भोपाल। कांग्रेस हाईकमान का कमलनाथ को अभय दान .. यानी मध्य प्रदेश को लेकर कांग्रेस के नाथ को फ्री हैंड पहले ही मिल चुका है.. या समय आ गया है ..जब उन्हें एक पद आने वाले समय में छोड़ना ही होगा.. वह कौन सा पद जो छोड़ेंगे..तो आखिर कब.. कौन सा पद अपने पास वो 2023 तक रखना चाहेंगे.. इसके साथ ही एक नया सवाल यह भी खड़ा हो गया .. कांग्रेस हाईकमान और कमलनाथ के बीच जब बात अपेक्षाओं और भरोसे की तो कौन किसके लिए जरूरी और मजबूरी.. आखिर कौन किसकी कृपा का मोहताज है.. किसको किसकी आखिर क्यों ज्यादा जरूरत है..
दरअसल यह स्थिति तब निर्मित हुई जब लंबे समय बाद भोपाल लौटे कमलनाथ ने अपनी भूमिका को लेकर हाईकमान से अपने रिश्ते भरोसे को आत्मविश्वास के साथ अपने अंदाज में मीडिया के सामने रखा.. जिसने कांग्रेस के राष्ट्रव्यापी महंगाई विरोधी अभियान के आगाज के साथ मुद्दा ही डायवर्ट कर दिया.. कमलनाथ ने एक साथ दो दो पदों पर बने रहने को लेकर जब सवाल का जवाब दिया तो उन्होंने कहा कि मैंने तो कोई पद नहीं मांगा था...मैं तो कोई पद नहीं लेना चाहता था...लेकिन मुझे जिम्मेदारी दी गई....कमलनाथ ने कहा कि मैं तो दिल्ली में संतुष्ट था...इसके बाद उन्होंने कहा कि मैं तो दो साल से प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष हूं... अब भी जब मुझे जो पद छोड़ने का कहा जाएगा ..
वह मैं तत्काल छोड़ दूंगा ..मुझे कभी किसी पद व कुर्सी का कोई मोह नहीं.. G23 से जुड़े सवाल पर कमलनाथ का दावा था कि उनकी समस्याओं का समाधान निकाला जा चुका है.. तो फिर बड़ा सवाल वही क्या कमलनाथ को पार्टी नेतृत्व ने अभय दान के साथ फ्री हैंड देकर 2023 की बिसात नए सिरे से बिछाने की छूट दे दी है.. अपनी भूमिका को लेकर कमलनाथ ने जो कुछ भी मीडिया से उसका सार यही है.. कमलनाथ हाईकमान के लिए जरूरी है उनके बारे में पार्टी नेतृत्व से नहीं बल्कि खुद कमलनाथ को फैसला करता होगा..
कमलनाथ कहते हैं‘मैं तो किसी भी पद पर रहने को इच्छुक नहीं’, ‘मैंने एप्लाई तो नहीं किया था न, ‘मैं 2018 में प्रदेश अध्यक्ष बना था’, ‘मैंने तो नहीं कहा था मुझे बना द, मैं तो बड़ा संतुष्ट था दिल्ली में – कमलनाथ
‘मैं तो दो साल से दोनों पदों पर हूं’.. कुछ नहीं बस या ऐसा ही संदेश कमलनाथ पहले भी दे चुके है.. एक बार नया कुछ तो वह भी टाइमिंग खासतौर से जब कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर महंगाई के विरोध में राहुल गांधी से सांसदों के साथ दिल्ली में मोर्चा खुलवाया.. राजधानी भोपाल में कमलनाथ के साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी और जिले के दो विधायक पार्टी बेताब विरोध प्रदर्शन की धुरी बने.. जिस आंदोलन को अभी पूरे प्रदेश में असरदार साबित कर जनता का भरोसा जीतना, कार्यकर्ताओं में जोश भरना कांग्रेस के लिए चुनौती उस मुद्दे से ध्यान मीडिया का तब डाइवर्ट हो जाता जब सवालों के जवाब में ही सही कमलनाथ अपनी भूमिका हाईकमान से अपने रिश्तो को लेकर वही पुराना बयान नए अंदाज में मीडिया के जरिए ही आगे पहुंचाते...
