लखनऊ। ‘भागीदारी मोर्चा तो छलावा है, हमें तो भाजपा के साथ पेंगें बढ़ाना है’। सुहेलदेव भारतीय जनता पार्टी नेता ओमप्रकाश राजभर पर ये बात पूरी तरह फिट बैठती है। राजभर के हालिया बयान इस बात पर मोहर लगाते हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव, मुस्लिम सियासत की धुरी असदुद्दीन ओवैसी और शिवपाल सिंह यादव की देहरी की परिक्रमा करने के बावजूद राजभर भाजपा का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। पिछड़ी जातियों को न्याय दिलाने के मुद्दे पर योगी सरकार से बगावत कर इस्तीफा देने वाले राजभर अब एक बार फिर भाजपा से गठबंधन के लिए तोल मोल में जुट गये हैं। om prakash rajbhar bjp
उत्तर प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा को लेकर यूपी तैयारियां शुरू हो चुकी है। राज्य में एक बार फिर सरकार बनाने के लिए भाजपा ने जातियों की गोलबंदी की कोशिशें तेज कर दी है। ‘निषाद पार्टी’ और कुर्मी जाति की ‘अपना दल’ को साथ लेने के बाद अब भाजपा की नजर राजभर वोटों पर लग गयी है। भाजपा खासकर सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर भी एक बार फिर से भाजपा के साथ सियासी पारी खेलने को तैयार बैठे हैं। हालांकि दिखावे के लिए ही सही, पर फिर से भाजपा के साथ आने के लिए राजभर ने कुछ शर्तें रखी हैं। उम्मीद जतायी जा रही है कि वे जल्द ही भाजपा के साथ गठबंधन का एलान कर सकते हैं। उन्हें बस कुछ शर्तों पर भाजपा भी औपचारिक मंजूरी का इंतजार है। भाजपा भी इस गठबंधन को आतुर नजर आ रही है।
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर शुक्रवार को दशहरा के दिन काफी बिजी नजर आये। उन्होंने जनाधिकार पार्टी के अध्यक्ष बाबू सिंह कुशवाहा के साथ भागीदारी संकल्प मोर्चा को मजबूत करने को लेकर बैठक की और फिर राजधानी में प्रेस कांफ्रेस को संबोधित किया। राजभर ने प्रेस कांफ्रेंस में संकेत दिया कि अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनावों से पहले वो एक बार फिर उनकी पार्टी भाजपा के साथ गठबंधन कर सकते हैं। राजभर ने कहा कि हमारी कुछ शर्तें हैं। अगर वो मान ली जाती हैं तो हम एक बार फिर साथ आ सकते हैं। राजभर ने कहा कि हमारे मुद्दों के साथ जो पार्टी होगी, हम उसका साथ देंगे। हम पूरे प्रदेश में पूर्ण शराब बंदी, मुफ्त शिक्षा, न्याय समिति रिपोर्ट की सिफारिश लागू करने को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ”सबका साथ-सबका विकास” का दावा करने वाली भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा में से जो भी दल उनकी शर्तें स्वीकार करने को तैयार होगा, उसके साथ गठबंधन की घोषणा आगामी रैली में की जाएगी। राजभर ने कहा कि सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को स्वीकार करने के अलावा, यदि भाजपा स्नातकोत्तर तक शिक्षा मुफ्त करने के लिए तैयार है, घरेलू बिजली बिल की माफी, शराबबंदी, पुलिस की सीमा, पुलिस बल को साप्ताहिक अवकाश, होमगार्डों को पुलिस के समान सुविधाएं दें, फिर हम गठबंधन करेंगे। हालांकि, इस मौके पर उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा सहित जो भी दल सत्ता में रहे उन्होंने पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग की जातियों और गरीबों को उनका अधिकार नहीं दिया।
