जीवन मंत्र

नाखूनों का संक्रमण, लापरवाह न रहे

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नाखूनों का संक्रमण, लापरवाह न रहे
नेल फंगल इंफेक्शन से ग्रस्त ज्यादातर लोग डॉक्टर के पास न जाकर घरेलू नुस्खे आजमाते हैं। वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की 10 प्रतिशत वयस्क आबादी नाखूनों के संक्रमण से पीड़ित है और इनमें महिलायें कम पुरूष ज्यादा हैं। खेती-किसानी करने वाले अक्सर  इस संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं।  इलाज न कराने से उंगलियों और अगूठों में दर्द के साथ दुर्गन्ध और जूते पहनने पर यह दर्द तेज होता है और धीरे-धीरे सेल्युलाइटिस जैसे गम्भीर संक्रमण में बदल जाता है। आपने देखा होगा कि कुछ लोगों के नाखून अंदर की ओर मुड़े, भद्दे-मोटे, मटमैले या गहरे पीले के होकर हल्के दबाब से टूट जाते हैं, कभी सोचा है ऐसा क्यों होता है? मेडिकल साइंस के मुताबिक 50 प्रतिशत मामलों में इसका कारण फंगल इंफेक्शन और शेष में मिनरल्स (कैल्शियम), बॉयोटीन और विटामिन्स की कमी होता है। औपचारिक रूप से हमारे देश में इसके एक करोड़ से ज्यादा मामले सामने आते हैं लेकिन यह संख्या वास्तविकता से बहुत कम है क्योंकि नेल फंगल इंफेक्शन से ग्रस्त ज्यादातर लोग डॉक्टर के पास न जाकर घरेलू नुस्खे आजमाते हैं। वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की 10 प्रतिशत वयस्क आबादी नाखूनों के संक्रमण से पीड़ित है और इनमें महिलायें कम पुरूष ज्यादा हैं। खेती-किसानी करने वाले अक्सर  इस संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं। ओनिकोमाइकोसिस या टिनिया अनगियम नामक फंगल इंफेक्शन हाथों-पैरों की उंगलियों और अंगूठे के नाखूनों में होता है, इसके शुरूआती लक्षण नाखूनों के डार्क-मोटे होने तथा किनारे टूटने के रूप में उभरते हैं, यह सबसे पहले पैरों के अंगूठों में नजर आता है,  इलाज न कराने से उंगलियों और अगूठों में दर्द के साथ दुर्गन्ध और जूते पहनने पर यह दर्द तेज होता है और धीरे-धीरे सेल्युलाइटिस जैसे गम्भीर संक्रमण में बदल जाता है। क्यों होता है नाखूनों में इंफेक्शन? बिना सूर्य की रोशनी के जीने वाले कैन्डीडा फफूंद इसका कारण हैं, आमतौर पर, कवक का एक समूह जिसे डर्माटोफाइट्स कहा जाता है, नाखूनों के फंगल इंफेक्शन के लिए जिम्मेदार है, इसी के कारण लोगों को रिंग वॉर्म, एथलीट फुट और जोक-इच जैसे संक्रमण होते हैं। हालांकि ट्राइकोफाइटन रूब्रम, ट्राइकोफाइटन इंटरडिजिटल, एपिडर्मोफाइटन फ्लोकोसम, ट्राइकोफाइटन वायलेसियम, माइक्रोस्पोरम जिप्सम, ट्राइकोफाइटन टॉन्सिल, ट्राइकोफाइटन सौडनेंस, नियोसाइटालिडियम, स्कोपुलरिओप्सिस और एस्परजिलस जैसे यीस्ट और कवक भी नाखूनों में संक्रमण की वजह होते हैं। नाखूनों के संक्रमण से पीड़ित व्यक्ति के बिस्तर पर सोने या उसके मोजे-जूते शेयर करने से किसी भी स्वस्थ व्यक्ति को यह संक्रमण हो सकता है, गर्म और नम वातावरण में यह सबसे जल्द फैलता है। लक्षण क्या उभरते हैं? फंगस संक्रमित नाखून डार्क-थिक, नाज़ुक, भुरभुरे, विकृत, भद्दे-मटमैले या गहरे पीले रंग के होते हैं। नाखूनों  के नीचे स्केलिंग (हाइपरकेराटोसिस), पीली-सफेद-भूरी धारियाँ, पीले धब्बे, सोते समय नाखून टूटना, पैर की उंगलियों में दर्द और दुर्गंध जैसे लक्षण उभरते हैं। नाखूनों के संक्रमण से जुड़ा एक अन्य लक्षण त्वचा में मौजूद डर्माटोफाइट्स हैं जो शरीर के स्वस्थ क्षेत्रों में चकत्ते या खुजली के रूप में एलर्जी रियेक्शन की तरह उभरते हैं। किन्हें ज्यादा रिस्क? यह किसी को भी हो सकता है, लेकिन यह महिलाओं की तुलना में पुरुषों और युवाओं की तुलना में बुजुर्गों में अधिक आम है। रक्त परिसंचरण में कमी, धीमी गति से नाखून बढ़ना, फंगल संक्रमण की फैमिली हिस्ट्री, ज्यादा पसीना, ह्यूमिड वातावरण, कृत्रिम नाखून लगाने, गंदे मोजे पहनने, वेंटीलेशन रोकने वाले तंग जूतों, स्विमिंग पूल, जिम और शॉवर रूम में नंगे पांव चलना,  नाखून के आसपास की त्वचा में चोट या संक्रमण, मधुमेह, एड्स, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को