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भाजपा को हर घण्टे नुकसान…

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भोपाल । संगठन की दृष्टि से देश में सबसे मजबूत राज्य माने जाने वाले मध्य प्रदेश में भाजपा अपने बुरे और सर्वाधिक उथल-पुथल के दौर में फंसी हुई है। दीपक जोशी का कांग्रेस में जाना आने वाले दिनों में तूफान का संकेत देता है। कई दीपक हैं जिनकी लौ फड़फड़ा रही है। आशंकाओं के बीच आशा की जा रही है कि कर्नाटक में मतदान के बाद पार्टी नेतृत्व कुछ बड़ा करेगा। वरना अभी तो हर घण्टे के हिसाब से पार्टी के नुकसान का मीटर डाउन है और इसी अनुपात में कांग्रेस के लाभ का भी।

भाजपा में शिकायत है कि अनुभवी ईमानदार-वफादारों की लंबे समय से उपेक्षा की जा रही। पीढ़ी परिवर्तन के नाम पर पार्टी में जातिवाद, गुटबाजी, असंतोष, चापलूसी, गणेश परिक्रमा,दलाली, पार्टी और सिद्धांत को छोड़ व्यक्तिवाद के साथ नौसिखियापन का बोलबाला हो रहा है। नए नेताओं की नीयत भले ही खराब न हो लेकिन अनुभवहीनता के कारण ‘अनाड़ी का खेलना और खेल का सत्यानाश’ वाली कहावत को चरितार्थ होती दिख रही है।

पांच प्रभारियों में से अधिकांश भी जब मुंह खोलते हैं तो अटपटी और अहंकार की बोली सुनाई पड़ती है। अनाड़ीपन की बानगी देखिए एक प्रभारी ने तो यह तक कह दिया कि जब नए कप आते हैं तो पुराने टूटे- फूटे कप बाहर हो जाते हैं। एक अन्य प्रभारी फरमाते हैं कि उनकी एक जेब में पंडित और एक मे बनिए रखे रहते हैं। आहत करने वाले बोल यहीं नही रुकते- ‘ तीन – चार बार मे जीते विधायक पार्टी फोरम पर या निजी चर्चा में शासन प्रशासन में अपनी उपेक्षा की शिकायत संगठन में करते हैं तो अयोग्य और निक्कमा कह कर अगले बार टिकट नही देने की  कही जाती है।’  संगठन मंत्री व प्रभारियों द्वारा वरिष्ठ कार्यकर्ताओं और नेताओं के समय मांगने पर भी उनसे संवाद ही नही करना मध्यप्रदेश भाजपा की बड़ी समस्या है।

प्रदेश भाजपा पांचाली बना दी है…

पच्चीस बरस पहले अभिवाजित मप्र में एक प्रभारी ही सब कुछ संभाल लेता था और पांच पांच प्रभारी होने पर भी हालात बेकाबू हो रहे हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता रघुनन्दन शर्मा बहुत दुखी हैं और प्रभारियों की अयोग्यता को कुछ यूं बयां करते हैं कि पांचों प्रभारी देवदुर्लभ प्रदेश भाजपा को पांचाली बना उसकी रक्षा करने बजाए चीर हरण करने में लगे हैं। जो दुर्दशा हो रही है उसे देख लगता है उनके लिए प्रभारी का काम पॉलिटीकल टूरिज्म जैसा हो गया है।  1998 में नरेंद्र मोदी और उसके बाद ओम प्रकाश माथुर, प्रमोद महाजन, अनन्त कुमार, वैंकया नायडू का भी प्रभारी और वरिष्ठ नेता के नाते प्रदेश के संगठन और सरकार में दखल रहा है।  लेकिन ऐसे हाल कभी नही रहे। सरकार-संगठन में हालत नही सुधरे और डैमेज कंट्रोल नही हुआ तो चुनाव तक भाजपा से बागियों और भितरघातियों की फेहरिस्त लंबी होने वाली है। क्योंकि अभी तो रायता फैलना और उसमें रपटना शुरू हो रहा है। इसे भांपते हुए राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं ‘ भाजपा को भाजपा ही हरा सकती है, कांग्रेस में कहां दम है ‘ …मालवा निमाड़, महाकौशल, ग्वालियर-चंबल और विंध्य में असंतोष की खदबदाहट उफान पर आने को है।

नेता-कार्यकर्ताओं में निराशा घर कर रही है। इसे देखने समझने के बाद भी रोकने वाले नजर नही आ रहे हैं। कम लगे तो सुधी पाठक और भाजपा को जानने वाले और भी कुछ जोड़-घटा सकते हैं।

जिस भाजपा में कभी अनुशासन का डंका पिटता था वहां बगावत की बातें हो रही हैं। समालोचना की जाए तो ये दोष कार्यकर्ताओं का नही बल्कि नेतृत्व और भाजपा में दिल्ली से भेजे गए प्रभारियों का ज्यादा है। इसमें संघ परिवार से भेजे गए ‘बेचारे’ संगठन मंत्री भी बराबर के गुनहगार है। इनमें एक सज्जन तो यहां तक कहते हैं – असन्तुष्ट तो वे हैं जिन्होंने सबसे ज्यादा लुटा है, हमारा कार्यकर्ता तो पन्ना प्रभारी में भी खुश है। भाजपा में कठोर अनुशासन और संगठन की धमक के लिए संगठन महामंत्री रहे कप्तान सिंह सोलंकी का कार्यकाल संगठन के सुनहरे दौर के रूप में याद किया जाता है। यही वजह है कि पार्टी सबसे लोकप्रिय सीएम रही उमा भारती की बगावत और उनके द्वारा नई पार्टी भाजश के गठन से भी प्रभावित होने से बच गई थी। तब मन्त्रीगण तो क्या मुख्यमंत्री तक पार्टी कार्यालय में हाजिरी दर्ज कराते थे। श्री सोलंकी के बाद से प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा में नैतिक गिरावट का दौर आरम्भ हो गया था। यह फिसलन सत्ता व समय के तेज होती जा रही है।

 

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