राजभर ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि 27 अक्टूबर को पार्टी का 19वां स्थापना दिवस है। इसी दिन घोषणा होगी कि हम किसके साथ गठबंधन करेंगे ? भागीदारी संकल्प मोर्चा मजबूत है। 27 तारीख को हमारा मोर्चा एक मंच पर दिखेगा। उन्होंने कहा कि 27 अक्टूबर को मऊ की रैली में वंचित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक वर्ग को संबोधित करेंगे। इस दौरान मंच पर भागीदारी संकल्प मोर्चा में शामिल सभी दल मंच पर मौजूद रहेंगे।
राजभर ने कहा कि भागीदारी संकल्प मोर्चा कुछ मुद्दों को लेकर बनाया गया था। इसलिए जो भी राजनीतिक दल उन मुद्दों को मानेगी, हमारी पार्टी उसके साथ गठबंधन करेगी। भागीदारी संकल्प मोर्चा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने कहा कि सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को लेकर हमने भाजपा से चर्चा की थी। लेकिन भाजपा ने हमारी बात नहीं मानी। अब भाजपा ये बात मान ले तो हम उसके भी साथ जा सकते हैं। राजभर ने कहा कि 27 अक्टूबर को तय होगा कि हम किसके साथ गठबंधन करेंगे।सूत्रों ने बताया कि मऊ रैली के लिए राजभर ने काफी वृहद तैयारी की है। इस रैली में जाने के लिए लखनऊ में दो हेलीकाप्टर भी बुक किये गये हैं। रैली में भाग लेने लखनऊ से कई प्रमुख नेता मऊ जाएंगे। इन नेताओं का नाम फिलहाल गुप्त रखा गया है।
भागीदारी संकल्प मोर्चा के नेता बाबू सिंह कुशवाहा ने इस दौरान कहा कि उनका सिद्धांत है कि ”जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी”। इसी आधार पर मोर्चा बनाया गया है। उन्होंने साफ किया कि हम सपा और भाजपा दोनों का विरोध करते हैं। भाजपा संविधान मिटाना चाहती है जबकि सपा वोट लेना चाहती है, लेकिन हिस्सा नहीं देना चाहती’। उन्होंने कहा कि हम लोगों को भाजपा से भी कोई उम्मीद नहीं। बसपा से हमारी कोई बातचीत नहीं चल रही। गठबंधन से पहले ओम प्रकाश राजभर ने कुछ शर्तें रखी हैं और वो ये चाहते हैं कि गठबंधन से पहले इन शर्तों पर उन्हें ठोस आश्वासन दिया जाय।
राजभर के भाजपा से रूठने और फिर उससे हाथ मिलाने की दास्तान भी अनूठी है। भाजपा के सहारे अपनी ताकत बढ़ाने वाले राजभर ने सिद्ध किया है कि राजनीति में न कोई स्थाई दोस्त होता है और न स्थाई दुश्मन। राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 2017 का विधानसभा चुनाव भाजपा के मिलकर लड़ा था। उस चुनाव में राजभर की पार्टी की चार सीटें मिली थीं। ओमप्रकाश राजभर योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। लेकिन सरकार में रहकर भी वे लगातार भाजपा सरकार को घेरते रहे। इसी कारण मई 2019 में उन्हें योगी सरकार से बर्खास्त कर दिया गया था। भाजपा सरकार से हटते के बाद उन्होंने भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाया और राज्य में 403 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान किया था।
योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री रहे राजभर पिछड़ों के आरक्षण के बंटवारे को लेकर लगातार भाजपा से भिड़ते रहे थे और 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले योगी सरकार से बाहर हो गए थे। लेकिन भागीदारी मोर्चा को मजबूत करने की कोशिशों के बावजूद राजभर ने कभी भाजपा से बातचीत के रास्ते बंद नहीं किये। राजभर ने अगस्त के महीने में उत्तर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह से मुलाक़ात की थी। स्वतंत्र देव से मुलाकात के बाद संभावित गठबंधन