nayaindia Modi Adani scammed बीस हजार करोड़ रू का घर-घर, गली-गली शोर?
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बीस हजार करोड़ रू का घर-घर, गली-गली शोर?

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राहुल का सवाल यही तो है कि यह बीस हजार करोड़ रुपया किसका है जो अडानी को दिया गया?…यदि विपक्ष तरीके से इसे उठा सका तोयह बोफोर्स की तरह घर-घर, गली-गली में शोर बनाए होगा। क्योंकि यह हर आदमी का पैसा है।… जनता को समझाना होगा कि यह बीस हजार करोड़ रुपए वापस उसके पास कैसे आ सकते हैं? राहुल खुद न कहना चाहें तो खडगे कहें कि विपक्ष की सरकार बनेगी तो पहला फैसला होगा अडानी से वसूल कर बीस हजार करोड़ रू. की लोगों की जेब में वापसी होगी।

ये ज्यादा हो गया! यह आम आदमी की भावना है। उनकी भी जो राजनीतिक नहीं हैऔर पिछले दो लोकसभा चुनावों से मोदी को वोट दे रहे थे।

राहुल को पहले मानहानि के मामले में अधिकतम सज़ा फिर उनकी लोकसभा सदस्यतारद्द करना और फिर एक महीने में उनसे सरकारी आवास खाली करवाने का नोटिस।

देश में एक सहज बुद्धि है। न्याय की भावना। इंसानियत की अन्तरधारा। येसदियों से बह रही है। राम जब वनवास के लिए जाते हैं तो दूर तक लोग साथचलते रहते हैं। “लोग प्रेम बस फिरहिं न फेरे! “ रामचरित मानस मेंतुलसीदास ने लोगों के मनोविज्ञान का बहुत सुदंर वर्णन किया है। राम लाखसमझा रहे हैं मगर लोग वापस नहीं जा रहे। महाभारत में भी जब छल से जुआजीता जाता है और पांडवों को वनवास जाना पड़ता है तो लोग कुछ नहीं कर सके।मगर सबकी सहानुभूति पांडवों के साथ थी। सब के अंदर से एक ही आवाज  रही थीकि ये ज्यादा है!

यहां कोई किसी की तुलना नहीं है। सिर्फ भारतीय मनीषा की बात है। यहांन्याय के सिंहासन पर बैठकर बारिकियों से अनजान गड़रिया भी न्याय केसिद्धांतों की बात करता था।

इसे एक मौका देना चाहिए। भारतीय संस्कार इस तरह की बात करता है। लेकिनमौके से पहले वह व्यक्ति की साधना उसका अनुभवों, संघर्षों से तपना भीदेखता है। अटल बिहारी वाजपेयी को 1999 में इसी तरह जनता ने मौका दिया था।और 2004 में सोनिया गांधी को। याद कीजिए दोनों समय कोई हवा नहीं थी। बसएक सहानुभूति की अन्तरधारा थी। इनके साथ न्याय होना चाहिए की भावना।

सन् 2014में मोदी जी की जीत अलग माहौल थी। वह बनाया गया था। अन्ना हजारे के जरिए।जिसका उपयोग करके मोदी जी सत्ता में आए और फिर उन्होंने अपना नेटवर्कबनाया। खासतौर से हिन्दु बनाम मुसलमान की राजनीति से इसे मजबूत किया। 2014 मेंतो वे विकास के नाम पर आए थे मगर फिर नफरत और विभाजन की राजनीति इतनी तेजहुई कि लोगों की सामान्य बुद्धि दब गई। धर्म के नाम पर लोग अतिवादीभावनाओं का शिकार हो गए।

अब पहली बार इसमें डेंट हुआ है। लोगों को लग रहा है कि राहुल के साथअन्याय हो रहा है। जैसा दिनकर ने कहा है जनता इसी तरह बीच बचाव की बातसोचती है कि-

“ दो न्याय अगर तो आधा दो

पर इसमें भी यदि बाधा हो

तो दे दो केवल पांच ग्राम

रक्खो अपनी धरती तमाम “

यह कृष्ण कह रहे हैं। दुर्योधन से। कृष्ण भारतीय जनमानस में सबसे ज्यादारचे बसे नायक। और सबको मालूम है इसके बाद फिर बाजी पलट गई थी।

आज राहुल के पक्ष में नरेटिव बन गया है। आम जनता से लेकर विपक्षी नेताओंके बीच तक। केजरीवाल, अखिलेश, ममता, केसीआर सब साथ आ गए। नेता जनता कीनब्ज को सबसे सही जानते हैं। उनमें एक छठी इन्द्रीय होती है। वह दूर सेपरिवर्तन की आहट सुन लेती है। सबको समझ में आ गया कि जिस तरह राहुल को

घेरा जा रहा है उसी तरह एक एक करके सबको घेरा जाएगा। इजराइल में जनता काविद्रोह सब देख रहे हैं। इतने ताकतवार प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहूके खिलाफ। वहां की जनता भी लोकंतत्र के खत्म होने से डरी हुई है। इसी तरहफ्रांस में भी राष्ट्रपति इमेन्यूअल मेक्रान के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा है।

