैहर और दिलीप गुर्जर की अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए नागदा को जिला का दर्जा दे दिया गया.. यानी तीन उन विधायकों का समर्थन कमलनाथ ने पक्का कर लिया। जो बहानेबाजी की आड़ में न जाने कब किस के साथ खड़े नजर आते हैं। इनमें से एक भाजपा के नारायण त्रिपाठी भी शामिल हैं, जबकि दो कांग्रेस से जुड़े हैं, इनमें एक दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह सबसे वरिष्ठ विधायक होने के बावजूद उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया।
वो अपने ट्वीट और बयानों से कमलनाथ और उनकी सरकार का संकट बढ़ाते रहे.. यह कहना गलत नहीं होगा कि एक-एक विधायक के महत्व को ध्यान में रखते हुए कमलनाथ फ्लोर मैनेजमेंट के तहत अंकगणित दुरुस्त करने में अभी भी जुटे हैं.. राम बाई, संजीव कुशवाहा, राजेश शुक्ला का फिलहाल कोई अता पता नहीं लेकिन सुरेंद्र सिंह शेरा मीडिया में खुद को मंत्री बनाए जाने की खबर के साथ कमलनाथ की सरकार स्थिर होने का दावा कर रहे.. वह बात और है कि अभी तक बेंगलुरु में डेरा डाले छह मंत्रियों के इस्तीफे स्वीकार होने में छुपी चेतावनी के बावजूद 16 में से किसी एक विधायक को कांग्रेस अपने पाले में नहीं लौटा पाई है।
जिनकी सदस्यता को लेकर सस्पेंस खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। दोपहर बाद भोपाल से ही कमलनाथ ने बेंगलुरु जाने के संकेत दिए.. लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदुरप्पा से संपर्क नहीं होने का वास्ता देकर उन्होंने अपना कार्यक्रम टाल दिया.. इस बीच कांग्रेस के विधायक राजभवन जा पहुंचे। जहां उन्होंने राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा.. इससे पहले बीती रात राज्यपाल लालजी टंडन विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति द्वारा विधायकों की सुरक्षा को लेकर जताई गई चिंता पर एक नई चिट्ठी लिखकर संकेत दे चुके.. चिट्ठी सही जगह लिखें, इधर विधायक गांधीजी के सामने सत्याग्रह तो उधर बेंगलुरु में दिग्विजय सिंह ने भी इस लाइन को आगे बढ़ाया।
लेकिन शाम होते-होते कांग्रेस समर्थक कार्यकर्ता विरोध प्रदर्शन के साथ भाजपा कार्यालय जा पहुंचे, न सिर्फ गांधीवादी सोच बिखरती नजर आई। बल्कि जिस कोरोना की आड़ में 20 से ज्यादा लोगों के एक साथ इकट्ठे नहीं होने की गाइडलाइन प्रशासन द्वारा बनाई गई थी.. वह यहां टूटती हुई नजर आई। समझा जा सकता है कि नेता से लेकर कार्यकर्ता आखिर सड़क पर उतरे और संग्राम की स्थिति निर्मित हुई तो उसकी वजह क्या हौसले बुलंद, लेकिन कांग्रेस की चिंता अतिरिक्त विधायकों के समर्थन की।
बेंगलुरु दिल्ली और भोपाल की इस उठापटक के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ एक बार फिर अपने विधायकों से रूबरू हुए और सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए उस रणनीति को बनाने को मजबूर हुए। जो सिंधिया समर्थक बेंगलुरु में ठहरे 16 विधायकों के बिना संभव नहीं, सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में गुरुवार को स्पष्ट निर्देश मिलने की संभावना जरूर बनी हुई।