इसका रिस्क ज्यादा होता है। वृद्ध वयस्कों यानी 65 साल से ज्यादा उम्र वालों को इसका सबसे अधिक रिस्क रहता है क्योंकि शरीर में धीमा रक्त प्रवाह और नाखूनों का धीमी गति से बढ़ना उम्र बढ़ने जैसी प्राकृतिक प्रक्रिया का भाग है। पुष्टि कैसे? नाखूनों में फंगल इंफेक्शन की पुष्टि के लिये नाखून के नीचे से स्क्रैप लेकर पोटेशियम हाइड्रॉक्साइड स्मीयर कल्चर और KOH टेस्ट किया जाता है। इसी जांच से सोरायसिस, लाइकेन प्लेनस, कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस, ट्रॉमा, नेल बेड ट्यूमर, एक्जिमा और येलो नेल सिंड्रोम का पता चल जाता है। इलाज क्या है? इससे बचने का सबसे सरल तरीका है नाखूनों को छोटा और साफ रखना। नाखूनों को दांतों से न चबायें इससे संक्रमण तेजी से फैलने की आंशका रहती है। इसका इलाज लंबी और मंहगी प्रक्रिया है जिसमें ऐंटिफंगल दवाएं, नेल क्रीम्स और कुछ वैकल्पिक उपचार शामिक हैं। बाजार में ओवर द काउंटर क्रीम्स उपलब्ध हैं, लेकिन वे ज्यादा प्रभावी नहीं हैं। खाने वाली दवाओं में टेरबिनाफाइन (लैमिसिल), इट्राकोनाजोल (स्पोरानॉक्स) और फ्लुकोनाज़ोल (डिफ्लुकन) मुख्य हैं। याद रखें कि अच्छे ट्रीटमेंट के बाद भी नेल इंफेक्शन को ठीक होने में करीब 4 महीने का समय लगता है, गम्भीर मामलों में डॉक्टर पूरा नाखून ही निकाल देते हैं। घरेलू उपचार: खांसी के लिये इस्तेमाल होने वाली विक्स वेपोरब, लिस्ट्रीन माउथवाश या यूरिया पेस्ट को संक्रमिक नाखूनों पर लगाने से संक्रमण की ग्रोथ धीमी हो जाती है और यह आगे नहीं फैलता। स्नैकरूट पौधे के अर्क में में मौजूद सिक्लोपीरॉक्स तत्व प्राकृतिक एंटीफंगल है जो नाखूनों के संक्रमण पर लगाम लगाता है। अजवायन के तेल में पाया जाने वाला तत्व थाइमोल भी एंटीफंगल गुणों से भरपूर होता है, इसीलिये नेल इफेक्शन दूर करने की दवाओं में इसे टी-ट्री ऑयल के साथ इस्तेमाल किया जाता है। जैतून और सूरजमुखी जैसे ओजोनीकृत तेल भी नेल फंगल इंफेक्शन रोकने में असरदार हैं, इनमें मौजूद तत्व ओजोन परत में मौजूद गैसों के समान होने के कारण है कि कुछ वैज्ञानिक इन्हें फंगल इंफेक्शन के इलाज में केटोकोनाज़ोल नामक एंटी फंगल दवा से ज्यादा प्रभावी मानते हैं। अन्य वैकल्पिक दवाओं के रूप में ऑस्ट्रेलियाई चाय के पेड़ का तेल, सिरका और अंगूर के बीज का अर्क भी इस्तेमाल किया जाता है लेकिन इनके असर कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। यह भी देखा गया है कि समय के साथ शरीर की इम्युनिटी मजबूत होने से यह संक्रमण अपने आप ठीक हो गया। कैसे बचें नेल फंगल संक्रमण से? नाखूनों में फंगल संक्रमण रोकने के लिए हाथ-पैरों की स्वच्छता जरूरी है इसके तहत नाखून छोटे-सूखे और साफ रखें, मोजे पहने, ऐंटिफंगल स्प्रे या पाउडर उपयोग करें, पानी के अधिक संपर्क से बचने के लिए रबर के दस्ताने पहने, नाखून न चबायें, सार्वजनिक स्थानों और पूल में जूते या सैंडल पहने,  सुनिश्चित करें कि मैनीक्योर या पेडीक्योर सैलून में टूल्स ठीक से स्टरलाइज़ किये गये हों, कृत्रिम नाखूनों और नेल पॉलिश का उपयोग न करें, संक्रमित नाखूनों को छूने के बाद हाथ धोयें, बिस्तर पर नाखून न काटें और जूते-मोजे साझा न करें। नजरिया डॉयबिटीज और कम इम्यूनिटी (एड्स) वाले लोगों को इस संक्रमण से बचना चाहिये, वे इसके प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं। उन्हें इसका तुरन्त इलाज कराना चाहिये और इस सम्बन्ध में डॉक्टर से परामर्श करें। नेल इंफेक्शन पूरी तरह ठीक होने में लंबा समय लग सकता है इसलिये धैर्य रखें। नाखूनों को काटकर इधर-उधर न फेकें, विशेष रूप से बिस्तर पर कभी भी नाखून न काटें, ऐसा करने से नाखूनों का संक्रमण त्वचा में फैल सकता है। इलाज न कराने से नाखून स्थायी तौर पर क्षति ग्रस्त या संक्रमण शरीर के अन्य हिस्सों में फैल सकता है और सेल्युलाइटिस जैसा गम्भीर बैक्टीरियल संक्रमण हो सकता है। संक्रमण ठीक होने के बाद नाखूनों को स्वस्थ रखने के लिये डॉक्टर की सलाह पर कैल्शियम, बायोटिन और विटामिन डी सप्लीमेंट लें।
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