कमलनाथ का यह बयान इसलिए मायने रखता है क्योंकि पांच राज्यों में मिली करारी हार के बाद पार्टी नेतृत्व प्रदेश अध्यक्षों से इस्तीफे लेने की शुरुआत कर चुका है.. यही नहीं नई नियुक्तियां और नया एडजस्टमेंट का फार्मूला भी कई राज्यों में सामने आने लगा है.. यही नहीं नई नियुक्तियां भी की जा रही ..जबकि संगठन चुनाव का कार्यक्रम घोषित किया जा चुका है.. एक और खास बात जो कमलनाथ के इस बयान के कई मायने निकालने को मजबूर करता है ..वह है मध्य प्रदेश के ही तीन अन्य कांग्रेस नेताओं की सोनिया गांधी से मुलाकात.. यह मुलाकात अलग-अलग हुई पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव ने होली मिलन के तुरंत बाद सबसे पहले सोनिया गांधी से मुलाकात की... तो उसके बाद पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी दस जनपथ पहुंचते और लंबे अरसे बाद सोनिया गांधी से उनकी लंबी चर्चा होती है..
अजय सिंह जिस G23 के सदस्य माने जाते हैं.. वह 5 राज्यों के बाद हुई उस बैठक का हिस्सा नहीं बने थे.. इस ग्रुप से जुड़े मध्य प्रदेश के एक और नेता राज्यसभा सांसद विवेक तंखा ने न सिर्फ G23 की बैठक में शामिल हुए थे.. अरुण यादव और अजय सिंह के बाद उनकी भी सोनिया गांधी से मुलाकात हो चुकी है.. गुलाम नबी आजाद समेत आनंद शर्मा, मनीष तिवारी जैसे नेताओं की सोनिया से मुलाकात और G23 की भूमिका पर कमलनाथ ने भोपाल से दावा किया सभी से मैं संपर्क में हूं.. उनकी सभी मांग मान ली गई है.. चुनाव की प्रक्रिया भी चल रही है सारी चीजें जल्द सामने आएंगी.. संदेश साफ है कमलनाथ ने जो कुछ बोला सोच समझकर बोला.. तो उनकी पहली नजर कांग्रेस के बनते बिगड़ते समीकरण और घटनाक्रम पर बनी हुई है.. जिन्होंने खुद कहा कि संगठन चुनाव चल रहे हैं.. जिन सारी चीजों के वह सामने लाने का दावा कर रहे ..उसमें संगठन के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष और नई टीम में पुरानी अनुभवी पीढ़ी के नेताओं की सहभागिता उनके दायित्व और कांग्रेस की चुनाव को लेकर भविष्य की रणनीति का संदेश छुपा है..
यदि उनकी अपनी भूमिका पर स्पष्टीकरण पर गौर किया जाए तो संदेश यह भी निकलता है क्यों उन्होंने कभी अपनी ओर से कोई पद नहीं मांगा.. जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई चाहे फिर वह प्रदेश अध्यक्ष उसके बाद मुख्यमंत्री फिर नेता प्रतिपक्ष हाईकमान को भरोसे में लेकर ही वह लगातार निभा रहे.. उनकी अपनी दिलचस्पी कोई ज्यादा मायने नहीं रखती ..दिल्ली उनको जरूर ज्यादा रास आती थी.. लेकिन बदलते परिदृश्य में उन्हें भी पार्टी नेतृत्व के इशारे का इंतजार रहेगा.. जो यह सोचते हैं कि कमलनाथ को परफॉर्मेंस के आधार पर पद छोड़ना होगा.. उन्हें यह मालूम होना चाहिए यदि दिल्ली की राजनीति छोड़ कर वह मध्यप्रदेश में सक्रिय हुए तो वह हाईकमान की अपेक्षाओं के अनुरूप ही हुआ.. लेकिन अब उन्हें ज्यादा मोह नहीं लेकिन फिर भी सम्मान से कोई समझौता नहीं.. कमलनाथ फिलहाल अपने बयानों के कारण नए सिरे से चर्चा में लेकिन एक दिन पहले ही भोपाल पहुंचकर कुछ गिने चुने नेताओं के बीच उन्होंने व्यापम की लड़ाई को निर्णायक और आक्रमक अंदाज में लड़ने का ग्रीन सिगनल पार्टी के सहयोगियों को दिया है.. अपने नेतृत्व में 2023 चुनाव को लेकर वो कॉन्फिडेंट है.. और अपनी शर्तों पर ही वह मध्यप्रदेश में सक्रिय रहेंगे..
