भोपाल। मध्य प्रदेश की सियासत में कल क्या होगा …? इसका उत्तर 13 मई कर्नाटक चुनाव नतीजे के बाद आएगा। कांग्रेस और भाजपा में कौन पद पर बना रहेगा बचेगा, कौन जाएगा, किसका कद बढ़ेगा किसका घटेगा यह सब मई के दूसरे सप्ताह से तय होना शुरू हो जाएगा। प्रदेश के दो बड़े दल कांग्रेस-भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कर्नाटक चुनाव में व्यस्त है इसलिए राज्य की राजनीति और नेताओं के बारे में सब कुछ पता होने के बाद भी फैसलों की घोषणा होने में 15 दिन का वक्त तो लगेगा ।
सूबे में भाजपा को लेकर अगर सोचे तो 15 अप्रैल को 14 वरिष्ठ नेताओं ने जमीनी कार्यकर्ताओं से संवाद कर अपनी अपनी रिपोर्ट पार्टी हाईकमान को वरिष्ठ नेता शिव प्रकाश के मार्बत सौंप दी है। इसका आशय यह निकाला जा सकता है कि प्रदेश में संगठनों सरकार का मर्ज शीर्ष नेतृत्व को पता चल चुका है अब उसके जहां तक इलाज की बात है वह भी तय हो चुका होगा उस पर अमल कर्नाटक चुनाव के बाद होता हुआ सबको दिखेगा। प्रदेश भाजपा में छोटे-मोटे बदलाव हो रहे हैं मसलन संवाद प्रमुख लोकेंद्र पाराशर को नई जिम्मेदारी देते हुए प्रदेश भाजपा का मंत्री बना दिया गया है उनके स्थान पर ग्वालियर से संबंध रखने वाले आशीष अग्रवाल संवाद प्रमुख बनाए गए । इसके पूर्व प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण संभाग इंदौर के प्रभारी राघवेंद्र गौतम को बनाया गया है। यह दायित्व प्रदेश भाजपा के महामंत्री भगवानदास सुनाने के पास था। ऐसे में लगता है संगठन में बदलाव शुरू हो गया है । जहां तक शिवराज सरकार का सवाल है केंद्रीय नेतृत्व मंत्रिमंडल विस्तार के प्रस्ताव को डाल दिया था उम्मीद की जा रही है 15 मई के बाद इस मुद्दे पर भी स्थिति साफ हो जाएगी।
विस्तार में विलंब को लेकर भी सियासी अटकल बाजी आज चल रही हैं। चुनावी साल में केंद्रीय नेतृत्व कितने घोड़े और सेनापति बदलेगा इसका अंदाजा भी किसी को नहीं है। लेकिन संगठन इस बात से जरूर चिंतित है कि उसके बहुत से पदाधिकारी संगठन का दायित्व उठा रहे हैं और चुनाव लड़ने की इच्छा भी जता रहे। इससे संगठन को बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है चुनाव लड़ने के इच्छुक पदाधिकारी ना तो संगठन में ठीक से समय दे पा रहे हैं और ना अपने क्षेत्र में जहां से वह चुनाव लड़ना चाहते हैं। दूसरा यह कि जो कार्यकर्ता क्षेत्र में चुनाव की तैयारी कर रहे हैं वह चुनाव लड़ने के इच्छुक उन पदाधिकारियों को लेकर अजीब सी दुविधा में है आखिर वह उनके साथ सहयोग करे या फिर विरोध । क्योंकि जो पदाधिकारी हैं वही उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदी भी हैं।ऐसे में संगठन के भीतर अंतर कलह का दौर शुरू हो गया है जिसे संभालना संगठन के लिए टेढ़ी खीर लगता है। भाजपा कमजोर नेताओं के कारण कांग्रेस की तुलना में डैमेज कंट्रोल में पिछड़ गई है। नगर निगम चुनाव इसके जीते जागते उदाहरण हैं। सबको पता है कि प्रभारी नेता शिवप्रकाश जी के प्रदेश के नेताओं की पूरी कुंडली आ चुकी है। रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष गुण दोष और निर्णय से होने वाले नफा नुकसान को ध्यान में रख निर्णय कर लिया जाएगा। इसमे कर्नाटक चुनाव के नतीजे महत्वपूर्ण रहेंगे।
कांग्रेस के विश्वास में इजाफा
चुनाव को लेकर मध्य प्रदेश कांग्रेस में विश्वास 2018 की तुलना में खासा बढ़ा हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की सक्रियता और कमलनाथ का भी एक्टिव मोड पर आना कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को मैदान में सक्रिय कर रहा है इसके पीछे सबसे खास बात यह है कि भाजपा कार्यकर्ताओं की सुस्ती और जनता में एंटी इनकंबेंसी कांग्रेस को उत्साहित कर रही है। भाजपा के असंतुष्ट पर कांग्रेस नेताओं की ना केवल नजारे बल्कि भी उनसे संपर्क भी बनाए हुए इसलिए टिकट वितरण के दौरान भाजपा की बनावत को कॉन्ग्रेस हवा देने की तैयारी कर रही है इसमें भाजपा के बागियों को टिकट देना भी रणनीति का महत्वपूर्ण पहलू हो सकता है।