बेबाक विचार

‘मेजरिंग मुहम्मद’ (2021) और पुस्तकत्रयी

Byशंकर शरण,
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‘मेजरिंग मुहम्मद’ (2021) और पुस्तकत्रयी
वार्नर जोर देते हैं कि गैर-मुस्लिमों को इस्लाम के रिलीजियस भाग पर एक मिनट भी समय नष्ट नहीं करना चाहिए। उन की चिंता केवल इस्लामी राजनीति, यानी काफिर संबंधी बातों, निर्देशों, उदाहरणों की होनी चाहिए। चाहे मुस्लिम देश, या भारत, अमेरिका जैसे देशों में जहाँ अभी इस्लामी राज नहीं है। यदि काफिर अपनी दृष्टि से इस्लाम को तथ्यतः नहीं जानेंगे, तो कालगति में उन का खात्मा तय है! कोरोना के लॉकडाउन दौरान इस लेखक की पाठकीय उपलब्धि डॉ. बिल वार्नर की चार बेजोड़ पुस्तकें रहीं। भौतिकी के प्रोफेसर और गणितज्ञ, 80 वर्षीय वार्नर ने इस्लामी सिद्धांत-व्यवहार-इतिहास पर एक अभूतपूर्व अकादमिक काम किया है। इसमें उन्हें बीस वर्ष से भी अधिक लगे। उन्होंने प्रोफेट मुहम्मद की सब से प्रमाणिक जीवनियों, सारी हदीसों, और कुरान के सभी तरह के संस्करणों को मूल स्त्रोतों से खँगाल कर उसे वैज्ञानिक विधि, किन्तु काफिर (गैर-मुस्लिम) नजरिए से आमूल प्रस्तुत किया है। ऐसे कार्य को विद्वत क्षेत्र में जीवन का सर्वाधिक बहुमूल्य काम,( work of a life-time) कहा जाता है। इसी साल आई उन की पुस्तक ‘मेजरिंग मुहम्मद’ (292 पृष्ठ) से ही इस्लामी राजनीतिक सिद्धांत, प्रोफेट मुहम्मद के जीवन व कार्य, जिहाद, स्त्री, शरीयत, गुलामी, धिम्मी, और इन संबंधी विविध तर्क-वितर्क-कुतर्क का पर्याप्त आकलन हो जाता है। ऐसा प्रमाणिक कि आलोचक, इस्लाम-पक्षमंडक की बोलती बंद हो जाए। कारण यह कि वार्नर ने मूल इस्लामी स्त्रोतों के सिवा किसी को उद्धृत नहीं किया। वे उसे अनावश्यक मानते हैं। क्योंकि इस्लाम मुहम्मद से ही उठता और उऩ पर ही गिरता है। दुनिया के कोई मौलवी-मौलाना, ईमाम, प्रोफेसर, आदि मुहम्मद से भिन्न/विपरीत कुछ कहकर इस्लामी मतवाद में मान्य नहीं हो सकते। सो, मुहम्मद को जानना ही इस्लाम जानना है। शेष सारी बातें छलावा, या जान-बूझ कर खडी की गई धोखे की टट्टी, जिस के शिकार गैर-मुस्लिम और मुस्लिम दोनों रहे हैं। Read also कुछ क्लासिक और ‘ए पैसेज नार्थ’ इस पुस्तक से ठीक पहले अपनी ग्रंथ-त्रयी (Trilogy) में वार्नर ने सीरा (मुहम्मद की जीवनी), हदीस, व कुरान को काफिर नजरिए से मूल रूप में, संदर्भ सहित, रख कर विश्लेषित किया था। इस्लामी ग्रंथों को, पक्के गणितज्ञ के अनुरूप, तरह-तरह से वर्गीकृत करके प्रस्तुत किया। ऐसे कि कोई भी परीक्षण कर सके। जैसे, कुरान में 84 बार ‘सत्य’ true, truly  का तथा 46 बार ‘झूठ’, झूठे देवी-देवता, false deities, falsehood, आदि उल्लेख है। उस में लगभग 400 बार काफिर का उल्लेख है, जिसे अंग्रेजी अनुवादों में disbeliever और rejector, denier भी कहा है। उस में कोई 345 बार सीधा अर्थ है कि जो अल्लाह व उस के प्रोफेट को न माने, वह काफिर है। इस तरह ‘काफिर’ के बारे में सारी लिबरल, सेक्यूलर लच्छेदार बातें एक झटके से खंडित होती और सत्य सामने दिखने लगता है। संपूर्ण इस्लामी सिद्धांत का आधे से अधिक राजनीति, यानी काफिर व जिहाद पर हैं। वार्नर ने सुन्ना (सीरा व हदीस) तथा कुरान के शब्द आद्योपांत गिन कर, उस के पाठों (टेक्स्ट) का विषयवार हिसाब कर दिखाया कि इस्लाम 86 % राजनीति और 14 % रिलीजन है। तमाम सामग्री का 51% काफिरों पर केंद्रित है, जिस की मूल टेक ‘अल्लाह काफिरों का दुश्मन’ है! फलतः इस्लामी सिद्धांत-इतिहास मुख्यतः काफिरों के विरुद्ध हर तरह की कार्रवाई का निर्देश, उपाय, और उदाहरण