सोनिया गांधी के फिर सक्रिय होने और राहुल गांधी के बैकफुट पर चले जाने के बाद कमलनाथ यदि G23 के संपर्क में है.. सवाल बदलते राजनीतिक परदेस में जब कांग्रेस हाईकमान कमजोर है और प्रेशर पॉलिटेक्स पुरानी पीढ़ी के अनुभवी नेताओं की रंग ला रही.. तब इधर मध्यप्रदेश में कोई पद निकट भविष्य में यदि नहीं छोड़ रहे ..तो फिर क्या यह मान लिया जाए कि राष्ट्रीय नेतृत्व मध्यप्रदेश में कोई बड़ा बदलाव करने का मानस नहीं बना पाया है .. क्या कमलनाथ को अभयदान मिल चुका है.. संगठन चुनाव की प्रक्रिया जब प्रदेश अध्यक्ष के निर्वाचन तक पहुंचेगी तब तक कमलनाथ के दोनों पदों में बने रहने से इनकार नहीं किया जा सकता.. कमलनाथ यदि लगातार दिग्विजय सिंह के संपर्क में है ..अरुण यादव भी कमलनाथ को भरोसे में लेकर आगे बढ़ रहे हैं.. पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह जो कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन का हिस्सा भोपाल में नहीं बने उनकी भी कमलनाथ से मुलाकात का मतलब साफ है कि बतौर प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ अब सारे क्षत्रपों को भरोसे में लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं.. क्योंकि सुरेश पचोरी लगातार उनके साथ विशेष मौके पर नजर आते रहे.. हां अजय सिंह की कसक जरूर सामने आई थी..
पार्टी नेतृत्व यदि उन्हें कोई जिम्मेदारी सौंपता है कोई पद उन्हें दिया जाता है तो फिर वो और नए सिरे से जोर शोर के साथ कांग्रेस को मजबूत करने में जुटेंगे.. उधर अरुण यादव कुछ नया कर गुजरने की ललक रखते हुए देखे जाते हैं.. चाहे फिर उनकी नजर कमलनाथ के उत्तराधिकारी के तौर पर प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर हो या फिर जून में विवेक तंखा के कार्यकाल खत्म होने के बाद खाली हो रही राज्यसभा की सीट से जोड़कर देखा जाए.. कमलनाथ का रसूख रुतबा दोनों बरकरार है कम से कम अपनी भूमिका को लेकर साफगोई से कही गई बात पर यदि गौर किया जाए तो.. लेकिन अरुण यादव की ललक और अजय सिंह की कसक के साथ कमलनाथ की ठसक को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता..
इसे उनके स्वाभिमान और सम्मान से जोड़ा जा सकता है.. ऐसे में सवाल क्या कांग्रेस के गुजरात फार्मूले जिसमें बड़ी संख्या में उपाध्यक्ष और महामंत्री एडजेस्ट किए गए उसके बाद क्या मध्यप्रदेश में दिग्गज नेताओं का नए सिरे से एडजस्टमेंट किसी फार्मूले के साथ सामने आ सकता है.. जब दिल्ली में G-23 से जुड़े अनुभवी नेताओं को भरोसे में लेकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी नए सिरे से आगे बढ़ना है तो मध्यप्रदेश में क्या कमलनाथ का कोई नया फार्मूला सामने आएगा.. क्योंकि कमलनाथ मध्य मंडल के सहयोगी कई पूर्व मंत्रियों का सियासी कद पहले ही बढ़ चुका है ...पुरानी पीढ़ी के कई नेताओं के पास कोई जिम्मेदारी और दायित्व नहीं है..
‘समय’ आ गया या फिर नाथ को ‘अभय दान’...!
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