को लेकर उन्होंने कहा था कि राजनीति में कुछ भी संभव है। तब राजभर ने कहा था कि वह भाजपा के साथ गठबंधन करने पर विचार कर सकते हैं, बशर्ते वह मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए ओबीसी समाज के किसी नेता के नाम का एलान करे। उनका इशारा था कि भाजपा योगी आदित्यनाथ के अलावा किसी पिछड़े को सीएम का चेहरा बनाया जाए। भाजपा ने आगामी चुनाव योगी के चेहरे पर लड़ने का एलान कर दिया है। ऐसे में भाजपा राजभर की ये शर्त शायद ही स्वाकार करे। ओम प्रकाश राजभर ने तब ये भी दावा किया था कि भारतीय जनता पार्टी के 150 विधायक उनके संपर्क में हैं।
ओमप्रकाश राजभर और बाबू सिंह कुशवाहा की अगुवाई में पांच दलों ने पिछले साल भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाने का ऐलान किया था। भागीदारी संकल्प मोर्चा में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, जन अधिकार पार्टी, राष्ट्र उदय पार्टी, उपेक्षित समाज पार्टी और जनता क्रांति पार्टी शामिल हैं। बाद में इसमें असदुद्दीन ओवैसी की एमआईएमआईएम व भीम आर्मी के चन्द्रशेखर रावण भी शामिल हो गये थे। इस समय लगभग 10 राजनीतिक दल ‘भागीदार संकल्प मोर्चा’ में हैं। भागीदारी संकल्प मोर्चा ने 403 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान किया था। अब सवाल ये उठता है कि राजभर के भाजपा के साथ हाथ मिलाने की स्थिति में भागीदारी मोर्चा के अहम घटक असदुद्दीन ओवैसी, शिवपाल सिंह यादव और भीम आर्मी के चन्द्रशेखर रावण को वे क्या जवाब देंगे ? ओवैसी की पार्टी ने एलान कर दिया है कि राजभर के भाजपा के साथ जाने पर वो उनके साथ नहीं रहेगी।
यूपी के ताजा सियासी माहौल में भाजपा के लिए ओमप्रकाश राजभर को साथ मिलाना जरूरी हो गया है। केन्द्र के कृषि कानूनों को लेकर पहले से किसानों का विरोध झेल रही भाजपा लखीमपुर खीरी की घटना के बाद यूपी में बैकफुट पर है। भाजपा किसानों और विपक्ष के हमलों से बुरी तरह घिरी हुई है। यूपी में भाजपा बेहद मुश्किल दौर का सामना कर रही है। पिछड़ी जातियों को साधने के लिए पार्टी ने निषाद पार्टी और अपना दल के साथ गठबंधन किया हुआ है। लेकिन ओम प्रकाश राजभर के कारण यदि राजभर वोट भाजपा से छिटकता है तो ये उसपर भारी पड़ सकता है। पूर्वांचल के कुछ जिलों में राजभर का अच्छा जनाधार है और वह भागीदारी संकल्प मोर्चा के जरिये उसे सियासी नुक़सान पहुंचा सकते हैं। इसलिए भाजपा खट्टे मीठे अनुभवों के बावजूद चाहती है कि राजभर उसके साथ आ जाएं।
पूर्वांचल के 29 जिलों में लगभग 146 सीटों पर राजभर वोट बैंक अच्छी खासी संख्या में हैं। ऐसे में बीजेपी किसी भी कीमत पर चुनाव में कोई भी रिस्क नहीं उठाना चाहती। इसीलिए लगातार बीजेपी ओमप्रकाश राजभर के संपर्क में रही। 2022 के चुनाव में राजभर को साथ लाए जा सके और अब उसे कामयाबी मिलती दिख रही है।
राजभर के अनुसार जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव में राजभर की पार्टी से जुड़े 117 सदस्य जीते थे। साथ ही2700 ग्राम प्रधान चुने गए और 1800 बीडीसी बीडीसी सदस्य जीते। बलिया आजमगढ़ में बीजेपी को जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव हराने में राजभर ने बड़ी भूमिका भी निभाई। ये प्रदर्शन राजभर की सियासी ताकत दर्शाती है। ऐसे में अब यदि भाजपा और राजभर साथ आ जाते हैं तो निश्चित रूप से यह गठबंधन के लिए फायदेमंद साबित होगा।