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मनभावक खेल तो धोनी का, सीखों!

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सुनील गावस्कर ने तो एक आईपीएल मैच में सभी को दंग कर दिया। तिहत्तर साल के गावस्कर पीछे से दौड़ कर आए और अपनी शर्ट पर धोनी के हस्ताक्षर मांगे बैठे। बाद में भावुकता में उनने बताया कि वे अपने अंतिम समय में 2011 के क्रिकेट विश्वकप जीत के आखिरी पल को सहेज कर रखना चाहते हैं। छक्का मार कर, बल्ला लहराकर जिताने की धोनी की याद सदा साथ रखना चाहते हैं।

क्या लोकतंत्र में लोकप्रियता का कोई पैमाना होता है? क्यों किसी एक को ही लोग बेइंतहां चाहने लगते है? इसका कारण क्या उस व्यक्ति-नेता का साफ चाल-चलन होता है या उसके बोलने-बैठने की अदा? या फिर उसे उसके विचार-व्यवहार की कुशलता लोकप्रिय बनाती है? अक्सर ये सभी खूबियां व योग्यता जब एक साथ-एक व्यक्ति में दिखती हैं, तभी लोकप्रियता मिलती है। अपने साथियों, समकक्षों से सच्चा सम्मान कमाना ही लोकप्रियता का पैमाना है। इसका कोई मूल सिद्धांत भी नहीं हो सकता है। और न ही जनता को लंबे समय के लिए कोई लगातार भरमाए रख सकता है।

आईपीएल फाइनल में और उससे पहले भी चैन्नई के कप्तान माही की लोकप्रियता ने जो माहौल बनाया वह हैरान करने वाला था। माही यानी जन जन के प्रिय पूर्व भारतीय कप्तान व खिलाड़ी महेन्द्र सिंह धोनी। इस बार के आईपीएल में उनके प्रति लगाव और जुनून ने लोकप्रियता के नए मानक गढ़े। धोनी आईपीएल के अलावा कोई क्रिकेट नहीं खेल रहे हैं। न वे भारत के लिए खेल रहे हैं, और न ही अपने राज्य झाड़खंड के लिए। मगर दूर-दराज़ के चैन्नई राज्य की क्लब टीम के लिए खेलते हुए उनने पांचवा आईपीएल खिताब जीते। उनकी लोकप्रियता के अभुतपूर्ण क्षणें को लोगों ने देखा और सराहा। चैन्नई टीम के अलावा उनको जिताने के लिए उनके प्रशंसक देश भर के मैदानों में उमड़े। आईपीएल में हर मैदान पीले रंग में रंगा ही दिखा। आखिर इस लोकप्रियता का कारण क्या है?

खेल समझने, उस पर बोलने वाले हर्ष भोगले ने फाइनल के बाद धोनी से पूछा। “इतने सब के बीच आप शांत समभाव में कैसे रहते हैं?……. लोगों के लगाव और जुनून में आप जमीन से जुड़े कैसे रहते हैं?” धोनी ने जो जवाब दिया वह समाज के किसी भी नेता का व्यवहारिकता पर खरे उतरने का मानक माना जाएगा। धोनी ने कहा “मुझे लगता है कि जो भी मैं हूं उसके लिए ही लोग मुझे प्यार करते हैं …….. और जमीन से जुड़े रहने का मेरा समभाव लोगों को सुहाता है ……. सच्चाई यह भी है कि जिस शैली में मैं खेलता हूं सभी मानते हैं उस शैली में वे भी खेल सकते हैं …… क्योंकि उसमें ढोने के लिए कोई परंपरा नहीं है ……. यही कारण है कि लोग मुझसे जुड़ा हुआ महसूस करते हैं …… लेकिन जैसा पहले कहा, मैं अपने को बदलना नहीं चाहता ……. जो मैं नहीं हूं वैसा मैं अपने को दर्शाना भी नहीं चाहता …… इसलिए सभी कुछ सरल रखता हूं।” ऐसा सोचने-समझने-करने वाला ही किसी भी खेल या जीवन का “इम्पेक्ट या मोस्ट वेल्यूएबल प्लेयर” हो सकता है।

धोनी से कहीं ज्यादा महान और भारतीय बल्लेबाजी की शान सुनील गावस्कर ने तो एक आईपीएल मैच में सभी को दंग कर दिया। तिहत्तर साल के गावस्कर पीछे से दौड़ कर आए और अपनी शर्ट पर धोनी के हस्ताक्षर मांगे बैठे। देखने वाले हक्के-बक्के रह गए। बाद में भावुकता में उनने बताया कि वे अपने अंतिम समय में 2011 के क्रिकेट विश्वकप जीत के आखिरी पल को सहेज कर रखना चाहते हैं। छक्का मार कर, बल्ला लहराकर जिताने की धोनी की याद सदा साथ रखना चाहते हैं। सम्मान की ऐसी लोकप्रियता जो आम जन के अलावा अपने से भी महान से मिले, उसके लिए धोनी जैसा हाड़-मांस ही चाहिए। फाइनल के बाद धोनी ने माना भी कि ऐसे ही आम जन की प्रेम-प्रियता के लिए वे जीते हैं। इसलिए शरीर से जुझते रहेंगे। और अगले साल आइपीएल नहीं खेलने का निर्णय टाल गए।

पिछले साल, भविष्य को ध्यान में रखते हुए, और खुद भी खेलते हुए धोनी ने चैन्नई की कप्तानी रविन्द्र जाडेजा को सौंपी थी। चैन्नई सबसे निचले पायदान पर खड़ा दिखा। सभी आइपीएल सत्रों में धोनी ही चैन्नई के कप्तान रहे। लोकतांत्रिकता में एक-छत्र सम्मान पाते रहे हैं। फाइनल के बाद धोनी से मिलने-मिलाने का जमावड़ा खूब जमा। पक्ष विपक्ष और निष्पक्ष भी उनको मिलने आए और सम्मान में फोटो खिंचाए गए। क्या धोनी के अलावा कोई और उत्तर का लाड़ला दक्षिण में अपने व्यवहार का डंका बजा सकता है?

खेलनीति हो या सत्तानीति। व्यवहार की कुशलता, नीति की नैतिकता और साथियों का सम्मान ही टिके रहने में मदद आता है। जी हां …… अगर धोनी है तो जीत होनी है।

By संदीप जोशी

स्वतंत्र खेल लेखन। साथ ही राजनीति, समाज, समसामयिक विषयों पर भी नियमित लेखन। नयाइंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर।

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