है। सीरा में 81 %  सामग्री, कुरान में 64%, और सर्वमान्य हदीसों में 37%, यानी लगभग दो हजार हदीसें काफिरों/जिहाद के बारे में हैं। कुरान में बार-बार दूसरे देवी-देवताओं और उन्हें पूजने वालों को बुरा-भला कहा है। यहूदियों, क्रिश्चियनों, व मूर्तिपूजकों को निरंतर कोसा, अपशब्द तक कहे गए हैं। जैसे, ‘जानवर’, ‘अंधे’, ‘बहरे’, ‘गूँगे’ (कुरान 2:171) और ‘गंदे’, (22:30, 9:28), ‘बंदर’, ‘सुअर’ (5:60, 7:166), आदि। उस में जिहाद का साफ मतलब है, “कत्ल करना और कत्ल होना”, slay and be slain  (9:111, 47:4)। इस प्रकार, संपूर्ण इस्लामत्रयी के लगभग दस लाख शब्दों में राजनीतिक हिंसा को समर्पित शब्द 3,27,547 हैं -  लगभग एक तिहाई! Read also कोरोना काल की किताबें इसीलिए, वार्नर जोर देते हैं कि गैर-मुस्लिमों को इस्लाम के रिलीजियस भाग पर एक मिनट भी समय नष्ट नहीं करना चाहिए। उन की चिंता केवल इस्लामी राजनीति, यानी काफिर संबंधी बातों, निर्देशों, उदाहरणों की होनी चाहिए। चाहे मुस्लिम देश, या भारत, अमेरिका जैसे देशों में जहाँ अभी इस्लामी राज नहीं है। यदि काफिर अपनी दृष्टि से इस्लाम को तथ्यतः नहीं जानेंगे, तो कालगति में उन का खात्मा तय है! उन्हें वह सब जानना चाहिए जो उन के बारे में इस्लाम ने ठाना है। वरना इस्लाम उन का नाश कर देगा, क्योंकि यही उस का लक्ष्य है। इस लक्ष्य प्राप्ति की संपूर्ण विधि प्रोफेट मुहम्मद ने बताई और करके दिखाई है। उसी का अनुकरण करने की कड़ी ताकीद की। उस से विचलन पर मुसलमानों को भी घोर दंड और धमकियाँ दी है। वही सब कर-करके 14 सदियों से इस्लाम बढ़ता गया, एक से एक संपन्न-सुशिक्षित समाजों पर छल-बल से चढ़ कर, ध्वंस कर उसे देर-सवेर मुसलमान बनाया। वह प्रक्रिया कभी नहीं रुकी, और आज भी जारी है। अफ्रीका से एसिया, यूरोप से अमेरिका तक उसे समरूप देख सकते हैं, यदि जानबूझ कर न देखना चाहें तो। बड़ी अनोखी बात कि यह सब खुले तौर पर, घोषणा करके, सब के सामने, सारी दुनिया में, हर तरीके से, हर तरह के मुस्लिम संगठन कर रहे हैं – किंतु काफिर जगत सूरदास बना बैठा है। उलटे, हर तरह से इस्लाम की मदद करता है। बड़े-बड़े काफिर नेता, जज, प्रोफेसर, संपादक, इस्लाम पर कुछ भी नहीं जानते। चौदह सौ वर्षों से चल रहे जिहाद का इतिहास किसी विश्वविद्यालय में नहीं पढ़ाया जाता, परन्तु ‘इस्लामिक स्टडीज’ के विभाग ठसक से चलते हैं। वार्नर के शब्दों में, ‘‘सुन्ना और टूना में फर्क नहीं कर सकते’’, पर इस्लाम पर लच्छेदार भाषण देते और इस्लामोफोबिया पर नीतियाँ बनाते हैं! इस तरह, अपने ही क्रमशः नाश का प्रबंध करते हैं। यह अमेरिका, यूरोप, भारत, जैसे देशों में शासकों, बुद्धिजीवियों द्वारा एक समान अज्ञान और अहंकार के साथ हो रहा है। इस संबंध में, ‘मेजरिंग मुहम्मद’ में जिहाद और धिम्मी संबंधी अध्याय अत्यंत मौलिक विश्लेषण है। Read also बादशाह ख़ान से डोगोन तक डॉ. बिल वार्नर की यह पुस्तकें कितनी जरूरी हैं, इस का अनुमान इस से हो सकता है कि जब इन पर आधारित इस लेखक की (नीरज अत्री के साथ) एक हिन्दी वीडियो-वार्ता सिरीज कश्मीरी कवि डॉ. कुंदन लाल चौधरी ने क्रमशः देखी, तो अंतिम वीडियो के बाद उन्होंने संदेश भेजा कि यह वीडियो सामग्री आपके जीवन भर के काम जैसा मूल्यवान है। इसे पुस्तक रूप में भी अवश्य प्रकाशित करवाएं। निस्संदेह, गत चार दशकों से विविध साहित्य, इतिहास, और राजनीति अध्ययन के आधार पर कहें तो बिल वार्नर की ये पुस्तकें पढ़ना इस वर्ष की ही नहीं, जीवन भर की एक उपलब्धि है।
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