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अयन परिवर्तन कालखंड में मनाई जाती है ‘मकर संक्रांति’

हम लोगों में से बहुत कम लोग जानते हैं कि मकर संक्रांति का पर्व क्यों मनाया जाता है और वह भी प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही क्यों? हम जानते हैं कि ग्रहों एवं नक्षत्रों का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। इन ग्रहों एवं नक्षत्रों की स्थिति आकाशमंडल में सदैव एक समान नहीं रहती है। हमारी पृथ्वी भी सदैव अपना स्थान बदलती रहती है। यहां स्थान परिवर्तन से तात्पर्य पृथ्वी का अपने अक्ष एवं कक्ष-पथ पर भ्रमण से है।

भा रत पर्वों एवं त्योहारों का देश है यहां कोई भी महीना ऐसा नहीं हैं, जिसमें कोई न कोई त्योहार न पड़ता हो, इसलिए अपने देश में यह उक्ति प्रसिद्ध है कि ‘सदा दिवाली साल भर, सातों बार त्योहार’। इन्हीं त्योहारों में ‘मकर संक्रांति’ भी है, जिसकी अपनी एक अलग ही विशेषता एवं आधार है। हम लोगों में से बहुत कम लोग जानते हैं कि मकर संक्रांति का पर्व क्यों मनाया जाता है और वह भी प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही क्यों? हम जानते हैं कि ग्रहों एवं नक्षत्रों का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। इन ग्रहों एवं नक्षत्रों की स्थिति आकाशमंडल में सदैव एक समान नहीं रहती है। हमारी पृथ्वी भी सदैव अपना स्थान बदलती रहती है। यहां स्थान परिवर्तन से तात्पर्य पृथ्वी का अपने अक्ष एवं कक्ष-पथ पर भ्रमण से है।

पृथ्वी की दैनिक गति के अलावा पृथ्वी की एक वार्षिक गति भी होती है और यह एक वर्ष में सूर्य की एक बार परिक्रमा करती है। पृथ्वी की इस वार्षिक गति के कारण इसके विभिन्न भागों में विभिन्न समयों पर विभिन्न ऋतुएं होती हैं, जिसे ऋतु परिवर्तन कहते हैं। पृथ्वी की इस वार्षिक गति के सहारे ही गणना करके वर्ष और मास आदि की गणना की जाती है। इस काल गणना में एक गणना ‘अयन’ के संबंध में भी की जाती है। इस क्रम में सूर्य की स्थिति भी उत्तरायण एवं दक्षिणायन होती रहती है। जब सूर्य की गति दक्षिण से उत्तर होती है तो उसे उत्तरायण एवं जब उत्तर से दक्षिण होती है तो उसे दक्षिणायण कहा जाता है। इस अयन परिवर्तन के काल को ही मकर संक्रांति कहते हैं जो भारत की सनातन संस्कृति परंपरा में एक महत्वपूर्ण त्योहार के रूप में मनाया जाता है।

मकर संक्रांति पर्व अपने आप में अनेकों विशेषताओं को समाहित किए हुए एक लोक पर्व, वैदिक पर्व ,सामाजिक-सांस्कृतिक पर्व, कृषि पर्व और वैज्ञानिक पर्व है। अगर देश की अर्थव्यवस्था के साथ भी जोड़ा जाए तो गजक, तिलकुट, चूड़ा, मूंगफली, दूध, दही, पतंग व्यवसाय में करोड़ों अरबों का टर्न ओवर होता है ओर करोड़ों लोगों को रोजगार प्राप्त होता है। संपूर्ण भारत को जोड़ने वाला पूरे ब्रह्मांड के खगोलीय घटनाक्रम का यह त्योहार भारत का एक विशिष्ट पर्व है, जिसकी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं को संरक्षित करते हुए आधुनिकता की दौड़ में भागी जा रही नई पीढ़ी को बताने की जरूरत है। गीता के आठवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा भी सूर्य के उत्तरायण का महत्व स्पष्ट किया गया है:

अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम् ।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ৷।

श्रीकृष्ण कहते हैं कि ‘हे भरतश्रेष्ठ! ऐसे लोग, जिन्हें ब्रह्म का बोध हो गया हो, अग्निमय ज्योति देवता के प्रभाव से जब छह माह सूर्य उत्तरायण होता है वेदशास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़नेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होने वाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है। यहां प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है। संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपना प्राण तब तक नहीं छोड़ा, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई। यह पर्व संपूर्ण भारत सहित कई देशों में भी मनाया जाता है।

केरल और कर्नाटक में इसे संक्रांति कहा जाता है और तमिलनाडु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल के स्वागत में लोहड़ी पर्व मनाया जाता है। वहीं असम में बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है। बिहार में आमतौर पर इसे ‘खिचड़ी’ कहते हैं, जिसमें चुड़ा, गुड़, दही, दूध साथ ही नए चावल, मटर, सब्जियों के मिश्रण से स्वादिष्ट खिचड़ी बनती है। धान की फसल के तैयार होने के मौके पर एक महान उत्सव के रूप मनाया जाता है। ये लोकपर्व है कोई कर्मकांडी पर्व नहीं है। छठ पर्व की तरह इसके प्रसाद तिल, तिलकुट, खिचड़ी संपूर्ण समाज को मिल बांटकर खाने की हमारी संस्कृति का भी पर्याय है। ब्राह्मण पुरोहित, बेटी बहन को खिचड़ी देने की परंपरा है।

इसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है। इस समय तंत्र साधना भी की जाती है। इस काल में देव प्रतिष्ठा, गृह निर्माण, यज्ञ कर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैं। मकर संक्रांति को स्नान और दान का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन तीर्थों एवं पवित्र नदियों में स्नान का भी महत्व है। इस पर्व के पकवान भी विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग होते हैं। तिल, गुड़ खिचड़ी, महत्वपूर्ण पकवान हैं। इस दिन किए गए दान से सूर्य देवता प्रसन्न होते हैं। दाल और चावल की खिचड़ी इस पर्व की प्रमुख पहचान है खिचड़ी खाने का महत्व है। इसके अलावा तिल और गुड़ का भी भी संक्राति पर बेहद महत्व है।

मकर संक्रांति को अनेक स्थानों पर पतंग महोत्सव भी मनाया जाता है। प्राचीन भारतीय साहित्य में भी पतंग उड़ाने का उल्लेख मिलता है। रामचरितमानस के बालकाण्ड में श्री राम के पतंग उड़ाने का वर्णन है कि, ‘राम इक दिन चंग उड़ाई, इंद्र लोक में पहुंची जाई’। बड़ा ही रोचक प्रसंग है। पंपापुर से हनुमान जी को बुलवाया गया था, तब हनुमान जी बाल रूप में थे, जब वे आए, तब ‘मकर संक्रांति’ का पर्व था, संभवतः इसलिए भारत के अनेक नगरों में मकर संक्रांति को पतंग उड़ाने की परंपरा है। यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थ्यवर्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। अतः पतंग उड़ाने का एक उद्देश्य कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना भी है। (लेखक विश्व भोजपुरी सम्मेलन संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं एवं मैथिली भोजपुरी अकादमी दिल्ली के उपाध्यक्ष रहे हैं।)

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