भारत के निराशा में डूबे विपक्ष के लिए यह आशा के संकेत हैं।अन्तरराष्ट्रीय स्तर से लेकर देश के अंदर हो रही तेज हलचलों से। राहुल काबीस हजार करोड़ रुपए का सवाल चल गया है। यदि विपक्ष तरीके से इसे उठा सका तोयह बोफोर्स की तरह घर-घर पहुंच जाएगा। और शायद उससे भी ज्यादा। क्योंकियह हर आदमी का पैसा है।

राहुल का सवाल यही तो है कि यह बीस हजार करोड़ रुपया किसका है जो अडानीको दिया गया? जनता शैल कंपनी नहीं समझती। उसे तो आम भाषा में बतानापड़ेगा। कांग्रेस इसमें थोड़ी कमजोर है। वह तकनीकी और कानूनी भाषा बोलतीरहती है। जैसे राहुल ने अपने बायो में लिख लिया डिस्क्वालिफाई मेम्बर। अबभाजपा और मीडिया इसका अर्थ अयोग्य बताकर जनता को भरमा रही है। क्या जरुरतथी इस शब्द को लिखने की। सांसद हटा दो। खाली राहुल गांधी रहने दो। राहुलके नाम में अब बहुत वज़न आ गया है। अच्छा वकील जैसे अपनी ड्राफ्टिंग मेंएक शब्द ऐसा नहीं लिखता कि उससे विपक्षी वकील को फायदा हो। अच्छे ड्राफ्टमें कम शब्द लिखे जाते हैं। याचिका में विस्तार की गुंजाइश हमेशा रहतीहै। बाद में जब जरूरत हो और संशोधन किया जा सकता है। मगर फर्स्ट ड्राफ्टमें तो बहुत सटीक लिखना होता है।

ऐसे ही बेवजह सावरकर के मामले को बढ़ाया जा रहा है। अभी चार दिन पहले जबकांग्रेस के सोशल मीडिया ने बिना प्रसंग के लिख दिया था राहुल गांधी हैंसावरकर नहीं तो हमने टीवी पर बोला और ट्वीट भी किया कि यह आ बैल मोए मारकरने की क्या जरूरत है। भक्त कांग्रेस में भी होते हैं। पड़ गए हमारेपीछे। और माहौल का प्रभाव ऐसा होता है कि बहुत अनुभवी आदमी ही इससे बचपाता है। राहुल ने फिर इसे हुई अपनी हालिया प्रेस कान्फ्रेंस में दोहरादिया। इस बार शिवसेना संयम नहीं रख सकी। उसने सार्वजनिक रूप से विरोधकिया। उद्धव ठाकरे खुद बोले और शिवसेना कांग्रेस अध्यक्ष खडगे के डिनरमें नहीं गई। फिर मंगलवार को सुबह संसद में हुई विपक्षी दलों की बैठक मेंभी शिवसेना शामिल नहीं हुई। शिवसेना वह पार्टी है जिसने राहुल की यात्रा

में सबसे पहले समर्थन किया था। और उद्धव के बेटे आदित्य सहित अन्य नेताराहुल के साथ चले थे। फिलहाल शिवसेना लचीला रुख अपनाए हुए है। मामला सुलझजाएगा मगर बेवजह दो दिन के लिए तो भाजपा और मीडिया को मौका मिल गया।

सावरकर की महाराष्ट्र के बाहर कोई पहचान नहीं है। कांग्रेस जबर्दस्तीउन्हें चर्चित कर रही है। 2019 में जब राहुल ने पहली बार कहा था तबमहाराष्ट्र में शिवसेना के साथ नई गठबंधन सरकार बनी थी। शिवसेना ने तब भीविरोध किया था।

एक छोटी सी बात समझने की है कि सावरकर कोई विचारधारात्मक इश्यू नहीं है।इतिहास में ऐसे जाने कितने लोग हुए हैं जिनसे कांग्रेस की विचारधारा

टकराती है। मगर इन पर बात तभी की जाती है जब कोई बड़ा सैद्धांतिक कारणहो। माफी नहीं मागूंगा कहने के लिए हर बार उनकी याद आना राजनीतिकपरिपक्वता नहीं है। केवल इतना कहना कहना पर्याप्त है कि मेरा नाम राहुलगांधी है। बाकी अनकहे शब्द अपने आप लोगों तक पहुंच जाएंगे। और जो नहींकहा जाता है उसमें सबसे ज्यादा ताकत होती है।

कहने की जरूरत आज यह है कि इस बीस हजार करोड़ रुपए से क्या क्या हो सकताहै। पहली बात तो यह जनता को साफ बताना चाहिए कि यह पैसा उसका है। नोटबंदीके समय जमा कराया गया। नए नोट छापने में क्या क्या गड़बड़ें हुई क्यासंदेह हैं। इन्हें बोलना पडेगा। जनता एबस्टर्ड ( अमूर्त) में नहीं समझती।उसे तो यह बताना पड़ेगा कि यह बीस हजार करोड़ रुपए वापस उसके पास कैसे आसकते हैं। अगर उसका पैसा है जैसा कि राहुल कहते हैं तो उसके पास वापस कबआएंगे। विपक्ष की सरकार बनने के बाद यह राहुल को और बाकी विपक्ष को कहनाहोगा।

राहुल खुद न कहना चाहें तो खडगे कहें कि विपक्ष की सरकार बनेगी तो पहला फैसला होगा अडानी से वसूल कर बीस हजार करोड़ रू. की लोगों की जेब में वापसी होगी।

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By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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